Dr (Miss) Sharad Singh |
चर्चा प्लस …
प्रेरणा देता रहेगा सरदार वल्लाभ भाई पटेल का व्यक्तित्व
- डाॅ. शरद सिंह
‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार वल्लभ भाई पटेल एक सच्चे देशभक्त थे। आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में उन्होंने भारतीय गणराज्य में रियासतों के एकीकरण का दुरूह कार्य जिस कुशलता से कर दिखाया, वह सदैव स्मरणीय रहेगा। स्वभाव से वे निर्भीक थे। अद्भुत अनुशासनप्रियता, अपूर्व संगठन-शक्ति, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता उनके चरित्र के अनुकरणीय गुण थे। कर्म उनके जीवन का साधन था तथा देश सेवा उनकी साधना थी। उनका राजनैतिक योगदान देश के व्यापक हित से जुड़ा हुआ होने के कारण ही उन्हें ‘भारतीय बिस्मार्क’ भी कहा जाता है।
Charcha plus a column of Dr (Miss)Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily, चर्चा प्लस …प्रेरणा देता रहेगा सरदार वल्लाभ भाई पटेल का व्यक्तित्व - डाॅ. शरद सिंह |
वास्तव में वल्लभ भाई पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उन्होंने रियासतों के एकीकरण जैसे असम्भव दिखने वाले कार्य को उस समय अन्जाम दिया जब विंस्टन चर्चिल इस उपमहाद्वीप को हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और छोेटे-छोटे रजवाड़ों के समूह के रूप में बांटना चाहते थे। अगर सरदार पटेल निरन्तर प्रयास न करते तो आज भारत की जगह बहुत सारे देश होेते जो एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी बने रहते।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड स्थित एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम झावेरभाई और माता का नाम लाडभाई था। उनके पिता पूर्व में करमसाड में रहते थे। करमसाड गांव के आस-पास दो उपजातियों का निवास था- लेवा और कहवा। इन दोनों उपजातियों की उत्पत्ति भगवान रामचन्द्र के पुत्रों लव और कुश से मानी जाती है। वल्लभ भाई पटेल का परिवार लव से उत्पन्न लेवा उपजाति का था जो पटेल उपनाम का प्रयोग करते थे। वल्लभ भाई के पिता मूलतः कृषक होते हुए भी एक कुशल योद्धा एवं शतरंज के श्रेष्ठ खिलाड़ी थे। उत्तर भारत तथा महाराष्ट्र से नाडियाड आने वाले व्यापारियों के माध्यम से इस सम्बन्ध में छिटपुट समाचार झावेर भाई को मिलते रहते थे। वे भी अंग्रेजों द्वारा भारतीय कृषकों के साथ किए जाने वाले भेद-भाव से अप्रसन्न थे। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके कुछ मित्रा नाना साहब की सेना में भर्ती होने जा रहे हैं। झावेर भाई ने भी तय किया कि वे भी सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ेंगे। वे जानते थे कि उनके परिवारजन इसके लिए उन्हें अनुमति नहीं देंगे। अतः एक दिन वे बिना किसी को बताए घर से निकल पड़े। नाना साहब की सेना में भर्ती होने के उपरांत उन्होंने सैन्य कौशल प्राप्त किया। उस समय तक झांसी की रानी ने ‘अपनी झांसी नहीं दूंगी’ का उद्घोष कर दिया था। सन् 1857 में अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई की सहायता करने के लिए नाना साहब अपनी सेना लेकर झांसी की ओर चल दिए। उनकी सेना में झावेर भाई भी थे।
बचपन से ही संषर्घमय जीवन व्यतीत करने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्वभाव में कठोरता तो आई ही थी, साथ ही साथ कठिन से कठिन समस्याओं को सहज ढंग से सुलझाने की क्षमता का भी विकास उनमें हुआ था। उनके स्वभाव में गम्भीरता थी और इच्छाशक्ति में लोहे जैसी मजबूती। वल्लभ भाई बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे किन्तु उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे इंग्लैंड जा सकें। उन्होंने वकालत करके धन जोड़ा और जब इंग्लैंड जाने का समय आया तो उनके बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें पहले इंग्लैंड जाने दें। अनुपम त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वल्लभ भाई ने अपने बड़े भाई को अपने बदले इंग्लैंड जाने दिया और स्वयं उनके लौटने के कुछ समय बाद इंग्लैंड गये।
इंग्लैंड जा कर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई अच्छे अंकों से पूरी की। भारत वापस आ कर एक बार फिर वकालत आरम्भ की और वकालत के क्षेत्र में ख्याति एवं प्रतिष्ठा अर्जित की। आरम्भ में वल्लभ भाई महात्मा गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे किन्तु जब वे गांधी जी के निकट सम्पर्क में आए तो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने न केवल अहिंसा एवं सत्याग्रह को अपनाया अपितु पाश्चात्य वस्त्रों को सदा के लिए त्याग कर धोती-कुर्ता की विशुद्ध भारतीय वेश-भूषा अपना ली।
स्वतंत्राता आन्दोलन में वल्लभ भाई का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आन्दोलन में था। गुजरात का खेड़ा जिला उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से लगान में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो वल्लभ भाई ने महात्मा गांधी के साथ पहुंच कर किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया। अंततः सरकार को उनकी मांग माननी पड़ी और लगान में छूट दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। इसके बाद उन्होंने बोरसद और बारडोली में सत्याग्रह का आह्वान किया। बारडोली कस्बे में सत्याग्रह करने के लिए ही उन्हंे पहले ‘बारडोली का सरदार’ और बाद में केवल ‘सरदार’ कहा जाने लगा। यह एक कुशलतापूर्वक संगठित आन्दोलन था जिसमें समाचारपत्रों, इश्तिहारों एवं पर्चों से जनसमर्थन प्राप्त किया गया था तथा सरकार का विरोध किया गया था। इस संगठित आन्दोलन की संरचना एवं संचालन वल्लभ भाई ने किया था। उनके इस आन्दोलन के समक्ष सरकार को झुकना पड़ा था।
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन के दौरान सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार करने आह्वान करते हुए स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए वल्लभ भाई ने सदा के लिए वकालत का त्याग कर दिया। इस प्रकार का कर्मठताभरा त्याग वल्लभ भाई ही कर सकते थे।
वास्तव में वल्लभ भाई पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उन्होंने रियासतों के एकीकरण जैसे असम्भव दिखने वाले कार्य को उस समय अन्जाम दिया जब विंस्टन चर्चिल इस उपमहाद्वीप को हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और छोेटे-छोटे रजवाड़ों के समूह के रूप में बांटना चाहते थे। अगर सरदार पटेल निरन्तर प्रयास न करते तो आज भारत की जगह बहुत सारे देश होेते जो एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी बने रहते। दुर्भाग्यवश, कश्मीर की रियासत का मामला जवाहरलाल नेहरू ने अपने लिए रख लिया था, जो आज तक नहीं सुलझ सका जबकि डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि राष्ट्रवादी नेता चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के प्रश्न को हल करने का दायित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपा जाना चाहिए किन्तु जवाहरलाल नेहरू इस पक्ष में नहीं थे। जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का मामला अपने हाथ में ही रखा। यदि जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर की रियासत को भी वल्लभ भाई के हवाले कर दिया होता तो कश्मीर की समस्या 21वीं सदी का मुंह कभी नहीं देख पाती। वस्तुतः वल्लभ भाई पटेल के जीवन के बारे में पढ़ना भारतीय संस्कृति एवं भारतीय मूल्यों को पढ़ने के समान है।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 30.10.2019)
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