Wednesday, October 23, 2019

बुंदेलखंड का भी महत्वपूर्ण त्यौहार है करवाचौथ - डॉ. शरद सिंह (नवभारत में प्रकाशित)


Dr (Miss) Sharad Singh
बुंदेलखंड का भी महत्वपूर्ण त्यौहार है करवाचौथ
- डॉ. शरद सिंह
(नवभारत में प्रकाशित)
बुंदेलखंड में कार्तिक मास त्यौहारों का माह माना जाता है। इस माह में छोटे-बड़े अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं। उन सभी की अपनी अलग-अलग महत्ता है। कुछ त्यौहार ऐसे हैं जो बुंदेली माटी में कब रच-बस गए यह जान पाना कठिन है। जैसे एक त्यौहार है करवा चौथ। आज यह त्यौहार गांवों से ले कर शहरों ओर महानगरों तक पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है। निसंदेह इसमें आडंबर जुड़ते गए हैं किन्तु इस त्यौहार की मूल भावना आज भी शाश्वत है कि अपने जीवन साथी की दीर्घायु की कामना किया जाना।
Navbharat -  Bundelkh Me Karva Chauth  - Dr Sharad Singh
   बुंदेलखंड में भी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार की प्रतीक्षा करती हैं। करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के अटूट बंधन का प्रतीक है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाले इस त्यौहार के संबंध में रोचक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब देवताओं और दानवों के मध्य युद्ध आरम्भ हुआ तो ब्रह्मा ने देवपत्नियों से कहा कि वे अपने पतियों की जीवनरक्षा हेतु व्रत रखें। जब देवताओं की विजय हुई तो चंद्रमा ने उदित हो कर यह शुभ समाचार दिया। तब देवपत्नियों से अपना व्रत समाप्त किया। एक अन्य कथा के अनुसार देवी पार्वती ने कठिन तपस्या के उपरांत भगवान शंकर को कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी को पति रूप में प्राप्त किया था और देवताओं ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जिस तरह पार्वती जी को अखंड सौभाग्य का वरदान मिला था ठीक उसी तरह का सौभाग्य पाने के लिए सभी महिलाएं उपवास रखती है। अन्न जल का त्याग कर व्रत रखकर, रात्रि समय में चांद को अर्ध्य देकर यह व्रत पूर्ण होता है।
करवा चौथ व्रत में बांचे जाने वाली कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन थी। बहन का नाम था करवा। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्ध्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताया कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्ध्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन ने भाई की बात पर विश्वास किया और दीपक को चांद समझ कर अपना व्रत समाप्त कर दिया। किन्तु इसके बाद भोजन के हर निवाले के साथ अपशकुन के संकेत मिलने लगते हैं और अंत में उसे पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। वह बिलख उठती है तब उसकी भाभियां उसे सच्चाई से अवगत कराती हैं। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ’यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। अंत में उसकी तपस्या देख कर भाभी करवा के पति को जीवित कर देती है। इस कथा को सुन कर सभी विवाहिताएं प्रार्थना करती हैं कि जैसे करवा के पति को जीवन मिला वैसे ही हमारे पति के जीवन की रक्षा होती रहे।
बुंदेलखंड के अजयगढ़ क्षेत्र में कुछ वर्ष पूर्व करवा चौथ का यह गीत ढोलक की थाप के साथ महिलाओं को गाते हुए मैंने सुना था -
करवा माई तोए बिजना झलूं
दीजो-दीजो पिया जी को
चंदा औ सूरज की लम्बी उम्मर
करवा माई तोए देऊं गुड़ की डली
दीजो-दीजो पिया जी को मोरी उम्मर
वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक युग में ऐसी कथाएं पुरातनपंथी लग सकती हैं। चलनी से चन्द्रमा को देख कर व्रत तोड़ने की बात बेमानी लग सकती है जबकि हम चन्द्र अभियान चला रहे हैं। किन्तु यह त्यौहार मुख्य रूप से आस्था और विश्वास का है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम और स्थायित्व का है। अतः इसके मानवीय संवेदनात्मक पक्ष को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। संभवतः यही कारण है कि आज दुनिया में फैले समूचे भारतीय हिन्दू समुदाय की भांति बुंदेलखण्ड में भी करवाचौथ का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। बस, आवश्यकता है तो इस बात की कि इस त्यौहार में अंधविश्वास की हद तक महिलाएं अपनी सेहत को दांव पर न लगाएं और बाज़ारवाद की अंधी दौड़ में शामिल न हों। यह त्यौहार भी अन्य त्यौहारों की भांति सुंदर और मानवमूल्यों से परिपूर्ण है।
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