चर्चा प्लस ...
विधायकपुत्री का अंतरजातीय विवाह बनाम टीआरपी
- डॉ. शरद सिंह
विधायक की बेटी साक्षी ने अंतरजातीय विवाह किया। विधायक पिता को यह विवाह पसंद नहीं आया। बेटी ने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हाथ लग गई टीआरपी बढ़ाने वाली मसालेदार ख़बर। बेशक साक्षी ने कुछ गलत नहीं किया। वह बालिग है और उसे अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का कानूनन अधिकार है। उसे सार्वजनिक रूप से मदद मांगने का भी पूरा अधिकार है। देखा जाए तो इस शादी को नकारा ही नहीं जाना चाहिए। आज जब हमारा देश एक ओर चांद पर झंडे गाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हम जात-पांत को लेकर झगड़े कर रहे हैं। उस पर दुर्भाग्य यह कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने की खातिर दसवें नंबर पर आने लायक ख़बर को पहले नंबर पर रख कर अपनी तथाकथित जागरूकता की नुमाईश करते हैं।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल
भार्गव ने सोशल मीडिया पर बरेली से बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी
साक्षी मिश्रा व अजितेश कुमार की शादी को लेकर जो चर्चाएं चल रही हैं, उस
पर टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि ऐसी खबरों से अब कन्या
भ्रूण हत्या की घटनाएं देश मे अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी तथा महिला पुरुष
के लिंगानुपात में भारी अंतर आएगा जो हमे अगले तीन वर्षों में सामाजिक
सर्वे में स्पष्ट रूप से दिखेगा। उन्होंने कहा कि नर्सिंग होम एवं निजी
अस्पतालों में गर्भपात का गौरखधंधा खूब फलेगा फूलेगा। उन्होंने दूसरे ट्वीट
में लिखा है कि मेरे निजी विचार से यह चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने और रुपया
कमाने के चक्कर मे बहुत बड़ा समाज विरोधी एवं राष्ट्र विरोधी कार्य कर रहे
हैं। उनके इस कृत्य से अब यह बात तय है कि देश मे पिछले एक दशक से चल रहा
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ“ की योजना एवं राष्ट्रीय अभियान 50 वर्ष पीछे चला
जायेगा। गोपाल भार्गव ने ट्वीट कर इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए
आगे लिखा कि सोशल मीडिया और कथित राष्ट्रीय समाचार चैनल और उनके तनखैया
एंकरों द्वारा अपनी टीआरपी बढ़ाने और रुपया कमाने की लालसा से एक आधुनिक
लैला-मजनू को लेकर उनके दुखी पिता और परिवार का मजाक बनाया जा रहा है। जिसे
लोग आनंद से देख रहे हैं। अच्छा-खासा हंगामा हुआ पं. गोपाल भार्गव की
ट्वीट पर। होना ही था, वे नेता प्रतिपक्ष जो ठहरे। हंगामा करने वाले यह बात
भूल गए कि साल में दो बार सामूहिक विवाह सम्मेलन करवाने वाले पं. गोपाल
भार्गव को ‘शादी बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने बेटे की
शादी भी ऐसे ही समारोह में की थीं। विगत आयोजन में 1100 जोड़ों का विवाह
कराते समय पं. गोपाल भार्गव ने कहा था कि ‘‘यह आयोजन केवल गरीबों के लिए
नहीं है। यह तो सामाजिक समरसता का कार्यक्रम है। यहां हर वर्ग जाति के
वर-वधुओं का विवाह होता है। समाज में एक भ्रांति है कि सम्मेलन में केवल
गरीबों के विवाह होते हैं। मैं बताना चाहता हूं कि ऐसा नहीं है। यहां हर
किसी की शादियां हो सकती हैं। इसी भ्रांति को मिटाने के लिए अपने पुत्र
अभिषेक का विवाह भी इसी सम्मेलन से कराया था।’’ फिर भी साक्षी मामले में
उनके बयान पर हंगामा हुआ।
