Dr (Miss) Sharad Singh |
आज 22.08.2021 को "नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में मेरा व्यंग्य लेख "महात्म्य 'प' अक्षर का" प्रकाशित हुआ है...आप भी पढ़िए और आनंद लीजिए....
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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व्यंग्य
महात्म्य 'प' अक्षर का
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक दिन परमपिता परमेश्वर की कृपा से मेरे ज्ञानचक्षु ठीक उसी प्रकार से खुल गए जैसे ओपनर से खोले जाने पर शीतल पेय की बोतल का ढक्कन खुल जाता है-"खट्". हुआ कुछ यूं कि एक प्रोफेसर साहब ने दुखी होते हुए मुझसे चर्चा की कि आजकल भाषा के क्षेत्र में कोई नया शोध कार्य हो ही नहीं रहा है. बस, उनकी यह बात मुझे लग गई और मेरी अल्प बुद्धि का नन्हा-सा अश्व शोध के नूतन विषय की ओर खड़दम-खड़दम दौड़ने लगा.
जैसा कि मैंने पहले ही निवेदन किया कि अचानक मेरी बुद्धि के पट खुल गए. बुद्धि के पट खुलते ही मुझे वर्णमाला का प,फ,ब,भ,म शिरीज़ का प्रथम अक्षर "प" जगमगाता हुआ दिखाई दिया. मैंने उसी समय तय कर लिया कि यही है वह अक्षर जिसके बाल की खाल मुझे संवारनी है. वैसे, मैं यह दावे से कह सकती हूं कि मेरे इस शोध कार्य का लोहा उद्भट विद्वानों को भी मानना पड़ेगा. खैर, लोहा न सही टीन-टप्पर ही मान लें तो भी चलेगा.
मेरा एक दावा यह भी है कि "प" अक्षर से अधिक दमदार अक्षर पूरी वर्णमाला में नहीं मिलेगा. आखिर, पूरा जीवन "प" अक्षर में समाया हुआ है. विश्वास न हो तो देखिए कि "प" से होता है "प्रसव" अर्थात जीवन का प्रारंभ और यहीं से शुरू हो जाता है "प" का सिलसिला. फिर तो पाप, पापा, पापी सबसे पाला पड़ता है. "प" से प्रेमी-प्रेमिका बनते हैं. "प" से प्यार बनता है. प्रेमी-प्रेमिका और प्यार के त्रिकोण से पागलपन उत्पन्न होता है. इस पागलपन में पहले जमाने में प्रेमपत्रों की आवाजाही शुरू हो जाती थी। प्रेमपत्रों की इस आवाजाही में भी "प" अक्षर की अहम भूमिका होती थी. यानी कि पोस्टमैन की भूमिका. प्रेमपत्रों का सिलसिला प्रेमी-प्रेमिका के हृदय में प्रेम-परायणता को जगा देता था. वह कभी-कभी उनके मधुर रिश्ते को पति-पत्नी के रूप में सिरे चढ़ा कर परिवार रूपी झमेले का निर्माण करा डालता था. जी हां "प" से ही बनते हैं पति-पत्नी.
"प" से ही पिता, पुत्र और पुत्री की रचना होती है. पुत्र और पुत्री के युवा होते ही मामला फिर वहीं जा पहुंचता है. पिता को पुत्र की प्रेमिका और पुत्री के प्रेमी से पीड़ा होती है और परेशानियों का एक पुराना सिलसिला दोहराया जाता है. जब पिता अपना पुराना जमाना भूल कर विलेन की भूमिका अपना लेता है तो नूतन पर पुरातन की गाज गिरती है और शहजादे सलीम जैसे प्रेमी को अनारकली जैसी प्रेमिका से बिछड़ना पड़ता है.
"प" अक्षर की महिमा प्रेम-प्यार की परिधि से बाहर भी है. जी हां, इस "प" अक्षर से प्रधानमंत्री शब्द बनता है तो पहरेदार भी बनता है. पत्रकार बनता है तो प्राध्यापक भी बनता है. जहां तक साहित्यकार का प्रश्न है तो उसका संबंध "प" अक्षर से प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता किंतु गहराई से देखने पर पता चलता है कि साहित्यकारों का समूचा जीवन पा के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है, गोया साहित्यकार पतंगा हो और "प" अक्षर जलती हुई शमा हो.
जी हां, यदि साहित्यकार कवि हो तो पद्य ही उसके जीवन का आधार होगा. वैसे चाहे गद्यकार हो या पद्यकार उसके सृजन में प्रेरणा की भूमिका अहम होती है. प्रेरणा के बिना वह सृजन कर ही नहीं सकता. ठीक वैसे ही जैसे अदालत में पक्षकार की भूमिका अहम होती है. अगर मुकद्दमे में पक्षकार और पैरवी करने वाला ना हो तो मुकदमा काहे का. बहरहाल, बात चल रही थी साहित्यकारों की. तो साहित्य जगत में पुरस्कार, पद, और पीठ का वर्चस्व देखने को मिलता है. यहां पीठ का मतलब है शोध संस्थान वाले पीठ से. शोध पीठ पर पीठासीन होना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती है. जो पीठासीन नहीं हो पाते, पैंतरेबाज़ी से काम चलाते हैं।
"प" अक्षर से अनेक मुहावरे और कहावतें में प्रचलित है. जैसे पूत के पांव पालने में नजर आते हैं, पानी पानी होना, पीछे पड़ना या पैर उखड़ना वगैरह- वगैरह। लगे हाथ यह भी स्मरण कर लिया जाए कि "प" अक्षर का रिश्ता मारामारी से भी है. जी हां, "प" अक्षर से पहलवानी बनती है और पहलवानी में भी धोबी पछाड़, घोड़ा पछाड़ और ना जाने कौन-कौन से पछाड़ होते हैं. "प" से पता न हो तो पत्र नहीं पहुंच सकता, "प" से पुण्य ना हो तो स्वर्ग नहीं पहुंचा जा सकता और "प" से पाप न हो तो नर्क के दर्शन नहीं हो सकते. वैसे ही परलोक की यात्रा शुरू होती है "प" से. अर्थात प्रसव से परलोक तक की यात्रा "प" के सहारे ही होती है.
है न, परंपरा से हटकर एक नया शोध. तो "प" अक्षर के बारे में इतना शोध कार्य करके मैंने तो पुण्य कमा लिया, अब अगर कोई और अक्षर प्रेमी इस शोध कार्य को आगे बढ़ा कर पुण्य कमाना चाहता हो तो शीघ्र कार्य प्रारंभ कर दें. साथ ही, विश्वास रखे कि अक्षरों के इतिहास के पन्ने पर उसका नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा. परमात्मा शोधार्थी के मार्ग को प्रशस्त करें. आमीन!!!
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(नवभारत में प्रकाशित, 22.08.2021)
जय हो ....... प्रथम दृष्टि में "प " का महात्म्य समझने के लिए पूरा प्रयास कर डाला . पाया गया कि प्रारम्भ ज़ोरदार है ....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मजेदार लेखन
ReplyDeleteवाह रोचक लेख:)
ReplyDeleteपल भर भी पलकें नहीं झपकने देने वाली पाण्डित्यपूर्ण पंक्तियाँ😊!
ReplyDeleteपरमानंद की अनुभूति । बहुत सुंदर प-प्रपंच ।
ReplyDeleteप अक्षर का महात्म्य!!!!
ReplyDeleteवाकई दमदार....
लाजवाब।