Friday, December 9, 2022

बतकाव बिन्ना की | समान नागरिक संहिता औ भैयाजी को ब्याऔ | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"समान नागरिक संहिता औ भैयाजी को ब्याऔ"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
------------------------
बतकाव बिन्ना की      
समान नागरिक संहिता औ भैयाजी को ब्याऔ                             
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            भैयाजी आए, सो उनके मूंड़ पे बंधों गमछा देख के मोसे रहो नई गऔ। मैंने पूछी-‘‘भैयाजी, अबे तो सीतलहर नई चल रई फेर आप काए के लाने अपने मूंड़ पे जे गमछा बांधें फिर रए हो?’’
‘‘ने पूछो बिन्ना! बड़ो मूंड़ पिरा रओ।’’ भैयाजी मुरझाए भए बोले।
‘‘ठंड-मंड लग गई का? दिन में सो नई पड़ रई, मनो रात की बेरा जरूर ठंड हो जात आए। रात को ठंड खा लई आपने, है न!’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘नईं, हमें ठंड नईं लगी।’’ भैयाजी ने कही।
‘‘फेर काए के लाने पिरा रओ? आपने कछू ज्यादई सोच-फिकर कर लई का? बाकी सोच-फिकर में सो आपको घूंटा दुखो चाइए।’’ मैंने भैयाजी से ठिठोली करी।
‘‘हऔ-हऔ, उड़ा लेओ मजाक! बिपदा के मारे को कोनऊ सहूरी नईं बंधात।’’ भैयाजी कछु ज्यादई दुखियारे से हो के बोले। मोए लगो कि हो न हो, बात सीरियस आए।
‘‘अरे, मैं माजक नईं उड़ा रई। आप बताओ तो के भओ है?’’ मैंने भैयाजी से फेर के पूछी।
‘‘बतानेई परहे?’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का! बताबे से मूंड़ की पीरा सोई कम हो जेहे।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘पीड़ा सो कम ने हुइए। मनो तुम जाने बिना पीछा सो छोड़हो नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे तो आपने सांची कई। आप सो जानत हो के जबलों मोय पूरी बात पतो ने पर जाए, मोरे कलेजे खों ठंडक नईं परत।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘चलो, हम बता रए। बाकी हमपे हंसियो नईं।’’ भैयाजी ने कही। जाने कोन सी बात हती के बे बताबे में इत्तो हिचक रए हते। उनकी हिचक देख के मोए रहाई नईं पर रई हती।
‘‘अब बताई दो भैयाजी! बुझव्वल ने बुझाओ!’’मैंने भैयाजी से कही। जानबे के लाने मनो मोरे प्रान कलेजा से निकर के बाहरे टहलन लगे।
‘‘भओ जे बिन्ना के हम पढ़ रए हते अखबार! हमें दिखा गई बा वारी खबर, जीमें समान नागरिक संहिता लागू करबे के लाने अपने शिवराज भैया ने कई हती के एक लुगाई होत भए दूसरो ब्याओ नईं भओ चाइए। जे कानून लागू हो जेहे सो, कोनऊं एक से ज्यादा घरवारी ने रख पाहे। जे पढ़के हमें ठिठोली सूझी। रामधई जाने कोन सी मनहूस घड़ी हती के हमने तुमाई भौजी से कही के, जे लेओ हम सो सोच रए हते के अपनो धरम बदल के दो-चार ब्याऔ कर लओ जाए, मनो जे कानून आ गओ सो कछू ने हो पाहे। बस, इत्तो सुनाई परी के तुमाई भौजी ने चौका सेई ऐसो फेंक बेलन मारो के किरकेट को कोनऊं बाॅलर बी ने मार पाहे। बाॅलर की बाॅल से विकेट औ गुल्ली गिरे ने गिरे बाकी तुमाई भौजी को बेलन ऐसो निशाने पे परो के हमाओ मूंड चटक गओ। जे देखो!’’ कैत भए भैयाजी अपने मूंड पे बंधो गमछा खोल दओ।
‘‘अई दईया!! जे का हो गओ?? जे इत्त्तो बरो गूम्मड़??’’ मोरी आंखें मिचमिचा के रै गईं। भैयाजी के मूंड पर जेई कोई डेढ़ इंची को गूम्मड़ निकर आओ हतो। अब मूंड़ पे इत्तो बरो गूम्मड़ हुइए सो मूंड़ पिराहेई।
