चर्चा प्लस
20 अक्टूबर: वाल्मीकि जयंती विशेष
महर्षि वाल्मीकि और रामकथा की वैश्विक महत्ता
- डाॅ. शरद सिंह
रामकथा के लिए समूचा विश्व महर्षि वाल्मीकि का ऋणी है। विश्व-इतिहास और विश्व-साहित्य में राम के समान अन्य कोई पात्र कभी नहीं रहा। रामकथा की अपनी एक वैश्विक सत्ता है, अपनी एक अलग पहचान है। लेकिन इसके मूल में वाल्मीकि की वही द्रवित अनुभूति है जो क्रौंच पक्षी के वध से उपजी थी। किसी पक्षी का बहेलिए द्वारा मारा जाना उस समय आम बात थी लेकिन पक्षी के वध को देख कर रामकथा लिख डालना अद्भुत घटना थी।
कौन जानता था कि एक पक्षी के मारे जाने से उपजी पीड़ा साहित्य और धर्म के लिए एक वरदान साबित होगी। हुआ यह कि एक दिन दोपहर को वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले रहे थे। वाल्मीकि ने देखा कि क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा नदी तट पर कल्लोल कर रहा है। इतने में नर क्रौंच को बहेलिए का तीर आ लगा और वह गिरकर छटपटाने लगा। देखते ही देखते उसने प्राण त्याग दिए। अपने साथी की यह दशा देखकर मादा क्रौंच बड़े करुण स्वर में रोने लगी। यह दृश्य देखकर वाल्मीकि का हृदय द्रवित हो उठा। उसी क्षण उनके हृदय की करुणा एक श्लोक के रूप में फूट पड़ी-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाष्वती समाः
यत् क्रौंच-मिथुनादेकमवधिः काम-मोहितम्
(हे निषाद ! तुझे नित्य निरंतर कभी भी शांति न मिले क्योंकि काम में मोहित हो रहे क्रौंच पक्षी के जोड़े में से तूने बिना अपराध ही एक ही हत्या कर डाली।) इस घटना के बाद वाल्मीकि ने ‘‘रामायण’’ की रचना की। सम्पूर्ण विश्व को रामकथा से परिचित कराने का प्रथम श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है। रामकथा को वैश्विक स्तर पर जो प्रतिष्ठा और लोकप्रियता मिली है वह इसकी मूल्यवत्ता को स्वतः सिद्ध करती है और महर्षि वाल्मीकि का ऋणी बनाती है। विश्व-इतिहास और विश्व-साहित्य में राम के समान अन्य कोई पात्र कभी नहीं रहा। रामकथा की अपनी एक वैश्विक सत्ता है, अपनी एक अलग पहचान है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रामकथा मात्र एक कथा नहीं वरन् जीवन जीने की सार्वभौमिक शैली है। इसमें मानवीय पारिवारिक संबंधों से ले कर जड़ एवं चेतन के पारस्परिक संबंधों की भी समुचित व्याख्या की गई है। रामकथा की यह भी विशेषता है कि इस पृथ्वी का कोई ऐसा तत्व नहीं है जो प्राणिरूप में इसमें समावेशित नहीं किया गया हो। प्राणहीन पाषाण अहिल्या के रूप में जीवन्त हो उठता है तो मृतकों की देह को खाने वाला गिद्ध पक्षी जटायु के रूप में श्रीराम और सीता की सहायता में दौड़ पड़ता है। समुद्र संवाद करता है तो जगत में उद्दण्ड प्राणी के रूप में पहचाने जाने वाले वानर रूपी बालि और सुग्रीव के रूप में न केवल शासनकत्र्ता के रूप में मिलते हैं वरन् समुद्र पर सेतु बांधने का अनुशासित कार्य भी करते दिखते हैं। स्त्री और पुरुष के इतने विविध रूप इस कथा में हैं जो किसी अन्य कथा में देखने को नहीं मिलते हैं। यह एक ऐसी कथा है जिसमें श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श राजा, आज्ञाकारी पुत्र और आदर्श पति होने के साथ ही महान योद्धा भी हैं। वे धैर्यवान हैं तो भावुक भी हैं। राम एक ऐसे चरित्र हैं जिनकी दृष्टि में कोई छोटा या बड़ा नहीं है, कोई अस्पृश्य नहीं है और न ही कोई उपेक्षित है। रामकथा में श्रीराम के द्वारा अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की विजय की जिस प्रकार स्थापना की गई है उससे समूचा विश्व प्रभावित होता आया है।
