किसान आंदोलन बनाम तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़...
- डाॅ शरद सिंह
सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच सातवें दौर की वार्ता भी समाप्त हो गई, बिना किसी परिणाम के। दोनों पक्षों के हाथ लगी है आठवें दौर की वार्ता की तारीख़। ठंड, कोहरे और बारिश की मार झेलते किसान और सर्वसुविधायुक्त कमरों में बैठे सरकारी ज़िम्मेदार, इन दोनों के बीच एक ही चीज समान है और वह है तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़। वैसे यह मशहूर फिल्मी डाॅयलाॅग है सनी देओल का जिसे उन्होंने अदालती मुक़द्दमों की पेशियों के संबंध में बोला था लेकिन यह डाॅयलाॅग आज किसान आंदोलन के संदर्भ में भी सही बैठ रहा है। वार्ताओं के दौर चल रहे हैं और हाथ आ रही हैं आंदोलन का हल ढूंढती तारीख़ें।
04 जनवरी 2021 को किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच सातवें दौर की बातचीत शुरू होने से पहले आंदोलन में मारे गए लोगों के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। बैठक से पहले ही किसान संगठनों के नेताओं ने कह दिया था कि वे सरकार के सामने नया विकल्प नहीं रखेंगे। दरअसल, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली बैठक में किसान संगठनों से अनुरोध किया था कि कृषि सुधार कानूनों के संबंध में अपनी मांग के अन्य विकल्प दें, जिस पर सरकार विचार करेगी। पिछली बैठक में शामिल किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार ने संकेत दिया है कि वह कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी। उसने इसे लंबी और जटिल प्रक्रिया बताया था। छठें दौर की बैठक में सरकार ने किसानों की दो मांगें मान ली थीं। सरकार ने बिजली संशोधन बिल को वापस लेने और पराली जलाने से रोकने के लिए बने वायु गुणवत्ता आयोग अध्यादेश में बदलाव का भरोसा किसान नेताओं को दिया था। हालांकि कृषि कानूनों पर पेंच फंसा हुआ है। किसान सितंबर से ही इन कानूनों का विरोध करते हुए आंदोलन कर रहे हैं।
दिल्ली की कई सीमाओं समेत हरियाणा के कई जिलों में चल रहे किसान आंदोलन को एक माह दस दिन से ऊपर का समय हो चला है। बीते 41 दिनों से किसान कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए ठंड, बारिश, कोहरे और शीतलहर का प्रकोप झेल कर भी डटे हुए हैं। देश के किसानों का ये आंदोलन दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली में भारी बारिश और हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बावजूद किसान सिंघु बॉर्डर समेत कई सीमाओं पर मोर्चेबंदी पर डटे हुए हैं। किसानों ने अल्टीमेटम दिया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं तो वे अपने आंदोलन को और तेेेज करेंगे। जहां 03 जनवरी 2021, रविवार को यूपी गेट (दिल्ली-यूपी बॉर्डर) के अलावा किसानों नेे ज्ञानी बॉर्डर पर भी कब्जा कर लिया। वहीं राजस्थान से दिल्ली की ओर आ रहे किसानों पर देर रात हरियाणा पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछारें भी कीं। यह घटना गुरुग्राम से मात्र 16 किलोमीटर दूर रेवाड़ी अलवर मार्ग पर हुई।
हाड़-मांस के बने किसानों को भी मौसम की मार से जान-माल का नुकसान झेलना पड़ रहा है। कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल संगरूर के गांव बखोपीर के किसान गुरचरण सिंह की ठंड लगने से मौत हो गई। यूनियन के ब्लॉक उपाध्यक्ष गुरभजन सिंह बखोपीर ने बताया कि मृतक किसान गुरचरण सिंह (67) कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल होने गए थे। अधिक ठंड लगने से गुरचरण सिंह की तबीयत खराब हो गई और वह रविवार को घर आ गए लेकिन रात को तबीयत अधिक बिगड़ने से उनकी मौत हो गई। फिर भी आंदोलनकारी किसान अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी मांग पर डटे हुए हैं। सातवें दौर की चर्चा असफल होने के बाद भारतीय किसान यूनियन के युद्धवीर सिंह ने कहा कि मंत्री चाहते थे कि हम कानूनों पर चर्चा करें। हमने इसे खारिज कर दिया और कहा कि कानूनों पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हम कानूनों का पूरा रोलबैक चाहते हैं। सरकार हमें संशोधन की ओर ले जाने का इरादा रखती है लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि सरकार काफी दबाव में है। हम सभी ने कहा कि यह हमारी मांग है (कानूनों को निरस्त करना)। हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा किसी अन्य विषय पर चर्चा नहीं चाहते हैं। कानूनों को निरस्त करने तक विरोध वापस नहीं लिया जाएगा। हमने बताया कि पहले कृषि कानूनों को वापिस किया जाए, एमएसपी पर बात बाद में करेंगे। 8 तारीख तक का समय सरकार ने मांगा है। उन्होंने कहा कि 8 तारीख को हम सोचकर आएंगे कि ये कानून वापिस हम कैसे कर सकते हैं, इसकी प्रक्रिया क्या हो।
