Thursday, June 26, 2025
बतकाव बिन्ना की | खूब खाओ, मनो तनक देख-सुन के | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम
Wednesday, June 25, 2025
चर्चा प्लस | कितना सोचा जाता है बेटियों के बारे में | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस
कितना सोचा जाता है बेटियों के बारे में?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’- बहुत सुखद नारा है। यह उस समय और भी सुखद लगता है जब किसी कन्या विद्यालय की छात्राएं अथवा किसी महिला संगठन की महिलाएं हाथों में तख़्तियां लिए इस नारे को जोर-शोर से बुलंद करती हुई जुलूस निकालती हैं। ऐसा लगता है कि बेटियों को अब एक सुविधाजनक दुनिया मिल कर रहेगी। किन्तु सच्चाई इससे अभी भी कोसों दूर है। बेटियों के लिए स्कूल के दरवाजे तो खोले गए हैं लेकिन उन्हें वे सारी सुविधाएं अभी भी नहीं मिल रही हैं, जो मिलना चाहिए। स्कूलों में भी बेटियों के लिए सुरक्षा और सुविधाओं में अभी भी कमी है। क्या कारण है इसका?
हमारे देश की बेटियां सबसे अधिक श्रमशील और सबसे अधिक जीवट हैं। वे हर प्रकार की विषम परिस्थिति में स्वयं को अडिग बनाए रखती हैं। दुर्भाग्यवश बेटियों के इस गुण को समाज ने जानते हुए भी समझने से इनकार कर किया। एक समय वह भी आया जब 1000 बेटों पर 911 बेटियों की औसत दर का आंकड़ा आ गया था। ऐसा इसलिए हुआ कि उस समय तक भ्रूण के लिंग की जांच और भ्रूण हत्या का कारोबार खुल कर चल रहा था। फिर सरकार ने इस विकट स्थिति को अपने संज्ञान में लिया और मेडिकली परमिशन के बिना भ्रूण के लिंग की जांच अथवा भ्रूण की हत्या को अपराध घोषित किया गया। इसके लिए अलग से अधिनियम बनाया गया। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) के तहत, भ्रूण के लिंग का निर्धारण करना या किसी को बताना अवैध करार दिया गया, और ऐसा करने वालों के लिए सजा का प्रावधान रखा गया। गर्भधारण पूर्व और प्रसूति-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के तहत दण्डनीय अपराध यदि-
1.गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाया जाए।
2.गर्भवती महिला पर उसके परिजनों या अन्य व्यक्ति द्वारा लिंग जांचने के लिए दबाव बनाया जाए।
3.वे डॉक्टर जो इस तकनीक का दुरूपयोग करते हैं या कोई भी ऐसा व्यक्ति अपने घर या बाहर कहीं पर लिंग की जांच के लिए किसी तकनीक का प्रयोग या मशीन का प्रयोग करता है- लेबोरेटरी, अस्पताल, क्लीनिक तथा कोई भी ऐसी संस्था जो सोनोग्राफी जैसी तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन के लिए करते हैं।
4.गर्भवती महिला एवं पति द्वारा स्वयं इस तरह का कोई कृत्य जिससे लड़के के जन्म को बढ़ावा दिया जा रहा हो जैसे - आयुर्वेदिक दवाईयाँ खाना या कोई वैकल्पिक चिकित्सा या कोई भी व्यक्ति गर्भवती स्त्री और उसके रिश्तेदारों को शाब्दिक रूप से या सांकेतिक मुद्राओं से भ्रूण का लिंग बताए तो अपराधी माना जाएगा।
5. भ्रूण के लिंग के चयन की सुविधा के बारे में किसी प्रकार के इश्तहार या प्रकाशन या पत्र निकालने वाले भी अपराधी माने जाते हैं।
इस कानून के अन्तर्गत प्रत्येक जुर्म संज्ञेय व गैर जमानती है और समझौता योग्य नहीं है। गर्भधारण पूर्व और प्रसूति-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 अधिनियम के अन्तर्गत दण्डात्मक प्रावधान में लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच कराने पर 03 साल तक की जेल और रु. 10000 तक का जुर्माना हो सकता है। दुबारा ऐसा अपराध करने पर 05 साल की जेल और रु. 50000 तक का जुर्माना हो सकता है। इस तरह की जांच करने वाले डॉक्टर एवं तकनीकी सहायक को 03 साल तक की जेल और रु. 10000 तक का जुर्माना हो सकता है। डॉक्टर या तकनीकी सहायक द्वारा दुबारा अपराध करने पर 05 साल तक की जेल और रू. 50000 तक जुर्माना हो सकता है। लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच करने वाले केन्द्रों का पंजीयन रद्द किया जा सकता है। लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच सम्बंधी विज्ञापन देना अपराध है। ऐसा करने वाले को 03 साल की जेल और रु. 10000 का जुर्माना हो सकता है। यदि गर्भवती महिला की सोनोग्राफी/अल्ट्रासाउण्ड तकनीक से जांच की जाती है तो अल्ट्रासाउण्ड करने वाले को 02 साल तक जांच का पूरा ब्यौरा रखना होगा। ऐसा नहीं करने पर सजा हो सकती है या ऐसी जांच के लिए गर्भवती महिला से लिखित अनुमति लेना जरूरी है। साथ ही गर्भवती महिला को इस अनुमति की कॉपी देना भी जरूरी है। इस संबंध में मदद एवं शिकायत के लिए टोल फ्री नंबर भी हैं- समाधान शिकायत निवारण प्रकोष्ठ-18001805220, वूमेन्स पावर लाइन-1090, पुलिस-100 एवं निःशुल्क विधिक सहायता-18004190234, 15100 नंबर।
