Wednesday, December 14, 2022

चर्चा प्लस | 14 दिसम्बर, उर्जा संरक्षण दिवस विशेष | समझना होगा ऊर्जा संरक्षण के महत्व और तरीकों को | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
14 दिसम्बर, उर्जा संरक्षण दिवस विशेष :
     समझना होगा ऊर्जा संरक्षण के महत्व और तरीकों को
        - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                      
       जब लाईट चली जाती है तो हम झुंझला उठते हैं। यदि सरकार के द्वारा विद्युत कटौती की जाने लगती है तो हमारा क्रोध और बढ़ जाता है। डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं तो हम घबरा उठते हैं। लेकिन क्या हम ऊर्जा के इन स्रोतों की बचत के बारे में व्यक्तिगत स्तर पर कभी गंभीरता से विचार करते हैं? जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियां आ गईं लेकिन बिजली उत्पादन के लिए भी तो कोयला जैसा जीवाश्म ईंधन लगता है। यानी आगे चल कर हमें अपनाना होगा बिजली के पारंपरिक स्रोत का विकल्प। तो वह, अभी से क्यों नहीं? इस पर विचार करना जरूरी है।
आज से लगभग 18 वर्ष पूर्व, सन 2006 में भारत बुक सेंटर, लखनऊ से मेरी एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी-‘‘सस्ता और सुरक्षित ऊर्जा स्रोत: सौर तापीय ऊर्जा’’। इस पुस्तक के प्राक्कथन में मैंने लिखा था-‘‘वर्तमान समय ऊर्जा और उसके स्रोतों पर चिंतन करने का समय है। हम ऊर्जा संकट के जिस दौर से गुज़र रहे हैं, वह हमें अपने परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर पुनः दृष्टिपात करने का आग्रह कर रहा है। लकड़ी, कोयला, पनबिजली, गैस, खनिज तेल आदि हमारे परंपरागत ऊर्जा स्रोत मानव के द्वारा उस समय से काम में लाए जा रहे हैं जबसे इन स्रोतों की जानकारी मनुष्य को हुई। हजारों वर्षों से इन ऊर्जा स्रोतों के निरंतर काम में आने, जनसंख्या के दबाव बढ़ने तथा इन ऊर्जा स्रोतों की भावी उपलब्धता की गंभीरता की ओर स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को न तो पुनर्जीवित किया जा सकता है और न पुनर्निर्मित किया जा सकता है। इनका भंडार समाप्त हो जाने पर हम ऊर्जाहीन हो जाएंगे। अतः समय रहते परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के एक ऐसे विकल्प को अपना लेना आवश्यक है जो हमारी भावी आवश्यकताओं को सुचारू रूप से पूरा कर सके। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में जिन परंपरागत स्रोतों को अपनाया जा सकता है, वे हैं- 1.सौर ऊर्जा 2.पवन ऊर्जा 3.ज्वारीय ऊर्जा 4.भू-तापीय ऊर्जा। इन परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा अथवा सौर तापीय ऊर्जा सबसे उत्तम ऊर्जा स्रोत है। यह सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है और इसीलिए इसकी उपलब्धता सतत एवं अक्षुण्ण है। सौर तापीय ऊर्जा सब जगह उपलब्ध हो सकती है। इसको उपयोग में लाना भी आसान है। सौर तापीय ऊर्जा के क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान हो रहे हैं तथा यह भविष्य की विश्वसनीय ऊर्जा के रूप में स्वीकार की जा चुकी है। सुदूर ग्रामीण अंचलों के लिए भी सौर तापीय ऊर्जा के द्वारा ईंधन एवं विद्युत की आपूर्ति की जा सकती है जो अन्य किसी स्रोत से दीर्घकाल तक संभव नहीं है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, मैंने सौर तापीय उर्जा के बारे में