राकेश टिकैत ने कहा कि 8 जनवरी 2021 को सरकार के साथ फिर से मुलाकात होगी। तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने पर और एमएसपी दोनों मुद्दों पर 8 तारीख को फिर से बात होगी। हमने बता दिया है कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं। इस बैठक में सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, पीयूष गोयल और सोम प्रकाश मौजूद रहे।
किसानों के संघर्ष की निरंतरता को देखते हुए विभिन्न राजनीतिक दल उनके समर्थन में बयानबाज़ी कर रहे हैं। वैसे आंदोलनकारी किसानों ने आरम्भ में ही राजनीतिक दलों को स्पष्ट कर दिया था कि जिसे समर्थन देना है वह बाहर से दे। राजनीतिक दलों के लोगों से हम अपना मंच साझा नहीं करेंगे और न ही अपने प्रदर्शन में शामिल होने देंगे। राजनीतिक दल भी उनकी इस बात को स्वीकार करते हुए उनके मंच से दूर रह कर समर्थन दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि ‘‘भाजपा की सरकार पर किसानों को बिल्कुल भरोसा नहीं है। मंडी बंद कर दी, मंडी बेच दी, कितने किसानों पर आंसू गैस के गोले चलाए गए, कितनों की हत्या हो गई, कितनों ने आत्महत्या कर ली और कितनों की जानें चली गई लेकिन सरकार को परवाह नहीं है।’’
यद्यपि आंदोलनकारियों ने इस तरह के राजनीतिक बयानों से स्वयं को दूर रखा है। वे किसी भी राजनीतिक दल का संदर्भ काम में नहीं ला रहे हैं। संभवतः उन्हें आरम्भ से ही यह डर था कि आंदोलन में राजनीतिक दलों के शामिल होने से आंदोलन की वास्तविकता पर राजनीति का मुलम्मा चढ़ जाएगा और किसानों का हित धरा के धरा रह जाएगा।
दिलचस्प बात तो यह है कि समाज के विभिन्न वर्गों का भी किसान आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। समाज के कई वर्गों के बाद अब किसानों को बौद्ध भिक्षुओं का भी साथ मिल गया है। गाजीपुर बॉर्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन के 38वें दिन प्रदर्शन में बौद्ध भिक्षुओं ने हिस्सा लिया। एक बौद्ध भिक्षु ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि ‘‘हम लखनऊ से आए हैं। किसान सड़कों पर हैं इसलिए हम मठों को छोड़ किसानों के साथ आए हैं। जब तक कानून वापस नहीं होंगे हम नहीं जाएंगे।’’
रहा चर्चा के दौरान माहौल का सवाल तो उसे उस तस्वीर से समझा जा सकता है जो सरकार और किसानों के बीच वार्ता के स्थल दिल्ली के विज्ञान भवन के अंदर की है जिसमें कुछ किसानों को कुर्सियों पर बैठे देखा जा सकता है, कुछ लोग हाल के फर्श पर बैठे हुए है जबकि नजदीक के टेबल पर लंच रखा है। किसानों ने अपने लंगर से आया खाना खाया और किसानों ने सरकार के लंच को ठुकरा दिया। वार्ता में भाग लेने वाले किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के सरवन सिंह पंधेर के अनुसार, ‘‘कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने साफतौर पर कहा कि कानून रद्द नहीं किए जाएंगे, उन्होंने हमसे यहां तक कहा कि कानून रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लीजिए।’’ पंधेर ने कहा, ‘‘हमने पंजाब के युवाओं से लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहने को कहा है। हम गणतंत्र दिवस पर बड़ा प्रदर्शन करेंगे।’’
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए अब सरकार को कोई ऐसा कदम उठाना चाहिए जिससे एक सर्वमान्य रास्ता निकल सके। विधि विशेषज्ञों के अनुसार एक रास्ता यह भी हो सकता है कि इस कानून को राज्यों के अधिकार क्षेत्र के हवाले कर दिया जाए। राज्य सरकारें अपने राज्य की स्थितियों के अनुसार इसे लागू करें। अथवा विशेषज्ञों के अनुसार दूसरा विकल्प है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेते हुए उनका पुनर्निर्धारण किया जाए और ऐसा करते समय किसानों को उसमें शामिल रखा जाए। बहरहाल, जैसा कि कृषि मंत्री नरेेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार को अभी होमवर्क करने के लिए समय चाहिए तो चर्चा के आठवें दौर की तारीख़ तो हाथ आनी ही थी। और याद आना था फिल्म ‘‘दामिनी’’ (1993) में अभिनेता सनी देओल का बोला गया वह मशहूर डाॅयलाॅग जिसमें वे अदालती पेशियों के संबंध में कहते हैं-‘‘ तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़ मिलती रही है। लेकिन इंसाफ नहीं मिला माय लॉर्ड, इंसाफ़ नहीं मिला, मिली है तो सिर्फ ये तारीख़।’’
आशा की जानी चाहिए कि 08 जनवरी 2021 को होने वाली आठवें दौर की चर्चा में कोई न कोई सकारात्मक निष्कर्ष निकल सकेगा और किसानों तथा सरकार के बीच का यह गतिरोध समाप्त हो सकेगा।
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(दैनिक सागर दिनकर में 06.01.2021 को प्रकाशित)
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