मामला यह था कि बरेली से विधायक राजेश मिश्रा की बेटी ने अपने पति के साथ एक वीडियो जारी किया, जिसमें उसने अपने पिता से खुद की जान को खतरा बताया था। विगत 4 जुलाई को विधायक मिश्रा की बेटी ने एक दलित युवक अजितेश कुमार से शादी की थी। अंतरजातीय विवाह के बाद से ही एक बड़ा विवाद खड़ा हुआ। साक्षी एक ब्राह्मण हैं, जबकि उनके पति अजितेश कुमार दलित परिवार से आते हैं। जिसके बाद ही इस शादी को लेकर सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर बहस चलती रही है। साक्षी के पति अजितेश ने बताया कि जिस होटल में वो रुके थे वहां राजेश कुमार मिश्रा के एक दोस्त राजीव राणा अपने लोगों के साथ आ गए थे। लेकिन वो मौका देखकर वहां से निकल गए। अजितेश के अनुसार वो दलित हैं, इसलिए उनकी पत्नी के पिता उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे और ये सब कर रहे हैं। पिता विधायक राजेश कुमार मिश्रा ने कहा, “जो हमारे परिवार में घर से निकल जाता है, उससे कोई संपर्क नहीं करता। वो जहां चाहे वहां रहे. ना हम कहीं गए, ना हमने पता किया, ना हमने किसी को फोन किया। ना हम शासन-प्रशासन के पास गए. हम इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहते हैं। मैं बीजेपी का एक कार्यकर्ता हूं, बस अपना काम करता हूं. बाक़ी मुझे किसी से कुछ मतलब नहीं.“ वहीं साक्षी ने कहा है कि ’’अगर उनको और उनके पति के परिवार को कुछ भी होता है तो उसके ज़िम्मेदार उनके पिता और उनके दोस्त होंगे।’’
इसके बाद इस मुद्दे को ले कर टीवी चैनल्स में अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ाने की होड़ मच गई। एक ओर परंपरागत दुखी पिता और दूसरी ओर परंपराओं को तोड़ने वाली बेटी। किसी को पिता से सहानुभूति तो किसी को बेटी से। टीवी चैनल्स में इस ख़बर को इतना उछाला गया कि झुंझलाकर मध्यप्रदेश विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष पं. गोपाल भार्गव ने ट्वीट कर के अपने मन की बात सार्वजनिक कर दी। कई लोगो को उनकी खरी-खरी बात नागवार गुजरी। सवाल यह था कि यह बात एक राजनीतिक व्यक्ति के उद्गार थे। पर इस वक्तव्य को परखने की चेष्टा शायद ही किसी ने की हो। बात सच है कि किसी पिता को उसकी बेटी के घर से भाग कर शादी करने पर देश भर के सामने यदि इस प्रकार ताड़ना का अधिकारी बनाया जाएगा तो उसकी दशा देख कर ऐसे रसूखदार पिता बेटी पैदा करने से हिचकने लगेंगे और एक बार फिर वही माहौल बन जाएगा जो कुछ दशक पहले था।
बेशक साक्षी ने कुछ गलत नहीं किया। वह बालिग है और उसे अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का कानूनन अधिकार है। यदि उसे अपने पिता से जान का ख़तरा (यदि सचमुच) है तो उसे सार्वजनिक रूप से मदद मांगने का भी पूरा अधिकार है। देखा जाए तो इस शादी को नकारा ही नहीं जाना चाहिए। आज जब हमारा देश एक ओर चांद पर झंडे गाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हम जात-पांत को ले कर झगड़े कर रहे हैं। उस पर दुर्भाग्य यह कि जिन संचार माध्यमों को अपने दृश्य-श्रव्य शक्ति का उपयोग देश की बुनियादी समस्याओं को सामने ला कर उन्हें दुरुस्त करने के लिए करना चाहिए, वे संचार माध्यम दसवें नंबर पर लगाई जाने लायक ख़बर को पहले नंबर पर ला कर और उसे बाकायदा दिन भर चला कर अपनी तथाकथित जागरूकता की नुमाईश करते रहते हैं। जबकि सवाल किसी विधायक की बेटी के अंतरजातीय विवाह करने का नहीं, विधायक द्वारा अपनी बेटी के विरुद्ध होने का नहीं बल्कि सभी बेटियों और सभी पिताओं का होना चाहिए। चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए कि बेटियां अपनी इच्छा से अपना वर चुनें और पिता दकियानूसीपना छोड़ कर जात-पांत नहीं बल्कि लड़के का चाल-चलन देख कर अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दें। किन्तु जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस मामले को उछाला उसमें ऐसे बयान आना स्वाभाविक है जैसा कि पं. गोपाल भार्गव दे बैठे।