सामाजिक जागरूकता के बिना सरकार के सारे प्रयास शत प्रतिशत परिणाम तो नहीं दे सकते हैं किन्तु इस अधिनियम के लागू किए जाने से कन्या भ्रूण को पहचान कर मारे जाने का अमानवीय अपराध न्यूनतम स्तर पर आ गया। इससे बेटियों को जन्म लेने का एक बार फिर अवसर मिलने लगा। लेकिन जन्म लेने के बाद अनचाही बेटियों का जीवन क्या पूरी तरह सुरक्षित और आरामदायक होता है? नही! अनेक अनचाही बेटियां परिवार की उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार होती रहती हैं। घर में उन्हें और उनकी जन्मदात्री मां को कोसा जाता है, उनसे रूखा व्यवहार किया जाता है। पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव इतना अधिक होता है कि वे चाह कर भी अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पाती हैं और अपनी प्रताड़ना को अपनी नियति मान कर चुपचाप सहती रहती हैं। अनचाही बेटियों को न तो भरपेट खाना मिलता है और न सुखद जीवन। उन्हें भी बड़ी होने पर विवाह के बाद यही शब्द सुनने को मिलते हैं कि ‘‘बहू जल्दी से पोतेे का मुंह दिखा दे!’’ यानी किस्सा दोहराए जाने को तैयार।
कन्या भ्रूण के हित में बने अधिनियम से बेटियों को जन्म पाने का अवसर मिलने लगा है। अनेक परिवार उन्हें पढ़ाने में भी रुचि रखते हैं। कोई बेटी के अच्छे भविष्य के लिए, तो कोई पढ़ा-लिखा कर अच्छा वर जुटाने के उद्देश्य से तो कोई मात्र बेटियों को मिलने वाले स्कालरशिप हड़पने के उद्देश्य से। ध्यान रहे कि यहां इस संदर्भ में पढ़े-लिखे समझदार परिवारों की चर्चा नहीं की जा रही है और न ही उन परिवारों की जो अपनी बेटियों को अच्छे प्रायवेट स्कूलों में शिक्षा दिलाते हैं। यहा मैं चर्चा कर रही हूं आम सरकारी स्कूलों की जिनके लिए नियम तो अनेेक बनाए गए हैं किन्तु उनका पालन हो रहा है या नहीं, इसे संज्ञान में लेने वाला कोई दिखाई नहीं देता है। ग्रामीण क्षेत्रों अथवा निचली बस्तियों में चल रहे आम सरकारी स्कूलों में बेटियों के हित में तय की गई योजनाओं का अता-पता नहीं मिलेगा। कहीं यदि कोई प्राचार्य व्यक्तिगत रुचि ले कर कोई कार्य करा रहा है तो उस अपवाद की बात भी यहां नहीं हो रही है। लड़के और लड़कियों के एक साथ पढ़ने में कोई बुराई नहीं है। बल्कि को-एजुकेशन में दोनों के बीच पारस्परिक समझ स्वाभाविक रूप से विकसित होती है और किसी प्रकार का ‘‘टैबू’’ मन में घर नहीं बना पाता है। किन्तु मूल समस्या है स्कूलों में बेटियों को मिलने वाली सुविधाओं की।
सरकार द्वारा तय तो यह किया गया कि प्रत्येक स्कूल में जहां बालिकाएं पढ़ती हैं, सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाएं। इसके लिए दो विकल्प थे कि एक तो स्कूलों में बालिकाओं को सेनेटरी नैपकिन्स दिए जाएं और दूसरा विकल्प था कि उन्हें सेनेटरी नेपकिन्स खरीदने के लिए पैसे दिए जाएं। अलग-अलग राज्य सरकारों ने अलग-अलग रास्ते चुने हैं।
मध्य प्रदेश में डॉ मोहन यादव की सरकार ने किशोरियों को सैनिटरी नैपकिन खरीदने के लिए नकद राशि प्रदान करने वाली भारत की पहली राज्य सरकार बनने की पहल की। यह नकदी राज्य सरकार की स्वास्थ्य एवं स्वच्छता योजना के तहत प्रदान की जा रही है। इसके अंतर्गत सातवीं से 12वीं कक्षा तक की प्रत्येक स्कूली बालिकाओं को सेनेटरी पैड खरीदने के लिए सालाना पैसे दिए जाते हैं। इस योजना के तहत पहले छात्राओं को 150 रुपये दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर अब अब सालाना 300 रुपये कर दिए गए हैं। भारत में कई राज्य सरकारें किशोर लड़कियों को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन प्रदान करती हैं, लेकिन उनमें से कोई भी लाभार्थियों को नकद नहीं देती है। योजना बहुत अच्छी है, इसमें कोई संदेह नहीं। किन्तु इसका वह व्यवहारिक पक्ष भी फालोअप किया जाना जरूरी है जहां बालिकाओं से उनके स्काॅरशिप के पैसे खाते से निकालने के बाद शराबी पिता अथवा घर की अन्य जरूरतों के लिए छुड़ा लिए जाते हैं। अतः जिन बालिकाओं को सेनेटरी पैड के लिए सरकार पैसे दे रही है, क्या वे सभी बालिकाएं अपने लिए सेनेटरी पैड खरीद पा रही हैं या उनसे पैसे ले कर उन्हें घरेलू पुराने कपड़े थमाए जा रहे हैं। फिर विचारणीय यह भी है कि क्या बाज़ार में इतनी कम कीमत के सेनेटरी पैड उपलब्ध हैं जो 300 रुपए सालाना में जरूरत पूरी कर सकें। पैड्स का उपयोग भी हर बालिका के लिए नपातुला एक-सी संख्या में तय नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक की आवश्यकता अलग होती है।
