Dr (Miss) Sharad Singh |
शून्यकाल
असंवेदना का वायरस और युवाओं में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति
- डाॅ. शरद सिंह
राष्ट्रवाद, बौद्धिकवाद, स्त्रीविमर्श जैसे बड़े-बड़े भारी-भरकम से लगने वाले शब्द कभी-कभी बहुत छोटे और हल्के लगने लगते हैं। जब एक युवती सामूहिक दुष्कर्म के बाद गला घोंट कर मार दी जाती है, वह भी एक तरफा प्रेम के चलते। दो विविध आपराधिक घटनाएं। फिर भी दोनों में एक समानता कि इनमें अपराधी युवा थे। वे युवा जिनके खेलने, खाने और पढ़ाई-लिखाई कर कैरियर बनाने के दिन थे। बुंदेलखंड हमेशा शांत क्षेत्र रहा है। यहां सौहार्द्र् का वातावरण रहा है। बेशक यहां दशकों तक दस्यु-समस्या अवश्य रही किन्तु वह भूख, ग़रीबी और आपसी दुश्मनी से उपजी हुई समस्या थी जिस पर लगभग काबू पाया जा चुका है। लेकिन आज अपराध उन हाथों से किए जा रहे हैं जिनके द्वारा कभी किसी तरह के हिंसा किए जाने की उम्मींद सपने में भी नहीं रहती है। ऐसा क्या बदल रहा है कि मासूम से लगने वाले युवा पेशेवर अपराधियों जैसे नृशंस अपराध करने लगे हैं?
अभी हाल ही में सागर संभाग मुख्यालय के आनंद नगर क्षेत्र में एक ऐसी लोमहर्षक वारदात हुई जिनसे सभी को सकते में डाल दिया। मकान के बाहर वाले गेट पर ताला लटक रहा था। मकान के अंदर से दुर्गंध आ रही थी। पुलिस ने जाकर दरवाजे में लगा ताला तोड़ अंदर जाकर देखा तो हॉल से लगे कमरे में तीन शव बिस्तर पर पड़े थे। तीनों मृतकों की पहचान रिटायर्ड आर्मीमैन रामगोपाल पटेल 40 वर्ष, उसकी पत्नी भारती 35 वर्ष और पुत्र छोटू पटेल 16 वर्ष के रूप में की गई जबकि मृतक रामगोपाल का बड़ा बेटा विकास 18 वर्ष लापता था। पुलिस को मौके से 7 सात लाइनों का एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि इसका जिम्मेदार मैं खुद हूं। मैं मरने जा रहा हूं, मुझे मत ढूंढ़ना। यद्यपि इसमें किसी का नाम नहीं लिखा था। विशेष बात यह है कि विकास और उसका छोटा भाई आदर्श आर्मी स्कूल में कक्षा 12 वीं और 7 वीं के छात्र थे। विकास के बारे में पुलिस को पता चला कि वह बिगड़ी हुई प्रवृत्ति का था। उसके नाना ने बताया कि एक बार उसने पिता का एटीएम कार्ड चोरी कर 40 हजार रुपए निकाल लिए थे। पहले यह माना जा रहा था कि विकास ने अपने माता-पिता और छोटे भाई को ज़हर दे कर मार डाला किन्तु पीएम रिपोर्ट तथा और जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि उसने अपने माता-पिता को गोली भी मारी थी। बात इतनी ही नहीं रही, हैवानीयत की हद तो यह कि वह तीन दिन तक यावों के पास खना पकाता खाता रहा और अपने स्कूल में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में भी सामान्य भाव से शामिल हुआ। ऐसा कृत्य वह भी मात्र 18 वर्ष की आयु के युवक द्वारा किया जाना स्तब्ध कर देने वाला है। आखिर उस युवक में इतनी हैवानीयत कहां से आई? अपने माता-पिता और छोटे भाई को जान से मारना, फिर उनके शव के साथ तीन दिन घर में न केवल रहना बल्कि खाना पका कर खाना, यह सुनने में इंसानी कृत्य नहीं लगता है। लिहाजा प्रश्न वही उठता है कि वह युवक इंसान से ऐसा हैवान कैसे बन गया? जब वह बिगड़ने की राह पर चल पड़ा था तब क्या उस पर अंकुश लगा पाना संभव नहीं था?