जैसे-जैसे अध्ययन किया, वैसे-वैसे मैंने इसे एक सशक्त विश्वसनीय और उपयोग में आसान ऊर्जा स्रोत के रूप में पाया। मुझे लगता है कि सौर तापीय ऊर्जा भारत जैसे विकासशील देश में समाज के प्रत्येक स्तर के नागरिकों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। इससे देश की राष्ट्रीय आय के एक बड़े भाग की बचत हो सकेगी, जो परंपरागत ऊर्जा को आयात करने में व्यय हो जाती है। सौर तापीय ऊर्जा को अपना कर न केवल ईंधन अपितु विद्युत आपूर्ति से संबंधित संकटों से भी हम उबर सकेंगे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेंगे।’’
तब से अब तक अर्थात् विगत 18 वर्ष में ऊर्जा के संबंध में स्थितियां बेहतर नहीं हुई हैं बल्कि और अधिक बिगड़ी हैं। आज फिर वही शब्द लिखने पड़ रहे हैं जो मैंने 18 वर्ष पूर्व लिखे थे कि आमजन जीवन में सौर ऊर्जा को अपनाए जाने की जरूरत है।
कोयले की उपलब्धता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और कोयला बिजली उत्पादन में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। कोयले की उपलब्धता के भावी संकट को देखते हुए जर्मनी ने अपने देश में कोयला खनन का काम बंद कर दिया है। अन्य देश भी इस दिशा में अपनी योजनाएं बना रहे हैं। भारत जैसे विकासशील देश के लिए एकदम से कोयले का उपयोग बंद कर देना संभव नहीं है अतः उसने जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सन् 2030 से 2050 तक का समय मांगा है। हम यदि रेलवे लाईन के पास पहुंच कर देखें तो कुछ ही देर में कोयले से भरी मालगाड़ी सामने से गुज़रती हुई दिखाई दे जाएगी। वह पचासों बोगियों में भरा हुआ कोयला कारखानों और विद्युत तापगृहों में पहुंच कर ऊर्जा उत्पादन का काम करता है। वर्षों से इस प्रकार कोयला खनन किया जा रहा है। हजारों वर्ष में तैयार यह कोयला जिस तेजी से और जिस बड़े पैमाने में हमने उपयोग में लाया है, उससे भूमि के नीचे मौजूद कोयले का भंडार अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। कोयले का पुर्नउत्पादन इतनी तेजी से नहीं हो सकता है कि हम खोदते जाएं, कोयला निकालते जाएं और पृथ्वी हमें कोयला बना-बना कर देती जाए। यह हजारों वर्ष की प्राकृतिक प्रक्रिया से निर्मित होता है। इस बात को जानते हुए भी हमने यह अनदेखी की कि कोयला एक दिन पूरी तरह समाप्त हो सकता है। इसीलिए स्थिति इस गंभीरता तक आ पहुंची है कि कोयले का उपयोग बंद किए जाने का वैश्विक स्तर पर प्रयास आरम्भ करना पड़ रहा है।
हम दैनिक जीवन में विद्युत ऊर्जा का बेहद उपयोग करते हैं। अब तो ई-बाईक, ई-कार आदि के रूप में उपयोग बढ़ता जा रहा है। इस ‘ई’ का मतलब है इलेक्ट्रिक या बिजली। तो जब तक बिजली पारंपरिक स्रोतों पर निर्भर है और हमारे पारंपरिक स्रोत समाप्त नहीं हुए हैं तब तक हमें बिजली प्राप्त होती रहेगी। लेकिन उसके बाद? क्या हम अंधकारयुग में जीने को तैयार हैं? कदापि नहीं। इसकी कल्पना भी हम नहीं करना चाहते हैं। तो फिर क्यों न समय रहते ऊर्जा के अपने स्रोत को पारंपरिक से बदल कर वैकल्कि पर ‘‘स्विच’’ कर दिया जाए। यानी हम जीवाश्म ईंधन के बदले सौर ऊर्जा को स्रोत के रूप में पूरी तरह से अपना लें।