दूसरा पक्ष यह भी ध्यान देने योग्य है कि मासिक धर्म अचानक शुरू होने वाली शारीरिक प्रक्रिया है अतः इसके लिए स्कूलों में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनों का होना भी जरूरी है। जिससे आवश्यकता पड़ने पर बालिका बेझिझक तुरंत सेनेटरी पैड प्राप्त कर सके। इस पर भी सरकार ने योजना बनाई किन्तु इसका ढंग से क्रियान्वयन नहीं हुआ है। जबकि चाहे कोएजुकेशन स्कूल हों या बालिका स्कूल, दोनों में सेनेटरी पैड वेंडिग मशीन होनी चाहिए। यदि को-एजुकेशन स्कूल में इस प्रकार की मशीनें रहेंगी तो इससे बालकों में भी बालिकाओं की प्राकृतिक समस्या अथवा विशेषता के प्रति समझ बढ़ेगी और वे इसके प्रति एक स्वाभाविक दृष्टिकोण अपनाएंगे।
मध्य प्रदेश सरकार ने तो मासिक धर्म से जुड़े मिथक और वर्जनाओं से निपटने के लिए 1 नवंबर 2016 को महिला एवं बाल विकास परियोजना के तहत शुरू की थी। इस योजना का क्रियान्वयन आंगनबाडी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं के माध्यम से किया जा जाता है। इसमें बालिकाओं को भी मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों से मुक्त करने का प्रावधान है। किन्तु उन स्कूलों पर ध्यान दिया जाना सबसे अधिक जरूरी है जहां बालिकाओं को स्वच्छ शौचालय भी नसीब नहीं होता है। ऐसी बालिकाएं तरह-तरह के इंफेक्शन की शिकार होती रहती हैं या फिर वे उन पांच दिनों में स्कूल जाने से ही कतराती हैं, लिससे उनकी पढ़ाई कर हर्जा होता है और उन्हें स्कूल न पहुंच पाने का कारण बताने में झिझक भी होती है।
इस संदर्भ में सरकार को भी यह संज्ञान में लेना होगा कि मात्र पैसे बांटने से समस्या का पूरा हल नहीं निकलता है। समस्या के प्रत्येक व्यवहारिक पक्ष पर ध्यान देना भी जरूरी है। जो योजना शहरी अथवा सुशिक्षित इलाके में सौ प्रतिशत परिणाम दे, जरूरी नहीं है कि वह अल्प शिक्षित ग्रामीण इलाके अथवा झुग्गी बस्तियों के इलाके में भी वही परिणाम देगी। जिस उद्देश्य के लिए जो पैसे उपलब्ध कराए जा रहे हैं, उन पैसों से वह कार्य सुचारु रूप से हो भी रहा है कि नहीं, यह देखना भी जरूरी है।
इसी तरह आम सरकारी स्कूलों में काउंसलर्स नियमित रूप से उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। बालक-बालिकाओं को ‘‘गुड टच और बैड टच’’ सिखा देने के साथ उनमें उस जागरूकता को लाना भी जरूरी है कि वे ‘‘बैड टच’’ करने वाले की खुल कर शिकायत करने का साहस कर सकें। इसमें काउंसलर्स की अहम भूमिका होती है जो बच्चों के मन को टटोल कर उनका भय दूर कर सकते हैं। ऐसे बुनियादी मामलों में अभी भी योजनाएं पिछड़ रही हैं क्योंकि उन्हें लागू करने के बाद उनका पर्याप्त फालोअप नहीं लिया जाता है।
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Tuesday, June 24, 2025
पुस्तक समीक्षा | जीवन के संवेदनाजन्य सरोकारों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
Saturday, June 21, 2025
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Friday, June 20, 2025
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Wednesday, June 18, 2025
चर्चा प्लस | भारत के घरेलू बजट को बिगाड़ सकता है ईरान-इजराइल युद्ध | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस (सागर दिनकर)
भारत के घरेलू बजट को बिगाड़ सकता है ईरान-इजराइल युद्ध
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
ईरान और इजरायल के बीच इस समय जिस तरह हुआ है वह पूरी दुनिया को करने लगा है। इस युद्ध में सबसे बड़ा नुकसान पहुंच रहा है कच्चे तेल के उत्पादन को। कच्चा तेल दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। यदि यह युद्ध लंबा चला तो यह भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था कमर तोड़ सकता है। कच्चे तेल के दाम भी अन्य वस्तुओं के दाम को तय करता है। तेल के कुओं को क्षति पहुंचने तथा देश में तेल की आपूर्ति बाधित होने से जरूरी सामानों की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था भी फिर आर्थिक परेशानियों से मुक्त नहीं रहेगी। यद्यपि यह आशा की जा रही है कि जी-7 में प्रधानमंत्री मोदी भारत के लिए कोई हल ढूंढ सकेंगे।
दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी देश में युद्ध हो लंकिन उसका असर दुनिया के हर देश पर किसी न किसी रूप में पड़ता है। फिर जब दुनिया के वे दो देश आपस में युद्धरत हों जिनके पर कच्चे तेल का भंडार है तो पूरी दुनिया पर सीधा असर पड़ना स्वाभाविक है। आज दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञों को यही सबसे बड़ी चिंता है कि यदि इजरायल-ईरान युद्ध लंबा चला तो कच्चे तेल की पर्याप्त उपलब्धता को ले कर सारी दुनिया संकट में पड़ सकती है। भारत के लिए भी यह चिंता का विषय बन सकता है। विशेष रूप से कच्चे तेल के आयात के संबंध में महत्वपूर्ण चुनौतियां नजर आ रही हैं। एक ओर जहां युद्ध के माहौल के कारण क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल में लगातार वृद्धि हो रही है, तो वहीं निर्यात बाधित होने की संभावना बढ़ती जा रही है। भैगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो दुनिया का सबसे व्यस्त तेल मार्ग होर्मुज जलडमरूमध्य जलमार्ग में किसी भी तरह की बाधा आने पर भारत के तेल आयात में समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि पर्याप्त सप्लाई नहीं हो सकेगी तो देश में पेट्रोल, डीजल के भाव पर असर पड़ेगा। महंगाई में इजाफा करने वाली साबित हो सकती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो दोनों देशों पर परस्पर मिसाइल अटैक का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों पर देखने को मिलने लगा है। ये कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। हाल ही में ब्रेंट क्रूड का दाम 75 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया, जबकि डब्ल्यू ई टी क्रूड का जुलाई वायदा भाव भी 73.99 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया है और इसमें और भी तेजी की संभावना जताई जा रही है। इसीलिए आशंका जताई जा रही है कि अगर युद्ध बढ़ता है, तो कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती हैं। इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। इससेे देश में मंहगाई बढ़ेगी और साथ ही देश का चालू खाता घाटा भी बढ़ेगा। तेल का निर्यात प्रभावित होने की वजह से तेल और गैस की कीमतों में भी बढ़ोतरी की आशंका है। पिछली बार भी जब इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ा था तो कीमतें बढ़ी थीं
इसराइल और ईरान में तनाव की स्थिति कोई नई नहीं है। इन दोनों देशों के बीच तनाव और टकराव के कारण मध्य-पूर्व में हमेशा अनिश्चितता को माहौल बना रहता है। ईरान ने कई बार अपनी यह इच्छा प्रकट की है कि वह दुनिया के पक्शें से इजरायल को मिटा देना चाहता है। इसके लिए ईरान के पास तर्क है कि इजराय मध्य-पूर्व में अमेरिका की घुसपैंठ का माध्यम बना रहता है। ईरान अमेरिका को ‘‘बिग डेविल’’ और इजरायल को ‘‘लिटिल डेविल’’ कहता है। वह साफ तौर पर अमेरिका को भी मध्य-पूर्व की जमीन पर नहीं देखना चाहता है। वहीं दूसरी ओर इजरायल के अपने तर्क हैं। वह ईरान को यहूदी विरोधी मानसिकता का मानता है तथा उसके आरोप रहते हैं कि ईरान इजरायल के विरुद्ध आतंकी संगठनों को सहायता देता है। दोनों देशों के इस टकराव में सबसे अधिक पिसता आ रहा है गाजा क्षेत्र। जिसे गाजा पट्टी के नाम से भी जानते हैं। गाजा हमेशा युद्ध क्षेत्र बना रहता है।
मुझे याद है कि जब मैं स्कूली कक्षा पूरी करके कालेज के प्रथम वर्ष में पहुंची थी तब मुझे विश्व की राजनीतिक खबरों में रुचि आने लगी थी। उस समय हमारे घर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से प्रकाशित दैनिक ‘‘आज’’ डाक से आया करता था। दो दिन पुराना हो जाने पर भी वह अखबार जब हाथ में आता तो मैं सबसे पहले संपादकीय पन्ना खोलती। उसमें गाजा क्षेत्र की खबरे रहतीं। उस समय मुझे ठीक-ठीक पता भी नहीं था कि यह गाजा क्षेत्र है कहां और वहां के लोग कैसे हैं? लेकिन यह पढ़ कर आश्चर्य होता कि वहां वर्षों से लडाई चल रही है। तब से आज तक स्थिति इतनी ही बदली है कि अब लड़ाई पहले से अधिक संहारक और दुनिया पर प्रभाव डालने वाली हो गई है। तब टीवी नहीं था अतः विभीषिका की वही कुछ चंद तस्वीरें सामने आती थी जो अखबारों में छपती थीं। अब तो सीएनएन, बीबीसी, अलजजीरा आदि अनेक ऐसे टीवी चैनल्स हैं जो युद्ध की लाईव घटनाएं दिखाते रहते हैं। सब उफ, उफ करते हैं उन दृश्यों को देख कर लेकिन कोई भी युद्ध रोकने का कारनामा नहीं दिखा पा रहा है। चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ हो या मानवाधिकार संगठन सभी स्वयं को असमर्थ पाते हैं।
