प्रस्तुत है आज 10.08. 2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक एवं अनुवादक द्वय विनीत मोहन औदिच्य तथा अनिमा दास की पुस्तक "प्रतीची से प्राची पर्यंत" की समीक्षा...
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
आंग्ल और ओड़िया साॅनेट पर महत्वपूर्ण पुस्तक
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - प्रतीची से प्राची पर्यंत
अनुवादक - विनीत मोहन औदिच्य एवं अनिमा दास
प्रकाशक - ब्लैक ईगल बुक्स, ई/312, ट्राईडेंट गैलेक्सी, कलिंग नगर, भुवनेश्वर, ओडिशा
मूल्य - 300/-
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साॅनेट काव्य की एक विदेशी शैली है किन्तु हिन्दी में साॅनेट को पहचान दिलाने और उसका पूर्वी संस्करण तैयार करने का श्रेय जाता है त्रिलोचन शास्त्री को। उन्होंने अंग्रेजी और योरोपियन साॅनेट की शैली को अपना कर उसमें देसज परिदृश्यों को अभिव्यक्त किया। कई समालोचक त्रिलोचन शास्त्री के साॅनेट को शेक्सपियर की परम्परा के मानते हैं किन्तु कुछ वर्ष पूर्व मैं शोध कर के पाया कि त्रिलोचन शास्त्री के साॅनेट शेक्सपियर के ‘एलीट’ साॅनेट की अपेक्षा किसानों और मज़दूरों की बात करने वाले कैल्टिक साॅनेट के अधिक निकट हैं। समीक्ष्य ग्रंथ में हिन्दी साॅनेट को नहीं लिया गया है किन्तु अंग्रेजी साॅनेट और भारतीय साॅनेट में ओड़िया साॅनेट की विस्तार से चर्चा की गई है। हिन्दी में हिन्दी से इतर भाषाओं के साॅनेट्स पर शोधात्मक सामग्री हिन्दी साॅनेट्स को भी मार्गदर्शन देने का काम करेगी। इस पुस्तक का नाम है ‘‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’’ अर्थात् पश्चिम से पूर्व तक। इसमें दो खंड हैं। प्रथम खंड में साॅनेट की आंग्ल परम्परा के उद्गम की जानकारी देते हुए पश्चिमी कवियों के 67 साॅनेट अनूदित किए गए हैं। यह अनुवाद कार्य साहित्यकार एवं सागर (म.प्र.) जिले के शासकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक विनीत मोहन औदिच्य ने किया है। वे एक अच्छे ग़ज़लकार भी हैं। उनकी पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुके हैं। द्वितीय खंड में ओड़िया साॅनेट की की परम्परा और ओड़िया कवियों के 59 साॅनेट दिए गए हैं। इस खंड का अनुवादकार्य किया है अनिमा दास ने जो कटक (उड़ीसा) के मिशनरी स्कूल में शिक्षिका हैं। वे स्वयं साॅनेट एवं छंदमुक्त कविताएं लिखती हैं। उनका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है।
मेरे अपने शोध के अनुसार कुछ विद्वानों की मान्यता है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों अर्थात् एपीग्राम से हुआ। प्राचीन काल में एपीग्राम का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। यह भी मान्यता है कि इसका जन्म इटली में हुआ। वहीं कुछ विद्वान इसका जन्मस्थान सिसली मानते हैं और वे तर्क देते हैं कि जैतून के वृक्षों की छंटाई करते समय कामगार