किसान आंदोलन से गर्माता जाड़े का मौसम
- डाॅ शरद सिंह
दिल्ली के इर्द-गिर्द जमा हजारों किसानों में औरतें, बच्चे और बुजुर्ग भी हैं। ये आंदोलनकारियों के साथ हैं। लेखक, खिलाड़ी, कलाकारों के साथ ही पूर्व सैनिक भी किसानों के समर्थन में आ खड़े हुए हैं और केन्द्र सरकार से मिले अपने-अपने सम्मान तथा सुविधाएं लौटाने की घोषणा कर चुके हैं। ‘भारत बंद’ की घोषणा को भी समर्थन मिला। ऐसे में सरकार का हरसंभव प्रयास यही है कि मामला जल्दी से जल्दी शांत हो जाए। मुद्दा है कृषि कानून 2020 जिसने कड़ाके की ठंड को भी गर्मा दिया है।
किसान आंदोलन का ऐसा तेवर स्वतंत्र भारत में शायद ही किसी ने देखा हो जैसा कि न दिनों देखने को मिला है। जब इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि मामला ‘‘आर या पार’’ तक जा पहुंचेगा। देश में इससे पूर्व कई छोटे-बड़े किसान आंदोलन हुए जिनमें से कई में तो सरकार ने आंदोलनकारियों से मिलने से भी मना कर दिया था। तमिलनाडु के आंदोलनकारी किसानों को भी इसी तरह के नकारात्मक अनुभव का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार एक राज्य के किसानों के साथ दूसरे राज्यों के किसान दल भी आ कर मिलते गए। राजनीतिक विपक्षी दलों ने भी किसानों के समर्थन में शंखनाद कर दिया। फिर भी सरकार बिल वापस लेने को तैयार नहीं हुई। आंदोलनकारी कृषक भी पीछे हटने को तैयार नहीं। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच लगातार असफल चर्चाओं के बाद 12वें दिन 7 दिसम्बर 2020 को किसानों के समर्थन में पंजाब के 30 एथलीट्स अवॉर्ड लौटाने राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़े, भले ही पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया। किसानों के 8 दिसंबर 2020 को भारत बंद का ऐलान किया जिसके समर्थन में कांग्रेस समेत 20 सियासी दल और 10 ट्रेड यूनियंस आ खड़े हुए। इस आंदोलन की विशेष बात यह है कि इस आंदोलन का स्वरूप सुसंगठित और सुव्यवस्थित है। आंदोलनकारियों के लिए खाने, ओढ़ने-बिछाने, मेडिकल सुविधाओं से ले कर मोबाईल चार्जिंग की सोलर सिस्टम सुविधा भी उपलब्ध है। साथ आए उनके बच्चे मोबाईल के जरिए अपनी आॅनलाईन पढ़ाई भी जारी रखे हुए हैं। साझे चूल्हे आंदोलन को भी साझापन दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नए कृषि कानून को ‘‘आजादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आजादी’’ देने वाला कानून कहते हैं। वे सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कह चुके हैं कि विपक्षी दल इन कानूनों को लेकर दुष्प्रचार कर रहे है क्योंकि किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिलने की बात गलत है। बिहार चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘‘जो लोग दशकों तक देश में शासन करते रहें हैं, सत्ता में रहे हैं, देश पर राज किया है, वो लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं, किसानों से झूठ बोल रह हैं।’’ मोदी ने कहा था कि विधेयक में वही चीजें हैं जो देश में दशकों तक राज करने वालों ने अपने घोषणापत्र में लिखी थीं। मोदी ने कहा कि यहां ‘‘विरोध करने के लिए विरोध’’ हो रहा है। लेकिन मोदी सरकार को उस समय झटका लगा था जब केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए ट्वीट किया था कि ‘‘मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है। किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है।’’
आंदोलनकारी किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून की वजह से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। मामला बहुत पेंचीदा है। जो सीधे कृषिकार्यों स जुड़े हैं उनके लिए इस नए कृषि कानून को समझना आसान है लेकिन आम आदमी के लिए ज़रा कठिन है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो सरकार अपने इस कानून को ले कर भविष्य के प्रति अत्यंत आश्वस्त है जबकि आंदोलनकारी किसान इस कानून से पैदा होने वाली भावी परेशानियों को ले कर आंदोलन की राह पर हैं।
क्या है यह नया कृषि कानून और इससे कृषक उत्तेजित क्यो हो उठे इसे समझने के लिए दोनों पक्षों के कुछ बिन्दुओं को समझना होगा। कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को राज्य की एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की रजिस्टर्ड मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। इसमें किसानों की फसल को एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी रोक-टोक के बेचने को बढ़ावा दिया गया है। बिल में मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर खर्च कम करने की बात कही गई है ताकि किसानों को अच्छा दाम मिल सके। इसमें इलेक्ट्रोनिक व्यापार के लिए एक सुविधाजनक ढांचा मुहैया कराने की भी बात कही गई है।
