Tuesday, June 1, 2021

पुस्तक समीक्षा | ‘उसकी आकर बातों में’ : कोमल भावनाओं का खूबसूरत गुलदस्ता | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

प्रस्तुत है आज 01.06.2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई काव्य संग्रह "उसकी आकर बातों में" की  पुस्तक समीक्षा... 


पुस्तक समीक्षा
‘उसकी आकर बातों में’ : कोमल भावनाओं का खूबसूरत गुलदस्ता
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - उसकी आकर बातों में (गजल संग्रह)
कवि   - कुमार सागर
प्रकाशक - बुक रिवर्स, डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू बुक रिवर्स डॉट कॉम
मूल्य - रुपए 199/-
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किसी भी काव्य में दो पक्ष महत्वपूर्ण होते हैं- भाव पक्ष और कला पक्ष। इन दोनों का संतुलन काव्य प्रस्तुति को सुंदर बना देता है। लेकिन काव्य भावना प्रधान अभिव्यक्ति होती है अतः इसे कलापक्ष से अधिक भाव पक्ष प्रभावी बनाता है। भावना की कमी वाला काव्य पाठकों एवं श्रोताओं से सीधा संवाद नहीं कर सकता है। कहने का आशय है कि काव्य का आकलन करते समय उसमें निहित भावनात्मकता को आधार बनाया जाना चाहिए। जैसे आचार्य विश्वनाथ ने रस को ही काव्य का प्रमुख तत्त्व मानते हुए कहा है- ‘वाक्यरसात्मकंकाव्यम्’ अर्थात् रस से पूर्ण वाक्य ही काव्य है। अतः जहां रस है वहां भावनाएं प्रमुख स्थान पर होंगी। ऐसा ही भावना प्रधान काव्य संग्रह है कवि कुमार सागर का, जिसका नाम है-‘‘उसकी आ कर बातों में"। संग्रह की भूमिका लिखते हुए सुविख्यात कवयित्री डाॅ. वर्षा सिंह ने कुमार सागर के इस संग्रह के बारे में लिखा है-‘‘पुष्पेंद्र दुबे हिन्दी साहित्य जगत में एक नवोदित कवि के रूप में अपना स्थान बना चुके हैं। वे ग़ज़ल भी लिखते हैं और गीत भी। उनकी काव्य रचनाएं खड़ी बोली के साथ ही बुंदेली बोली में भी रहती हैं। उनकी कविताओं का भाव पक्ष कला पक्ष की अपेक्षा अधिक प्रभावी है। उनके भाव पक्ष में कच्ची माटी सा सोंधापन है। एक युवा स्पंदन की तरह पुष्पेंद्र दुबे की काव्य पंक्तियां स्पंदित होती हैं।’’
‘‘उसकी आ कर बातों में’’ काव्य शैलियों की विविधता है और हिन्दी और बुंदेली दोनों में काव्य रचनाएं हैं। इन रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है, इनकी सहजता। कवि कुमार सागर अपनी भावनाओं को बिना किसी आडम्बर के सीधे, सहज शब्दों में अभिव्यक्त कर देते हैं। उदाहरण के लिए उनकी यह रचना देखें -

उसकी अगर बातों में नींद है  गायब रातों में
प्यार तो चुपके होता है तू क्यों पगले रोता है
हंस करके ही जीना है हंस कर आंसू पीना है
मैं तो जानूं ऐसी बात, दिल  टूटे  आघातों में

कवि ने प्रेम के उस कोमल पक्ष को बड़े ही सुंदर ढंग से सामने रखा है कि जब एक प्रेमी प्रेम का संकेत देने का आग्रह करता है ताकि वह प्रेम के प्रति आश्वस्त हो सके। इन चार पंक्तियों में आग्रह के सहजता का प्रभाव देखिए -

आओ जरा किनारे में
कुछ सोचो मेरे बारे में
मैं इसीलिए तो आता हूं
कुछ कह दो जरा इशारे में

विडम्बना यह है कि समाज प्रेम की मुखरता को अनुमति नहीं देता है और उसकी प्रेममार्ग में बाधा पहुंचाने की प्रवृत्ति होती है। समाज के भय से कई बार प्रेमीजन में अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे ही एक प्रेमी जोड़े की भावना को व्यक्त करते हुए कुमार सागर खूबसूरत पंक्तियां रचते हैं-