बीच में कभी-कभार स्थितियां नरम भी पड़ीं। जब ईरान और ईराक का युद्ध छिड़ा तो इजरायल से उसका ध्यान हट गया। अयातुल्लाह खोमैनी के समय इसराइल और ईरान के संबंध 1979 तक अपेक्षाकृत शांत रहे। सन् 1948 में अस्तित्व में आए इजराइल को सबसे पहले तुर्की ने और फिर ईरान ने मान्यता दी थी। यद्यपि यह माना जाता है कि इस मान्यता देने के पीछे ईरान फलस्तीन के टुकड़े करना चाहता था। ईरान पर उस समय राजतंत्र था और पहलवी वंश के शासक सत्तासीन थे। ईरान का राजतंत्र अमेरिकी मित्रता में विश्वास करता था। इसीलिए इजरायल ने ईरान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कुछ समय की शांति क बाद सन 1979 में अयातुल्लाह खोमैनी की क्रांति के द्वाराईरान में राजतंत्र का तख़्ता पलट दिया और एक इस्लामी गणतंत्र स्थापित किया। इसके बाद आशा से परे जा कर अयातुल्लाह खुमैनी की सरकार ने इजराइल के साथ संबंध तोड़ लिए। उसने उसके नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया और तेहरान में इजराइली दूतावास को जब्त कर फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को सौंप दिया। उस समय अलग फलस्तीन राज्य के लिए इसराइल के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व पीएलए कर रहा था। वहीं से कटुता गहरानी शुरू हो गई। ईरान बार-बार फलस्तिीनी मुद्दे को इजरायल के विरुद्ध थोंपने का प्रयास करता रहा। लेकिन सद्दाम हुसैन को नाम आते ही ईरान और इजरायल में नरमी का आ जाती थी। फिर भी यह नरमी लंबे समय तक कभी नहीं चली। आपसी टकराव बाकायदा जारी रहा।
ईरान मुख्य रूप से फारसी और शिया हैं, वहीं अधिकांश अरब देश सुन्नी हैं। लेबनान का हिजबुल्लाह इन संगठन भी हमेशा सक्रिय रहता है। कहा जाता है कि आज ईरान का तथाकथित ‘‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’’ लेबनान, सीरिया, इराक और यमन तक फैला हुआ है। दूसरी ओर इजरायल ने भी अपने समर्थ जुटा रखे हैं। ईरान के अनुसार इजरायल का सबसे बड़ा समर्थ अमरीका है। वहीं अमरीका का तर्क है कि वह ईरानी परमाणु कार्यक्रम को रोकना चाहता है, इसीलिए इजरायल को समर्थन देता है। यद्यपि ईरान का कहना है कि उसके परमाणु कार्यक्रम उसके अपने देश के विकास के लिए है, वह किसी पर आक्र्मण नहीं करना चाहता है। लेकिन कुल मिला कर ईरान और इजरायल परस्पर युद्ध को झेल रहे हैं।
1947 और 1949 के बीच निर्वासित किए गए 750,000 फिलिस्तीनियों में से, लगभग 200,000, मुख्य रूप से दक्षिणी और मध्य फिलिस्तीन से, गाजा पट्टी में शरण लेने आए। पहले 80,000 लोगों का घर, गाजा पट्टी की आबादी तीन गुना से भी ज्यादा हो गई। आज, ये शरणार्थी और उनके वंशज गाजा पट्टी की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हैं।
संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक आकलन में कहा गया है कि गाजा की लगभग 2.1 मिलियन फिलिस्तीनी आबादी अकाल के ‘‘गंभीर खतरे’’ में है और ‘‘खाद्य असुरक्षा के चरम स्तर’’ का सामना कर रही है। इजरायल द्वारा घेरे गए गाजा पर हमले तेज करने से फिलिस्तीनियों को और अधिक कष्ट झेलना पड़ रहा है, 17 मई 2025 को गाजा में इजरायली हमलों में 100 से अधिक लोग मारे गए, जबकि 7 अक्टूबर 2023 से अब तक इस क्षेत्र में मरने वालों की संख्या 53000 के पार हो गई थी।
यदि भारत पर पड़ने वाले आर्थिक असर की बात की जाए तो ईरान दुनिया का चैथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और मिडिल ईस्ट में नंबर एक उत्पादक है। 2023 में 2023 में 2.4 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल का हर दिन प्रोडक्शन हुआ था। तेल भंडार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अपने उत्पादन का लगभग आधा कच्चा तेल ईरान दूसरे देशों को बेचता है और सबसे बड़ा खरीदार चीन है। ईरान में तेल की 10 बड़ी रिफाइनरी हैं, जिनमें से सिर्फ तीन से प्रति दिन 3,70,000 बैरल तेल का उत्पादन होता है. ईरान से कच्चे तेल के अलावा सूखे मेवे, केमिकल और कांच के बर्तन भारत आते हैं। वहीं भारत की ओर से ईरान पहुंचने वाले प्रमुख सामानों की बात करें, तो बासमती चावल का ईरान बड़ा आयातक है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था. बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था। बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था. बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। आंकड़े देखें तो भारत हर साल ईरान को 4 करोड़ किलो चाय का निर्यात करता है. इसके अलावा कुल चावल निर्यात का 19 प्रतिशत के आस-पास ईरान को निर्यात होता है, जो करीब 60 करोड़ डॉलर का होता है। भारत का व्यापारिक भागीदार सिर्फ ईरान ही नहीं बल्कि इजरायल भी है। साल 2023 में भारत का इजरायल के साथ 89000 करोड़ रुपये का कारोबार रहा। भारत इजराइल को तराशे हुए हीरे, ज्वेलरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग सामान सप्लाई करता है. वहीं इजरायल भारत को बड़ी मात्रा में सैन्य हथियार निर्यात करता है। अतः यदि यह युद्ध लंबा चला तो ईरान और भारत के बीच का व्यापार लड़खड़ा जाएगा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ेगा। डीजल, पेट्रोल की कमी अथवा बढ़ी हुई वैश्विक कीमतें भारत के घरेलू बजट पर चोट करेंगी। इससे आम आदमी के दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी मंहगी हो जाएंगी।
