Thursday, March 4, 2021

चर्चा प्लस | विश्व वन्यजीव दिवस | यह दिवस उत्सव नहीं, मांग करता है ईमानदार प्रयासों की | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

विश्व वन्यजीव दिवस    
यह दिवस उत्सव नहीं, मांग करता है ईमानदार प्रयासों की  
        - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
   पिछले दो सालों में हमने दुनिया के बड़े-बड़े जंगलों को आग के हवाले होते देखा। उनके वन्य जीवन को धू-धू कर जलते देखा। ग्लेशियर्स के पिघलने और टूटने से होने वाली आपदा की धमक अपने देश के उत्तराखंड में भी सुनी। दुख है कि हम अभी भी वन और मानव जीवन के रिश्ते को अनदेखा ही किए जा रहे हैं। जबकि वन और वन्यजीवन पर ही पृथ्वी और मानव का अस्तित्व टिका है। यही तो हर वर्ष याद दिलाता है विश्व वन्यजीव दिवस कि पृथ्वी ही हमारा घर है और आपदाओं से बचाना हमारा कर्त्तव्य।    
        
हमने अपने घर की बैठक का दरवाज़ा सड़क के किनारे तक पहुंचा दिया है। अब घर के सामने बागीचा नहीं होता है। बागीचा न होने से, न तो तो मुलायम घास होती है और न तो सुगंध देने वाली पुष्पवाटिका और न ही छाया देने वाले पेड़। हमने अपने घर की बैठक के दरवाज़े को धूल, धुंआ वाले प्रदूषण की सुरंगों से जोड़ दिया है। उस पर हम एक सफल उपभोक्तावादी की तरह खुश होते हैं कि बाज़ार में एयर प्यूरीफायर तो है, वाटर प्यूरीफायर तो है, ढेर सारी दवाएं तो हैं। दरअसल हम उपभोक्तावादी नहीं हुए हैं बल्कि बाज़ार ने हमारी सोच को प्रकृति और पर्यावरण से दूर करके अपना गुलाम बना लिया है। यह बात कहने, सुनने, पढ़ने में कटु है, मगर सच है शतप्रतिशत। कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम में से अधिकांश को पर्यावरण पर चर्चा करना जितना रोचक लगता है, उस पर अमल करना उतना ही ग़ैरजरूरी लगता है।

“तुम बादलों को रोकना
और पूछना-
कहां से आए तुम?
वह कहेगा- समुद्र से।
तुम समुद्र से पूछना-
कहां से मिला तुम्हें जल?
वह कहेगा-
नदियों से।
नदियों से पूछना-
कहां से मिला उन्हें पानी?
वह कहेंगी-
भूमिगत स्रोतों से।
भूमिगत स्रोतों से पूछना-
कैसे संजोकर रखा तुमने जल?
वे कहेंगे-
हमने नहीं, उन पेड़ों और वृक्षों की जड़ों ने
जिन्होंने रोक कर भूमि का क्षरण
हमें आकार दिया 
ताकि हम संजो सकें पानी नदियों के लिए।
अब समझे? 
कि क्यों कहता है समुद्र-
बचाना चाहते हो इस पृथ्वी को
तो पहले बचाओ पेड़ों को,
पेड़ रहेंगे तो रहेगी पृथ्वी भी।”

    - यह कविता मैंने सन् 2016 में लिखी थी विशेषरूप से ‘‘साहित्य, पृथ्वी और पर्यावरण’’ विषय पर आधारित एक कंवेन्शन में व्याख्यान देते समय बोलने के लिए। यह आयोजन लखनऊ (उ.प्र.) में एक एनजियो द्वारा आयोजित किया गया था। स्कूली छात्रों से ले कर पर्यावरणविदों तक ने उसमें भाग लिया था। मैंने प्रथम सत्र में अपने व्याख्यान के साथ अपनी इस कविता को सुनाया था। लोगों ने बेहद पसंद किया था इसे। लेकिन मैं नहीं जानती कि कितने लोगों ने इसके संदेश पर अमल किया।  
  
अपनी इस कविता का उल्लेख मैंने इसलिए किया क्योंकि यह मेरे दिल-दिमाग में हमेशा दस्तक देती रहती है और मुझे उलाहना भी देती है। आज 03 मार्च को इस कविता ने मुझे फिर उलाहना दिया। दुनियाभर में जंगलों एवं वन्यजीवों के संरक्षण हेतु 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा 68वें सत्र में की गई थी। इसका उद्देश्य दुनिया भर में वन और वन्य जीवन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। इस दिवस को मनाने के लिए 03 मार्च का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि 1973 में इसी दिन वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन के हस्ताक्षर किए गए थे। विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीवों, विलुप्त होने वाली प्रजातियों एवं पेड़-पौधों के संरक्षण के बारे में लोगों को सजग करने का एक वैश्विक प्रयास है। पृथ्वी पर जीवन की संभावनाओं को बनाए रखने के लिए और पर्यावरण में जीव-जंतु तथा पेड़-पौधों के महत्व को पहचानते हुए एक ‘‘सभा वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’’ यानी ‘‘साइट्स’’ (कंवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इनडेंजर्ड स्पशीज़ ऑफ वाइल्ड फउना एंड फ्लोरा) की स्थापना की गई। 