जिस गीत को गाया करते थे, वही साॅनेट है। निष्कर्षतः यह तो मानना ही होगा कि साॅनेट का जन्म योरोप में हुआ जहां कामगारों से ले कर साहित्यकारों तक यह लोकप्रिय था। उस दौरान में योरोप में एक और गीत शिल्प और गायनशैली प्रचलित थी जिसे आम बोलचाल में ‘थर्डक्लास’ गीत कहा जाता था। यह तीसरे दर्जे का गीत अपने कथ्य को ले कर तीसरे दर्जे का नहीं था बल्कि इसे इसलिए तीसरे दर्जे का माना जाता था क्यों कि इस पर थकाहारा श्रमिक वर्ग मदिरालय के प्रांगण में इसकी धुन पर नाचता था और अपनी थकान को मनोरंजन की दिशा में मोड़ देता था। ‘‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’’ के प्रथम खंड की प्रस्तावना लिखते हुए विनीत मोहन औदिच्य ने साॅनेट की परिभाषा दी है साॅनेट के इटैलियन जन्मस्थान को स्वीकार करते हैं। वे लिखते हैं-‘‘सोनेट की व्युत्पत्ति इटैलियन भाषा के ‘सोनेटो’ से हुई जिसका अर्थ है नन्हीं-सी संगीतमयी ध्वनि। मध्यकालीन इटली में विकसित यह काव्य विधा मानवीय भावनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट वाह सिद्ध हुई और अपनी अत्यंत लोकप्रियता के चलते शताब्दियों की यात्रा हुई सम्पूर्ण विश्व में फैल गई।’’
आंग्ल साॅनेट को समझने की दिशा में पुस्तक के प्रथम खंड की प्रस्तावना बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें साॅनेट की परिभाषा, इसके आरम्भिक कवियों की जानकारी तथा विधा के प्रकार का भी उल्लेख किया गया है। लेखक के अनुसार ‘‘संरचना के आधार पर साॅनेट विधा के पांच प्रकार कहे गए हैं जो निम्नानुसार हैं- 1-पैट्रार्कन साॅनेट 2-स्पेंसरियन साॅनेट 3-शैक्सपिरियन साॅनेट 4-मिल्टोनिक साॅनेट व 5-समकालीन साॅनेट।’’
साॅनेट के योरोपियन परंपरा के प्रतिनिधि कवियों का उल्लेख करते हुए अपने द्वारा संपादित एवं अनूदित प्रतीची खंड के बारे में लिखा है कि-‘‘इस संग्रह के भाग पश्चिमी काल खंड प्रतीची में अधिसंख्य साॅनेट 1886 में प्रकाशित विलियम शार्प के ‘साॅनेट्स आफॅ दिस सेंचुरी’ से चयनित किए गए हैं। एलीजाबेथ काल की सोलहवीं शताब्दी से 21 वीं शताब्दी के उत्तर आधुनिक काल तक के प्रतिनिधि 46 आंग्ल भाषा कवियों की विविध संरचनाओं से युक्त 67 साॅनेट को अनूदित किया गया है जो भिन्न-भिन्न कालखंडों में अपने निहित सौंदर्य व सार्वभौमिकता के फलस्वरूप कालजयी सिद्ध हुए अस्तु देशकाल की सीमा से परे लोकप्रिय भी।’’
इस प्रथम खंड में कालक्रमानुसार एडमंड स्पेंसर, सैमुएल डेनियल, माइकेल ड्राइटन, विलियम शेक्सपियर, जाॅन डन, जाॅन पायने, जाॅन मिल्टन, विलियम वर्ड्सवर्थ, सैमुअल टेलर कालरिज, जाॅन होब्गेन, चाल्र्स स्ट्रांग, ओब्रे डि वियर जूनियर, जाॅन कीट्स, हार्टले कालरिज, थामस हुड, ऐलीजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग, लार्ड हाउटन, हेनरी एलीसन, विलियम फ्रीलेंड, फ्रेडरिक लाकर, मैथ्यू अर्नाल्ड, सिडनी डोबेल, दांते गैब्रियल रोसेट्टी, ऐलेक्जेंडर स्मिथ, क्रिस्टीना रेजेट्टी, जाॅन विलियम इंचबोल्ड, थियोडोर वाट्स, रिचर्ड वाटसन डिक्सन, अल्फ्रेउ आस्टिन, एल्गरनान चाल्र्स स्विनबर्न, विल्फ्रेड स्केवन ब्लंट, आर.