Dr (Miss) Sharad Singh |
बुंदेलखंड में महात्मा गांधी की यात्राओं का लोक पर प्रभाव
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(नवभारत में प्रकाशित)
वह स्वतंत्रता आंदोलन का दौर था। प्रत्येक भारतीय स्वतंत्रता पाना चाहता
था और एक ऐसे नेता के पीछे चलने को आतुर था जो आडंबर रहित और अहिंसावादी
विचारों का था। वह नेता थे महात्मा गांधी। उन्होंने स्वयं को कभी नेता नहीं
माना किन्तु सारी दुनिया ने उन्हें भारत का सर्वोच्च नेता माना।
Navbharat - Bundelkh Me Mahatma Gandhi Ki Yatrayen Aur Lok pr Prabhav - Dr Sharad Singh |
राष्ट्रीयस्तर पर जिस मुद्दे को गंभीरता से किसी ने नहीं लिया उस ओर गांधी
जी ने दृढ़तापूर्वक कदम उठाया। महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को वायसराय
को सूचित किया कि वे अपने 78 अनुयाइयों के साथ ‘दांडी मार्च’ (दांडी
यात्रा) करने जा रहे हैं। ‘दांडी मार्च’ से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है,
जो महात्मा गांधी और उनके स्वयंसेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को
प्रारम्भ की गयी। इसका मुख्य उद्देश्य था, अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘नमक
कानून’ को तोड़ना। आश्रम के कई सदस्य, पुरुष और महिलाएं 24 दिन की ऐतिहासिक
यात्रा पर रवाना हुए। गरीब किसान ब्रिटिश कानून के कारण अपनी ‘नमक की खेती’
नहीं कर पा रहे थे। गांधी जी ने वेब मिलर सहित अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ
साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी नामक स्थान के लिए 12 मार्च,
1930 ई. को प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी
पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून को तोड़ा। महात्मा गांधी ने दांडी
यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के
आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहां से कराडी और दांडी की यात्रा
पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लगभग 13 मील का है।
11 मार्च, 1930 को गांधी जी ने इच्छा प्रकट की कि आंदोलन लगातार चलता रहे, इसके लिए सत्याग्रह की अखंड धारा बहती रहनी चाहिए, कानून भले ही भंग हो पर शांति रहे। लोग अहिंसा और धैर्य का रास्ता अपनाएं। 11 मार्च की संध्या की प्रार्थना नदी किनारे रेत पर हुई, उस समय गांधी जी ने कहा, ‘‘मेरा जन्म ब्रिटिश साम्राज्य का नाश करने के लिए ही हुआ है। मैं कौवे की मौत मरूं या कुत्ते की मौत, पर स्वराज्य लिए बिना आश्रम में पैर नहीं रखूंगा।’’
12 मार्च को प्रातः वह ऐतिहासिक दिन आरम्भ हुआ जब 61 वर्षीय महात्मा गांधी के नेतृत्व में 78 सत्याग्रहियों ने यात्रा आरम्भ की। उस समय किसने सोचा था कि सुदूर बुंदेलखंड में भी इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा होगा। महात्मा गांधी के तेजस्वी और स्फूर्तिमय व्यक्तित्व ने देश की जनता के मन में ऊर्जा का संचार किया। बुंदेलखंड में भी इस आंदोलन के विचार पहुंचे और देखते ही देखते अनेक स्वतंत्रता प्रेमी महात्मा गांधी के समर्थन में आ खड़े हुए। उस समय यह बुंदेली गीत जोर-शोर से गाया जाता था-
हमें सोई नमक तोड़बे के लाने जाने है
गांधी को साथ निभाने है,
अंग्रेजन खों मार भगाने हैं....