अब आशा इस बात पर टिकी हुई है कि जी-7 में पहुंच कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के लिए कोई रास्ता निकाल लेंगे जिससे देश की अर्थव्यवस्था अधिक न बिगड़ने पाए और आम आदमी के घरेलू बजट पर गहरा असर न पड़े।
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Tuesday, June 17, 2025
पुस्तक समीक्षा | कटाक्ष का तीव्र पैनापन है इन कविताओं में | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
आज 17.06.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
कटाक्ष का तीव्र पैनापन है इन कविताओं में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह - स्वर्ग और नर्क
कवि - बद्री लाल ‘‘दिव्य’’
प्रकाशक-जीएस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स, एफ-7, गली नं. 1,पंचशील गार्डन एक्स., नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
मूल्य - 350/-
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‘‘स्वर्ग और नर्क’’ काव्य संग्रह में कुल 51 कविताएं हैं। जिसमें हास्य, व्यंग तथा कटाक्ष तीनों भाव मौजूद हैं किन्तु कटाक्ष प्रभावी है। इस संग्रह के कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ बिगड़ी हुई व्यवस्थाओं के प्रति चिंता का अनुभव करते हैं और इसीलिए वे अव्यवस्थाओं को सुधारना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि समाज और राजनीति में सब कुछ जनहित का हो जाए। यद्यपि उन्हें इस बात का भी अहसास है कि उनकी अभिलाष दुरूह है। जिस समाज की रग-रग में भ्रष्टाचार समा चुका हो उस समाज में एक स्वच्छ वातावरण स्थापित होते देखना, जागती आंखों से देखने वाले सपने के समान है। किंतु वे निराश नहीं हैं। उन्हें आशा है कि लोग अपनी विडंबनाओं के यथार्थ को समझेंगे और उन्हें सुधारने का प्रयास करेंगे। बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ की रचनाओं में तीव्र सामाजिक सरोकार होता है। वे हिन्दी और राजस्थानी में समान रूप से लिखते हैं। अपनी माटी और अपनी बोली के प्रति लगाव उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सजग रखता है। अब तक उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें तीन काव्य संग्रह राजस्थानी में है।
संग्रह का नाम ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ रखे जाने की सार्थकता इसमें संग्रहीत कविताओं को पढ़ने के बाद स्वतः स्पष्ट हो जाती है। वैसे स्वर्ग और नर्क की कल्पना मनुष्य ने स्वयं की अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए की है। जैसा कि कहा जाता है कि जो अच्छे काम करता है वह मरणोपरांत स्वर्ग जाता है, वहीं बुरे काम करने वाले को नर्क में जगह मिलती है। इस धारणा का विस्तृत वर्णन वेदव्यास कृत ‘‘महाभारत’’ में मौजूद है। यह संकल्पना मनुष्य को गलत काम करने से रोकने के आधार पर तय की गई। किंतु गलत कार्यों में लिप्त मनुष्य एक ढीठ व्यक्ति की भांति यही सोचता है कि स्वर्ग और नरक किसने देखा है अतः जो इच्छा हो वह करना चाहिए चाहे वह सही हो या गलत। स्वर्ग और नरक की इसी संकल्पना पर आधारित है संग्रह की शीर्षक कविता ‘‘स्वर्ग और नर्क’’-
किसी ने कहा -
नर्क में कौन जाता है
और स्वर्ग में कौन ?
मैंने कहा सिर्फ
वो आदमी ही
नर्क का भागीदार है।
जिसका भ्रष्टाचार, चोरी, घोटाला
अन्याय, दुराचार, हत्या, धोखाधड़ी
बलात्कार आदि /तत्वों पर
पूरा-पूरा अधिकार है।
शेष सभी पर
स्वर्ग/बरकरार है।
संग्रह की प्रथम कविता ‘‘दुल्हन ही दहेज है’’ एक चुटीली किंतु मंचीय शैली की कविता है। जो चुटकी लेती है, आईना दिखाती है और हंसाती भी है किंतु वह गहरा प्रभाव नहीं छोड़ती जो संग्रह की अन्य कविताओं में है। कुछ पंक्तियां देखिए -
मैंने कहा
दुल्हन ही दहेज है।
एक बोला-
‘‘लेकिन मुझे इससे परहेज है।’’
मैंने कहा ‘‘क्यों?’’
कहने लगा
मेरे एक ही लड़का है जो वकील है।
और तिजोरी की /बंद सील है।
मैंने कहा- भाई साहब !
इसमें फिर क्यों ढील है ?
