Tuesday, January 21, 2020

सागर: साहित्य एवं चिंतन ... साहित्य और समाज के प्रति समर्पित लेखिक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh
अपनी दीदी के कॉलम में जगह पाना किसी लॉटरी लगने से कम नहीं... आप भी पढ़िए कि वर्षा दीदी ने आज #आचरण में अपने #कॉलम में क्या लिखा मेरे बारे में...
Thank you Varsha Di 


वर्षा दीदी की फेसबुक वाॅल से साभार ....

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2719265908169792&id=100002592286536
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की साहित्यकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, जो मेरी छोटी बहन भी हैं, पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के वर्तमान साहित्यिक परिवेश को ....
सागर: साहित्य एवं चिंतन
साहित्य और समाज के प्रति समर्पित लेखिक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
- डाॅ. वर्षा सिंह
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परिचय:- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
जन्म:- 29 नवम्बर 1963
जन्म स्थान:- पन्ना, मध्यप्रदेश
माता-पिता:- डाॅ (श्रीमती) विद्यावती सिंह ‘‘मालविका’’ एवं स्व. रामधारी सिंह
शिक्षा:- डबल एम.ए., पीएच.डी., बीएड।
लेखन विधा:- गद्य एवं पद्य
प्रकाशन:- विभिन्न विधाओं में पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
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समग्र हिन्दी साहित्य में स्त्रीविमर्श एवं आधुनिक हिन्दी कथा लेखन के क्षेत्र में सागर नगर की डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह का योगदान अतिमहत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने पहले उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ से हिन्दी साहित्य जगत में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। परमाननद श्रीवास्तव जैसे समीक्षकों ने उनके इस उपन्यास को हिन्दी उपन्यास शैली का ‘‘टर्निंग प्वाइंट’’ कहा है। यह हिन्दी में रिपोर्ताजिक शैली का ऐसा पहला मौलिक उपन्यास है जिसमें आंकड़ों और इतिहास के संतुलित समावेश के माध्यम से कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अधिक स्थान दिया गया है। यही कारण है कि यह उपन्यास हिन्दी के ‘‘फिक्शन उपन्यासों’’ के बीच न केवल अपनी अलग पहचान बनाता है अपितु शैलीगत एक नया मार्ग भी प्रशस्त करता है। शरद सिंह जहां एक ओर नए कथानकों को अपने उपन्यासों एवं कहानियों का विषय बनाती हैं वहीं उनके कथा साहित्य में धारदार स्त्रीविमर्श दिखाई देता है। शरद सिंह के चारो उपन्यासों ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’, ‘‘पचकौड़ी’’ ‘‘कस्बाई सिमोन’’ और ‘‘शिखण्डी’’ के कथानकों में परस्पर भिन्नता के साथ ही इनमें शैलीगत् भिन्नता भी है। ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ में वे जहां बेड़िया समाज की स्त्रियों के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालती हैं, वहीं पचकौड़ी में बुन्देलखण्ड के सामंतवादी परिवेश में स्त्रीजीवन की दशा का चित्रण करते हुए वर्तमान सामाज, राजनीति एवं पत्रकारिता पर भी गहरा विमर्श करती हैं। ‘‘कस्बाई सिमोन’’ में वे एक अलग ही विषय उठाती हुई ‘‘लिव इन रिलेशन’’ को अपने उपन्यास का आधार बनाती हैं। इस विषय पर यह हिन्दी में पहला उपन्यास माना जाता है। हाल ही में उनका चैथा उपन्यास ‘‘शिखण्डी’’ प्रकाशित हुआ है जो ‘महाभारत’ के एक प्रमुख पात्र शिखण्डी के जीवन पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
Sagar Sahitya Avam Chintan Dr.(Miss) Sharad Singh - Dr. Varsha Singh
