"ई साल का करी आप ओरन ने?" मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
ई साल का करी आप ओरन ने? - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
भुनसारे जब मोरी नींद खुली सो पैलऊं जेई खयाल आओ जी में के ई साल मैंने का खास करी? वोई बेरा मोरी नजर घड़ी पे पड़ गई, मनो कुल्ल छै बजे हते। अब मैंने सोची के जे लेखा-जोखा सुभै छै बजे से करबे से अच्छो है के तनक औ सो लओ जाए। ई साल को जो टेम निकर गओ, अब बो कहूं भगो जा नईं रओ। सात बजे उठ के सोई सोची जा सकत आए। सो मैंने पल्ली मूंड़ लों खेंची औ गुड़प हो गई। काए से के मोरे इते सुभै के नल सात बजे के बाद आउत आएं सो पानी भरबे की कोनऊं जल्दी ने हती। सोओ जा सकत्तो। बाकी मोरे संगे जेई रोज को होत आए। पांच बजे नींद खुलत आए, तनक सो खयाल आत आए के उठो जाए। तनक कसरत-मसरत कर लई जाए। मनो फेर लगत आए के जे ठंड में कसरत करे से कहूं कछु हो गओ, सो का करबी? जब गर्मी परहे सो दूनी कसरत कर लेबी। सो अलारम बंद के, घड़ी की तरफी से मों फेर के निन्दू अम्मा की गोदी में दुबक जात हों। फेर सात बजे नींद खुलत आए। मनो खुद से नईं, नासमिटे अलारम की टें-टें, पीं-पीं से। मगर बो का है के सबरे दार्शनिक खयाल भुनसारेई आउत आएं। का करने? कोन के लाने करने? का हुइए ईंसे? औ जागबे से ई बैराग्य होन लगत आए। मोरे संगे सो जेई होत आए, बाकी आप ओरन की आप जानों!
रामधई भारी जी से सुभै साढ़े सात पे बिस्तर छोड़ने परत आए। जे नल वारे टेम औ काए नईं बढ़ा देत? दस-एक बजे खोलते, सो अच्छो रैतो। खैर, अकेली मोरी को सुनहे? कछु जनें, जनीं सो ऐसी आएं के भुनसारे से ट्रेकसूट पैहन के दौड़बे निकर परत आएं। को जाने का मजो आत आए? अरे, ठंड पर रई सोबे के लाने। सूरज भैया सोई देर से जागत आएं और जे दौड़बे वारे मों अंधेरे निकर परत आएं। मैंने खुद सो नईं देखी, बाकी सो के उठबे के बाद सुनी आए उनके बारे में। कई जनी भौतई अच्छी आएं, जो दुफैरी में धूप तापत-तापत सबरी खबर सुना देत आएं। मोरी मानें सो जे अपने रिर्पोटर हरों खों खबर के लाने कहूं भटकबे की जरूरत नाइयां, बे सो बस इत्तो करें के लुगाइयन की दुफैर की मंडली में शामिल हो जाएं, सो पूरे मोहल्ला भरे की खबरें हाथ लग जेहें।
खैर, मैंने जगबे के बाद सोची के मैंने ई साल का-का करो? आधा-पौन घंटा मूंड़ खुजात सोचत रई, पर कछु याद नईं परी। औ मोई मति मारी गई रई के मैं जे सोचबे को काम घर के आंगूं धूप में ठाड़ी-ठाड़ी कर रई हती। मोरो ध्यान नईं गओ रओ, मनो उते से टुकटुक की मम्मी एक बेरा निकरीं। बे मंदिर जा रई हुइएं। दूसरी बेरा उन्ने मोए लौटत में देखी, सो उनसे कऐ बिना नई रओ गओ औ बे बोल परीं-‘‘काए जिज्जी, मूंड में जुंआ पर गए का?’’
‘‘नईं तो?’’ मैं चैंकी।
‘‘नईं, हमने जात बेरा देखी सो आप अपनो मूंड़ खुजा रई हतीं, औ लौटत बेरा में सोई खुजात मिलीं। जेई से हमें लगो। बाकी आप प्याज खो मींड के ओको रस निकार के मूंड़ पे लगइयो, सो सबरे जुंआ मर जेहें।’’ टुकटुक की मम्मी मोरी कछु सुने बिगर बोलत चली गईं।
मोए भौतई गुस्सा आओ। उनपे नईं, खुद पे, के काए के लाने बाहरे ठाड़ी हो के मूंड़ खुजात भई सोच रई हती। अरे, जे सोचबे को काम अंदर बी कर सकत्ती। अब बे आज दुफैरी की सभा में सबखों जेई बताहें के शरद जिज्जी के मूंड़ में जुआं पर गए। बाकी अब का हो सकत्तो? तीर सो कमान से निकर गओ रओ। जे सोच के मोरे मूंड़ में सच्ची की खुजरी होन लगी। फेर मोए खयाल आओ के ई साल में अपनो करो धरो सो कछु याद नई आ रओ, सो काय न भैयाजी औ भौजी से पूछी जाए।
मैं भैयाजी के घरे पौंची। बे ठैरे औ लेट-लतीफ। बे कुल्ला-मुखारी कर के टाॅवेल से मों पोंछत मिले।
‘‘भैयाजी गुडमाॅर्निंग!’’ मैंने कहीं।
‘‘गुड मार्निंग बिन्ना!’’ भैयाजी खुस होत भए बोले।
‘‘भैयाजी! जे अंग्रेज कित्ते समझदार आएं के चाए दुफैरी हो चली होय, मनो भुनसारे के बाद पैली बार मिल रए होंय सो गुडमार्निंग कही जात है। मनो रात खों नौ बजे बी गुड ईवनिंग रैत आए। ईसे जे फीलिंग आउत आए के अबे कछु देर नईं भई।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ बिन्ना! तभई सो कहो जात आए के उनके राज में कभऊं सूरज नईं डूबत्तो! अब डूबतई कां से, बा सो गुडमार्निंग औ गुड ईवनिंग मेंई उलझो रैत्तो। मनो जे छोड़ो, अपनी कओ, के का हाल-चाल आए?’’ भैयाजी ने पूंछी।
‘‘हाल औ चाल दोई ठीक आएं। बाकी आप सो जे बताओ के आपने ई साल का खास करो?’’
