Tuesday, June 15, 2021

पुस्तक समीक्षा | भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति है ‘‘शब्दों की निर्झरिणी’’ में | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण में प्रकाशित

साथियों, प्रस्तुत है आज 15.06.2021 को "आचरण" में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई युवा कवयित्री जयंती सिंह लोधी के काव्य संग्रह "शब्दों की निर्झरिणी’’ की पुस्तक समीक्षा ... 
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति है ‘‘शब्दों की निर्झरिणी’’ में
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक  - शब्दों की निर्झरिणी (काव्य संग्रह)
कवयित्री - जयंती सिंह लोधी
प्रकाशक - रंगमंच प्रकाशन
मूल्य    - 250/-
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कहा जाता है कि जहां शब्द ठहरते हैं वहीं से काव्य गतिमान हो जाता है। वस्तुतः शब्द भावानाओं का आधार बना कर काव्य को अभिव्यक्त करते हैं। जहां शब्द किसी निर्झरणी के समान प्रवाहमान हों वहां भावनाओं की अनेकानेक लहरें उठना स्वाभाविक हैं। सागर शहर की युवा कवयित्री जयंती सिंह लोधी एक संभावनाशील कवयित्री हैं। वे अपने शब्दों से काव्य में वह सब कुछ पिरो देने को कटिबद्ध दिखाई देती हैं जो उनके अनुभव से गुज़रता है, चाहे वह अनुभव प्रकृति के सौंदर्य, सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक अव्यवस्था, अथवा अंतर्मन की भावनाएं हों। उनका काव्य संग्रह ‘‘शब्दों की निर्झरणी’’ भावनाओं की गतिशीलता और गहराई को एक साथ प्रस्तुत करता है। संग्रह की भूमिका में टिप्पणी करते हुए प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने लिखा है कि ‘‘काव्य की संप्रेषणीयता, भावों की कुशल अभिव्यक्ति, भाषा की सहजता, सरलता और सौंदर्य, छंदों का वैविध्य, विचारों का खुलापन, नए जमाने की सोच, गलत का विरोध आदि सब कुछ है, इस संग्रह की कविताओं में।’’
जयंती लोधी की प्रकृति संबंधी कविताओं में छायावादी प्रकृति वर्णन की आभा दिखाई देती है। वे प्रकृति का मानवीकरण करती हुई मनोभाव व्यक्त करती हैं। जैसे ‘‘निर्झरिणी’’ शीर्षक उनकी कविता की पंक्तियां देखिए-
उन्मुक्त धार नदी की
सुंदर मन भावनी
धवल धार बहती कल कल
निर्झरिणी पथ गामिनी

डगर डगर पर है मुश्किल
पर हार नहीं यह मानती
दृढ़ संकल्प और श्रम से
पर्वत को भी लांघती

कवियत्री जहां एक और प्रकृति की कोमलता एवं  सजीवता से  तादात्म्य  में स्थापित करती है, वही मां के प्रति उनकी काव्य दृष्टि बड़े ही समर्पित भाव से ममत्व की सुंदर व्याख्या करती है। वह मां की गोद में जन्नत मानती हैं तथा मां का सुख सागर के समान कहती हैं। मां का आशीष उन्हें प्रकाश के समान देदीप्यमान प्रतीत होता है। उनकी मां शीर्षक यह रचना देखिए-
 मां की गोद में जन्नत है
 मां सुख का सागर है
 मां ममता की शीतल छांव
 मां से रोशन सारा घर है
 जीवन दात्रि और निर्मात्री
 बच्चों पर न्योछावर है
 त्याग पूर्ण है मां का जीवन
 मां ईश्वर से बढ़कर है

मां का वर्णन करते समय पिता के अस्तित्व को भूलती नहीं है। एक उत्तम पारिवारिक जीवन में पिता की उपस्थिति एक अलग ही सुख का बोध कराती है। ‘‘पिता’’ शीर्षक से उनकी यह काव्य पंक्तियां विचारणीय है-
 पिता हमारे जीवन दाता
 पिता से अपनी है पहचान
 पिता के उत्तम कर्तव्यों से
सुख पाती है हर संतान
 उनकी त्याग तपस्या देखो
 सख्त नारियल का व्यवहार
बच्चों को जीत दिलाने हेतु
 स्वयं हार करते स्वीकार

 माता-पिता के साथ ही परिवार एवं समाज में बेटियों का विशेष महत्व होता है। यह बात और है कि वर्तमान स्थितियां बेटियों के अनुकूल नहीं हैं। आज भी देश के अनेक परिवारों में बेटियों को जन्म लेने से पूर्व ही मार दिया जाता है। जबकि बेटियां घर परिवार में खुशी लेकर आती है वह अन्नपूर्णा के समान घर को संपन्नता से पूर्ण करती हैं तथा दो परिवारों, दो कुल का मान बढाती हैं। जयंती सिंह लोधी ने अपनी कविता ‘‘बेटी’’ में बेटी की महत्ता को प्रस्तुत किया है-
        जीवन में खुशियां लेकर आ जाती है बेटियां
        चंपा जूही चमेली जैसी खिल जाती हैं बेटियां
        बेटी बनकर सुख देती बहु बन वंश  बढ़ाती है
        अन्नपूर्णा घर की लक्ष्मी दो  कुल का मान कहाती  है      
        कोख में बेटी मत मारो इसको जीवनदान दो
        इनकी पूजा बहके करो न, पर जीने का अनुदान दो