‘‘देख लओ! पड़ गई सहूरी?’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, काय की सहूरी? आपके मूंड़ को जे गूम्मड़ देख के सो मोरो मूंड़ पिरान लगो। कहूं कोनऊं हड्डी-मड्डी सो नईं चटक गई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जी टेम पे बेलन घलो हतो, ऊ टेम पे तो मोए सोई जे लगो हतो के गई कोनऊ हड्डी। ऐसो मूंड़ भिन्नाओ के कछू देर सो कछू समझ में ने आई के हो का गओ? ऐसो लगो के मनो छत टूट के मूंड़ पे आ गिरी होय। घींच मोड़ के ऊपर खों देखी तो समझ में आओ के छत सो अपनी जांगा पे आए, हमाओ मूंड़ई कहूं सरक गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे सो वाकई बड़ी वारी ट्रेजडी हो गई आपके संगे!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘अब हमें का पतो रओ के तुमाई भौजी हमाई ठिठोली खों इत्ती सीरियस ले लेहें के हमाई दसा सीरियस कर देहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर भौजी सो बड़ी दुखी भई होई हुइएं।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे, राम को नांव लेओ! बे औ दुखी? हमने उनसे कही के हम सो तुमाए संगे ठिठोली कर रए हते औ तुमने हमाओ मूंड़ फोड़ दओ! कहूं ऐसो करो जात आए? सो बे बोलीं, हऔ ऐसी-कैसी ठिठोली? ऐसी बात तुमाए मूंड़ में आई, सो आई कैसे? अबे सो हमने तुमाओ मूंड़ चटकाओ है, औ जो कहूं तुमने दूसरो ब्याऔ के बारे में फेर के सोची बी सो जान लेओ, चलन-फिरन जोग ने बचहो!’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘ऐसी कई उन्ने?’’ मोए हंसी आई गई।
‘‘हमें पतो रओ के तुम हंसहो जरूर हमाई दसा पे।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले।
‘‘अरे नईं भैयाजी, मैं आपकी दसा पे नईं हंस रई, मोए तो जे बात सोच के हंसी आ गई के सारी भौजियां ऐसईं हो जाएं सो कोनऊं कानून की जरूरतई ने परहे। सबरे लुगवा एकई घरवाली से खुसा रैहें, दूसरी के बारे में सोचबे की हिम्मतई ने करहें। ई तरहा ब्याऔ के मामले में समान नागरिक संहिता खुदई लागू हो जेहे।’’ मोए फेर के हंसी आ गई।
‘‘हंस लेओ, हंस लेओ! मोरी दसा सो ऊंसई हो गई के- खाओ न पियो औ गिलास फोड़ो बारा आना!’’ भैयाजी बोले। फेर कहन लगे,‘‘बात का है बिन्ना के कछू हरें मनो खाली दूसरो, तीसरो ब्याऔ करबे के लाने धरम बदल लेत आएं। ऐसो करो नई चाइए। ऐसो कर के एक तो आप धरम को मज़ाक बनात हो, ऊपे लुगाइयन की जिनगी से खिलवाड़ करत हो। बाकी तुमाई भौजी जे मामले में बड़ी कड़क ठैरीं। बे हंसी-ठिठोली में बी ऐसी बातें सहन नईं करत आएं। उनको कैनो रैत आए के आप ने गलत बात सोची तो जे मानो के आप के मन में बा गलत करबे की इच्छा कहूं ने कहूं, कोनऊं रूप में पाई जात है। ई मामले में सो बे ठक्का-ठाई ठैरीं। हम का, हमाई जांगा कहूं कोनऊं ओर होतो, सो ऊको मूंड बी बे चटका देतीं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो सही, सो आए! ऐसो सोचोई काए जाओ चाइए? जेई लाने जे समान नागरिक संहिता कानून आ जेहे सो अच्छो रैहे! न रैहे बांस औ न बजहे बांसुरी। अब आपई सोचो के ऐसो कहूं ने होतो सो आपको बी ने सूझतो। औ ने आपको मूंड़ फूटतो!’’
‘‘हऔ, जे कानून ससुरा लागू होई जाए! वैसे बी, सबई जने के लाने एकई टाईप को कानून रओ चाइए। जे नईं के एक बेचारो एक ठइयां पे गुजारा करे औ दूसरा चार ठइयां ले आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आपने फेर के बोई मूंड़ फोड़बे वारी बात कही। भौजी ने ठीकई करो, जो करो! बाकी अभई आपके दिमाग की पूरी सफाई नईं भई आए। एकाध बेलन औ परो चाइए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘रैन दे बिन्ना! अब कभऊं ऐसो ने कैबी! अब तुम हमाओ मूंड़ फोड़ देओ, अच्छो रैहे के मैं इते से खिसक लेऊं।’’ कैत भए भैयाजी अपने मूंड़ पे फेर के गमछा बांधत भए चले गए।  
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। रई बात समान नागरिक संहिता की, सो जे कानून लागू भओ चाइए। ईसे सबई को भलो हुइए, चाय बो कोनऊं जात, धरम को होय। तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
 -----------------------------   
(09.12.2022)
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #बुंदेलखंड #बिन्ना #भैयाजी #बतकाव #BatkavBinnaKi #DrMissSharadSingh #Bundeli
#Bundelkhand #Binna #Bhaiyaji #Batkav #बुंदेलीव्यंग्य

No comments:

Post a Comment