          लेखिका शरद सिंह का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से जिले पन्ना में 29 नवम्बर 1963 को हुआ था। जब वे साल भर की थीं तभी उनके सिर से उनके पिता श्री रामधारी सिंह का साया उठ गया। उनका तथा उनकी बड़ी बहन वर्षा सिंह का पालन-पोषण उनकी मां विद्यावती सिंह ने किया। शरद सिंह जी के नाना संत श्यामचरण सिंह शिक्षक होने के साथ ही गांधीवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उदारमना संत श्यामचरण सिंह ने उज्जैन स्थित अपना घर बेच कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सहायता की। इससे उन्हें समाज में तो सम्मान मिला किन्तु आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गई। तब पुत्री विद्यावती सिंह ने नौकरी करने का निर्णय किया और शीघ्र ही वे शिक्षका बन गईं। उन्होंने अपने छोटे भाई कमल सिंह की पढ़ाई का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया। घर की आर्थिक स्थिति सम्हल गई। किन्तु नियति ने कुछ और ही विधान रच रखा था। विद्यावती सिंह का देवरिया (उत्तर प्रदेश) निवासी रामधारी सिंह से विवाह हुआ। जब वे अपने पिता के घर पर थीं तभी एक दिन अचानक अपने पति रामधारी सिंह की मृत्यु की सूचना मिली। इसके बाद मानो उनका जीवन ही बदल गया। ससुराल पक्ष के मुंहमोड़ लेने के बाद उन्होंने तय किया कि वे किसी भी परिवारजन से एक पैसा भी लिए बिना अपनी दोनों पुत्रियों का लालन-पालन करेंगी।

शरद सिंह की मां श्रीमती विद्यावती सिंह अपने समय की ख्यातिलब्ध लेखिका एवं कवयित्री रही हैं। वे विद्यावती ‘‘मालविका’’ के नाम से साहित्य सृजन करती रही हैं। ‘‘मध्ययुगीन हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव’’ विषय पर लिखे गए शोधात्मक ग्रंथ पर विद्यावती जी को जहां आगरा विश्वविद्यालय ने पीएच. डी. की उपाधि प्रदान की वहीं इस ग्रंथ ने उन्हें हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय प्रतिष्ठा दिलाई। यह कहा जा सकता है कि साहित्य सृजन का गुण शरद सिंह को अपनी मां एवं बहन डॉ. वर्षा सिंह से विरासत में मिला। डॉ. वर्षा सिंह हिन्दी गजल के क्षेत्र में प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं। उनके छः गजल संग्रह एवं गजल विधा पर एक शोधात्मक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है।
डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने जन्म से मई 1988 तक पन्ना मध्यप्रदेश में रहते हुए शिक्षा ग्रहण की तथा उसी दौरान पत्रकारिता भी की। तदोपरांत जून 1988 से वे अपनी माताजी एवं बड़ी बहन के साथ सागर मध्यप्रदेश की विगत लगभग 32 वर्ष से निवासी हो चुकी हैं। यूं तो शरद सिंह ने बाॅयोलाॅजी विषयों के साथ हायर सेंकेंड्री परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु उनका अहिंसा प्रेमी मन एक मेंढ़क का डिसेक्शन करने के बाद ही द्रवित हो उठा और उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए कला संकाय को चुना। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा से मध्यकालीन भारतीय इतिहास विषय में प्रथम एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद डाॅ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व में प्रथम श्रेणी एवं विवि मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए अपना द्वितीय एम. ए. किया जिसमें उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्णपदक प्रदान किया गया। इसके बाद प्रख्यात पुराविद् डाॅ. कृष्णदत्त वाजपेयी एवं डाॅ. विवेकदत्त झा की प्रेरणा से डाॅ. एस.के. वाजपेयी के निदेशन में शोधकार्य पूर्ण कर ‘खजुराहो की मूर्तिकला का सौंदर्यात्मक अध्ययन’ विषय में डाॅ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से ही पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। शिक्षणकार्य के प्रति रूचि के कारण उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी.एड. किया तथा स्थानीय इम्मानुएल ब्वायज़ हा.से. स्कूल एवं जैन उ.मा.विद्यालय में क्रमशः तीन-तीन वर्ष अध्यापन कार्य किया। इसके साथ ही अल्पकालिक तौर पर बाल भारती स्कूल, अंकुर विद्यालय एवं आर्य कन्या विद्यालय सागर में भी अध्यापन कार्य किया।