विश्व वन्यजीव दिवस मनाए जाने के लिए हर वर्ष विषय निर्धारित किए जाते हैं ताकि पृथ्वी पर मनुष्य के अतिरिक्त मौजूद जीवन के किसी एक पक्ष पर ध्यान केन्द्रित कर के उसके संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए वर्ष भर कार्य किया जाए। विश्व वन्यजीव दिवस की वर्ष 2015 की थीम थी ‘‘वन्यजीव अपराध के बारे में अब गंभीर होने का समय’’, 2016 का थीम थी ‘‘वन्यजीवों का भविष्य हमारे हाथ में’’ जिसके अंतर्गत एक उप-थीम भी थी ‘‘हाथियों का भविष्य हमारे हाथों में’’। यह दुनिया भर में हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा की दिशा में किए जा रहे कार्यों पर केन्द्रित था। वर्ष 2017 की थीम थी ‘‘युवा आवाज़ सुनो’’। इसका आशय था कि वन और वन्य जीवन के प्रति युवाओं में जागरूकता लाना तथा वन और वन्य जीवन के प्रति चिन्ता व्यक्त करने वाले युवाओं के विचारों को सम्मान देते हुए उस पर अमल करते हुए वन्यजीवन को बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाना। वर्ष 2018 के लिए थीम तय की गई थी ‘‘बड़ी बिल्लियां - शिकारियों के खतरे में’’। बड़ी बिल्लियां अर्थात् शेर, चीता, तेंदुआ की आफ्रिका से ले कर बर्फीले साइबेरिया तक की प्रजातियों को शिकारियों द्वारा अवैध रूप से मारे जाने से बचाना। वर्ष 2019 की थीम थी ‘‘पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए’’। वन और वन्यजीवन के लिए पानी के नीचे मौजूद जीवन किस तरह जरूरी है, इसे अकसर लोग समझ नहीं पाते हैं। हरियाले वन और नदियों या समुद्रों में मछलियों, कोरल आदि के रूप में मौजूद जीवन के पारंपरिक संबंधों को समझने के लिए इकोसिस्टम यानी पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था को समझाना जरूरी है। इसका बहुत छोटा-सा उदाहरण है जिसे हम सभी अपने बचपन से सुनते आए हैं कि समुद्र का पानी भाप बन कर ऊपर उठता है और बादल के रूप में जल की वर्षा करता है जिससे थलीय क्षेत्र के वन्यजीवन तथा सामान्य जनजीवन का जीवन चलता है। 

बढ़ते हुए औद्योगिक दबाव ने विषैली गैसों के उत्सर्जन को इतना अधिक बढ़ा दिया है कि इससे धरती की सुरक्षा छतरी यानी ओज़ोन परत में छेद हो चले हैं। ओज़ोन परत सूर्य से आने वाली विकिरणयुक्त पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी को बचाए रखता है। लेकिन हमने अपनी भौतिक लिप्सा के कारण जहां एक ओर जंगलों को बेतहाशा काटा है वहीं, दूसरी ओर हवा, पानी और मिट्टी तक को ज़हरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसीलिए वर्ष 2020 की थीम रखी गई थी ‘‘पृथ्वी पर जीवन कायम रखना’’। दुर्भाग्यवश, वर्ष 2020 में कोरोना आपदा ने ज़मीनी प्रयासों के रास्ते में बड़ी बाधा पहुंचाई फिर भी दुनिया भर के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और पर्यावरण वालेंटियर्स कोरोना आपदा से डरे बिना अपने उद्देश्य पर डटे रहे। 

प्रकृति मानव जीवन का आधार है। मनुष्य सभ्यता के विकास से ही प्रकृति पर निर्भर है और प्राकृतिक संसाधनों का  प्रयोग करता है। हाल ही के दशकों में मानव सभ्यता ने प्राकृतिक संसाधनों का बहुत अधिक दोहन शुरू कर दिया गया। बड़े-बड़े जंगलों को खत्म कर दिया गया। ऐसे ही कितने ही जीव-जंतुओं का शिकार इस हद तक किया गया कि वह विलुप्त होने की कगार में हैं और कुछ तो विलुप्त भी हो गए। प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है जिससे प्रकृति में नकारात्मक बदलाव हो रहा है और ग्लोवर वार्मिंग जैसे भयावह परिणाम देखने को मिल रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्री जीवों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। सबसे ज्यादा दोहन समुद्री जीवों का  किया जाता है साथ ही समुद्र में ही सबसे अधिक प्रदूषण भी है। जिसका परिणाम यह है कि तटीय क्षेत्र की सैकड़ों प्रजातियां आज लुप्त होने की कगार में हैं। इसीलिए इस साल, 2021 में विश्व वन्यजीव दिवस की थीम रखी गई है-‘‘ वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना’’ (फारेस्ट एंड लीवलीहुड्स: संस्टेनिंग प्यूपिल एंड प्लेनेट)। यह थीम हमारे ग्रह के वन और वानिकी की स्थिति और इन पर निर्भर रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका के संरक्षण पर आधारित है। सरल शब्दों में कहें तो जंगल और रोज़गार इस पृथ्वी के निवासियों के लिए जिससे पृथ्वी पर जीवन बचा रहे। पृथ्वी और पृथ्वी पर जीवन की रक्षा के लिए हर प्रयास किया जाना जरूरी है आखिर हर व्यक्ति मंगल या किसी और ग्रह पर तो नहीं जा सकेगा। इसीलिए विश्व वन्यजीव दिवस हर व्यक्ति से पृथ्वी को बचाने के लिए उत्सव नहीं ईमानदार प्रयासों की मांग करता है।
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(दैनिक सागर दिनकर 03.03.2021 को प्रकाशित)
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3 comments:

  1. हमने अपने घर की बैठक का दरवाज़ा सड़क के किनारे तक पहुंचा दिया है। कटु सत्य, विचारणीय आलेख

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  2. अन्दर विचारणीय लेख के साथ में सुंदर कविता का तोहफा..

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