वाल्मीकि रचित रामायण अतिरिक्त भारत में जो अन्य रामायण लोकप्रिय हैं, उनमें ‘अध्यात्म रामायण’, ‘आनन्द रामायण’, ‘अद्भुत रामायण’, तथा तुलसीकृत ‘रामचरित मानस’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। वाल्मीकिकृत रामायण के उपरान्त रामकथा में दूसरा प्राचीन ग्रन्थ है ‘अध्यात्म रामायण’। वाल्मीकिकृत रामायण में जहां हमें मानवीय तत्व अधिक दिखाई देता है, वहीं ‘अध्यात्म रामायण’ में राम का ईश्वरीय तत्व सामने आता है। इसीलिए ‘आध्यात्म रामायण’ को विद्वानों द्वारा ‘ब्रह्मांड-पुराण’ के उत्तर-खंड के रूप में भी स्वीकारा किया गया है। वहीं, ‘आनन्द रामायण’ में भक्ति की प्रधानता है। इसमें राम की विभिन्न लीलाओं तथा उपासना सम्बन्धी अनुष्ठानों की विशेष चर्चा है। ‘अद्भुत रामायण’ में रामकथा के कुछ नए कथा-प्रसंग मिलते हैं। इसमें सीता माता की महत्ता विशेष रूप में प्रस्तुत की गयी है। उन्हें ‘आदिशक्ति और आदिमाया’ बतलाया गया है, जिसकी स्तुति स्वयं राम भी सहस्रनाम स्तोत्र द्वारा करते हैं। लोकभाषा में होने के कारण तुलसीकृत ‘रामचरित मानस’ की लोकप्रियता आधुनिक समाज में सर्वाधिक है। इसने रामकथा को जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। इसमें भक्ति-भाव की प्रधानता है तथा राम का ईश्वरीय रूप अपनी समग्रता के साथ सामने आया है। वस्तुतः ‘रामचरित मानस’ उत्तर भारत में रामलीलाओं के मंचन का आधार बनी।
रामकथा ने भारतीय मात्र भू-भाग पर ही राज नहीं किया अपितु भारत की सीमाओं को लांघती हुई उसने विदेशों में भी अपनी सत्ता स्थापित की। राजनीतिक सत्ता को परिवर्तन यानी तख़्तापलट का भय होता है किन्तु ज्ञान की सत्ता को चिरस्थायी होती है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता। इसीलिए जिन देशों में धार्मिक एवं राजनीतिक परिवर्तन हुए तथा भीषण रक्तपात हुए वहां भी रामकथा ने अपना प्रभाव सतत बनाए रखा। प्राचीन भारत और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आर्य संस्कृति तथा उसके साथ रामकथा का जो प्रचार-प्रसार हुआ, वह आज भी यथावत स्थित है। युग, परिस्थिति और धर्म परिवर्तन के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में रामकथा के प्रभाव में कोई कमी नहीं आयी है। इसके विपरीत उसमें वृद्धि ही हुई है। मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में तो रामायण को राष्ट्रीय पवित्र पुस्तक का गौरव प्राप्त है। भारत के न्यायालयों में जो स्थान ‘भगवद्गीता’ को प्राप्त है, इंडोनेशिया में वहीं स्थान ‘रामायण’ को मिला हुआ है। वहां ‘रामायण’ पर हाथ रखकर सत्यता की शपथ ली जाती है। इंडोनेशिया में प्रचलित रामकथा के ग्रन्थ का नाम है ‘काकाविन रामायण’। इसमें 26 सर्ग तथा 2778 पद हैं। ‘काकाविन रामायण’ के आधार पर इंडोनेशिया में राम की अनेक प्राचीन प्रतिमाएं मिलती हैं।
