"पत्रिका" परिवार को स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं🌹🙏🌹
"राजस्थान पत्रिका" के मध्य प्रदेश संस्करण "पत्रिका" समाचार पत्र के सागर संस्करण ने स्थापना दिवस पर विशेषांक प्रकाशित किया है जिसमें "गेस्ट राइटर" के रूप में बुंदेली की वर्तमान स्थिति पर हैं मेरे विचार ....
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बुंदेली बोल : अब बुंदेली बोले में कोऊ नईं सरमात
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
(पत्रिका स्थापना दिवस विशेषांक,27.08.2025)
अपनी जे बुंदेली आज ऊ मुकाम पे पौंच गई आए जां ऊको बोलबे वारे को मूंड़ शान से ऊंचो हो जात है। आज बुंदेली बोलबे में कोनऊं खों सरम नईं लगत। औ जे जो बुंदेली के दिन फिरे हैं ईमें फिल्मों औ सोसल मिडिया को बड़ो रोल आए। आप ओरन खों याद हुइए के 1998 में फिलम आई हती “चाईना गेट”, ऊमें अपने गोपालगंज के मुकेश तिवारी ‘जगीरा’ बने हते। ऊ फिलम में छूंछी बुंदेली के डायलॉग तो ने हते लेकन ‘जगीरा’ के सबरे डायलॉग बुंदेली स्टाइल में बोले गए ते। ईंसे बुंदेली की तरफी बॉलीवुड को ध्यान खिंचों। फेर तो औ फिलमें आईं जीमें बुंदेली डायलॉग रखे गए। बाकी बुंदेली को सबसे ज्यादा पापुलर बनाओ पैले टीवी के सीरियलों ने औ फेर रीलन ने। ‘हप्पू सिंह’, ‘टीका’,’मलखान’ के करैक्टरन ने तो मनो बुंदेली खों टॉप पे पौंचा दऔ। फेर कोरोना के जमाना में अपनई इते के हसरई गांव के आशीष उपाध्याय औ बिहारी उपाध्याय ने अपने भैयन के संगे मिलके सोसल मिडिया के लानें बुंदेली में रीलें बनानी सुरूं करीं। जोन ने धूम मचा दईं। इन रीलन की अच्छी बात जे हती के जे पारिवारिक टाईप की राखी गईं। कोऊ बी इनखों देख सकत्तो। कऊं कोऊं अस्लीलता नोंई हती। जेई से जे हिट भईं औ बुंदेली ने जानने वारन ने बी देखी। अब तो मुतकी बुंदेली रीलें बन रईं।
एक बात बताई जानी जरूरी आए के महाराज छत्रसाल के जमाना में बुंदेली राजभाषा रई। ईके आगे राजा मधुकरशाह बुंदेला, मर्दनसिंह, बखतबली की चिठियां लौं बुंदेली में मिलत आएं। बा तो ने जाने कबे अंग्रेज हरों के फेर में पर के अपनी बुंदेली को गंवईं की बोली मानो जान लगो। मनो अब फेर के बुंदेली खों मान मिलन लगो है। अब बुंदेली बोले में कोऊ नईं सरमात।
बाकी पत्रिका खों धन्यबाद देने तो सबसे पैले बनत आए के जो एक ऐसो राष्ट्रीय स्तर को अखबार आए जोन ने बुंदेली के लाने “टॉपिक एक्पर्ट” नांव को कॉलम छापबो सुरू करो औ मोरे नोने भाग के मोए ऊको लिखबे को मौका दओ। बुंदेली में साहित्य तो लिखोई जा रओ आए। गजलें-मजलें सोई लिखी जा रईं आएं। जे सब प्रयासन से भओ जे के आज बुंदेली बोली जा रई, देखी जा रई औ पढ़ी जा रई।
सो, बोलो जै बुंदेली!
जै बुंदेलखण्ड!
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