आज 04.02.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित पुस्तक समीक्षा -
“प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता” व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता
संपादन - लक्ष्मी पांडेय
प्रकाशक- अनुज्ञा बुक्स, 1/10206, लेन नं. 1ई, वेस्ट गोरख पार्क, शाहदरा, दिल्ली-110 032
मूल्य - 3500/-
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जब किसी व्यक्ति की उपलब्धियों पर कोई पुस्तक तैयार की जाती है तो या तो उस पुस्तक का संपादक उस व्यक्ति के व्यक्तित्व से स्वयं प्रभावित होता है अथवा उसे यह दायित्व किसी और के द्वारा सौंपा गया होता है जिसे वह पूरी ईमानदारी के साथ पूर्णता देने का कार्य करता है। “प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता” यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसकी संपादक पुस्तक की केंद्रीय व्यक्तित्व से स्वयं प्रभावित हैं तथा उन्हें इस पुस्तक के संपादन का दायित्व भी सौंपा गया। जैसा कि प्राक्कथन में उल्लेख किया है कि यह दायित्व उन्हें प्रो. सुरेश आचार्य द्वारा सौंपा गया। अतः दोनों ही दृष्टि से पुस्तक के कलेवर को एकत्र करने तथा सुरुचि पूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने में जो श्रम किया गया है, उसमें संपादक के लगन को स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। जी हां, ‘‘प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता” का संपादन किया है हिंदी विभाग में गेस्ट फेकल्टी के रूप में अध्यापन का दायित्व निभा रहीं डॉ. लक्ष्मी पांडेय ने तथा जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर यह ग्रंथ केंद्रित है प्रो. नीलिमा गुप्ता, वे वर्तमान में डाॅ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर की कुलगुरु (वाइस चांसलर ) हैं।
प्रो. नीलिमा गुप्ता डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलगुरु हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वे बौद्धिक स्तर पर विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं। वे उच्च कोटि की प्राणी शास्त्री, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक एवं भारतीय संस्कृति की गहन ज्ञाता हैं। उनके उद्बोधन श्रोताओं का प्रभावित करते हैं। ग्रंथ के आरम्भ में नितिन गडकरी,मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग भारत सरकार द्वारा संपादक को दिया गया शुभकामना संदेश है।
प्रो नीलिमा गुप्ता के व्यक्तित्व को जिन शीर्षकों के अंतर्गत रखा गया है उनमें प्रथम है परिचयात्मक खंड। इसमें प्रो. गुव्ता का संक्षिप्त जीवन परिचय एवं उपलब्धियों का विवरण दिया गया है। इसी खंड में डाॅ लक्ष्मी पांडे द्वारा कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता से की गई बातचीत है तथा पूनम सिंह द्वारा लिया गया साक्षात्कार भी है।
इसके बाद ‘‘परिवार की दृष्टि में प्रो नीलिमा गुप्ता’’ शीर्षक के अंतर्गत प्रो गुप्ता के प्रति उनके परिजन के दृष्टिकोण एवं विचार प्रस्तुत किए गए हैं। अकसर लोगों के मन में यह जिज्ञासा होती है कि अपने कार्यक्षेत्र में एक सफल व्यक्तित्व के प्रति उसके परिवार के सदस्यों के क्या विचार हैं, विशेषरूप से जब वह सफल व्यक्तित्व एक महिला हो। लोग यह भी जानने को उत्सुक रहते हैं कि उस सफल स्त्री ने अपने कार्यक्षेत्र के साथ घर-परिवार के प्रति कितना संतुलन बनाए रखा? अतः ‘‘परिवार की दृष्टि में प्रो नीलिमा गुप्ता’’ शीर्षक में सभी के विचार रोचक एवं जिज्ञासाओं को शांत करने वाले हैं।
परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त प्रो नीलिमा गुप्ता के गुरु प्रो दुरदाना शमीम जयराजपुरी के उनके प्रति विचार भी समाहित किए गए हैं। एक गुरु के लिए यह बड़े संतोष की बात होती है कि उनकी शिष्या सफलता की ऊंचाइयों को स्पर्श करें जिस पर वे गर्व कर सकें।
“अकादमिक एवं शोध संस्थानों के विदेशी सहयोगियों की दृष्टि में प्रो नीलिमा गुप्ता” इस शीर्षक से चार आलेख दिए गए हैं। इसके अंतर्गत प्रो गुंडू एच.आर. राव, डॉ. आंद्रेज पिलार्जिक, प्रो. डॉ. सईद इब्राहीम शेलबाई तथा प्रो. हामिदा खानम के विचार-आलेख हैं। इन आलेखों को पढ़ने पर ज्ञात होता है कि अपने अकादमिक एवं शोध संस्थानों के सहयोगियों के प्रति प्रो नीलिमा गुप्ता कितनी महत्वपूर्ण, सहयोगी एवं मित्रतापूर्ण रही हैं।
सहयोगियो के साथ ही उन लोगों के विचार भी महत्व रखते हैं जिनके आधीन रह कर प्रो. गुप्ता ने कार्य किया। प्रश्न उठता है कि क्या वे अपने उच्चस्थ अधिकारियों में भी उतनी ही लोकप्रिय रहीं जितनी कि अपने सहयोगियों के मध्य? इस प्रश्न का उत्तर भी इस ग्रंथ में मौजूद है। “कुलपतियों, कुलाधिपतियों एवं निदेशक (डायरेक्टर्स) की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” - इस शीर्षक के अंतर्गत कन्हैया लाल बेरवाल, प्रो. आर.सी. सोबति, प्रो. गौरी दत्त शर्मा, प्रो. सुरंजन दास, प्रो. एस.सी.शर्मा आदि के विचार-आलेख हैं।
“अकादमिक साथियों की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” के तहत डॉ. वी. पी. वाष्र्णेय, प्रो. (डॉ.) अतुल एम. गोसाई, प्रो. हरिशंकर सिंह, प्रो. संदीप मल्होत्रा, प्रो. कादम्बरी गुप्ता, डॉ. अंजुम नसरीन रिज्वी, डॉ. रेखा कालिया भारद्वाज, डाॅ.. प्रतिभा एस गायकवाड़, प्रो. सुरेश आचार्य आदि के आलेख रखे गए हैं। सभी ने प्रो. नीलिमा गुप्ता के व्यवहार एवं ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
प्रायः यह देखा जाता है कि सहकर्मियों में परस्पर ईष्र्या-द्वेष की भावना पाई जाती है। कई बार यह स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता तक सीमित रहती है तो कई बार यह आपसी टकराव एवं मनमुटाव में बदल जाती है। ऐसी स्थिति में परस्पर एक-दूसरे के प्रति विचार व्यक्त करते समय कहीं न कहीं द्वेष का वह भाव झलक जाता है। किन्तु “पूर्व सहकर्मियों की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” में प्रो. एन. बी. सिंह, प्रो. श्याम बिहारी लाल, डाॅ. एके सिन्हा, डॉ. अंजुली अग्रवाल, प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार, डॉ. मदन लाल के जो विचार हैं उनमें प्रो. नीलिमा गुप्ता के प्रति सौहाद्र्य ही दिखाई देता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अपने सहकर्मियों में भी प्रिय एवं आत्मीय रही हैं।
“अधीनस्थ अध्यापकों एवं अधिकारियों की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” में प्रो. वर्षा गुप्ता, प्रो. सिद्धार्थ कुमार मिश्र, प्रो. अशोक कुमार ठाकुर, प्रो नागेश दुबे, डॉ निरंजन प्रसाद यादव ने अपने विचार साझा किए हैं। इस सभी के विचार प्रो. गुप्ता के कुशल नेतृत्व के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
