"नंगू की गड़ई देख के आ रए" मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
नंगू की गड़ई देख के आ रए
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘आज तुमाए भैयाजी को मूड ठीक नइयां!’’ भौजी बोलीं। बाकी मैं मिलबे तो गई रई भौजी से, मनो उतई भैयाजी बैठे दिखाने।
‘‘काए? भैयाजी को काए मूड ठीक नइयां?‘‘मैंने भौजी से पूछी।
‘‘इन्हई से पूछ लेऔ!’’ कैत भई भौजी मुस्कान लगीं।
‘‘काए का हो गओ भैयाजी?’’ अब की मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ने पूछो बिन्ना! हमाओ बड़ो मूड खराब आए!’’ भैयाजी बमकत भए बोले।
‘‘ऐसो का हो गओ? फीफा वल्र्ड कप में तुमाई टीम जीतत जा रई, औ का चाउने?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे, बा सब सो ठीक आए, मनो अब हम का बताएं तुमाए लाने?’’ भैयाजी ने कही।
‘‘कछू तो बोलो! काए बोलबे जोग ने होय सो बात अलग आए।’’ मैंने भैयाजी से ठिठोली करी।
‘‘काए नइयां बोलबे जोग! हमाए आगूं सो बड़ी लपरयाई कर रै हते, अब बताओ बिन्ना खों!’’ भौजी ने भैयाजी खों ठेन करी।
‘‘ऐसो का आए भैयाजी? अब कछू सो बताई देऔ! अब का आप मोरे प्राणई लैहो?’’ मैंने भैयाजी कई।
‘‘अरे, का बताएं तुमें, के हम नंगू की गड़ई देख के आ रए!’’ भैयाजी चिढ़त से बोले।
‘‘का मतलब? को आ नंगू?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। बाकी आप ओरन के लाने याद कराबो जरूरी आए के जे ‘नंगू की गड़ई’ एक कहनात आए। ईको कछू गलत मतलब ने निकारियो। औ, ईके पांछू की किसां जे आए के एक गांव में एक हती लुगाई। हती तो बा गरीब, मनो ऊको झूठी शान मारबे की बड़ी बुरी आदत हती। ऊके घरे खाबे-पीबे के लाले परे रत्ते। हुन्ना-लत्ता फटे-मटे से। मनो एक दिना ऊको दूसरे गांव में एक सेठ के इते तेरही खाबे को मौका परो। पंगत के बाद सबई जने खों भेंट में अच्छी साजी पीतल की गड़ई दई गई। बो गड़ई ले के अपने गांव लौटी, सो ऊके पांव जमीन पे नईं पर रै हते। ऊको लगो के जे गड़ई सबखों दिखाओ चाइए। बा निकर परी अपनी गड़ई धर के। कोनऊ मिलतो, वोई से कैन लगती, ‘‘जे देखो हमाई गड़ई! कभऊं देखी आए ऐसई गड़ई?’’ सो तभई से जे कहनात चल परी के जोन के पास कछु ने होय, औ कछू मिल जाए, औ बो इतरात फिरै सो ऊके लाने ‘‘नंगू की गड़ई’’ कहो जात आए।
‘‘सो कोआ नंगू की गड़ई?’’ मैंने फिर के भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे बोई, अपनो छुट्टन दाऊ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बे? उने का हो गओ?’’ मोए छुट्टन दाऊ को नांव सुन के अचरज भओ।
‘‘औ का! बेई सो आएं।’’ भैयाजी ने कही। फेर बतान लगे,‘‘हम इते बाजार लो गए हते, के लौटत बेरा में छुट्टन टकरा गए। ऊंसे तो बे हमसे आंख बचात फिरत आएं, मनो आज जान के हमाए आंगू आ ठाड़े भए। हमसे पूछन लगे तुमने देखो रिजल्ट? हमने पूछी के काए को रिजल्ट। सो, बे बोले चुनाव को रिजल्ट। हमने कई के बा तो पुरानी बात हो गई। ई पे छुट्टन दाऊ कैन लगे के काए की पुरानी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस जीत गई। सो हमाए मों से निकर आई के सो का भओ, दो जांगा से हार सोई गई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आपने उनसे ऐसी कै दई? मनो बे तो पक्के कांग्रेसी आएं। उने तो बड़ो बुरौ लगो हुइए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ सो का हम डरात आंए उनसे! हमने सो कै दई के जे अपनी एक ठइयां जीत की ऐसी डुगडुगी बाजत फिरहो, सो नंगू की गड़ई घांई दिखेहो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कही सो ठीक, मनो आपको ऐसो कऔ नईं चाइए हतो। अब बे का करें, एक ठइयां जीत हाथ लगी सो अब बे ऊके बारे में बी ने बोलें का?’’ मैंने कई।
‘‘बोलें, मनो इत्ते ने बोलें के उन्ने खुदई ने कोनऊ तीर मार लेऔ होय। बे हिमाचल वारन ने जिताओ आए, कौन इन्ने जिताओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बाकी आए सो इन्हई की पार्टी, सो इनको खुश होने सो बनत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो जे अपनी पार्टी के लाने इते का कर रै? कहूं कोनऊ मुद्दा उठात दिखत आएं तुमें जे ओरें?’’ भैयाजी बोले।
‘‘ठीक कई! अपने इते सो कभऊं-कभऊं दिखात आएं। वा बी बुनियादी मुद्दा नोई, हवा-हवाई बातन को झंडा लेत फिरत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘औ का? इनके राहुल भैया सो मनो इत्तो पैदल चल रए, औ जे ओरें, उनके संगे फोटू खेंचा-खेंचा के भग आत आएं। अरे, इते आ के तुमई कछू यात्रा-मात्रा करो, सो जे नई हो रओ इनसे, औ बात करबे चले आएं हिमाचल में मिली भई जीत की।’’ भैयाजी खुनकत भए बोले।
‘‘आप कछू ज्यादाई खरी-खरी नईं बोल रए, भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी खों टोंकी।
‘‘खरी सो बोलई चइए। जो खरी ने बोलबी सो इनको लगहे के हमने सो सबई जांगा पे सिक्का जमा लओ। जेई-जेई में सो कांग्रेस की ऐसई दसा हो गई। इन ओरन को कोनऊं भरम में नई रओ चइए। अपनी एक ठइयां जीत खों नंगू की गड़ई ने बनाएं। बाकी उते हिमाचल में जा के सीखें के बे उते के कांग्रेसी कैसे जीते। औ फेर जे मन बनाएं के हमें जीतबे के बाद इते से उते नई होने। पिछली विधान सभा चुनाव में का भओ रओ? जीती तो हती कांग्रेस, इते कमलनाथ जी मुख्यमंत्री सोई बन गए रए। मनो भओ का? अपने शिवराज भैया ने पटखनी दई औ जे गिरे चारो खाने चित्त।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ भैयाजी, आपको नई लग रई के अपन ओरन की बतकाव कछू ज्यादई सियासी होत जा रई। सो, अब मुतकी ने बोलो औ मोए चलन देऔ।’’ मैं उते से उठत भई बोली।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। रई बात नंगू औ ऊकी गड़ई की, सो बे जानें औ भैयाजी जानें, मोए का करने। तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। औ कोनऊ साजी सी कहनात याद आए सो मोए जरूर बतइयो! सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(15.12.2022)
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