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बतकाव बिन्ना की
कुत्ता की पूंछ घांईं ससुरा की मूंछ, कुत्ता पाल लेओ
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
कुत्ता की पूंछ घांईं ससुरा की मूंछ
कुत्ता पाल लेओ....
कुत्ता की पीट घांईं देवरा की छींट
कुत्ता पाल लेओ....
भौजी गारी गाबे में इत्ती मगन हतीं के मोरे उनके लिंगे पौंचबे की उने ऐरों बी ने लगी।
‘‘का हो रओ भौजी? गारी की प्रेक्टिस चल रई का? मनो अबे ब्याओ को तो कोनऊं महूरतई नईयां।’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘प्रेक्टिस काय की? जे तो जा ठेन कर रईं के अपन ओरें सोई कुत्ता पाल लेवें।’’ भौजी के बदले भैयाजी बोल परे।
‘‘सो का हो गओ? ईमें का बुराई आए? पाल लेओ कुत्ता आप ओरें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, पाल तो लेवें मनो जो हम ओरें कऊं बायरे गए तो ऊ टेम पे ऊकी देखभाल को करहे? तुमाए बस की आए?’’ भैयाजी ने उल्टे मोसे पूछ लओ।
‘‘मोरे बस की होती तो अब लौं पाल ने लेती?’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो हम इने समझा रए कि जे कुत्ता पालबे की हमसे ने कओ। बे आवारा फिरत भए कुत्तन खों तो जे ऊंसईं रोटी देत रैती आएं। अब उने पालबो का जरूरी?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो आप सई कै रए, मनो मोरे जे समझ में ने आई के जे कुत्ता पालबे को आइडिया कां से आओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे ने पूछो, एक तो घरे से बायरे निकरो तो बे कुत्ता झुंड बना के आगूं-पीछूं फिरन लगत आएं औ घरे रओ तो चाए टीवी होए, चाए अखबार कुत्तन की खबरें चल रईं। बेई पढ़, सुन के तुमाई भौजी सनक रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अच्छा, सो जे बात आए!’’ मैंने कई।
‘‘देखो बिन्ना, हम कछू सोच के कुत्ता पालबे की तुमाए भैयाजी से कै रए।’’ भौजी बोल परीं।
‘‘का सोच के?’’ मैंने पूछी।
‘‘जेई के जे आवारा कुत्ता हरों से पीछा तो छूटने नईयां, सो उने पालई लओ जाए। ईसे का हुइए के जब कुत्तन खों लगहें के जे तो हमाए मालक आएं तो बे हम ओरन खों तो ने काटहें।’’ भौजी बोलीं।
‘‘जा तो ठीक आए भौजी, पर जे बताओ के आप कित्ते कुत्ता पालहो? अपनेई मोहल्ला में दर्जन खांड़ घूमत रैत आएं। इत्ते कुत्तन खों कैसे पालहो? कां से खिलाहो? सब खों सुजी लगवाबे मेंई मुतके पइसा लग जैहें।’’ मैंने भौजी खों प्रेक्टिकल बात याद कराई।
‘‘सो का करो जाए? कुत्तन खों मारो नईं जा सकत। औ मारो बी नईं जाओ चाइए काय से के बे सोई जीव आएं। मनो, बे मरहें नईं तो आवारा फिरहें। औ जो आवारा फिरहें तो कभऊं बी कोनऊं खों काट सकत आएं। फिर तो सुजी टुच्चवाबे के अलावा चारा का हुइए? तुमी बताओ?’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कै रईं आप, बाकी सड़क पे फिरत भए सबरे कुत्ता तो पाले नईं जा सकत। ईके लाने सई तरीका तो जे आए के आवारा कुत्तन के लाने शेल्टर होम बनाओ जाए। उते सबरे आवारा कुत्ता पकड़ के राखें जाएं औ उने उते खाबे-पीबे को दओ जाए।’’ मैंने कई।
‘‘सो को बनवा रओ शेल्टर होम? कैबे में कछू बी कओ जा सकत आए मनो हकीकत में कछू नई होने।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई बात भौजी! अब आपई सोचो के जोन बे मेनका गांधी जू ने कुत्तन खों ने मारो जाबे को कानून तो बनवा दओ, मनो शेल्टर होम ने बनवा पाईं। बे मों चलाबे के बदले शेल्टर होम बनवा देतीं तो अब तक तो सबई जांगा शेल्टर होम बन गए होते।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘तुम बड़ी गुस्सा दिखा रईं मेनका गांधी जू से?’’ भैयाजी ने मोसे पूछीं।
‘‘गुस्सा काए ने आए, बातई गुस्सा करबे की आए।’’मैंने कई।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब का? जब से मैंने मेनका जू को बयान पढ़ो, तभईं से मोरो जी सो खौल रओ।’’ मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘मनो ऐसो का हो गऔ?’’ भैयाजी ने पूछीं।