हमारा भारतीय कानून इस प्रकार के अंतरजातीय विवाह को पूर्ण स्वीकृति देता है। कुछ अरसा पहले खाप पंचायत की बेजा दखलंदाजी और ‘ऑनर किलिंग’ के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई वयस्क महिला अथवा पुरुष अपनी इच्छा से किसी भी व्यक्ति से शादी कर सकता है और खाप पंचायत इसमें कोई दखल नहीं दे सकती। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रेम विवाह करने वाले युवक-युवतियों पर खाप पंचायतों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगा पाने में असफल रहने पर केंद्र सरकार को फटकार भी लगायी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी-युगलों के खिलाफ खाप पंचायतों या ऐसे किसी संगठनों द्वारा किए गए अत्याचार या दुर्व्यवहार को पूरी तरह गैर-कानूनी है। खाप पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी देते हुए न्यायालय ने कहा था कि यदि केंद्र सरकार खाप पंचायतों को प्रतिबंधित करने की दिशा में कदम नहीं उठाती तो अदालत इसमें दखल देगी। सुप्रीमकोर्ट को इस तरह दखल देना ही पड़ा क्योंकि इस इक्कीसवीं सदी में पहुंच कर भी हमारे देश में आज भी प्रेम विवाह को सही नजरिए से नहीं देखा जाता है। यही कारण है कि प्रेमी युगल को कभी कभी उन्हें अपने ही परिवारजन का शिकार होना पड़ता है तो कभी समाज में प्रचलित खाप पंचायतों के बर्बर फैसलों का सामना पड़ता है। वैसे तो ‘ऑनर किलिंग’ शब्द ही बदल कर ‘हॉरेबल किलिंग’ (बर्बर हत्या) कर दिया जाना चाहिए। सम्मान की बात तो तब होती है जब परिवार या समाज सम्मानजनक फैसले ले और सामाजिक बुराइयों से ऊपर उठे। ऐसे लोग सम्मानित कैसे हो सकते हैं जो युवाओं के साथ बर्बरता से पेश आएं।
रहा सवाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तो उसे तो खबरों को मसाला बनाने का हुनर आता है। मटुकनाथ-जूली प्रेम प्रसंग को जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हवा दी थी वह उसके द्वारा खबर को मसाला बनाने वाले हुनर का उल्लेखनीय उदाहरण है। एक दशक पहले ही यानी सन् 2006 में 64 साल के पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर मटुकनाथ चौधरी ने अपनी शिष्या जूली कुमारी को अपने जीवन का प्यार बताते हुए उनके साथ रहने का फैसला किया था। खुद से 30 साल छोटी छात्रा जूली के साथ संबंधों को लेकर पूरे देश में चर्चा में आए थे। जूली मटुकनाथ के साथ 2007 से 2014 तक लिव इन रिलेशनशिप में भी रही। जूली के लिए मटुकनाथ ने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया था। यह बात अलग है कि मटुकनाथ की यह शिष्या और उनके जीवन के प्यार ने इन दिनों अध्यात्म का रुख कर लिया और प्रेम के लिए चर्चित ’लव गुरु’ मटुकनाथ इन दिनों एकाकी जीवन बिता रहे हैं। मटुकनाथ और जूली के प्रेम का जो भी हश्र हुआ लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को तो अपनी वह टीआरपी मिल ही गई थी जो उसे चाहिए थी।