देश में हर वर्ष 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। यह ऊर्जा खपत के महत्व और हमारे दैनिक जीवन में इसके उपयोग और वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिए मनाया जाता है। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का उद्देश्य रहता है, लोगों को ऊर्जा के महत्व, ऊर्जा की बचत, और ऊर्जा संरक्षण के बारे में जागरुक किया जा सके। ऊर्जा संरक्षण का सही अर्थ है ऊर्जा के अनावश्यक उपयोग को कम करके कम ऊर्जा का उपयोग कर ऊर्जा की बचत की जाए। कुशलता से ऊर्जा का उपयोग भविष्य में उपयोग के लिए इसे बचाने के लिए बहुत आवश्यक है। यह सच है कि विद्युत जैसी ऊर्जा को बचा कर उसका भंडारण नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसके उत्पादन में लगने वाले कोयला जैसे स्रोत बचाए जा सकते हैं और मंहगी बिजली के विरुद्ध सौर ऊर्जा को अपना कर अपने घरेलू बजट को भी सम्हाला जा सकता है।
यह सच है कि वर्तमान में हमारे देश में सौर उपकरण घर में लगवाने मंहगे पड़ते हैं किन्तु आरंभिक खर्च के बाद न्यूनतम खर्च उसे बैलेंस कर देता है। यदि इस दिशा में सरकार कारगर सब्सिडी लागू कर दे तो सौर ऊर्जा के घरेलू उपकरण हर नागरिक के लिए सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे। इस दिशा में चीन ने हमारे देश के बाजार को आकर्षित करने में कसर नहीं छोड़ी है। आॅनलाईन बाजार में कम से कम कीमत में उसने ऐसे उत्पाद उतार दिए हैं जो दिन भर सौर ऊर्जा ग्रहण करते हैं और रात भर घर, लाॅन, सड़क आदि को रोशन करते हैं। बेशक ये उपकरण बिना गारंटी के होते हैं किन्तु इनकी कम कीमत इनके ‘‘यूज एंड थ्रो’’ की क्वालिटी के आड़े नहीं आती है। यदि खाना पकाने के सोलर कुकर, चूल्हे और घरेलू बिजली के उपकरणों को सब्सिडी के साथ खुले बाजार में उपलब्ध कराया जाए तो इसे सभी लोग खरीदना पसंद करेंगे। इसका अनुमान बिजली बचाने वाले बल्बों, पंखों आदि की खरीदी के प्रति रुझान को देख कर लगाया जा सकता है। क्योंकि सुविधा पाने के साथ-साथ पैसे की बचत हर कोई करना चाहता है।  
यह भी सच है कि हमें ऊर्जा की बचत की आदत नहीं है। यह आदत हमें अपनानी होगी। कोई भी ऊर्जा की बचत इसकी गंभीरता से देखभाल करके कर सकता है। दैनिक उपयोग के बहुत से विद्युत उपकरणों को जैसे- बिना उपयोग के चलते हुए पंखों, बल्बों, हीटरों आदि को बंद कर के वि़ुत की बचत की जा सकती है। इस तरह ऊर्जा की बचत का तरीका ऊर्जा संरक्षण अभियान में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जीवाश्म ईंधन, कच्चे तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस आदि दैनिक जीवन में उपयोग के लिए पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न करते हैं लेकिन दिनों-दिन इनकी बढ़ती मांग प्राकृतिक संसाधनों के कम होने का भय पैदा करने लगा है। ऊर्जा संरक्षण ही केवल एक ऐसा रास्ता है जो ऊर्जा के गैर-नवीनीकृत साधनों के स्थान पर नवीनीकृत साधनों को प्रतिस्थापित करता है। ऊर्जा उपयोगकर्ताओं को ऊर्जा की कम खपत करने के साथ ही कुशल ऊर्जा संरक्षण के लिये जागरुक करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों की सरकारों ने ऊर्जा और कार्बन के उपयोग पर कर लगा रखा है। उच्च ऊर्जा उपभोग पर कर ऊर्जा के प्रयोग को कम करने के साथ ही उपभोक्ताओं को एक सीमा के अन्दर ही ऊर्जा का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करता है। किन्तु इससे अधिक नागरिक हित का तरीका है सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