Dainik Bundeli Manch - Shoonyakaal, असंवेदना का वायरस और युवाओं में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति - Dr Sharad Singh, 31-01-2020 |
एक और घटना, ठीक उसके बाद। इलाका वही सागर संभागीय मुख्यालय से लगा हुआ मेनपानी ग्रामीण क्षेत्र। अब मेनपानी पहले जैसा ग्रामीण क्षेत्र भी नहीं रह गया है। लेकिन यहां आज भी खुले में शौचमुक्त अभियान को मुंह चिढ़ाती और झूठे आंकड़ों की पोल खोलती स्थितियां जघन्य अपराध को जाने-अनजाने अवसर दे रही हैं। एक युवती जिसकी सप्ताह भर बाद शादी होनी थी, सुबह खुले में शौच के लिए निकली। एक तरफा प्रेम में अंधा हो चला युवक उसकी ताक में घात लगाए बैठा था। उसने युवती के साथ न केवल बलात्कार किया बल्कि उसका गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया। इस घटना में भी एक और युवा अपने अपराध से मानवता को शर्मसार कर गया। इस प्रकार की प्रवृत्ति युवाओं में तेजी से बढ़ती जा रही है। न तो सागर संभाग के लिए इस प्रकार की घटना पहली घटना है और न ही युवाओं द्वारा किए जाने वाले अपराधों के आंकड़ों में यह पहली घटना है। एक तरफा प्रेम का हिंसक अंत एक पीढ़ी पहले तक नहीं था किन्तु अब यह अपराध आए दिन कहीं न कहीं घटित होता रहता है। यह आपराधिक ढिठाई इन युवाओं में कहां से आ रही है? क्या माता-पिता अपने बच्चों की हरकतों से बिलकुल बेख़बर हो चले हैं? पुलिस के दायित्व से भी कहीं पहले माता-पिता और परिवार का दायित्व होता है बच्चों और युवाओं की हरकतों पर ध्यान रखने का।
इसका एक उत्तर छतरपुर की उस घटना में भी मौजूद है जो प्रत्यक्षतः आपराधिक तो नहीं है किन्तु मानवता को शर्मसार करने वाली अवश्य है। समाज में बेटियों का प्रतिशत घटने का कारण यही है कि परिवार बेटों की चाह में बेटियों को दुनिया में ही नहीं आने देना चाहते हैं। यदि बेटियां दुनिया में आ भी जाएं तो उनकी उपेक्षा की जाती है। बुंदेलखंड भी इस मानसिक कुरीति से अछूता नहीं है। लेकिन उस मां के बारे में सोचिए जिसने तीन बेटों को जन्म देते हुए सोचा होगा कि ये तीनों नहीं तो कम से कम एक तो बुढ़ापे का सहारा बनेगा और मृत्यु होने पर मुखाग्नि देगा। उस मां ने अपने तीनों बेटों के लिए रात-रात भर जागते समय कभी नहीं सोचा होगा कि उसके मरने पर उसका एक भी बेटा उसके अंतिम संस्कार के लिए नहीं आएगा। वह अभागी मां अपनी मृत्यु के पूर्व एक वुद्धाश्रम में रह रही थी। उसकी मृत्यु पर जब उसके छोटे बेटे को सूचना दी गई तो उसने यह कह कर मां का अंतिमसंस्कार करने से मना कर दिया यदि वह आएगा तो उसकी पत्नी उसे छोड़ देगी। यह घटना किसी मेट्रो महानगर में घटी होती तो शायद आश्चर्य नहीं होता किन्तु घनी सामाजिकता वाले बुंदेलखंड के छतरपुर में ऐसी घटना चौंकाने वाली थी। सोचने की बात है कि जब पारिवारिक वातावरण इतना दूषित होने लगेगा तो युवाओं पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा? सच तो यह है कि असंवेदना का वायरस बीमार कर रहा है मानसिकता को जिससे माता-पिता में असंवेदनशीलता बढ़ रही है और युवाओं में अपराध में प्रवृत्ति होते जा रहे हैं। असंवेदना के इस वायरस को फैलाने में इंटरनेट और सेाशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।
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(छतरपुर, म.प्र. से प्रकाशित "दैनिक बुंदेली मंच", 31.01.2020)
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