ए. थोर्पे, जाॅन एडिंगटन साइमंड्स, अर्नेस्ट मायर्स, ए. मेरी एफ. रोबिंसन, मार्क आन्द्रे राफालोविच, राबर्ट लारेंस बिनयोन, राबर्ट फ्रास्ट, हरबर्ट ई क्लार्क, जोसेफ एलिस, जाॅन टोड हंटर, क्लोड मैके, एडना सेंट विंसेंट मिल्ले, वेंडी कोप, लोर्ना डेविस तथा इवान मैंटिक के साॅनेट्स अनूदित कर के प्रस्तुत किए गए हैं। यह क्रम और चयन साॅनेट की विषयवस्तु के विकास को समझने में अत्यंत सहयोगी होगा। उदाहरण के लिए एडमंड स्पेंसर (1552-1599) का स्पेंसरियन साॅनेट की पंक्तियां देखिए -
रेत पर लिखा मैंने उसका नामएक दिन हाथ से
परंतु बहा कर ले गई उसे अचानक तीव्र लहरें
दूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर से
फिर से अपना ले गईं अपना शिकार पीड़ा की भंवरें।
एक उदाहरण वर्तमान कवि इवान मैंटिक के साॅनेट का। इवान मैंटिक सासायटी आॅफ क्लासिकल पोइट्स के सह संस्थापक एवं अध्यक्ष सोसायटी के जर्नल और वेबसाईट के मुख्य संपादक हैं। वे इतिहास को खंगालते हुए लिखते हैं-
ये एक यहूदी के ही हैं,पहने हुए पदत्राण पुराने
जो गए हैं चटक, भाग कर कई मील चलने के बाद
वृक्ष के तने सी बढ़ी ये है उस दास की सशक्त टांगे
जिसने क्रूरता से पीट कर मारे जाने तक किया श्रम अबाध।
पुस्तक का दूसरा भाग है ‘‘प्राची’’ यानी पूर्व। इस भाग का प्रस्तावना लेखन, संपादन तथा अनुवाद अनिमा दास ने किया है। अपनी प्रस्तावना में अनिमा दास ने ओड़िया साॅनेट्स का इतिहास एवं प्रवृत्तियों की विस्तुत चर्चा की है। वे लिखती है-‘‘गवेषक डाॅ. क्षेत्रवासी नायक की सूचना के अनुसार 1872 में श्री रुद्रनारायण पट्टनायक ‘राम’ शीर्षक से सर्वप्रथम साॅनेट लिखने का उद्यम किया था किंतु सफल नहीं हो सके। 1872 में प्रकाशित ‘कविता मंजरी’ संकलन में श्री गोपाल वल्लभ दास ‘उपेंद्रभंज’ ‘वनमल्ली’ एवं गोलाप (गुलाब) आदि कुछ साॅनेट संकलित किए थे किंतु इन सभी में साॅनेट की सूक्ष्म सत्ता के अभाव के कारण इन कवि द्वय को ओड़िया साॅनेट के आद्यसृष्टा नहीं माना गया।’’ लेखिका के अनुसार ओड़िया साॅनेट का प्रारंभिक काल सन् 1870 से माना जाता है। ओडिया साॅनेट के चार काल खंड लेखिका ने निर्धारित किए हैं- प्रारंभिक काल, मध्यकाल, नूतन कविता एवं ओड़िया साॅनेट तथा 21 वीं सदी के ओड़िया साॅनेट जिसे ओड़िया साॅनेट का सुवर्णमय काल कहा जाता है।