बेटियों के अस्तित्व को संकट में देखते हुए जयंती सिंह लोधी तटस्थ नहीं रह पाती हैं और वे बेटियों को बचाने और उन्हें सम्मान देने का आह्वान करती हैं -
       कहीं राधा, कहीं गीता, कहीं मुस्कान ख़तरे में
       किसी की कोख ख़तरे में, किसी की जान ख़तरे में
       हमारी बेटियां देखो, वतन की शान होती हैं
       मगर इनका जमाने में रहा सम्मान ख़तरे में

“मैं नारी हूं” शीर्षक कविता स्त्री के अस्तित्व और समाज में स्त्री की स्थिति को बखूबी वर्णित करती है। कवयित्री स्वयं एक स्त्री होने के नाते इस मर्म को गहराई से समझती है, विश्लेषित करती है और तब अपने काव्य में पिरोती है, यह तथ्य कविता की प्रत्येक पंक्ति में मुखर होता है। कविता की पंक्तियां देखिए-
 मैं विधाता की
 सर्वश्रेष्ठ कृति हूं
 सृजना हूं, प्रकृति हूं
 मुझ में समाया है संसार
 मुझ से रोशन है घर द्वार
 हिम्मत कभी न हारी हूं
 हां मैं नारी हूं।
 हजारों बंदिशें  मुझ पर
 हैवान भेड़ियों की पैनी नजर
 मेरा वजूद मिटाने को आतुर
 फिर भी जीने की अधिकारी हूं
 हां मैं नारी हूं

भारतीय संस्कृति में कृष्ण कथा का स्थान सर्वोच्च है अधिकांश कवि राधा और कृष्ण के चरित्र को, उनके  वर्णन को  अपनी कविताओं में रोते हैं और राधा कृष्ण के शाश्वत प्रेम का उदाहरण देते हैं।  राधा कृष्ण का प्रेम वस्तुतः प्रेम भावना का सौंदर्यत्मक रूप प्रस्तुत करता है।  एक ऐसा सौंदर्य जिसमें परस्पर समर्पण की भावना है विश्वास है और भक्ति भी है जयंती लोधी अपनी  रचना में ”राधिका” शीर्षक  रचना में राधा और कृष्ण की परस्पर पूरक था को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती है। यह पंक्तियां देखिए-
 राधिका बिना श्याम आधे अधूरे हैं
 दोनों संग संग हैं प्रीत पुरजोर है

राधा-कृष्ण की भावभूमि पर एक अन्य कविता का अंश देखिए जिसमें कवयित्री ने राधा की मनोदशा का सुंदर चित्रण किया है-
यह मैं हिलोर है पंछियों का शोर है
हाथों में हाथ लिए मेरा चितचोर है
मुरली बाज रही कंगना भी बाज रहे
मेरा मन मोहना नंदकिशोर है

अपनी लेखनी के प्रति कवयित्री जयंती लोधी के भीतर एक सहज भाव है जिसे उनकी कविताओं में स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। अपने काव्य सृजन के बारे में वे कहती हैं-
अनोखी है, अलबेली है
ये लेखनी मेरी सहेली है
मेरे मन के मधुमन में
जब खुशियों के फूल खिले
तब तब महकी मेरी लेखनी
अरमानों के पंख मिले

जयंती सिंह लोधी के काव्य का एक सुखद पक्ष यह भी है कि वे अपने आशावादी विचारों को प्रभावी ढंग से सामने रखती हैं और सुखद, उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित दिखाई देती हैं-
निराशा के कुहासें में, उजाला हम भी लाएंगे
चलो अब बादलों के पार नया सूरज उगाएंगे
हिमालय की ऊंचाई से  हमारे  हौसले देखों
सुनहरे ख़्वाब की कूची से नई किरणें बनाएंगे
खुशी का रंग ले कर संग, सपनों को उकेरेंगे
इरादों की  उड़ानों से  सफर  आसां बनाएंगे

कवयित्री जयंती सिंह लोधी के इस काव्य संग्रह ‘‘शब्दों की निर्झरणी’’ में संग्रहीत कविताओं, गीतों, ग़ज़लों, दोहों एवं छंदमुक्त रचनाओं का भावपक्ष प्रबल है, यद्यपि उन्हें अपने काव्य के कलापक्ष को निखारने की अभी और आवश्यकता है। भावनाओं के उद्घाटन पर नियंत्रण रखते हुए काव्यशिल्प को साधना सतत सजगता और अभ्यास की मांग करता है जोकि इस संग्रह की कविताओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि कवयित्री में काव्यशिल्प को साधने की भी क्षमता है, बस, जरूरत है काव्यविधान को ध्यान में रखने की। सारांशतः कहा जाए तो, ‘‘शब्दों की निर्झरणी’’ भावसिक्त कर देने वाला एक पठनीय संग्रह है और यह कवयित्री की काव्य साधना के प्रति आश्वस्त करता है।
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