बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
सो का सोची जे नए साल के लाने?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना, जे नए साल के लाने का सोची?’’ भैयाजी ने मोए देखतई साथ मोसे पूछी।
‘‘का सोचने भैयाजी? जैसे हते, ऊंसई आएं, साल में का बदलो? खाली कलेंडर बदलो आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जे कोन टाईप की बात कै रईं बिन्ना? तुमई कैत हो के नए साल में कछू नओ करो, कछू अच्छो करो औ तुमई ऐसी बुझई सी बतकाव कर रईं, का हो गओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘कछू नईं!’’ मैंने कई।
‘‘कछू तो आए ने तो तुम ई टाईप से ने बोलतीं। सांची बताओ के का हो गओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘सई में कछू नईं भओ!’’ मैंने फेर के कई।
‘‘अरे बिन्ना, तुम आ गईं। अच्छो रओ। अब तुम जे बताओ के तुम हमाए संगे जिम चलहो के नईं?’’ भौजी मोए देखतई सात पूछो।
‘‘जिम? आप जिम जा रईं?’’ मोए जा सुन के भौतई अचम्भो भओ।
‘‘औ का! का हम जिम नईं जा सकत? इतई कछू दूर पे नओ जिम खुलो आए जीमें लुगाइयन के लाने लेडी सिखाबे वारी आए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘जिम जा के का हुइए भौजी?’’मैंने भौजी से पूछी।
‘‘का हुइए? जे जो वजन बढ़ो जा रहो और कम्मर सोई कमरा बनी जा रई, बा कछू कम हुइए।’’ भौजी ने कई।
‘‘मनो भौजी जो एक दार जिम जान लगो तो फेर बरहमेस जाने परत आए ने तो औ तेजी से वजन बढ़त आए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘जा कोन ने कई?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘सुनी आए।’’ मैंने कई।
‘‘तुम कब से सुनी-सुनाई में परन लगीं?’’ भौजी ने मोए तानो मारो।
‘‘आज बिन्ना को मूड ठीक नईं दिखा रओ। हमसे सोई ऊंसईं-ऊंसई बतकाव कर रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो कछू नईयां भैयाजी! मोरो मूड ठीक आए। बाकी मोए जा नई समझ आ रई के भौजी को जिम जाबे की कां से सूझ परी?’’ मैंने कई।
‘‘जा जब हमें नईं समझ आई, सो तुमें कां से समझ में आहे?’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘जे दंत निपोरी ने करो आप। आपई ने कई रई कि तुम मुटा रईं कछू हाथ-पांव हिलाओ करो। मनो हम तो अजगर घांईं डरे रैत आएं। घर के सगरे काज सो आपई करत हो।’’ भौजी भन्ना के बोलीं।
‘‘भैयाजी, इत्ती तो मोटी नईं भईं भौजी के आप इने टोकन लगो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे, हमने तो इनसे ठिठोली करी हती।’’ भैयाजी घबड़ा के बोले।
‘‘हऔ, कऊं नई! ठिठोली नई करी हती। आपने जे सोई कई रई के बा अपने रामआसरे की घरवारी खों देखो, बा जिम जाउत आए। कित्ती फिट दिखात आए। सो अब हमें सोई फिट बनने। काय से आप औरन की लुगाई खों ने हेरो।’’भौजी ताव खात भई बोलीं।
‘‘हैं? जो का आए भैयाजी ? आपने भौजी से ऐसी कई? आपने रामआसरे भैया की घरवारी को देखबे की बात करी? हे भगवान जो का करो!’’ मोरो मों से निकरो।
‘‘अब तुम ने रार मचाओ बिन्ना! हमाई तो मत मारी गई रई जो हमने ऊके बारे में बोल दओ। हमें का करने ऊसे, बा कऊं जाए।’’ भैयाजी बुरे फंसे।
‘‘कछू कओ, अब तो हमें जिम जाने औ बोई जिम जाने जिते बा जात आए।’’ भौजी अड़ गईं।
‘‘तुमें जिम जाने सो जाओ, पर रामधई हमें बा रामआसरे की लुगाई से कछू मतलब नोईं।’’ भैयाजी की दसा देख के मोय मनई मन हंसी आ रई हती। सो मैंने सोई तनक मजा लेबे की सोची।
‘‘नए साल की जा सुरुआत तो ठीक नई कहानीं।’’ मैंने फिकर जताई।
‘‘खूब ठीक आए बिन्ना, तुम फिकर ने करो! अपन दोई जिम चलबी।’’ भौजी कम्मर सकत घांई बोलीं।
‘‘पर हमाए ऐंगर जिम के लाने पइसा नइयां। उते तो भौतई फीस हुइए।’’ मैंने कई।
‘‘होन देओ, जित्ती होय! तुमाए भैयाजी हम दोई की फीस भरहें न!’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, मालकन चली जइयो, मनो अब हमें माफ कर देओ!’’ भैयाजी हाथ जोर के सरेंडर होत भए बोले।
‘‘काय खों माफ कर दें? आपने बातई ऐसई करी आए के जोन की माफी नईं दई जा सकत आए।’’ भौजी ने भैयाजी खों औ हड़काओ। अब मोय भैयाजी पे तनक दया आन लगी।
‘‘भौजी, वैसे एक बात आए के पैले लुगाइयां घर के मुतके काम करत्तीं, सो उनको फिट रहबे के लाने अलग से कछू नई करने परत्तो। मनो अब घरे आड़ी की काड़ी नईं टारत औ उते जिम में जा के पसीना बहाउत आएं। सई कई के नईं? मनो अपनई ओरन खों देख लेओ। अपन ओरें घर को कित्तो काम करत आएं और करीब-करीब ठीकई आएं।’’ मैंने बात बदरवे के लाने भौजी से कई।
‘‘सई कै रई बिन्ना! हमें कभऊं नई लगो के जिम जाबे की जरूरत आए। घर के काम कर लेओ, संझा ने तो संकारे तनक घूम आओ, इत्तई में तो सब ठीक रैत आए।’’ भौजी तनक आराम से बोलीं।
‘‘सो बिन्ना हम जे पूछ रए हते के जे नए साल के लाने तुमने का सोची?’’ भैयाजी ने सोई माहौल बदलत देख मोसे पूछी।
‘‘भैयाजी मैंने सोची आए के ई साल मोए कोनऊं से कोऊ उम्मींद नई राखने।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी मोरी बात सुन के चैंके।
‘‘मतलब जे भैयाजी, के आजकाल अपने वारे सोई राजनेता भए जा रए। ऊपरे से कछू दिखात औ भीतरे से कछू औ निकरत। कोन कब पांव तरे से जमीन खेंच ले, कओ नईं जा सकता। सो हमने जेई सोची आए के अब ई साल से बस काम से काम राखने औ कछू नईं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कै तो ठीक रईं बिन्ना! पर हमें पतो के तुम ई पे टिके ने रै पाहो।’’ भौजी बोल परीं। औ मोय लगो के सई में भौजी मोय कित्ते अच्छे से जानत आएं। मनो करो का जाए आजकाल मेलजोल वारे सोई नेता घांईं खेल खेलत आएं। आप के मों पे आपई की बड़वारी करहें औ संगे नैचे से आपई की जड़े काटहें। खैर, साल की सुरू में जो सोचो बा अखीर लौं टिकत नईयां। सो जो हुइए, बा देखी जैहे। आप सोई बताइयो के आप ओरन ने का सोची जे नए साल के लाने?
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई बारे में, के आजकाल संबंधो से बड़ो स्वारथ काए होन लगो!
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