डाॅ. शरद सिंह ने डाॅ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के एवीआरसी विभाग में फिल्म निर्माण सहायक के रूप में काम करते हुए उन्होंने अनेक शैक्षणिक फिल्मों के लिए पटकथालेखन, संपादन सहित फिल्म निर्माण का कार्य किया। किन्तु शीघ्र ही उन्हें अहसास हुआ कि वे एक कर्मचारी के रूप में बंधकर कार्य नहीं कर सकती हैं। तब उन्होंने स्वतंत्र लेखिका के रूप में लेखन कार्य करने एवं समाज सेवा से जुड़ने निर्णय लिया और उन्होंने विश्वविद्यालय की अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद डाॅ. शरद सिंह ने कभी मुड़ कर नौकरियों की ओर नहीं देखा। इस तरह की खुद्दारी विरले लोगो में ही मिलती है। डाॅ. शरद सिंह अपने इस निर्णय के संबंध में बताती हैं कि -‘‘मेरे इस निर्णय ने मुझे अपने और परायों के भेद को अच्छी तरह समझा दिया। अरे लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी कहते हुए कुछ लोगों ने मुंह मोड़ लिया लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने मेरे इस निर्णय का स्वागत किया। मेरे इस निर्णय में मेरा हर तरह से साथ दिया मेरी दीदी वर्षा सिंह ने।’’
पारिवारिक साहित्यिक वातावरण में शरद सिंह ने बाल्यावस्था से ही लेखनकार्य शुरू कर दिया था। 24 जुलाई 1977 को शरद सिंह जी की पहली कहानी दैनिक जागरण के रीवा (म.प्र.) संस्करण में प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था ‘भिखारिन’। स्त्री विमर्श संबंधी उनकी पहली प्रकाशित कहानी - ‘काला चांद’ थी जो जबलपुर (म.प्र.) से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र दैनिक नवीन दुनिया, के ‘नारीनिकुंज’ परिशिष्ट में 28 अप्रैल 1983 को प्रकाशित हुई थी। इस परिशिष्ट का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार राजकुमार ‘सुमित्र’ किया करते थे। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रथम चर्चित कहानी ‘गीला अंधेरा’ थी। जो मई 1996 में भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘‘वागर्थ’’ में प्रकाशित हुई थी। उस समय ‘वागर्थ’ के संपादक प्रभाकर श्रोत्रिय थे।
समीक्षक जगत ने शरद के लेखन को विविधता पूर्ण लेखन करार देते हुए रेखांकित किया है। इसी क्रम में स्त्री विमर्श पर उसने विशेष लेखन कार्य किया। जैसे बीड़ी बनाने वाली महिलाओं तथा तेंदूपत्ता संग्रहण करने वाली महिलाओं पर पुस्तक “पत्तों में कैद औरतें” तथा विश्व के विभिन्न देशों की स्त्रियों की स्थिति पर केंद्रित किताब ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’। बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों के स्त्री पक्ष को सामने लाने के लिए उन्होंने विशेष अध्ययन के उपरांत “डॉ. अम्बेडकर का स्त्री विमर्श” पुस्तक लिखी। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, जीवनियां, आदिवासी जीवन पर केंद्रित पुस्तकें, गजलों, कविताओं सहित विज्ञान पर केंद्रित पुस्तकें तथा इतिहास विशेष रुप से प्राचीन भारतीय इतिहास और खजुराहो पर उसने महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं। अब तक शरद की लगभग 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुका है तथा उनके उपन्यासों एवं कहानियों पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में शोधकार्य हुआ है। जहां तक लेखन और प्रकाशन का प्रश्न है तो डाॅ.