Friday, June 11, 2021

बुंदेली व्यंग्य | ब्याओ की दावतें | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | पत्रिका समाचारपत्र में प्रकाशित

साथियों, आज #पत्रिका समाचार पत्र में मेरा बुंदेली व्यंग्य "ब्याओ की दावतें " प्रकाशित हुआ है... आप भी पढ़ें...आंनद लें....
हार्दिक धन्यवाद "पत्रिका" 🙏
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बुंदेली व्यंग्य
ब्याओ की दावतें 
      - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘रामधई! अब कछू नई हो सकत। बे ओरें मोरी काय सुनहें? उने तो अपनी परी है। बस, कहत भर के लाने हैं नोने भैया, बाकी नोने भैया की परवा कोनऊ को नईयां।’’ नोने भैया बड़बड़ात भए मोरे दरवाजे के आगूं ठाड़े हते। बड़बड़ा काए मनो चिचियां रये हते। तभई तो उनकी आवाज मोरे कान लों पोंच गई। मों पे दो ठइयां मास्क हतो, फेर भी उनको चिचियानो मोये समझ में आ गओ। मोसे न रही गई सो मैंने तो पूछई लई, ‘‘काय नोने भैया, का हो गए? काय के लाने बमकत फिर रए?’’
‘‘अरे हम काय बमकें बिन्ना? बमके हमारे दुस्मन।’’ नोने भैया ठसक के बोले।
‘‘सो फेर काए चिचियां रये?’’ मैंने पूछी।
‘‘हम कहां चिचिया रये?’’ नोने भैया फेर के मुकर गये।
‘‘सो, जे को आ बोल रओ के अब कछू नई हो सकत? अब कछु बता दो भैया! मन की मन में नईं रखी जात। मोरे लाने कछु काम होय तो बताओ।’’ मैंने नोने भैया से कही।
‘‘अब का बताऊं बिन्ना! बड़े बुरै दिन आ गए। हमाई तो कोऊ सुनतई नईयां।’’ नोने भैया बोले।
‘‘ऐं? ऐसो का हो गओ? तुमाई तो सबई सुनत आएं? जे ऐसई काय कै रै?’’ नोने भैया बुझउव्वल-सी बुझा रए हते, सो मोए झुंझलाहट हो लगी, ‘‘अब कछु तो बोलो नोने भैया, जे ऐसई पहेलियां न बुझाओ। बाकी न बताना होय सो, न बताओ, मोय सोई टेम नइयां तुमई फालतू की बातें सुनबे के लाने।’’ मैने सोई नोने भैया खों तनक हड़काओ।
‘‘जे का बात भई बिन्ना? पैले तो पूछ रई हतीं, ओ अब कै रईं के तुमाये लाने टेम नइयां। जे तो गल्त बात है।’’
‘‘अब तुमई तो मों नई खोल रये। कछु बताओ तो सुनी जाये।’’ मैंने कही।
‘‘अरे, सुनाबे के लाने का है बिन्ना, भौतई बुरै दिन आ गए हैं। सोच-सोच के कलेजो फटत आए। जी तो करत आये के उन सबई जने को मार-मार के मुर्गा बना दओ जाए। चले हैं ब्याओ करने।’’ नोने भैया बोले।
‘‘कोन को मारबे को जी रओ तुमाओ? और कोन को ब्याओ करा रये?’’ मोए नोने भैया की बातें कछु समझ ने आईं।
‘‘हम काये करा रये ब्याओ? बे ओरे करा रये। हमाओ बस चले तो कोनऊ को ब्याओ न होन देवे।’’ नोने भैया बोले।
‘‘कोन के ब्याओ की कै रये, भैया? कछु साफ तो बोलो।’’
‘‘अरे, बे रहली वारी फुआ की बिटिया को ब्याओ होने वारो है।’’ नोने भैया कसमसात भए बोले।
‘‘काय, बोई वारी बिटिया, जोन के लाने तुमने फुआ की खूब सेवा करी हती?’’ मोये हंसी आ गई।
‘‘हओ तो, बोई वारी। बाकी हमें अब ऊसे कोनऊ लेबो-देबो नइयां। ऊने जब लों हमाए लाने मना कर दओ, तभई से हमने ऊके घरे ढूंको लो नइयां।’’ नोने भैया बोले।
‘‘सो, अब परेसानी का आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘परेसानी तो भौतई बड़ी कहानी। मोये तो जे नई समझ में आ रओ के मोय ठुकरा दओ, कोनऊं गिला नइयां। पर कोन ने कही के अभई ब्याओ रचाओ, ऊपे जे कोरोना काल में।’’ नोने भैया चिढ़त भये बोले।
‘‘महूरत हुइये।’’ मैंने कहीं।
‘‘जेई महूरत मिलो हतो। तुमे पता नई बिन्ना, बे ओरे मोये नई बुला रये ब्याओ में। काय से के बीस से ज्यादा जने शामिल नई हो सकत ब्याओ में।’’ नोने भैया उदासे से बोले। 
‘‘ठीकई तो आए भैया, कोरोना के कारण भीड़ नई जुड़ सकत। ओ, फेर तुमें सोई दुख हुइये ऊको दुल्हन बनी देख के।’’ मैंने नोने भैया को समझाओ।
‘‘बा दुल्हन बने, चाये कछू बने, मोये दुख नई होने। जी तो जे लाने मसक रओ के का जमाना आ गओ? एक जमाना हतो जब दस दिनां में बीस ब्याओ जीम लेत ते। ओ अब जे जमाना आ गओ के ब्याओ में बीसई जने जुड़ सकत आएं, जोन में मोरे लानें कोनऊं जागां नइयां। मोरो जी तो तरस गओ ब्याओ की दावतें खाबे के लाने। काय सब ओरें ई समै ब्याओ कर रये, तनक ठैर जाते। जे ससुरो कोरोना काल निकर जातो फेर करते ब्याओ। मोये काये तरसा रये?’’
‘‘ऐं? सो भैया तुम ब्याओ की दावत के लाने रो रये? ओ हमने सोसी के ऊ फुआ की बिटिया के लाने...।’’
‘‘अरे, तुमने सोई भली चलाई। ऐसी तो बिटियां मुदकी फिरत मोरे आंगू-पीछूं पर ब्याओ की दावतें ने मिलीं साल भर से। सो हम तो कै आए फूफा से के अभई काय करा रये ब्याओ! बस, जेई सुन के फूफा ने जूता फेंक के मारो मोए, वो तो लगो नइयां। बाकी ई समै बयाओ करा के बे गल्त कर रये।’’ कहत भये नोने भैया सो आगे बढ़ गये और मैं सोसत रै गई के वाह रे नोने भैैया, इने प्रेमिका को ब्याओ को गम नइयां, गम आये सो ब्याओ की दावतों का। बाकी नोने भैया की बात में दम तो मोये सोई दिखा रओ। नुसकान तो मोरो सोई भओ जा रओ।
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2 comments:

  1. बधाई
    बढ़िया प्रस्तुति

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    1. हार्दिक धन्यवाद सरिता जी 🙏

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