बतकाव बिन्ना की
आजादी की पैली क्रांति अपने बुंदेलखंड में भई रई
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना, सबई जने जेई कैत आएं के सबसे पैले 1857 में क्रांति भई रई, जबके हमने कऊं पढ़ो रओ के ईसे पैले तो अपने बुंदेलखंड में क्रांति भई रई। सो ऊको पैलो काए नईं कओ जात आए?’’ भैयाजी अपनों मूंड़ खुजात भए बोले। बड़े टेंशन में दिखा रए हते बे।
‘‘आप सांची कै रए भैया जी! 1857 से पैले तो 1842 में अपने इते बुंदेलखंड में भौतई बड़ी क्रांति भई रई, जोन को ‘बुंदेला क्रांति’ कओ जात आए।’’ मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘सो बा कोन ने करी हती? मने 1857 वारी तो मंगल पांडे ने सुरू करी, बा वारी कोन से सिपाई ने करी हती?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘बा क्रांति कोनऊं सिपाई ने सुरू ने करी हती, बा तो राजा मधुकरशाह जू ने करी हती। बाकी पैले आप जो जान लेओ के बुंदेला क्रांति के कारण का हते। वैसे ईको बुंदेला विद्रोह कै-कै के ईको इंप्वार्टेंस कम कर दओ जातो आए। मनो जे कोनऊं ऊंसई बिद्रोह ने रओ, पूरी क्रांति भई रई।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘तो भओ का रओ?’’ भैयाजी ने पूछी। उने कोन पतो रओ।
‘‘भओ जे के अंग्रेजन ने एक तो लगान बढ़ा दओ औ ऊपे सल्ल जे के जोन लगान ने चुका पात्तो ऊकी जमीन हड़प लई जात्ती। मने सीदे कओ जाए तो जमीन हड़बे के लानेई लगान बढ़ाओ गओ रओ। उने पता रई के इते के किसान गरीब आएं सो बे लगान चुका ने पाहें। फेर इत्तोई नईं, अंग्रेजन ने का करी के जोन जमीदारों खों लगान वसूलबे को अधिकार दओ रओ उने ऊमें से हींसा कम दओ जान लगो। ईसे जमीदारों की दसा दूबरी हो गई। औ जे जो दीवानी मुकदमा की तारीखें बढ़ा-बढ़ा के पेरबे को चलन आए, बा सोई अंग्रेजन के टेम से सुरू भओ। मने कोऊ अपनी जमीन के लाने मुकदमा करे औ दो-चार पीढ़ियन लौं फंदा में लटको रए। सो जे दसा देख के बुंदेला राजा हरें खौलन लगे। उनें दबाने के लाने अंग्रेजन ने नारहट वारे मधुुकरशाह बुंदेला औ जवाहर सिंह बुंदेला के लाने अदालत में डिक्री दे के उनकी जायदाद जब्त करबे की धमकी दई। ईके विरोध में मधुकरशाह बुंदेला औ अंग्रेजन के सिपाइयन में झड़प भई जीमें कछू सिपाई मारे गए। जेई के संगे क्रांति सुरू हो गई। ईमें मधुकर शाह को साथ दओ जैतपुर के राजा परिच्छित, हीरापुर के राजा हिरदेश शाह, चिरगांव के जागीरदार राव बसंत सिंह, झींझन के दीवानराव बसंत सिंह, नरसिंहपुर के डिलनशाह ने। मनो कछु स्वारथ वारे इते बी हते जिने बाद में समझ में आई के बे का गलती कर बैठे। मनो ऊ टेम पे तो राजा मधुकर शाह को साथ न दे के, उल्टे उने धोखे से पकरवा के भारी गलती करी रई।’’ मैं बता रई हती भैयाजी खों के बे बोर परे।
‘‘हैं? कोन ने पकरवा दओ मधुकरशाह जू खों?’’ मनो भैयाजी को झटका सो लगो।
‘‘अरे एक गद्दार रओ, बाकी मधुकरशाह जू को साथ ने दे के अंग्रेजन को साथ देबे वारों में शाहगढ़ के राजा बखतवली, बानपुर के मर्दनसिंह और चरखारी रियासत वारे रए। मनो 1857 लों उने सोई समझ में आ गई रई के बे गलत पाले में जाके ठाड़े हो गए रए। सो, उन ओरन ने 1857 वारी क्रांति के टेम पे रानी लक्षमीबाई को साथ दओ रओ। पर 1842 के टेम पे जो इन ओरन ने मधुकरशाह जू को साथ दओ रैतो तो इते को इतिहास कछू और होतो। सागर, दमोए, जबलपुर, मंडला, नरसिंहपुर औ बैतूल लौं में अंग्रेज सरकार को विरोध होन लगो रओ। सागर में खुरई, खिमलासा, धामोनी, नरयावली औ सागर सहर में लूटपाट मचीं। नरसिंहपुर के डिलनशाह गौड़ ने देवरी औ नरसिंहपुर के लिंगे अंग्रेजन के नाक में दम कर दओ। हीरापुर से जबलपुर लौं हिरदेशाह जू ने अंग्रेजन की खिंचाई करी। देखत-देखत कछू समै