महान
साहित्यकार व संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के कुशल निर्देशन में
सरस्वती पत्रिका ने हिंदी साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात किया था। सन
1900 में शुरू हुई यह पत्रिका उतार-चढ़ावों के साथ 70 के दशक तक प्रकाशित
होती रही और उसके बाद इतिहास बन गई। एक ऐसे समय में, जब लुप्त सरस्वती नदी
की धारा को पुन: जीवित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, उसी समय में
सामयिक प्रकाशन ने लुप्त सरस्वती पत्रिका को पुनर्जीवित करने का बीड़ा
उठाया है। 'सामयिक सरस्वती' के नाम से पत्रिका का प्रवेशांक (अप्रैल-जून,
15) प्रकाशित हो चुका है। सरस्वती की प्रासंगिकता पर सम्पादक शरद सिंह कहती
हैं, 'असंवेदनशीलता के संकट की चुनौती को स्वीकार कर सामयिक सरस्वती लेखक,
पुस्तक और पाठकों के बीच एक आत्मिक संवाद सेतु का निर्माण करने में
प्रयत्नशील है।'
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