लगभग दस वर्ष पहले पन्ना (म.प्र.) के 75 वर्षीय ठाकुर लच्छे दाऊ ने अपना संस्मरण सुनाते हुए मुझे यह गीत सुनाया था और साथ ही एक घटना भी बताई थी कि उनकी दादी और मां इस गीत को गाती हुई चक्की चलाया करती थीं। पन्ना में नियुक्त अंग्रेजों के नुमाइंदे अधिकारी को किसी ने इस बात की शिक़ायत कर दी कि ठाकुर परिवार के घर की महिलाएं अंग्रेज विरोधी कार्यक्रम में संलिप्त हैं। इसके बाद घर पर दो सिपाही आ धमके। मां और दादी ने पर्दे के भीतर से ही बात की और गीत को बदल कर सुनाते हुए फटकार लगा दी। बेचारे सिपाही अपना-सा मुंह ले कर लौट गए। लेकिन इस घटना ने महिलाओं के बीच दांडी यात्रा की चर्चा को और हवा दे दी।
महात्मा गांधी की दांडी यात्रा के संबंध में एक और गीत प्रचलित था-
मैंहगो नमक हमें नई खाने
अंग्रेजन को सबक सिखाने
आए हमाए ऐंगर गांधी
जेई बात हमखों समझाने
बुजुर्ग बताते हैं कि महात्मा गांधी सागर भी आए थे। यहां उनकी यात्रा से संबधित पोस्टर छापे गए थे। वे अनंतपुरा से 2 दिसंबर की शाम 4 बजे सागर आए थे। स्टेशन के पास उनकी आमसभा हुई थी, जो शाम 7 बजे तक चली। आज़ादी के दौर में हर तरफ गांधी का नाम गूंज रहा था। वक्ता के तौर पर उनको सुनने काफी लोगों की भीड़ जमा हुआ करती थी।
___________________
11 मार्च, 1930 को गांधी जी ने इच्छा प्रकट की कि आंदोलन लगातार चलता रहे, इसके लिए सत्याग्रह की अखंड धारा बहती रहनी चाहिए, कानून भले ही भंग हो पर शांति रहे। लोग अहिंसा और धैर्य का रास्ता अपनाएं। 11 मार्च की संध्या की प्रार्थना नदी किनारे रेत पर हुई, उस समय गांधी जी ने कहा, ‘‘मेरा जन्म ब्रिटिश साम्राज्य का नाश करने के लिए ही हुआ है। मैं कौवे की मौत मरूं या कुत्ते की मौत, पर स्वराज्य लिए बिना आश्रम में पैर नहीं रखूंगा।’’
12 मार्च को प्रातः वह ऐतिहासिक दिन आरम्भ हुआ जब 61 वर्षीय महात्मा गांधी के नेतृत्व में 78 सत्याग्रहियों ने यात्रा आरम्भ की। उस समय किसने सोचा था कि सुदूर बुंदेलखंड में भी इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा होगा। महात्मा गांधी के तेजस्वी और स्फूर्तिमय व्यक्तित्व ने देश की जनता के मन में ऊर्जा का संचार किया। बुंदेलखंड में भी इस आंदोलन के विचार पहुंचे और देखते ही देखते अनेक स्वतंत्रता प्रेमी महात्मा गांधी के समर्थन में आ खड़े हुए। उस समय यह बुंदेली गीत जोर-शोर से गाया जाता था-
हमें सोई नमक तोड़बे के लाने जाने है
गांधी को साथ निभाने है,
अंग्रेजन खों मार भगाने हैं....
लगभग दस वर्ष पहले पन्ना (म.प्र.) के 75 वर्षीय ठाकुर लच्छे दाऊ ने अपना संस्मरण सुनाते हुए मुझे यह गीत सुनाया था और साथ ही एक घटना भी बताई थी कि उनकी दादी और मां इस गीत को गाती हुई चक्की चलाया करती थीं। पन्ना में नियुक्त अंग्रेजों के नुमाइंदे अधिकारी को किसी ने इस बात की शिक़ायत कर दी कि ठाकुर परिवार के घर की महिलाएं अंग्रेज विरोधी कार्यक्रम में संलिप्त हैं। इसके बाद घर पर दो सिपाही आ धमके। मां और दादी ने पर्दे के भीतर से ही बात की और गीत को बदल कर सुनाते हुए फटकार लगा दी। बेचारे सिपाही अपना-सा मुंह ले कर लौट गए। लेकिन इस घटना ने महिलाओं के बीच दांडी यात्रा की चर्चा को और हवा दे दी।
महात्मा गांधी की दांडी यात्रा के संबंध में एक और गीत प्रचलित था-
मैंहगो नमक हमें नई खाने
अंग्रेजन को सबक सिखाने
आए हमाए ऐंगर गांधी
जेई बात हमखों समझाने
बुजुर्ग बताते हैं कि महात्मा गांधी सागर भी आए थे। यहां उनकी यात्रा से संबधित पोस्टर छापे गए थे। वे अनंतपुरा से 2 दिसंबर की शाम 4 बजे सागर आए थे। स्टेशन के पास उनकी आमसभा हुई थी, जो शाम 7 बजे तक चली। आज़ादी के दौर में हर तरफ गांधी का नाम गूंज रहा था। वक्ता के तौर पर उनको सुनने काफी लोगों की भीड़ जमा हुआ करती थी।
___________________
(नवभारत, 02.10.2019) #बुंदेलखंड #महात्मा_गांधी #गांधी_जयंती #नवभारत #शरदसिंह
No comments:
Post a Comment