एशिया के अनेक देशों में रामकथा प्रचलित है जिसमें वहां की जीवन, धर्म, संस्कृति की दलग ही छाप है। जिसके कारण रामकथा को एक वैश्वि स्वरूप मिला है। जिन देशों में लगभग सौ वर्ष से भी पहले पहले राम-कथा पहुंची, उसमें चीन, तिब्बत, जापान, इण्डोनेशिया, थाईलैंड, लाओस, मलेशिया, कम्बोडिया, श्रीलंका, फिलीपिन्स, म्यानमार, रूस आदि देश प्रमुख हैं।
जापान में 12वीं शताब्दी में रचित ‘होबुत्सुशु’ नामक ग्रन्थ में रामायण की कथा जापानी में मिलती है। लेकिन ऐसे प्रकरण भी हैं, जिनसे कहा जा सकता है कि जापानी इससे पूर्व भी राम-कथा से परिचित थे। वैसे आधुनिक अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ कि विगत एक हजार वर्ष से प्रचलित ‘दोरागाकु’ नाट्य-नृत्य शैली में राम-कथा मिलती है। 10 वीं शताब्दी में रचे ग्रन्थ ‘साम्बो-ए-कोताबा’ में दशरथ और श्रवणकुमार का प्रसंग मिलता है। ‘होबुत्सुशु’ की राम-कथा और ‘रामायण’ की कथा में भिन्न है। जापानी कथा में शाक्य मुनि के वनगमन का कारण निरर्थक रक्तपात को रोकना है। वहां लक्ष्मण साथ नहीं है, केवल सीता ही उनके साथ जाती है। सीता-हरण में स्वर्ण-मृृग का प्रसंग नहीं है, अपितु रावण योगी के रूप में राम का विश्वास जीतकर उनकी अनुपस्थिति में सीता को उठाकर ले जाता है। रावण को ड्रैगन (सर्पराज)-के रूप में चित्रित किया गया है, जो चीनी प्रभाव है। यहां हनुमान के रूप में शक्र (इन्द्र) हैं और वही समुद्र पर सेतु-निर्माण करते हैं। कथा का अन्त भी मूल राम-कथा से भिन्न है।
इंडोनेशिया में बाली का हिंदू और जावा-सुमात्रा के मुस्लिम, दोनों ही राम को अपना नायक मानते हैं। जाकार्ता से लगभग 15 मील की दूरी पर स्थित प्राम्बनन का मंदिर इस बात का साक्षी है, जिसकी प्रस्तर भित्तियों पर संपूर्ण रामकथा उत्कीर्ण है।
थाईलैंड में रामकथा को इस तरह आत्मसात किया गया कि उन्हें धीरे-धीरे यह लगने लगा कि राम-कथा की सृजन उनके ही देश में हुआ था। वहां जब भी नया शासक राजसिंहासन पर आरूढ़ होता है, वह उन वाक्यों को दोहराता है, जो राम ने विभीषण के राजतिलक के अवसर पर कहे थे। यह मान्यता है कि वहां राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज” राज्य कर रहे हैं, जिन्हें नौवां राम कहा जाता है। थाईलैंड में “अजुधिया” “लवपुरी” और “जनकपुर” जैसे नाम वाले शहर हैं। सन् 1340 ई. में राम खरांग नामक राजा के पौत्र थिवोड ने राजधानी सुखोथाई (सुखस्थली) को छोड़कर ‘अयुधिया’ अथवा ‘अयुत्थय’ (अयोध्या) की स्थापना की थी। उल्लेखनीय है कि राम खरांग के पश्चात् राम प्रथम, राम द्वितीय के क्रम में नौ शासकों के नाम राम-शब्द की उपाधि से विभूषित रहे। थाईलैंड में रामकथा पर आधारित ग्रंथ ‘रामकियेन’ है। ‘रामकियेन’ का अर्थ होता है राम की कीर्ति। भारतीय ‘रामलीला’ की भांति ‘रामकियेन’ नाट्यरूप में भी लोकप्रिय है।
यह बात अकाट्य रूप से कही जा सकती है कि रामकथा की वैश्विकसत्ता अद्वितीय है और वैश्विक जनमानस को जिस कथा ने सर्वाधिक प्रभावित किया है वह रामकथा ही है। यह भी उतना ही अकाट्य है कि यदि महर्षी वाल्मीकि ने ‘‘रामायण’’ लिख कर रामकथा को महाकाव्य में निबद्ध नहीं किया होता तो शायद आज विश्व रामकथ से इतनी समग्रता से परिचित नहीं हो पाता क्यों कि दुनिया भर की रामकथाएं वाल्मीकिकृत ‘‘रामायण’’ पर ही आधारित हैं।
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(सागर दिनकर, 20.10.2021)
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