शरद सिंह के अब तक चार उपन्यास- पिछले पन्ने की औरतें, पचकौड़ी, कस्बाई सिमोन तथा शिखण्डी प्रकाशित हो चुका हैं। उनकी प्रकाशित अन्य पुस्तकों में कहानी संग्रह - ‘बाबा फ़रीद अब नहीं आते’, ‘तीली-तीली आग’, ‘छिपी हुई औरत और अन्य कहानियां’, ‘गिल्ला हनेरा’ (पंजाबी में अनूदित कहानी संग्रह), ‘राख तरे के अंगरा’ (बुन्देली में कहानी संग्रह ), ‘श्रेष्ठ जैन कथाएं’ तथा ‘श्रेष्ठ सिख कथाएं’। स्त्री-विमर्श एवं महिला सशक्तिकरण पुस्तकें-‘पत्तों में क़ैद औरतें’, ‘औरत तीन तस्वीरें’, ‘डाॅ. अम्बेडकर का स्त्रीविमर्श’, ‘आधी दुनिया पूरी धूप’। जीवनी की छः पुस्तकें-‘दीन दयाल उपाध्याय’, ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी’, ‘वल्लभ भाई पटेल’, ‘महात्मा गांधी’, ‘महामना मदनमोहन मालवीय’, ‘अटल बिहारी वाजपेयी’। इतिहास पर पुस्तकें-‘खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व’, ‘प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास’। विज्ञान एवं पर्यावरण पर पुस्तकें -‘न्यायालयिक विज्ञान की नई चुनौतियां’, ‘सस्ता एवं सुरक्षित ऊर्जा स्रोत: सौर तापीय ऊर्जा’। नाटक संग्रह-‘आधी दुनिया-पूरी धूप, ‘गदर की चिनगारियां’। धर्म एवं दर्शन संबंधी सह लेखन पुस्तक-‘महामती प्राणनाथ: एक युगान्तकारी व्यक्तित्व’। भारत के आदिवासी जीवन पर पुस्तक-‘भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं’। मध्यप्रदेश के आदिवासी जीवन पर दस पुस्तकें- ‘आदिवासियों का संसार’,‘आदिवासी परम्परा’,‘आदिवासी लोक कथाएं, ‘आदिवासी लोक नृत्य-गीत’, ‘आदिवासियों के देवी-देवता’, ‘आदिवासी गहने और वेशभूषा’, ‘कोंदा मारो सींगा मारो’,‘शहीद देभोबाई’,‘मणजी भील और बुद्धिमान वेत्स्या’,‘शहीद उदय किरार’। बुंदेलखण्ड की लोककथाओं पर पुस्तक-‘बुंदेली लोक कथाएं’। नवसाक्षरों के लिए कथा पुस्तकें- ‘बधाई की चिट्ठी’, ‘बधाई दी चिट्ठी’ (पंजाबी में अनुवाद), ‘बेटी-बेटा एक समान’,‘महिलाओं को तीन ज़रूरी सलाह’,‘औरत के कानूनी अधिकार’, ‘मुझे जीने दो, मां!’,’फूल खिलने से पहले’,‘मंा का दूध’, ‘दयाबाई’, ‘जुम्मन मियां की घोड़ी’। तीन काव्य संग्रह -‘आंसू बूंद चुए’(नवगीत संग्रह),‘कर्णप्रिया की आत्मकथा’ (खण्डकाव्य), ‘पतझड़ में भीग रही लड़की’(ग़ज़ल संग्रह)। डाॅ. शरद सिंह की कहानियों का पंजाबी, उर्दू, उड़िया, मराठी एवं मलयालम में अनुवाद हो चुका है। साथ ही दो कहानी संग्रह पंजाबी में अनूदित एवं प्रकाशित हो चुके हैं।
डाॅ. शरद सिंह को उनके साहित्य सृजन एवं पत्रिका संपादन के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किया जा चुके जिनमें कुछ प्रमुख हैं- गृह मंत्रालय, भारत सरकार का ‘गोविन्द वल्लभ पंत पुरस्कार -2000’ ‘न्यायालयिक विज्ञान की नई चुनौतियां’, पुस्तक के लिए, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, म.प्र. शासन का ‘‘पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार’’, म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘‘वागीश्वरी सम्मान’’, श्रेष्ठ संपादन हेतु राज्यस्तरीय ‘‘पं. रामेश्वर गुरू पुरस्कार 2017’’ भोपाल, म.प्र., ‘नई धारा’ सम्मान, पटना, बिहार, ‘विजय वर्मा कथा सम्मान’, मुंबई, ‘पं. रामानन्द तिवारी स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान’, इन्दौर म.प्र., ‘जौहरी सम्मान’, भोपाल म.प्र., ‘गुरदी देवी सम्मान’, लखनऊ, उत्तरप्रदेश, ‘अंबिकाप्रसाद ‘दिव्य रजत अलंकरण-2004’, भोपाल, मध्यप्रदेश, ‘श्रीमंत सेठ भगवानदास जैन स्मृति सम्मान’, सागर, म.प्र., ‘कस्तूरी देवी चतुर्वेदी लोकभाषा लेखिका सम्मान -2004’, भोपाल, म.प्र., ‘मंा प्रभादेवी सम्मान’, भोपाल, म.प्र., ‘शक्ति सम्मान 2016’, सागर, म.प्र., ‘एक्सीलेंस अवार्ड फाॅर क्रिएटर्स 2018, सागर टी.वी. न्यूज’ सागर, म.प्र., ‘शिवकुमार श्रीवास्तव सम्मान’, सागर, म.प्र., ‘निर्मल सम्मान’’ सागर, म.प्र., ‘विट्ठलभाई पटेल सम्मान’, सागर म.प्र., क्षत्रिय समाज साहित्य सम्मान, सागर, म.प्र., ‘दादा डालचंद जैन स्मृति प्रतिभा सम्मान’, सागर, म.प्र., ‘सुधा सावित्री तिवारी स्मृति कवयित्री सम्मान’, सागर, म.प्र. - आदि अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के सम्मान।
