Wednesday, June 16, 2021

चर्चा प्लस | एक गंभीर कार्य है स्त्री-अध्ययन | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
एक गंभीर कार्य है स्त्री-अध्ययन
 - डाॅ शरद सिंह
            सामाजिक अध्ययन के अंतर्गत स्त्री-अध्ययन अर्थात् वीमेन स्टडीज़ सबसे रोचक विषय माना जाता है। अनेक विश्वविद्यालयों में स्त्री-अध्ययन केन्द्र संचालित हैं। इन केन्द्रों में स्त्री जीवन से जुड़ी समस्याओं एवं संभावनाओं का विश्लेषण तथा आकलन किया जाता है। इसलिए ज़रूरी हो जाता है कि ऐसा महत्वपूर्ण कार्य पुराने कार्यों की ‘‘काॅपी-पेस्ट’’ बन कर न रह जाए जैसा कि अन्य मानविकी विषयों में देखने को मिलता है। इस विषय की गंभीरता एक ईमानदार और गंभीर शोध की मांग करती है।
 
 आज देश भर में लगभग 150 से अधिक स्त्री अध्ययन केंद्र संचालित हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के समय यूजीसी के द्वारा बहुत से महिला अध्ययन केंद्र खोले गए थे। भारत में महिला-विमर्श 19वीं सदी से शुरू हुआ, जब धर्मिक-सामाजिक सुधर आंदोलनों में दलितों, पिछड़ों और महिला उत्थान को केंद्रित किया गया। भारत में  औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक काल के महिला आंदोलनों से स्त्री-विमर्श बाहर आया। और स्त्री की असमानता, असुरक्षा, यौन उत्पीड़न, पिछड़ापन, अशिक्षा, सामाजिक विभेद इत्यादि पर अध्ययन होने लगे। 1970 के दशक में महिला अध्ययन एक बौद्धिक खोज और संस्थागत कार्य के तौर पर उभरा। इस प्रक्रिया के दौरान इस विषय की पूर्व अवधारणाओं, उपकरण (टूल), तकनीक और पद्धतियों पर सवाल खड़े किए गए, नयी दृष्टि से शोध् किए गए। सन् 1974 में सरकार द्वारा गठित सीएसडब्ल्यूआइ (कमेटी आॅन स्टेटस आॅफ वीमेन इन इंडिया) की रिपोर्ट ‘‘टुवर्ड्स इक्वेलिटी’’ प्रकाशित हुई तो स्त्रियों की बदहाली-अशिक्षा, कुपोषण, भू्रण हत्या, बाल विवाह, बेरोजगारी, यौन शोषण, असमान मजदूरी, गरीबी जैसे सवाल पूरे देश में गूंजने लगे। सरकार ने भी यह महसूस किया कि गरीब ग्रामीण महिलाओं को इस स्थिति से उबारना चाहिए। इसका परिणाम 1974 में महिला अध्ययन शोध् इकाइयों की स्थापना के रूप में आया। पहला महिला अध्ययन केंद्र मुंबई के एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में खुला जिसकी डायरेक्टर नीरा देसाई थीं। इस प्रकार स्त्रियाँ ‘शिक्षा प्राप्त करने की पात्र’ से ‘शोध एवं अध्ययन’ की नयी विषयवस्तु बनीं। महिला अध्ययन केंद्र इस प्रकार रूपांतरण के माध्यम बने जो न केवल राज्यनीति बल्कि महिलाओं के अपने विषय में सोच को भी परिवर्तित करें। सन् 1987 से महिला अध्ययन केंद्रों की स्थापना 9 चुनिंदा विश्वविद्यालयों में शिक्षण, शोध और प्रसार की दृष्टि से की जाने लगी। 1986 की नयी शिक्षा नीति में यूजीसी ने भारतीय विश्वविद्यालयों में स्त्री अध्ययन केंद्रों के विकास की गाइडलाइन्स दी थी।