प्यार की जब से सबको खबर हो गई
मैं इधर हो गया, वो उधर हो गई
मेरे दिल को है चाहत तेरे प्यार की
प्यार में जीत की, जीत में हार की
जीत कर दिल मेरा, तू किधर हो गई

इस काव्य संग्रह की प्रत्येक कविता आंतरिक काव्य सौंदर्य से प्रतिध्वनित है। इन कविताओं में सांस्कृतिक एवं शाश्वत जीवन मूल्यों में प्रगाढ़ आस्था के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं का उत्तम प्रवाह दिखाई देता है। जीवन में ऐसे पल आते हैं जब व्यक्ति उलझन में पड़ जाता है कि क्या ग़लत है और क्या सही है? यह स्थिति प्रायः अकेलेपन की उपज होती है-

उनके जीवन में अक्सर है तनहाइयां
कुछ तो भ्रम है कि वे तो अकेले पड़े
हर जगह खाई है वे किधर  हैं खड़े
जाने क्या हो  उनको  पता ही नहीं
वो  है  छोटे,   मुसीबत  बड़े से बड़े
जिनकी दिखती नहीं अब तो परछाइयां

कुमार सागर की काव्य रचनाओं में सहजता, निश्छलता के साथ भावों का उन्मुक्त प्रवाह है जिसमें प्रेम है तो साथ ही प्रेमासिक्त उलाहना भी है। ये पंक्तियां देखिए -

छेड़ती तू सताती नहीं आजकल
नींद मुझको आती नहीं आजकल
याद आते हैं मौसम सुहाने सभी
गीत किस्से कहानी तराने सभी
एक पल के लिए भूल जाता हूं सब
भूल जाता हूं अपने बेगाने सभी
तू पलट कर बुलाती नहीं आजकल

कवि ने मात्र सांसारिक प्रेम पर कविताएं नहीं रचीं हैं वरन ईश्वर के प्रति प्रेम को भी भवाभिव्यक्ति दी है। इसीलिए संग्रह में भक्ति पर गीत भी है जैसे यह गीत देखिए-

बिन भजे राम का नाम कि तरना मुश्किल है
मन लगन लगाओ राम, कि तरना मुश्किल है
नाहक इधर-उधर मत डोलो
मुंह से राम नाम तो बोलो
जय बोलो अयोध्या धाम कि तरना मुश्किल है

कुमार सागर के भक्ति गीतों में जहां पर्याप्त गेयता है, वहीं धार्मिक मूल्यों की दार्शनिकता भी है। ‘‘मन को कंस हमें मरवाने’’ जैसी पंक्ति प्रत्येक मनुष्य को उसके भीतर मौजूद दुष्ट प्रवृत्तियों को नष्ट करने का आग्रह करती है। 

हमखो तुम खो मिल के जाने। मथुरा  नंदगांव बरसाने।।
हमखो तुम खो मिल के जाने। गोकुल नंदगांव बरसाने।।
मथुरा जाने दर्शन करने जहां जन्मे मदन मुरारी
छैल छबिलों  नटवर  नागर  गिरधारी बनवारी
मन को कंस हमें मरवाने।

कवि चाहे किसी भी भाषा में कविताएं लिखे किन्तु उसे तृप्ति तभी मिलती है जब वह अपनी मातृभाषा और मातृबोली में सृजन करता है। कवि कुमार सागर ने बुंदेली में भी काव्य रचनाएं लिखी है जिनमें माटी का सोंधापन साफ महसूस किया जा सकता है। एक उदाहरण देखिए-
न्यारो रोज जला के चूला
घर में खेलत रये घरघूला
बाप-मताई कौन गली के
सास-ससुर सब कोई
ससुरारे गए जितने ज्यादा
इतनई इज्जत खोई
जा-जा काये झूल रहे झूला
घर में खेलत रये घरघूला

यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि युवा कवि कुमार सागर का यह प्रथम काव्य-संग्रह सहजता और सरलता के पक्षधर पाठकों को रुचिकर लगेगा। अत्यंत ही सरल एवं सुबोध भाषा में कही गई ये काव्य रचनाएं जितनी सहजता से कही गई हैं, पाठकों के मन में भी उतनी ही सहजता से उतर जाती हैं। संग्रह की कविताओं को देखते हुए कवि के भविष्य के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।
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