आज उन्हें देश के प्रतिष्ठित लिटरेचर फेस्टिवल में तथा महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में व्याख्यान हेतु ससम्मान आमंत्रित किया जाता है। वे अब तक जिन उल्लेखनीय आयोजनों में शामिल हो चुकी हैं उनमें से कुछ प्रमुख हैं - राष्ट्रीय इतिहास संगोष्ठी, ललितपुर 2002 में इतिहासकार के रूप में व्याख्यान, भारत भवन, भोपाल 2005 एवं 2014 में कहानी पाठ, लखनऊ में ‘कथाक्रम’ साहित्यिक समारोह में व्याख्यान, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘स्त्रीविमर्श लेखन‘, 2014 पर व्याख्यान, बेंगलुरु लिट् फेस्ट 2014 में स्त्री लेखन पर व्याख्यान, स्वराज भवन, भोपाल 2014 में कहानी पाठ, विश्व हिन्दी सम्मेलन, भोपाल 2015 में हिन्दी के विकास पर विचार-विमर्श, चंडीगढ़ लिट्रेचर फेस्टिवल 2015 में उपन्यास ‘कस्बाई सिमोन’ का अंशपाठ एवं चर्चा, सिंहस्थ 2016 (उज्जैन) में महिला सशक्तिकरण पर व्याख्यान, अजमेर लिट्रेचर फेस्टिवल 2016 दो सत्रों में स्त्री-लेखन पर चर्चा, विश्व पुस्तकमेला 2017 में कहानीपाठ, स्पंदन संस्था, भोपाल द्वारा ‘स्त्री सर्जनात्मकता: एक यात्रा’, 2018 में कहानी पाठ, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल द्वारा आयोजित पावस व्याख्यानमाला में सतत् तीन वर्ष से व्याख्यान, ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’ पर अंतर्राष्ट्रीय शोध सेमिनार 2018, शासकीय महाविद्यालय, गढ़ाकोटा में रामकथा की विश्वव्यापकता पर व्याख्यान, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित ‘‘अतुल्य भारत: संस्कृति और राष्ट्र’’ अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 2018, में व्याख्यान, लखनऊ विश्वविद्यालय, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, जयपुर विश्वविद्यालय, डाॅ हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर आदि देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याख्यान, ‘आजतक’ न्यूजचैनल के इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल ‘‘साहित्य आजतक-2019’’ में साहित्य पर चर्चा-विमर्श, इन्दौर लिटरेचर फेस्टिवल 2020 साहित्य पर चर्चा-विमर्श। इनके सहित अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में उल्लेखनीय सहभागिता।
डाॅ. शरद सिंह के कथा साहित्य पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध कार्य किए जा चुके हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख एवं कहानियों का नियमित प्रकाशन होता रहता है। उनकी रचनाएं रेडियो एवं टेलीविजन से भी नियमित प्रसारित होती रहती हैं। डाॅ शरद सिंह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्तम्भ लेखन कर चुकी हैं जिनमें प्रमुख हैं-‘नई दुनिया’ समाचारपत्र में स्त्री मुद्दों पर स्तंभ लेखन, ‘नेशनल दुनिया’ (दिल्ली) में महिला संबंधी स्तंभ लेखन, ‘आचरण’ समाचारपत्र में ‘वामा’ स्तंभ लेखन, ‘आचरण’ समाचारपत्र में ‘बतकाव’ व्यंग-स्तंभ लेखन, ‘इंडिया इन साईड’ (लखनऊ) मासिक पत्रिका में ‘वामा’ महिला काॅलम। इन दिनों वे ‘नवभारत’ के संपादकीय पृष्ठ पर स्तम्भ लेखन, ‘सागर दिनकर’ (सागर) दैनिक समाचारपत्र में ‘चर्चा प्लस’ सामयिक विषयों पर काॅलम तथा ‘दैनिक बुंदेली मंच (छतरपुर) दैनिक समाचारपत्र में ‘शून्यकाल’ सामयिक विषयों पर काॅलम लिख रही हैं। वे दिल्ली से प्रकाशित होने वाले साहित्यिक पत्रिका ‘‘सामयिक सरस्वती’’ की कार्यकारी संपादक हैं।
समाज की शोषित एवं पीड़ित महिलाओं के पक्ष में लगातार कार्यरत शरद सिंह नवदुनिया प्रजामण्डल सहित सागर नगर की अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध रहते हुए नगर स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण, जलसेवा आदि समाजसेवा के कार्यों से जुड़ी हुई हैं। डाॅ शरद सिंह का साहित्यसृजन हिन्दी साहित्य जगत के लिए एक अमूल्य निधि है। वे अपनी सफलताओं पर रूकी नहीं हैं अपितु निरन्तर साहित्य साधना में संलग्न हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 21.01.2020)
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