आज भी खाप पंचायतें अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी युगल को अमानवीय यातनाएं देती हैं। लड़की को निर्वस्त्र कर के उसके कंधे पर उसके मरणासन्न प्रेमी युवक को बिठा कर गांव में घुमाने के अमानवीयकृत्य को क्या ये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतनी प्रमुखता देती है जितनी कि साक्षी के मामले को प्रमुखता दी गई? क्या कभी पलट कर उन युवक-युवतियों की दशा का पता लगाया गया जो इस प्रकार की जघन्य सजा के बाद जिन्दा बच गए। इस मामले में भी साक्षी और अजितेश के जरिए अपना टीआरपी बढ़ाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्या विधायक पिता राजेश मिश्रा और उनकी बेटी-दामाद साक्षी- अजितेश के बीच की खाई को पाट सकेगा? यदि ऐसा होता तो समाज के लिए एक अच्छा संदेश जाता लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा फिलहाल तो ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है।
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दैनिक ‘सागर दिनकर’, 18.07.2019 #शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily #SharadSingh #साक्षी #अजितेश #इलेक्ट्रॉनिक_मीडिया #प्रेमविवाह #गोपाल_भार्गव #सामूहिक_विवाह #सुप्रीमकोर्ट
विधायकपुत्री का अंतरजातीय विवाह बनाम टीआरपी
- डॉ. शरद सिंह
विधायक की बेटी साक्षी ने अंतरजातीय विवाह किया। विधायक पिता को यह विवाह पसंद नहीं आया। बेटी ने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हाथ लग गई टीआरपी बढ़ाने वाली मसालेदार ख़बर। बेशक साक्षी ने कुछ गलत नहीं किया। वह बालिग है और उसे अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का कानूनन अधिकार है। उसे सार्वजनिक रूप से मदद मांगने का भी पूरा अधिकार है। देखा जाए तो इस शादी को नकारा ही नहीं जाना चाहिए। आज जब हमारा देश एक ओर चांद पर झंडे गाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हम जात-पांत को लेकर झगड़े कर रहे हैं। उस पर दुर्भाग्य यह कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने की खातिर दसवें नंबर पर आने लायक ख़बर को पहले नंबर पर रख कर अपनी तथाकथित जागरूकता की नुमाईश करते हैं।
चर्चा प्लस ... विधायकपुत्री का अंतरजातीय विवाह बनाम टीआरपी - डॉ. शरद सिंह Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh |
मामला यह था कि बरेली से विधायक राजेश मिश्रा की बेटी ने अपने पति के साथ एक वीडियो जारी किया, जिसमें उसने अपने पिता से खुद की जान को खतरा बताया था। विगत 4 जुलाई को विधायक मिश्रा की बेटी ने एक दलित युवक अजितेश कुमार से शादी की थी। अंतरजातीय विवाह के बाद से ही एक बड़ा विवाद खड़ा हुआ। साक्षी एक ब्राह्मण हैं, जबकि उनके पति अजितेश कुमार दलित परिवार से आते हैं। जिसके बाद ही इस शादी को लेकर सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर बहस चलती रही है। साक्षी के पति अजितेश ने बताया कि जिस होटल में वो रुके थे वहां राजेश कुमार मिश्रा के एक दोस्त राजीव राणा अपने लोगों के साथ आ गए थे। लेकिन वो मौका देखकर वहां से निकल गए। अजितेश के अनुसार वो दलित हैं, इसलिए उनकी पत्नी के पिता उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे और ये सब कर रहे हैं। पिता विधायक राजेश कुमार मिश्रा ने कहा, “जो हमारे परिवार में घर से निकल जाता है, उससे कोई संपर्क नहीं करता। वो जहां चाहे वहां रहे. ना हम कहीं गए, ना हमने पता किया, ना हमने किसी को फोन किया। ना हम शासन-प्रशासन के पास गए. हम इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहते हैं। मैं बीजेपी का एक कार्यकर्ता हूं, बस अपना काम करता हूं. बाक़ी मुझे किसी से कुछ मतलब नहीं.“ वहीं साक्षी ने कहा है कि ’’अगर उनको और उनके पति के परिवार को कुछ भी होता है तो उसके ज़िम्मेदार उनके पिता और उनके दोस्त होंगे।’’