के लाने जो भओ के नरसिंहपुर, सागर औ जबलपुर के भौत बड़े इलाका से अंग्रेजन को कब्जा छूट गओ रओ। ओई समै पे बेलगांव के़ जुुद्ध में जैतपुर के राजा परिच्छित ने अंग्रेजों को हरा दओ रओ। मनो अपने इते को इतिहास तो गद्दारन के मारे बिगड़त रओ। सो जेई भओ के हिरदेशाह जू पकरे गए। बाकी अंग्रेज कर्नल स्लीमैन के कए पे बाद में उने छोड़ दओ गओ रओ। लेकन अंग्रेज तो ई क्रांति के मुखिया मधुकरशाह जू खों पकरो चात्ते। एक गद्दार ने उनकी जा इच्छा पूरी कर दई। जबे मधुकरशाह एक के घरे सुस्ताबे के लाने सो रए हते तो बा गद्दार ने चुप्पे से अंग्रेजन खों खबर कर दई। सो मधुकरशाह जू पकरे गए। उने खुल्लेआम फांसी दे दई गई। आपको पतो के उनकी समाधि सागर की जेल में अबे लों पाई जात आए?’’ मैंने क्रांति की किसां सुनात भए भैयाजी से पूछी।
‘‘नई हमें नई पतो! मनो जे तो गजबई आए के हम इतई रैत आएं औ हमें नई पतो के सागर की जेल में मधुकरशाह जू की समाधि आए। हम तो जाबी दरसन करबे।’’ भैयाजी तनक इमोशनल होते भए बोले।
‘‘मैं सोई संगे चलबी। बाकी जो आपके लाने ई बारे में पतो नईयां सो ईमें आपको कोनऊं दोस नइयां। काए से के जा सब पढाओ जाए, बताओ जाए, तब तो पता परे।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना! बाकी जो जब इत्ती बड़ी क्रांति हती तो ईको बिद्रोह काए कओ गओ? जे बात अब बी हमें समझ में ने आई।’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘कछू नईं भैयाजी, बात इत्ती सी आए के पैले इते को इतिहास अंग्रेजन ने लिखों, फेर अंग्रेजन के पिट्ठुअन ने लिखो सो जेई लाने ईको बिद्रोह कै दओ गओ औ 1857 की क्रांति खों गदर कै दओ गओ। कैबे को तो जा कओ जात रओ के अंग्रेजन के राज में कभऊं सूरज नईं डूबत, सो इते उनको सूरज कछू जांगा, कछू समै के लाने डुबो दओ गओ रओ। जे भौत बड़ी बात रई। जो सबने साथ दओ रैतो औ गद्दारी ने करी गई होती तो सबसे पैले जो अपनो बुंदेलखंड आजाद भओ रैतो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना, जे सब बातें हमें पता नईं रईं। हमने तो बा 1857 वारी क्रांति भर पढ़ी रई।’’ भैयाजी अफसोस करत भए बोले।
‘‘हऔ, पैले इतिहास में इत्तो ज्यादा नईं पढ़ाओ जात रओ। अब तो स्कूल के सिलेबस लौं में बिद्रोह के नांव से बुंदेला क्रांति सामिल आए। बाकी, ईको क्रांति कओ जाओ चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘सई बात। बाकी अब तो हमें मधुकरशाह जू की समाधि पे दरसन करने जाबे की भौतई इच्छा हो रई। कल नईं तो परों, हम जरूर जाबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘वैसे भैयाजी, आप जानत आओ के मोए राजनीति से कछू लेबो-देबो नईं रैत आए, मनो जो काम अच्छो करो जाए ऊकी तारीफ करे में मोए तनकऊं सकोच नई होत आए।’’ मैंने कई।
‘‘मने?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मने जे के ई सरकार ने एक बड़ो अच्छो काम करो के आजादी की लड़ाई में उन ओरन को बी इतिहास लिखबाओ जोन के बारे में कोनऊं खों पतो ने हतो। मने गली-मोहल्ला के तो जानत्ते, बाकी औ बायरे कोऊ ने जानत्तो। ‘‘अनसुंग हीरोज आफ इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल’’ योजना के तरे जो काम कराओ गओ। जा सांची में भौतई बड़ो काम कराओ गओ आए।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘सई बताएं बिन्ना! जा बुंदेला क्रांति के बारे में जान के हमाओ सीना चैड़ो भओ जा रओ। सो आजादी की बरसगांठ पे तुमाए लाने खूब-खूब बधाई।’’ भैयाजी मगन होत भए बोले।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के हमाई आप ओरन खों बी आजादी की बरसगांठ पे खूब-खूब बधाई पौंचे! बंदेमातरम!
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