Wednesday, January 22, 2020

शून्यकाल ... बुंदेलखंड में आज भी कमी है महिला उद्योगों की - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
शून्यकाल  
बुंदेलखंड में आज भी कमी है महिला उद्योगों की  
  - डॉ. शरद सिंह
      आर्थिक पिछड़ेपन का दृष्टि से जो स्थान भारत के मानचित्र में उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश का है, वही स्थिति झांसी तथा सागर सम्भाग के जनपदों के दतिया-ग्वालियर सहित है। यहां पर विकास की एक सीढ़ी चढ़ना दूभर है। बुंदेलखंड का प्रत्येक ग्राम भूख और आत्महत्याओं की करुण कहानियों से भरा है। बुंदेलखंड में महिलाओं की शिक्षा एवं आर्थिक विकास की क्रियाओं में भागेदारी भी अपेक्षाकृत न्यून है। 
        वे सिर पर दो-दो, तीन- तीन घड़े उठाए चार - पांच किलोमीटर जाती हैं और अपने परिवार की प्यास बुझाने के लिए सिर पर पानी ढो कर लाती हैं। पहाड़ी या घाटी भी इनका रास्ता रोक नहीं पाती है। बढ़ते अपराध और सूखे की मार भी इन्हें डिगा नहीं पाती है क्योंकि ये हैं बुंदेलखंड की जीवट महिलाएं। बुंदेलखंड में महिलाएं घर-परिवार की अपनी समस्त जिम्मेदारियां निभाती हुई अपने परिवार के पुरुष सदस्यों का हाथ खेतीबारी में बंटाती आ रही हैं। दोहरी-तिहरी जिम्मेदारी के तले दब कर भी उफ न करने वाली बुंदेली महिलाओं के लिए मुसीबतों की कमी कभी नहीं रही। देश की आजादी के अनेक दशक बाद भी बुंदेली महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत कम है। उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की गाथाएं तो हमेशा सुनाई और रटाई गईं किन्तु लक्ष्मीबाई जैसी शिक्षा, आत्मरक्षा कौशल अथवा आर्थिक संबल उन्हें प्रदान नहीं किया गया। फिर भी यह बुंदेली महिलाओं की जीवटता थी कि वे बीड़ी निर्माण, वनोपज संग्रहण आदि के द्वारा अपने परिवार की हरसंभव आर्थिक मदद करती रही हैं। लेकिन अब बीड़ी उद्योग और वनोपज संग्रहण के क्षेत्र में आमदनी के अवसर कम हो चले हैं। बीड़ी उद्योग तो स्वयं ही घाटे में चल रहा है। विगत दो-तीन वर्ष में सात से अधिक बीड़ी कारखाने बंद हो गए। इस स्थिति में यदि गांवों का औद्योगीकरण करना है तो पहले महिलाप्रधान ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। इसके लिए बाहर से उद्योगपति को गांव में आमंत्रित करने की आवश्यकता ही नहीं है। इस काम के लिए महिलाओं को ही सक्षम बनाना पर्याप्त होगा। समूह आधारित सहकारिता के माध्यम से यह काम बखूबी किया जा सकता है। बुंदेलखंड के बाहर के क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा खड़े किए सेवा बैंक और लिज्जत पापड़ तो इसके अनुकरणीय उदाहरण हैं। 
      महिला सशक्तीकरण की दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है, ताकि महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो और ज्यादा संख्या में महिला उद्यमी तैयार करने लायक माहौल बन सके। सरकारों को समझना होगा कि देश में महिला श्रमशक्ति की भागदारी बढ़ाने के लिये महिलाओं को क्षमता विकास प्रशिक्षण उपलब्ध कराने को बढ़ावा देने, देश भर में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने, बड़ी संख्या में चाइल्ड केयर केन्द्र स्थापित करने तथा केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा हर क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने सम्बन्धी प्रयास किया जाना बेहद जरूरी है।