भवन निर्माण के समय थर्मल इंसुलेशन का प्रयोग हमारे देश में नहीं किया जाता है किन्तु इस दिशा में ऊर्जा के बचत वाले निर्माण को बढ़ावा दिया जा सकता है जिससे ठंड की ऋतु में ऊर्जा की बचत की जा सके। अन्यथा, ठंड के मौसम में हीटर, ब्लोअर आदि उपकरणों पर बड़े पैमाने पर ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। थर्मल पर्दें, स्मार्ट खिड़कियां इस दिशा में कारगर साबित हो रही हैं। ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा को प्राकृतिक रोशनी और कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप या सीएफएल से और अन्य साधनों के द्वारा ऊर्जा खपत कम की जा सकती है। साथ ही फ्लोरोसेंट बल्ब, रैखिक फ्लोरोसेंट, सौर स्मार्ट टॉर्च, स्काई लाइट, खिड़कियों से प्रकाश व्यवस्था और सौर लाइट का प्रयोग करके बचाया जा सकता है। जल संरक्षण भी बेहतर ऊर्जा संरक्षण का कार्य करता है। लोगों के द्वारा हर साल लगभग हजारों गैलन पानी बर्बाद किया जाता है जिसकी विभिन्न संरक्षण के साधनों जैसे- 6 जीपीएम या कम से कम प्रवाह वाले फव्वारों, बहुत कम फ्लश वाले शौचालय, नल जलवाहक, खाद शौचालयों का प्रयोग करके बचत की जा सकती है।
पूरे भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाते हुए अभियान को और प्रभावशाली, और विशेष बनाने के लिये सरकार द्वारा और अन्य संगठनों द्वारा लोगों के बीच में ऊर्जा संरक्षण प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाता है। ताकि ऊर्जा संरक्षण के प्रति ध्यान आकर्षित किया जा सके। इस दिन स्कूलों में चित्रकला प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती। राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण अभियान भारत में ऊर्जा संरक्षण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए विद्युत मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया। भारत में पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान एसोसिएशन वर्ष 1977 में भारत सरकार द्वारा भारतीय लोगों के बीच ऊर्जा संरक्षण और कुशलता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। ये ऊर्जा का संरक्षण महान स्तर पर करने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाया गया बहुत बड़ा कदम है। बेहतर ऊर्जा कुशलता और संरक्षण के लिए भारत सरकार ने एक अन्य संगठन ऊर्जा दक्षता ब्यूरों को भी 2001 में स्थापित किया गया।
ऊर्जा संरक्षण दिवस वस्तुतः एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान दिवस है। लेकिन जैसा कि हमारी प्रवृत्ति है कि चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो या सरकारी स्तर पर, दिवस मनाने के बाद हम अपने सारे संकल्प भूल जाते हैं और सारी योजनाएं ठंडे-बस्ते में बांध देते हैं। लेकिन अब वह समय आ ही गया है कि हमें ऊर्जा की उपलब्धता एवं ऊर्जा स्रोतों के प्रति गंभीर होना होगा। हमें लापरवाही और अनदेखा करने की अपनी प्रवृत्ति को बदला होगा। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को खाली कोयला खदानें और तेल के रिक्त कुए सौंपने के बजाए उन्हें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा के कभी न खाली होने वाले भंडार सौंप कर जाएं। विशेष रूप से सौर ऊर्जा का वह भंडार, जिससे दैनिक जीवन में भी सस्ती और सुगम ऊर्जा मिलती रहे। 
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