‘‘खास? कछु नईं!’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो नईं हो सकत। कछु सो खास करो हुइए। मनो कोनऊं से झगड़ा करो होय, कोनऊं की मदद करी होय, औ नईं सो बे संकल्प पूरे करे होंय जो साल के पैलऊं दिनां लए रैएं।’’ मैंने भैयाजी से पूंछी।
‘‘हूं! ऐसो तो कछु याद नई परत। बाकी रई संकल्प की बात, सो बे कभऊं कोनऊं के पूरे नईं होत। हऔ, हमने सोची रई के ई साल कोनऊं सो टंटा ने करबी औ साल भर टंटाई करबे परो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय को टंटा?’’
‘‘अरे, मकान को नामांतरण कराने रओ। जूता के तल्ला घिस गए हमाय तो। एक दिनां हमें गुस्सा चढ़ी सो हमने दफ्तर में जा के दारी-मतारी करी सो, दूसरे दिनां काम हो गओ। बाकी हमाओ टंटा ने करबो वारो संकल्प धरो रै गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ कछू?’’
‘‘औ का?’’ भैयाजी सोचन लगे। फेर उचकत भए बोले,‘‘अरे हऔ, बा रामचरण खों यूरिया दिलवाबै गए रए।’’
‘‘आप दिलवा रै हते? अरे, बे सो रामचरण भैया जाई रै हते, सो आप संगे चले गए रए।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, सो का? हम ऊके संगे गए, या बो हमाए संगे, बात सो एकई कहाई।’’ भैयाजी खों मोरी बात तनक बुरई लगी।
‘‘हऔ, चलो मान लई। बाकी आपको उते दिसा मैदान के लाने लोटा-परेड सोई करनी परी हती।’’ खीं-खीं करत भईं मैंने बोलई दई।
‘‘तुम कछु भूलत आओ के नोईं?’’भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘सो, औ बताओ भैयाजी के आपने ई 2022 के साल में का खास करो?’’ मैंने फेर पूछी।
‘‘जे का बताहें? हम बताउत आएं तुमें बिन्ना!’’ हम ओरन की बातें सुनत-सुनत भौजी से रओ नई गओ, औ बे बोल परीं। बे बतान लगीं,‘‘तुमाए भैयाजी ने कभऊं कछु खास करो आए जो ई साल में कर लेते? हमाए संगे ब्याओ करबे के अलाबा अपनी कुल्ल जिनगी में कछु खास नईं करो इन्ने।’’
‘‘जे औ सुन लो इनकीं!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो का हम झूठ कै रए? हमने परोंई कही रई के पूरौ साल कढ़ गऔ औ तुमने कछू खास नईं करो। अब जो बचो-खुचो समै आए ऊमें तुम सोई तनक पदयात्रा कर लेओ। कछु सेहत बन जेहे, कछू नांव हो जेहे औ जो कहूं अगली साल कछू कोनऊं फेर बदल हुइए सो तुमाओ भाग खुल जेहे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘बड़ीे दूर की कही भौजी आपने!’’ मोरे मों से कै आओ।
‘‘जे सो हमें जेई टाईप से ठेन करत रैंत आएं, बिन्ना! बाकी अबकी साल जरूर कछू खास करबी, ऐसो सोच रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन टेम पे सोची? भुनसारे? के दुफैर की गुडमाॅर्निंग पे?’’ मैंने हंसत भई पूंछी।
भैयाजी सो ने बोल पाए, मनो भौजी ठठा के हंस परीं।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। मोय का करने के कोन ने ई साल में कछु खास करो के नईं। मोय पतो आए के मैंने कछु खास नईं करो! हो सकत के अगली साल कछु खास हो जाए। तो अब अगली साल, मनो अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। औ सोचो के आप ओरन खों का कछु खास करने अगली साल में। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की नईं साल की पैलऊं से राम-राम! नई साल में आप सबई लाने सब कछू अच्छो-अच्छो होय, जेई मोरी दुआ आए !!!
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(29.12.2022)
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