‘‘प्राची’’ खंड भक्तकवि मधुसूदन राओ (1853-1912) के साॅनेट से आरंभ होता है। इसके बाद कालक्रमानुसार साधुचरण राव, व्यासकवि फ़कीर मोहन सेनापति, स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर, पल्लीकवि नंदकिशोर बल, कविशेखर चिंतामणि महांति, उत्कलमणि गोपबंधु दास, पद्मचरण पट्टनायक, लक्ष्मीकांत महापात्र, कुंतला कुमारी साबत, गोदावरिश महापात्र, वैकुण्ठनाथ पट्टनायक, पद्मश्री डाॅ. मायाधर मानसिंह, पद्मश्री राधामोहन गडनायक, पद्मश्री सच्चिदानंद राउतराय, कुंजबिहारी दाश, कृष्णचंद्र त्रिपाठी, गुरुप्रसाद महांति, पद्मभूषण रमाकांत रथ, चिंतामणि बेहेरा, बिभुदत्त मिश्र, सौभाग्य कुमार मिश्र, सत्यनारायण नंद, बनज देवी, गिरिजा कुमार बलियारसिंह, सुरेश पड़िरा, सत्य पट्टनायक, वीणापाणि पंडा तथा लक्ष्मीकांत पाढ़ी के साॅनेट्स दिए गए हैं। इस खंड से भी आदि और अद्यतन साॅनेट उदाहरण के लिए चुनते हुए पहले मधुसूदन राओ के साॅनेट की कुछ पंक्तियां देखिए-
जाना कहां मुझे, छिपना कहां, किस संगोपन में
किसी गृह में अथवा सागर में किंवा स्तीर्ण गगन में
दस दिशाओं में अथवा तमिस्त्रा के सघन तमस में
लोकारण्य में किंवा विजन में वा आभामय दिवस में?
कवयित्री वीणापाणि पंडा (जन्म 1958) के साॅनेट की यह चंद पंक्तियां वर्तमान ओड़िया साॅनेट की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं-
यदि मुझे मार्ग के अंतिम छोर से लौट कर आना पड़े
यदि आ जाऊं मत्स्य मुंह में, आंचल की गांठ से खुल कर
सटीक ठिकाने का पत्र मैं, यदि पहुंच जाऊं भूले ठिकाने पर
मैं हूं हारी हुई, द्यूतक्रीड़ा की गोटी, उस दिन समझ जाना।
‘‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’’ आंग्ल और ओड़िया साॅनेट को जानने और समझने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जा सकती है। वैसे इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है- अनुवाद की सावधानी। क्योंकि इसमें साॅनेट्स का मात्र शाब्दिक अनुवाद नहीं किया गया है अपितु काव्यात्मक अनुवाद किया गया है। दोनो अनुवादकों ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि मूल साॅनेट की गयात्मकता एवं प्रवाह बाधित न हो। उनके इस श्रम के लिए दोनों अनुवादक बधाई के पात्र हैं। एक बात और जो उल्लेखनीय है कि दोनों अनुवादक स्वयं कवि हैं, साॅनेट लिखते हैं किंतु 21 वीं सदी के साॅनेटकारों के रूप में उन्होंने अपने साॅनेट पुस्तक में शामिल नहीं किए हैं। यह लोभसंवरण बहुधा कवियों से नहीं हो पाता हैं।
चूंकि पुस्तक प्रकाशन अहिन्दी भाषी क्षेत्र में हुआ है अतः कुछ शाब्दिक त्रुटियां हैं जो खटकती हैं। जैसे ‘ड’ के स्थान पर ’ड़’ का मुद्रण तथा ‘कवयित्री’ के स्थान पर ‘कवियत्री’ का मुद्रण होना। किंतु पुस्तक की सामग्री के महत्व को देखते हुए उसे अनदेखा किया जा सकता है। इस शोधात्मक पुस्तक के लिए और आंग्ल और ओड़िया के साॅनेट्स पर सम्वेत चर्चा की हिन्दी में संभवतः यह पहली पुस्तक लिखे जाने के लिए विनीत मोहन औदिच्य तथा अनिमा दास बधाई की पात्र हैं। आशा है कि यह दोनों लेखक एवं अनुवादक द्वय इसके बाद हिन्दी साॅनेट पर भी इसी तरह की पुस्तक संपादित करेंगे।
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हार्दिक धन्यवाद Mam... एक उत्कृष्ट समीक्षा हेतु 🙏🌹🌹🌹
ReplyDeleteअनिमा दास