   जहंा तक स्त्री विमर्श का प्रश्न है तो स्त्री विमर्श, स्त्री मुक्ति, नारीवादी आंदोलन आदि - इन सभी के मूल में एक ही चिन्तन दृष्टिगत होता है, स्त्री के अस्तित्व को उसके मौलिक रूप में स्थापित करना। स्त्री विमर्श को लेकर कभी-कभी यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि इसमें पुरुष को पीछे छोड़ कर उससे आगे निकल जाने का प्रयास है किन्तु ‘विमर्श’ तो चिन्तन का ही एक रूप है जिसके अंतर्गत किसी भी विषय की गहन पड़ताल कर के उसकी अच्छाई और बुराई दोनों पक्ष उजागर किए जाते हैं जिससे विचारों को सही रूप ग्रहण करने में सुविधा हो सके। स्त्री विमर्श के अंतर्गत  भी यही सब हो रहा है। समाज में स्त्री के स्थान पर चिन्तन, स्त्री के अधिकारों पर चिन्तन, स्त्री की आर्थिक अवस्थाओं पर चिन्तन तथा स्त्री की मानसिक एवं शारीरिक अवस्थाओं पर चिन्तन - इन तमाम चिन्तनों के द्वारा पुरुष के समकक्ष स्त्री को उसकी सम्पूर्ण गरिमा के साथ स्थायित्व प्रदान करने का विचार ही स्त्री विमर्श है।
सदियों से भारत में सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, अधिकार विहीनिता, रूढ़िवादिता को समाज का अंग पाया गया। परन्तु 19वीं शताब्दी में पश्चिमी शिक्षा के आगमन से संस्कृतियों में टकराव हुआ। फलस्वरूप महिला अधिकारों की बात की जाने लगी। लोग परम्परागत ढांचे से बाहर निकलकर सोचने लगे, महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया जाने लगा। 1917, 1926 और 1927 में क्रमशः भारतीय महिला संघ, भारतीय महिला परिषद व अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना हुई तथा स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मुद्दों पर विचार किया गया। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को लागू करने के लिए 1950 में संवैधानिक उपाय किये गए। इससे पूर्व सन् 1930 तथा 1944 में स्त्रियों को समाज में समान अधिकार दिए जाने की मांग की गई थी। सन् 1944 में इस संबंध में एक मसौदा भी तैयार किया गया था।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा व भारतीय स्त्री अध्यंयन संघ के संयुक्त तत्वावधान में स्त्री अध्ययन के 13 वें राष्ट्रीय सम्मे्लन के अंतर्गत पांच दिवसीय सम्मेलन में ‘‘हाशिएकरण का प्रतिरोध, वर्चस्व को चुनौती: जेंडर राजनीति की पुनर्दृष्टि’’ पर गंभीर विमर्श करने के लिए गांधीजी की कर्मभूमि वर्धा में देशभर के 650 स्त्री अध्ययन अध्येताओं का सम्मेलन हुआ था। इससे पहले 11वां अधिवेशन गोवा में और 12 वां लखनऊ में आयोजित किया गया था। इस पांच दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में अधिवेशन पूर्व कार्यशाला में देशभर के 60 से अधिक विश्वमविद्यालयों के लगभग 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया था। स्त्री अध्ययन के विद्यार्थियों ने पहले सत्र के दौरान ‘‘स्त्री अध्ययन: शिक्षा शास्त्र और पाठ्यक्रम’’ पर विमर्श करते हुए कहा था कि - ‘‘स्त्री अध्ययन महिला मुक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप निकला हुआ एक विषय है, जबकि स्त्री अध्ययन को लेकर केंद्रों, विभागों और स्नातकोत्तर व उच्च  शिक्षा के स्तर पर बहुत सारे संघर्ष हुए हैं और किए जाने हैं।’’ विद्यार्थियों ने स्त्री अध्ययन के मुख्य अनुशासन के अभ्यासों और उससे पड़ने वाले प्रभावों के अनुभवों को साझा किया। शोधार्थियों ने विशेषकर इस विषय को पढ़ते समय परिवार द्वारा मिलनेवाली चुनौतियों को भी बताया कि किस तरह जब वह अपने विषय के तत्वों पर परिवार और समाज में बात करते हैं तो लोग उनका विरोध करते हैं। कुछ विद्यार्थियों ने यह अनुभव किया है कि यह मात्र समानता का सवाल नहीं है परंतु यह मानव की तरह व्यवहार किए जाने का सवाल है। द्वितीय सत्र के दौरान ‘‘स्त्री अध्युयन: अनुभव और सरोकार’’ विषय पर चर्चा की गई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल ने भी महिलाओें के उत्थान एवं जागरूकता की दृष्टि से जाबाला महिला अध्ययन केन्द्र की स्थापना हेतु कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए। जैसे - परिवार व्यवस्था में महिला की भूमिका का अध्ययन करना, व्यापक सामाजिक जीवन में महिला की स्थिति एवं भूमिका का आकलन करना, भारतीय संस्कृति के संदर्भ में स्त्रीपुरुष सहअस्तित्व की संकल्पना को पुनस्र्थापित करना, समतामूलक समाज की पुनस्र्थापना के मध्य स्त्री की एक मानव के रूप में पहचान करना, स्त्री अपराध-मुक्त समाज की संकल्पना पर शोध करना, स्त्री सशक्तीकरण के मार्ग में आने वाले अवरोधों की पहचान कर उनके समाधानमूलक उपायों पर विचार करना, स्त्री क्रियाशीलता के प्रस्थान बिंदुओं की पहचान के साथ, राष्ट्र निर्माण में स्त्री की भूमिका को सुनिश्चित करना, महिला संबंधी भारतीय दृष्टिकोण या अवधारणा का अध्ययन तथा वैश्विक दृष्टिकोण की समीक्षा करना, वर्तमान समय में युवा महिलाओं के समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों (पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक) एवं समाधानों का अध्ययन करना तथा लिंगीय (जेण्डर) संवेदनशीलता पर अध्ययन एवं शोध आयोजित करना। इस केन्द्र का लक्ष्य भारत से बाहर गए सभी भाषा-भाषी समूहों का व्यावसायिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षणिक अन्तर-अनुशासनिक अध्ययन है।
अकसर यह देखने में आता है कि विश्वविद्यालयीन शोधकर्ता ज़मीनीतौर पर परिश्रम करने के बजाए सरकारी और गैरसरकारी अंाकड़ों को आधार बना लेते हैं। जबकि कई बार ज़मीनी सच्चाई आंकड़ों से परे होती है। स्त्री-अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। यह विषय समाज की आधी आबादी की दशा और दिशा को तय करता है। आंकड़ों को खंगालने में कोई बुराई नहीं है किन्तु यह भी देखा जाना चाहिए कि किसी एक मुद्दे पर किसी एनजिओ और सरकारी आंकड़ों में अन्तर तो नहीं है? यदि अंतर है तो क्यों है? और यदि अंतर नहीं है तो क्यों नहीं है? इन दोनों पक्षों का स्वयं सत्यापन करना बेेहद जरूरी होता है। स्त्री-अध्ययन के समय यदि ज़मीनी सच्चाई को ध्यान में रख कर शोध कार्य किया जाए तो एक ऐसी यथार्थपरक तस्वीर सामने आएगी जो भारतीय स्त्रियों के अधिकारों एवं सुखद भविष्य को सुनिश्चित कर सकती है। आखिर एक गंभीर कार्य है स्त्री अध्ययन।    
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(सागर दिनकर,16.06.2021)
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1 comment:

  1. वाकई एक गंभीर कार्य है स्त्री-अध्ययन, पहली बार ज्ञात हुआ कि देश में १५० स्त्री अध्ययन केंद्र हैं. सार्थक लेखन !

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