कहा जाता है कि और कोई संबंध स्थाई रहे या न रहे किन्तु मित्रता का संबंध सदा स्थाई रहता है। दूरियां भी इस भावना में बाधा नहीं बन पाती हैं। “मित्रों एवं सहपाठियों की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” में प्रो. वसीम अहमद, डॉ किरण शर्मा, प्रो (डॉ.) मोहम्मद आरिफ, प्रो. जमील अहमद के विचार हैं जो प्रो. गुप्ता के व्यक्तित्व को जानने-समझने में पर्याप्त सहायक हैं।
विज्ञान विषयों के प्राध्यापक स्वभाव से गंभीर एवं मितभाषी माने जाते हैं। शोधार्थी उनसे सहमें हुए रहते हैं किन्तु प्रो. गुप्ता के साथ ऐसा नहीं है। “शोधार्थियों की दृष्टि में प्रो. नीलिमा गुप्ता” शीर्षक के अंतर्गत डॉ गोपाल कृष्ण, डॉ. एंजेट भास्कर, डॉ. पूजा चंद्रा, डॉ. शाहला निगार, डॉ. विनोद कुमार वर्मा तथा डॉ. मनोज कांडपाल के अनुभव एवं विचार हैं जिनसे पता चलता है कि वे शोधार्थियों के प्रति कितनी सजग, उदार एवं हंसमुख हैं।
“समीक्षाएँ“ खंड में “जिन ढूंढ तिन पाइयां” में प्रो.नीलिमा गुप्ता के लेखों एवं पुस्तकों की समीक्षा करते हुए जिन विद्वानों के लेख हैं, वे हैं- प्रो. जाहिद हुसैन जैदी, प्रो सीमा लैंगर, प्रो. राजेंद्र सिंह फर्त्याल, प्रो. सुनील पी. त्रिवेदी, प्रो.अनूप के डोबरियाल, प्रो. स्वाति मित्तल, प्रो नीलू जैन गुप्ता, प्रो नवीन कांगो, प्रो किशोर गोपाल पाटिल, प्रो प्रेमेंदु पी.माथुर, प्रो. सी.पी.एम.त्रिपाठी, प्रो.रजनीकांत मिश्र तथा प्रो निर्मल कुमार गांगुली।
‘‘प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता” ग्रंथ में प्रो. नीलिमा गुप्ता के जीवन के कई महत्वपूर्ण छायाचित्र हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व पर और अधिक प्रकाश पड़ता है। यूं तो इस ग्रंथ को ‘‘जीवनी’’ अथवा ‘‘अभिनंदन ग्रंथ’’ का नाम नहीं दिया गया है किन्तु ग्रंथ में दी गई सामग्री से जो रूपरेखा सामने आती है वह अभिनंदन ग्रंथ के अधिक निकट ठहरती है। प्रो. नीलिमा गुप्ता के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में जानकारी के प्रति जिज्ञासुओं के लिए यह एक उत्तम ग्रंथ है। इसे तैयार करने में संपादक डाॅ. लक्ष्मी पांडेय को निश्चत रूप से बहतु समय और श्रम लगा होगा क्यों कि यह कार्य पर्याप्त धैर्य की मांग करता है। वैसे डाॅ. लक्ष्मी पांडेय डीलिट् उपाधि प्राप्त हैं। वे त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का सतत संपादन कर रही हैं तथा अब तक कई पुस्तकों का संपादन कर चुकी हैं। उनके द्वारा ‘‘प्रज्ज्वलित दीपशिखा प्रो. नीलिमा गुप्ता” का संपादन कार्य एक विशिष्ट स्त्री व्यक्तित्व से पाठकों को परिचित कराने की दिशा में निःसंदेह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
ग्रंथ का मुद्रण एवं आवरण आकर्षक है। कुल 440 पृष्ठों का यह हार्डबाउंड गं्रथ पुस्तकालयों की दृष्टि से तो उचित मूल्य का है किन्तु खरीद कर पढ़ने वाले पाठकों के लिए इसका रु.3500/- मूल्य ‘‘पाॅकेट फ्रेंडली’’ नहीं कहा जा सकता है। बहरहाल यह एक ऐसी कृति है जिसका संपादन करने में डाॅ. लक्ष्मी पांडेय की क्षमताओं का एक और सुदृढ़ पक्ष उभर कर सामने आता है।
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