        बुंदेलखंड में महिलाओं को उद्योग से जोड़ने का प्रयास केंद्र सरकार द्वारा आरम्भ किया जा चुका है जिसके अंतर्गत जैव प्राद्योगिकी आधारित ग्रामीण महिलाओं का आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण कार्यक्रम तैयार किया गया है। जो उन्हें खेती, बागवानी व सब्जी की नई तकनीक के साथ पशुपालन और ग्रामीण कुटीर उद्योग से भी जोड़ रहा है। बुंदेलखंड के उत्तरप्रदेश के जनपद के रानीपुर खाकी, बैहार, बनाड़ी, गनीवां और कुंई गांव में करीब एक हजार महिला खेतीबारी सहित कुटीर उद्योग के गुर तुलसी कृषि विज्ञान केंद्र गनीवां के सहयोग से सीख चुकी हैं। किसानों को हमेशा नए-नए प्रशिक्षण देकर उन्नत खेती कराने का प्रयास किया गया है और अब उसे मजबूती देने के लिए महिला किसानों को आगे लाया जा रहा है। जैव प्राद्योगिकी आधारित ग्रामीण महिलाओं का आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण’ नाम के कार्यक्रम से जनपद के पांच गांव में समूह बनाकर महिलाओं को गांव में उपलब्ध संसाधन और प्रदर्शन के माध्यम से जाग्रत किया जा रहा है।
Shoonyakaal Column of  Dr Sharad Singh in Dainik Bundeli Manch, 22.01.2020
             मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में भी महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने व प्रदेश के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए शासन ने महिलाओं को उद्योगों में बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए गए। महिला उद्यमी प्रोत्साहन योजना- 2013 के तहत औद्योगिक इकाई लगाने वाली महिलाओं को ऋण पर छूट प्रदान की जाने लगी। लेकिन बुंदेलखंड में उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। इसे तथ्य को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश शासन ने उद्योगों में महिलाओं को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। महिलाओं को गुह एवं लघु उद्योग के लिए ऋण दिए जाने का प्रावधान रखा गया। बुंदेलखंड में लागू इस योजना में ऋण लेकर उद्यम लगाने वाली महिलाओं को पांच प्रतिशत की दर से एक साल में अधिकतम पचास हजार और पांच साल में ढाई लाख रुपये ब्याज में छूट देने का प्रावधान किया गया। लेकिन यहां भी आड़े आ गई साक्षरता की कमी। उद्योग के लिए ऋण लेने वाली महिला उद्यमी का इंटरमीडिएट पास होना आवश्यक योग्यता तय की गई। ऋण का सदुपयोग एवं अपेन उद्योग के संचालन की दृष्टि से यह सर्वथा उचित है किंतु इंटरमीडिएट से कम पढ़ी महिलाओं को इस लाभ से वंचित रहन पड़ा। 
       एक सबसे बड़ी बाधा यह भी है कि पुरुषसत्तात्मक बुंदेलखंड में आज भी महिलाओं को स्वनिर्णय का अधिकार पूरी तरह नहीं मिल सका है, विशेषरूप से आर्थिक मामलों में। जिस प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में पंच, सरपंच, पार्षद आदि स्तर पर महिलाएं रबर स्टैम्प की भांति पदासीन रहती हैं और उनके सारे राज-काज उनके पति यानी पंचपति, सरपंचपति, पार्षदपति सम्हालते हैं उसी प्रकार आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं को सरकार द्वारा अनेक योजनाओं के अंतर्गत दिए जाने वाले ऋण एवं लघु उद्योग का वास्तविक संचालन महिलाओं के हाथों में न हो कर उनके परिवार के पुरुषों अथवा उनके पति के हाथ में होता है। इसीलिए बुंदेलखंड में महिलाओं के लिए उस प्रकार के उद्योगों की विशेष आवश्यकता है जो पूर्णरूप से महिलाओं द्वारा संचालित हों और जिनमें महिलाओं को निर्णय लेने का पूरा अधिकार हो। इस प्रकार के उद्योगों की स्थापना से ही बुंदेली महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भता को बढ़ावा मिल सकेगा और वे बुंदेलखंड के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे सकेंगी।  
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(छतरपुर, म.प्र. से प्रकाशित "दैनिक बुंदेली मंच", 22.01.2020)
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