इसे जानवरों के मेले में
ले जाइये।
और वहां बांध आइये।
वहां मुंह मांगा दाम
मिल जायेगा।
और बिना कमाए
जीवन भर का काम
चल जाएगा।
‘‘बेटी का बाप’’ कविता भी एक उम्दा कथ्य लिए हुए कमजोर कविता है। वहीं ‘‘आदमी से आदमियत तक’’ शीर्षक कविता अपने शिल्प और कथ्य दोनों दृष्टि से प्रभावी है-
कभी-कभी आदमी
अहर्निश लिप्त रहता है
अपनी जन्मजात/आदतों में ।
कर्म की प्रधानता से हटकर
आदमी कर देता है
अपनी हदें पार।
उसके हृदय में
लगा रहता है
कुटिलताओं का अम्बार ।
कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार महेन्द्र नेह ने उचित लिखा है कि ‘‘कवि दिव्य की कविताएँ तीक्ष्ण व्यंग्य-बाणों से बेधने के साथ-साथ सामाजिक विसंगतियों के समाधान की दिशा भी निरूपित करती है। ... श्दिव्यश् के काव्य-लोक की पहचान मूलतः लोक भाषा और शैली से उद्भूत रही है। लोक में यदि आनंद की व्याप्ति है तो वहाँ पीड़ा और करुणा के स्वरों का आर्तनाद भी है, इसके साथ-साथ लोक में अभिजात-संसार के प्रति गहरे उपहास और व्यंग्य की सुक्तियों, चुटकुलों, किस्सों, कथाओं और गीतों की एक अविरल धारा भी अविरल बहती रहती है, ‘स्वर्ग और नर्क’ में शामिल कविताओं को पढ़ते हुए मुझे लगा कि कवि ने अपने परम्परा से प्राप्त लोक-अनुभवों और दृष्टि को एक नए आकार में ढालने की, अपने विचारों और चिंतन को एक नई दिशा में मोड़ने की सचेत पहल की है।’’
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराधों को देख कर वर्तमान दौर के किसी भी जिम्मेदार रचनाकार की भांति चिंतित एवं आक्रोशित हो उठते हैं। उनकी कविता है -‘‘दरिन्दों से हिसाब’’। इसमें उन्होंने व्यवस्था के खोखलेपन को भी खुल कर ललकारा है। कविता का एक अंश देखिए-
आजकल लड़कियों की
व्यथा को
समझना ही भारी है।
जो नहीं समझता
वो तो स्वयं ही
अत्याचारी है।
आज देश में लड़कियाँ
नहीं है सुरक्षित।
लूट लेते है अस्मत
अपने ही घर में भक्षित।
राष्ट्र के रखवाले
ये कैसी रक्षा कर रहे हैं।
शायद दुष्कर्मी भेड़ियों से
डर रहे हैं।
वर्दी तो हमारी स्वयं ही
लाचार है।
सुरक्षा के नाम पर
केवल थोथा प्रचार है।
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ के काव्य संग्रह ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ की कविताओं से हो कर गुज़रना अव्यवस्था को ले कर उनके भीतर के आक्रोश के ताप को महसूस करने के समान हैं। वे कहीं भी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते किन्तु उनके आक्रोश की तीव्रता की धार बहुत पैनी है। वे खुले शब्दों में ललकारते हैं लापरवाह एवं भ्रष्टाचारी लोगों को। कविताओं की शैली व्यंजनात्मक है। भाषा आम बोलचाल की है, सहज, सुगम्य और संवादी। एक-दो कमजोर कविताओं को छोड़ दिया जाए तो पूरा संग्रह समृद्ध एवं प्रभावपूर्ण है। ये कविताएं भावनाओं एवं विचारों को आंदोलित करने में सक्षम हैं।
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#पुस्तकसमीक्षा #डॉसुश्रीशरदसिंह #bookreview #bookreviewer #आचरण #DrMissSharadSinghपुस्तक समीक्षा
कटाक्ष का तीव्र पैनापन है इन कविताओं में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह - स्वर्ग और नर्क
कवि - बद्री लाल ‘‘दिव्य’’
प्रकाशक-जीएस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स, एफ-7, गली नं. 1,पंचशील गार्डन एक्स., नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
मूल्य - 350/-
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‘‘स्वर्ग और नर्क’’ काव्य संग्रह में कुल 51 कविताएं हैं। जिसमें हास्य, व्यंग तथा कटाक्ष तीनों भाव मौजूद हैं किन्तु कटाक्ष प्रभावी है। इस संग्रह के कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ बिगड़ी हुई व्यवस्थाओं के प्रति चिंता का अनुभव करते हैं और इसीलिए वे अव्यवस्थाओं को सुधारना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि समाज और राजनीति में सब कुछ जनहित का हो जाए। यद्यपि उन्हें इस बात का भी अहसास है कि उनकी अभिलाष दुरूह है। जिस समाज की रग-रग में भ्रष्टाचार समा चुका हो उस समाज में एक स्वच्छ वातावरण स्थापित होते देखना, जागती आंखों से देखने वाले सपने के समान है। किंतु वे निराश नहीं हैं। उन्हें आशा है कि लोग अपनी विडंबनाओं के यथार्थ को समझेंगे और उन्हें सुधारने का प्रयास करेंगे। बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ की रचनाओं में तीव्र सामाजिक सरोकार होता है। वे हिन्दी और राजस्थानी में समान रूप से लिखते हैं। अपनी माटी और अपनी बोली के प्रति लगाव उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सजग रखता है। अब तक उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें तीन काव्य संग्रह राजस्थानी में है।
संग्रह का नाम ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ रखे जाने की सार्थकता इसमें संग्रहीत कविताओं को पढ़ने के बाद स्वतः स्पष्ट हो जाती है। वैसे स्वर्ग और नर्क की कल्पना मनुष्य ने स्वयं की अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए की है। जैसा कि कहा जाता है कि जो अच्छे काम करता है वह मरणोपरांत स्वर्ग जाता है, वहीं बुरे काम करने वाले को नर्क में जगह मिलती है। इस धारणा का विस्तृत वर्णन वेदव्यास कृत ‘‘महाभारत’’ में मौजूद है। यह संकल्पना मनुष्य को गलत काम करने से रोकने के आधार पर तय की गई। किंतु गलत कार्यों में लिप्त मनुष्य एक ढीठ व्यक्ति की भांति यही सोचता है कि स्वर्ग और नरक किसने देखा है अतः जो इच्छा हो वह करना चाहिए चाहे वह सही हो या गलत। स्वर्ग और नरक की इसी संकल्पना पर आधारित है संग्रह की शीर्षक कविता ‘‘स्वर्ग और नर्क’’-
किसी ने कहा -
नर्क में कौन जाता है
और स्वर्ग में कौन ?