‘‘कोन टाईप के तो बयान देत फिर रईं बे। उनको कहबो आए के पब्लिक खों इत्ते कुत्ता नोईं काट रए जित्ते बताए जा रए। सो मोरो कैबो आए के बाई तनक अपने बंगला से बायरे निकर के पुरा-मोहल्ला में फिर के देखो सो पता परहे। बंगला में बैठ के औ बंद गाड़ी में निकर के असल बात कोन पता परत आए। औ मैं ऊंसई नई कै रई। आप खों याद हुइए के जे कोरोना के पैले मोरी मताई खों एक पगला कुत्ता ने काट लओ रओ। बे तो बिचारी संकारे घूमबे खों निकरी हतीं। मम्मा संगे हते। दोई भैया-बैन घूम रए हते, जेई अपने मोहल्ला में। तभईं मताई खों एक पगला कुत्ता ने पांव में काट लओ रओ। चौहत्तर बरस के मम्मा बेचारे, उन्ने जैसे-तैसे बा कुत्ता खों भगाओ औ मताई खों ले के घरे आए। उन्ने घरे हम ओरन खों बताई, सो हम ओरें सुन के ई डरा गए। आप ई सोचो के अठासी-नमासी बरस की मताई कुत्ता काटे से कित्ती ने डरा गई हुइएं। बे तो जेई बोलीं के अब ई उम्मर में हमें कुत्ता ने काटो आए, अब हम ने बचबी। हम ओरें उने ले के डाक्टर के इते भगे। बा तो डाक्टर साब अच्छे हते जोन ने तुरतईं कछू इंजेक्शन लगाए औ जहर खों बांध दओ। रेबीज को इंजेक्शन को पता करो, सो ऊ टेम पे इते कऊं ने हतो। बा मेडिकल वारे भैया सोई बड़े भले रए। उन्ने तुरतईं भोपाल से इंजेक्शन मंगा दओ। ने तो न जाने का होतो। जे हम ओरन ने खुद भुगतो आए। मेनका जू खों जा सब समझ कोन पर रई।’’ मोए बा दिन याद कर के औ गुस्सा आन लगो। संगे मताई खों याद कर के अंसुवां से आ गए।
‘‘दुखी ने हो बिन्ना! सब कछू पांछू छूट गओ।’’ भैयाजी माए समझान लगे।
‘‘काए खों पांछू छूट गओ? बे बाई जू तो इत्ते पे बी ने रुकी आएं। उनको कैबो आए के रेबीज के पांच इंजेक्शन लगत आएं औ डाक्टर हरें हर इंजेक्शन खों एक केस कै के आंकड़ा दे देत आएं। सो जो कुत्ता काटे के आंकड़ा दए जा रए उनको पांच से भाग दे दओ जाए। औ ई टाईप से बे सात लाख कछू को आंकड़ा बता रईं। चलो एक दार मान लओ जाए के आंकड़ा सात लाख को आए, तो बे सात लाख मानुसों की कछू कीमत नईयां? का बे कुत्ता से कटबे जोग हते? मनो, बे कैबो का चात आएं? ऊपे से दोंदरा जे के शेल्टर होम के लाने प्रस्ताव करो गओ रओ, योजना बनाई गई रई, पर कोऊ ने योजना पूरी ने करी। सो भैयाजी, आपई बताओ के आप की सरकार औ आपई अपनी योजना पूरी ने करवा पाईं तो ईमें उन ओरन को का दोस जोन खों कुत्ता काटत फिर रए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बात तो तुमाई सांची आए बिन्ना!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे हमने तो जे सोई पढ़ी रई के उन्ने कई के जो आवारा कुत्ता ने होंए तो संकट आ जात आएं। चोखरवा बढ़न लगत आएं। मने जे बात हमें बी समझ ने परी के जो ऐसो होतो तो बिदेसों में तो रोड पे कऊं कुत्ता नईं दिखात। मने उते आवारा कुत्ता होतई नइयां। सो, उते तो रोड पे फेर चोखरवाई-चोखरवा फिरत दिखो चाइए।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘अरे फजूल की बात! बिदेस में तो पाले भए कुत्ता लौं रोड पे नईं फिरा सकत, आवारा की तो बातई छोड़ो। बे खुद बिदेस जात रैत आएं फेर बी ऐसी उल्टी-पुल्टी दे रईं। जे नईं के आवारा कुत्तन के लाने शेल्टर होम बनाबे की ठेन करें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई बताएं तो होने जाने कछू नईयां। चार दिना की बतकाव चलहे फेर फुस्स हो जैहे। मनो अपन ओरन को तो आवारा कुत्तन से छुटकारा मिलहे न। जेई लाने हम सोच रए के उन ओरन खों मनो पालें न तो कम से कम लहटा लेवें, ईसे बे अपन ओरों खों तो ने काटहें।’’ भौजी ने अपनो आइडिया फेर के पेल दओ।
‘‘बाकी भौजी जे बताओ के जो पगला ने हुइए बा दोस्ती निभाहे, औ जोन कोऊं एकाध पगला गओ तो बोई हुइए जोन मोरी मताई के संगे भओ। अब आठ-दस कुत्तन की भीर में कां पता परहे के को साजो आए औ को पगला गओ? मनो आजकाल तो साजे कुत्ता सोई लोगन खों काटत फिरत आएं। छोटे बच्चा हरों के लाने तो सबसे ज्यादा खतरा रैत आए। पर जे बात पुरानी मंत्रानी जू खों समझ परे तब न!’’ मैंने कई।
‘‘जब हमाए-तुमाए सोचबे से कछू नईं बदलो जा रओ तो काय सोच रईं। चलो, मिल के गारी गाएं।’’ कैत भईं भौजी ब्याओ के टेम पे बरातियों की पंगत के इते गाई जाबे वारी गारी फेर के गान लगीं।
‘‘कुत्ता पाल लेओ
कुत्ता की पूंछ घांई ससुरा की मूंछ, कुत्ता पाल लेओ...’’ मैंने सोई सुर में सुर मिला दओ।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के आवारा कुत्तन से कब लौं कटने परहे? ईकी कछू व्यवस्था हुइए के नईं?
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