Monday, January 10, 2022

कविता में लोकधर्मिता होनी चाहिए - डॉ (सुश्री) शरद सिंह, मुख्य वक्ता, पुस्तक लोकार्पण समारोह

 09.01.2022 को श्यामलम संस्था द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्यवक्ता मैंने कहा कि-..."कविता में लोकधर्मिता होनी चाहिए। मैं कबीर को सबसे बड़ा लोकधर्मी कवि मानती हूं। कबीर ने तत्कालीन लोक में जो व्यवहार चल रहा था उसका आकलन किया उसका विश्लेषण किया उसकी उपादेयता को परखा, उसकी निरर्थकता को समझा और फिर उसे अपने काव्य में अभिव्यक्त किया और न सिर्फ अभिव्यक्त किया बल्कि  उसके उचित या अनुचित होने पर भी संकेत किया। यह लोकधर्मी मुखरता उनकी साखियों में मिलती है। यह उनके लोक धर्मिता का सबसे बड़ा प्रमाण है, जब वे कहते हैं -पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़ / ता से ये चाकी भली, पीस खाए संसार ।"
यह अवसर था आदर्श संगीत महाविद्यालय के सभागार में कवयित्री श्रीमती जयंती सिंह की दो पुस्तकों "शब्दों की निर्झरिणी" तथा "हमाओ सागर" के लोकर्पण का। मेरे साथ मंच पर  स्नेहिल उपस्थिति रही प्रो सुरेश आचार्य,  मुख्य अतिथि डा सरोज गुप्ता, अध्यक्ष डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि श्री शिवरतन यादव एवं लोकार्पित पुस्तकों की लेखिका श्रीमती जयंती सिंह लोधी की। उत्कृष्ट संचालन किया इंक मीडिया संस्था के निदेशक डॉ आशीष द्विवेदी ने। समारोह के परिकल्पनाकार थे श्री उमाकांत मिश्र जी। मौसम विपरीत होने पर भी श्यामलम संस्था के सभी सदस्यों सहित नगर के बुद्धिजीवियों की उत्साहजनक उपस्थिति रही।
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