मैंने कहा सिर्फ
वो आदमी ही
नर्क का भागीदार है।
जिसका भ्रष्टाचार, चोरी, घोटाला
अन्याय, दुराचार, हत्या, धोखाधड़ी
बलात्कार आदि /तत्वों पर
पूरा-पूरा अधिकार है।
शेष सभी पर
स्वर्ग/बरकरार है।
संग्रह की प्रथम कविता ‘‘दुल्हन ही दहेज है’’ एक चुटीली किंतु मंचीय शैली की कविता है। जो चुटकी लेती है, आईना दिखाती है और हंसाती भी है किंतु वह गहरा प्रभाव नहीं छोड़ती जो संग्रह की अन्य कविताओं में है। कुछ पंक्तियां देखिए -
मैंने कहा
दुल्हन ही दहेज है।
एक बोला-
‘‘लेकिन मुझे इससे परहेज है।’’
मैंने कहा ‘‘क्यों?’’
कहने लगा
मेरे एक ही लड़का है जो वकील है।
और तिजोरी की /बंद सील है।
मैंने कहा- भाई साहब !
इसमें फिर क्यों ढील है ?
इसे जानवरों के मेले में
ले जाइये।
और वहां बांध आइये।
वहां मुंह मांगा दाम
मिल जायेगा।
और बिना कमाए
जीवन भर का काम
चल जाएगा।
‘‘बेटी का बाप’’ कविता भी एक उम्दा कथ्य लिए हुए कमजोर कविता है। वहीं ‘‘आदमी से आदमियत तक’’ शीर्षक कविता अपने शिल्प और कथ्य दोनों दृष्टि से प्रभावी है-
कभी-कभी आदमी
अहर्निश लिप्त रहता है
अपनी जन्मजात/आदतों में ।
कर्म की प्रधानता से हटकर
आदमी कर देता है
अपनी हदें पार।
उसके हृदय में
लगा रहता है
कुटिलताओं का अम्बार ।
कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार महेन्द्र नेह ने उचित लिखा है कि ‘‘कवि दिव्य की कविताएँ तीक्ष्ण व्यंग्य-बाणों से बेधने के साथ-साथ सामाजिक विसंगतियों के समाधान की दिशा भी निरूपित करती है। ... श्दिव्यश् के काव्य-लोक की पहचान मूलतः लोक भाषा और शैली से उद्भूत रही है। लोक में यदि आनंद की व्याप्ति है तो वहाँ पीड़ा और करुणा के स्वरों का आर्तनाद भी है, इसके साथ-साथ लोक में अभिजात-संसार के प्रति गहरे उपहास और व्यंग्य की सुक्तियों, चुटकुलों, किस्सों, कथाओं और गीतों की एक अविरल धारा भी अविरल बहती रहती है, ‘स्वर्ग और नर्क’ में शामिल कविताओं को पढ़ते हुए मुझे लगा कि कवि ने अपने परम्परा से प्राप्त लोक-अनुभवों और दृष्टि को एक नए आकार में ढालने की, अपने विचारों और चिंतन को एक नई दिशा में मोड़ने की सचेत पहल की है।’’
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराधों को देख कर वर्तमान दौर के किसी भी जिम्मेदार रचनाकार की भांति चिंतित एवं आक्रोशित हो उठते हैं। उनकी कविता है -‘‘दरिन्दों से हिसाब’’। इसमें उन्होंने व्यवस्था के खोखलेपन को भी खुल कर ललकारा है। कविता का एक अंश देखिए-
आजकल लड़कियों की
व्यथा को
समझना ही भारी है।
जो नहीं समझता
वो तो स्वयं ही
अत्याचारी है।
आज देश में लड़कियाँ
नहीं है सुरक्षित।
लूट लेते है अस्मत
अपने ही घर में भक्षित।
राष्ट्र के रखवाले
ये कैसी रक्षा कर रहे हैं।
शायद दुष्कर्मी भेड़ियों से
डर रहे हैं।
वर्दी तो हमारी स्वयं ही
लाचार है।
सुरक्षा के नाम पर
केवल थोथा प्रचार है।
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ के काव्य संग्रह ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ की कविताओं से हो कर गुज़रना अव्यवस्था को ले कर उनके भीतर के आक्रोश के ताप को महसूस करने के समान हैं। वे कहीं भी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते किन्तु उनके आक्रोश की तीव्रता की धार बहुत पैनी है। वे खुले शब्दों में ललकारते हैं लापरवाह एवं भ्रष्टाचारी लोगों को। कविताओं की शैली व्यंजनात्मक है। भाषा आम बोलचाल की है, सहज, सुगम्य और संवादी। एक-दो कमजोर कविताओं को छोड़ दिया जाए तो पूरा संग्रह समृद्ध एवं प्रभावपूर्ण है। ये कविताएं भावनाओं एवं विचारों को आंदोलित करने में सक्षम हैं।
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Monday, June 16, 2025
"कविता के सरोकार" विषय पर संबोधन | मुख्य अतिथि डॉ (सुश्री) शरद सिंह | पुस्तक चर्चा
कल मैंने विवेकानंद अकादमी में पुस्तक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में दीप प्रज्ज्वलित किया तथा "कविता के सरोकार" विषय पर अपना संबोधन दिया। - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
Yesterday, as a chief guest I have lit the lamp and address on "the Concerns of poetry" in a book discussion at Vivekanand Academy.
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