इस संबंध में आंदोलनकारियों सशंकित हैं कि कानून लागू होने के बाद धीरे-धीरे एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के जरिए फसल खरीद बंद कर दी जाएगी। मंडियों में व्यापार बंद होने के बाद मंडी ढांचे के तरह बनी ई-नेम जैसी इलेक्ट्रोनिक व्यापार प्रणाली का औचित्य ही नहीं रह जाएगा।
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 कानून में कृषि करारों (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) को उल्लिखित किया गया है। इसमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग के लिए एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क बनाने का प्रावधान किया गया है। इस कानून के तहत किसान कृषि व्यापार करने वाली फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक व्यापारी, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर भविष्य में अपनी फसल बेच सकते हैं। पांच हेक्टेयर से कम जमीन वाले छोटे किसान कॉन्ट्रैक्ट से लाभ कमा पाएंगे। बाजार की अनिश्चितता के खतरे को किसान की जगह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करवाने वाले प्रायोजकों पर डाला गया है। अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके तहत किसान मध्यस्थ को दरकिनार कर पूरे दाम के लिए सीधे बाजार में जा सकता है। किसी विवाद की सूरत में एक तय समय में एक तंत्र को स्थापित करने की भी बात कही गई है।
इस संबंध में आंदोलनकारियों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के दौरान किसान प्रायोजक से खरीद-फरोख्त पर चर्चा करने के मामले में कमजोर होगा। छोटे किसानों की भीड़ होने से शायद प्रायोजक उनसे सौदा करना पसंद न करे। किसी विवाद की स्थिति में एक बड़ी निजी कंपनी, निर्यातक, थोक व्यापारी या प्रोसेसर जो प्रायोजक होगा उसे बढ़त होगी।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 के अंतर्गत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ युद्ध जैसी ‘‘असाधारण परिस्थितियों’’ को छोड़कर अब जितना चाहे इनका भंडारण किया जा सकता है। इस कानून से निजी सेक्टर का कृषि क्षेत्र पर हस्तक्षेप बढ़ेगा। कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ेगा, कोल्ड स्टोरेज और फूड स्प्लाई चेन का आधुनिकीकरण होगा। यह किसी सामान के मूल्य की स्थिरता लाने में किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को मदद करेगा। प्रतिस्पर्धी बाजार का वातावरण बनेगा और किसी फसल के नुकसान में कमी आएगी।
आंदोलनकारी मानते हैं कि ‘‘असाधारण परिस्थितियों’’ में कीमतों में तेजी से बढ़त होगी जिसे बाद में नियंत्रित करना मुश्किल होगा। बड़ी कंपनियों को किसी फसल को अधिक भंडार करने की क्षमता होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि फिर वे कंपनियां किसानों को दाम तय करने पर मजबूर करेंगी।
हज़ारों को किसानों का औरतों, बच्चों और बुजुर्गों सहित आंदोलन के लिए जुटना इस बात का संकेत है कि वे इस नए कानून को ने कर समझौते के मूड में नहीं हैं और भावुकता की सीमा तक अपने आंदोलन से जुड़े हुए हैं। उस पर किसानों के समर्थन में लेखकों, खिलाड़ियों, कलाकारों और पूर्व सैनिकों का आगे आना स्थिति का गंभीरता को जता रहा है। यह अच्छा है कि सरकार चर्चा के लिए तत्पर है। देश में शांति, स्थिरता और विकास के लिए अन्नदाता किसानों का शंकामुक्त और भयमुक्त होना आवश्यक है। शांति के वातावरण में कठिन से कठिन मसले हल किए जा सकते हैं। बहरहाल, किसान आंदोलन से यह जाड़े का मौसम गर्मा रहा है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 09.12.2020 को प्रकाशित)
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प्रिय मीना भारद्वाज जी,
ReplyDeleteआपने 'चर्चा मंच' में मेरे लेख को शामिल किया है, यह मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है।
आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
और कौन सेंक रहा है इस गर्मी को पता नहीं :) सुन्दर।
ReplyDeleteइस गर्मी को सभी राजनीतिक दल सेंकने का प्रयास कर रहे हैं...
Deleteटिप्पणी के लिए हार्दिक आभार 🙏
मेरे ब्लॉग्स पर सदि आपका स्वागत है। 💐
समसामयिक और सारगर्भित लेख..। इस विषय पर एक कविता लिखने की कोशिश की मैंने भी की है, कृपया देखें और टिप्पणी दें..शुभकामना सहित जिज्ञासा..।
ReplyDeleteजी अवश्य, जिज्ञासा जी !!!
Deleteबहुत सुंदर और सारगर्भित लेख आदरणीया।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹
Deleteसमसामयिक लेख
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सुन्दर समसामयिक एवं सारगर्भित लेख।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा देवरानी जी 🌹🙏🌹
Deleteसामायिक समस्या पर बहुत गहन चिंतन देता सारगर्भित लेख।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको सार्थक प्रयास।
हार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹
Deleteआपकी टिप्पणी मेरे लिए उत्साहवर्द्धक है🙏