इसके बाद इस मुद्दे को ले कर टीवी चैनल्स में अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ाने की होड़ मच गई। एक ओर परंपरागत दुखी पिता और दूसरी ओर परंपराओं को तोड़ने वाली बेटी। किसी को पिता से सहानुभूति तो किसी को बेटी से। टीवी चैनल्स में इस ख़बर को इतना उछाला गया कि झुंझलाकर मध्यप्रदेश विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष पं. गोपाल भार्गव ने ट्वीट कर के अपने मन की बात सार्वजनिक कर दी। कई लोगो को उनकी खरी-खरी बात नागवार गुजरी। सवाल यह था कि यह बात एक राजनीतिक व्यक्ति के उद्गार थे। पर इस वक्तव्य को परखने की चेष्टा शायद ही किसी ने की हो। बात सच है कि किसी पिता को उसकी बेटी के घर से भाग कर शादी करने पर देश भर के सामने यदि इस प्रकार ताड़ना का अधिकारी बनाया जाएगा तो उसकी दशा देख कर ऐसे रसूखदार पिता बेटी पैदा करने से हिचकने लगेंगे और एक बार फिर वही माहौल बन जाएगा जो कुछ दशक पहले था।
बेशक साक्षी ने कुछ गलत नहीं किया। वह बालिग है और उसे अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का कानूनन अधिकार है। यदि उसे अपने पिता से जान का ख़तरा (यदि सचमुच) है तो उसे सार्वजनिक रूप से मदद मांगने का भी पूरा अधिकार है। देखा जाए तो इस शादी को नकारा ही नहीं जाना चाहिए। आज जब हमारा देश एक ओर चांद पर झंडे गाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हम जात-पांत को ले कर झगड़े कर रहे हैं। उस पर दुर्भाग्य यह कि जिन संचार माध्यमों को अपने दृश्य-श्रव्य शक्ति का उपयोग देश की बुनियादी समस्याओं को सामने ला कर उन्हें दुरुस्त करने के लिए करना चाहिए, वे संचार माध्यम दसवें नंबर पर लगाई जाने लायक ख़बर को पहले नंबर पर ला कर और उसे बाकायदा दिन भर चला कर अपनी तथाकथित जागरूकता की नुमाईश करते रहते हैं। जबकि सवाल किसी विधायक की बेटी के अंतरजातीय विवाह करने का नहीं, विधायक द्वारा अपनी बेटी के विरुद्ध होने का नहीं बल्कि सभी बेटियों और सभी पिताओं का होना चाहिए। चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए कि बेटियां अपनी इच्छा से अपना वर चुनें और पिता दकियानूसीपना छोड़ कर जात-पांत नहीं बल्कि लड़के का चाल-चलन देख कर अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दें। किन्तु जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस मामले को उछाला उसमें ऐसे बयान आना स्वाभाविक है जैसा कि पं. गोपाल भार्गव दे बैठे।
हमारा भारतीय कानून इस प्रकार के अंतरजातीय विवाह को पूर्ण स्वीकृति देता है। कुछ अरसा पहले खाप पंचायत की बेजा दखलंदाजी और ‘ऑनर किलिंग’ के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई वयस्क महिला अथवा पुरुष अपनी इच्छा से किसी भी व्यक्ति से शादी कर सकता है और खाप पंचायत इसमें कोई दखल नहीं दे सकती। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रेम विवाह करने वाले युवक-युवतियों पर खाप पंचायतों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगा पाने में असफल रहने पर केंद्र सरकार को फटकार भी लगायी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी-युगलों के खिलाफ खाप पंचायतों या ऐसे किसी संगठनों द्वारा किए गए अत्याचार या दुर्व्यवहार को पूरी तरह गैर-कानूनी है। खाप पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी देते हुए न्यायालय ने कहा था कि यदि केंद्र सरकार खाप पंचायतों को प्रतिबंधित करने की दिशा में कदम नहीं उठाती तो अदालत इसमें दखल देगी। सुप्रीमकोर्ट को इस तरह दखल देना ही पड़ा क्योंकि इस इक्कीसवीं सदी में पहुंच कर भी हमारे देश में आज भी प्रेम विवाह को सही नजरिए से नहीं देखा जाता है। यही कारण है कि प्रेमी युगल को कभी कभी उन्हें अपने ही परिवारजन का शिकार होना पड़ता है तो कभी समाज में प्रचलित खाप पंचायतों के बर्बर फैसलों का सामना पड़ता है। वैसे तो ‘ऑनर किलिंग’ शब्द ही बदल कर ‘हॉरेबल किलिंग’ (बर्बर हत्या) कर दिया जाना चाहिए। सम्मान की बात तो तब होती है जब परिवार या समाज सम्मानजनक फैसले ले और सामाजिक बुराइयों से ऊपर उठे। ऐसे लोग सम्मानित कैसे हो सकते हैं जो युवाओं के साथ बर्बरता से पेश आएं।
रहा सवाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तो उसे तो खबरों को मसाला बनाने का हुनर आता है। मटुकनाथ-जूली प्रेम प्रसंग को जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हवा दी थी वह उसके द्वारा खबर को मसाला बनाने वाले हुनर का उल्लेखनीय उदाहरण है। एक दशक पहले ही यानी सन् 2006 में 64 साल के पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर मटुकनाथ चौधरी ने अपनी शिष्या जूली कुमारी को अपने जीवन का प्यार बताते हुए उनके साथ रहने का फैसला किया था। खुद से 30 साल छोटी छात्रा जूली के साथ संबंधों को लेकर पूरे देश में चर्चा में आए थे। जूली मटुकनाथ के साथ 2007 से 2014 तक लिव इन रिलेशनशिप में भी रही। जूली के लिए मटुकनाथ ने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया था। यह बात अलग है कि मटुकनाथ की यह शिष्या और उनके जीवन के प्यार ने इन दिनों अध्यात्म का रुख कर लिया और प्रेम के लिए चर्चित ’लव गुरु’ मटुकनाथ इन दिनों एकाकी जीवन बिता रहे हैं। मटुकनाथ और जूली के प्रेम का जो भी हश्र हुआ लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को तो अपनी वह टीआरपी मिल ही गई थी जो उसे चाहिए थी।
आज भी खाप पंचायतें अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी युगल को अमानवीय यातनाएं देती हैं। लड़की को निर्वस्त्र कर के उसके कंधे पर उसके मरणासन्न प्रेमी युवक को बिठा कर गांव में घुमाने के अमानवीयकृत्य को क्या ये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतनी प्रमुखता देती है जितनी कि साक्षी के मामले को प्रमुखता दी गई? क्या कभी पलट कर उन युवक-युवतियों की दशा का पता लगाया गया जो इस प्रकार की जघन्य सजा के बाद जिन्दा बच गए। इस मामले में भी साक्षी और अजितेश के जरिए अपना टीआरपी बढ़ाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्या विधायक पिता राजेश मिश्रा और उनकी बेटी-दामाद साक्षी- अजितेश के बीच की खाई को पाट सकेगा? यदि ऐसा होता तो समाज के लिए एक अच्छा संदेश जाता लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा फिलहाल तो ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है।
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