Tuesday, December 7, 2021

पुस्तक समीक्षा | अभिव्यक्ति की गहनता को प्रस्तुत करती काव्यात्मकता | समीक्षक - डॉ शरद सिंह

प्रस्तुत है आज 07.12. 2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवयित्री अनिमा दास के काव्य संग्रह "शिशिर के शतदल" की समीक्षा... 
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
अभिव्यक्ति की गहनता को प्रस्तुत करती काव्यात्मकता   
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - शिशिर के शतदल
कवयित्री        - अनिमा दास
प्रकाशक     - सर्व भाषा ट्रस्ट, जे-49,स्ट्रीट नं.38, राजापुरी, मेन रोड,उत्तम नगर, नई दिल्ली-59
मूल्य        - 300/-
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साहित्य, विभिन्न भाषाओं के मध्य की दीवार गिराने में सक्षम होता है। कवयित्री अनिमा दास की मातृभाषा ओड़िया है, उनकी काव्यशैली पाश्चात्य सोनेट है और काव्य की अभिव्यक्ति की भाषा हिंदी। इस त्रिवेणी का सौंदर्य ‘‘शिशिर के शतदल’’ सोनेट संग्रह में देखा जा सकता है। यह मूल रूप से अनिमा दास का मौलिक सोनेट संग्रह है। इससे पूर्व वे ‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’ के नाम से प्रकाशित पुस्तक में हिंदी सोनेटीयर डॉ. विनीत मोहन औदीच्य के साथ सम्वेत रूप में ओड़िया सोनेट के अनुवाद प्रस्तुत कर चुकी हैं। अनिमा दास ने  सोनेट शिल्प को बहुत बारीकी से ग्रहण किया है। उनके सोनेट पाश्चात्य सोनेट शिल्प के मानकों पर खरे उतरते हैं। इसके साथ ही हिंदी और ओड़िया में लिखे जा रहे सोनेट्स के पासंग भी उत्कृष्ट ठहरते हैं। अनिमा दास में हिंदी भाषा को लेकर अद्वितीय उत्साह दिखाई देता है। वे अपने सोनेट के लिए जिस हिंदी का प्रयोग करती है वह (जयशंकर) प्रसाद-काव्य की परंपरा की हिंदी कही जा सकती है। उनके सोनेट में अनुप्रास अलंकार की भी अद्भुत छटा देखने को मिलती है। वर्तमान में इतनी शुद्ध तत्सम शब्दों से युक्त हिंदी का प्रयोग कम ही देखने को मिलता है। इतनी सुंदर हिंदी भाषा का प्रयोग करते हुए सोनेट लिखने के लिए अहिंदी भाषी अनीमा दास बधाई के पात्र हैं।
अनिमा दास एक संवेदनशील कवयित्री हैं। वे अपनी सोनेट में मानवीय पीड़ा और प्रकृति के परिदृश्य में समानता को बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती हैं उदाहरण के लिए उनका एक सोनेट है ‘प्रश्न’। इसकी कुछ पंक्तियां देखें - 
न करो प्रश्न जीर्ण शाखाओं से, मुक्त झरता उस मौन सुमन से
किस दिशा से चला था पवन, किस दिशा में उड़ी थी इच्छाएं 
न करो प्रश्न उन श्रृंग को जिन्हें कर स्पर्श, मेघ बरसता गगन से 
कैसे अपनी घनीभूत पीड़ाओं से बहा रहा था वह अनिच्छाएं।

न प्रश्न करो कि कैसे ज्वालामुखी सी मैं, जली थी निर्मम धूप में
मरीचिका का अस्तित्व एवं दीर्घ परछाई की काया, वह मैं थी
मैं थी वह ऋतु जो बारंबार आती रहती थी मल्लिका के रूप में 
शुष्क तप्त मृदा में शून्यता की जो प्रलंबित छाया... वह मैं थी

भारतीय दर्शन एवं काव्य दोनों को महाभारत कालीन कृष्ण के चरित्र ने बहुत गहरे प्रभावित किया है। हिंदी साहित्य में भक्ति काल में कृष्ण पर केंद्रित अनेक काव्य रचनाएं लिखी गईं। आज भी कृष्ण काव्यसृजन के विषय के रूप में श्रृंगार रस के तारतम्य में विशेष स्थान रखते हैं, चाहे वह संयोग श्रृंगार हो अथवा वियोग श्रृंगार। कवयित्री अनिमा दास ने भी नीलवर्णी कृष्ण को अपने सोनेट में सहेजा है। जैसा कि भक्त कवयित्री मीराबाई ने लिखा है ‘‘मैं तो सांवरे के रंग राची’’ अर्थात मैं तो कृष्ण के रंग में रंग गई हूं। यही भाव अनिमा दास के सोनेट में देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए ‘‘मोहना’’ शीर्षक सोनेट की यह पंक्तियां देखिए जिसमें वे अनुप्रास अलंकार का अति सुंदर प्रयोग करते हुए कृष्ण से प्रश्न करती है तथा उलाहना देती हैं-
सुनो, हे नील मधुकर ! नील स्वप्न के नील मेघावरि 
नील पराग के नील कणों में नीला आभा की सुरसरि 
मेरे नील दृगों के, नींद अश्रुओं  की  नील क्षीण धारा
हे, नील कृष्ण कहो क्यों नील प्रेम से मेरा गेह संवारा

प्रकृति में भावनाओं की अनुभूति को स्थापित करते हुए कवयित्री ने एक ऐसा भाव संसार रचा है जिसमें प्रेम की भावना अपने उत्कृष्ट स्वरूप में परिलक्षित होती है। ‘‘मेघ मल्हार’’ शीर्षक सोनेट में नायिका अपने प्रिय द्वारा मेघ मल्हार गाए जाने पर प्रकृति पर उसके गायन के प्रभाव को बता रही है-
तुम गा रहे हो मेघ मल्हार प्रियवर, वन पक्षी रो रहे
उमड़ रही है उन्मादी नदी प्रियवर, दृग हैं  सो रहे 
झर रही है अंतरिक्षीय मधु प्रियवर, मन मोर अधीर
वृक्षवासी  हैं  आल्हाादित  प्रियवर, इरा बहाए नीर 
हृद - शाखाएं पल्लवित प्रियवर, शब्दों में अलंकार 
तीर्ण देह पर शांत स्पर्श  प्रियवर, अधरों में झंकार 
वक्ष अंबर का भीगता प्रियवर, आशाओं में है गमक 
तिमिर की परछाई गहन प्रियवर, मुख पर है दमक 

यहां यह चर्चा संदर्भगत् है कि जहां कैल्टिक सोनेट श्रमिकवर्ग के उन्मुक्त, उच्श्रृंखल प्रेम का बखान करता है, वहीं शेक्सपीयर के सोनेट में प्रेम एक साहित्यिक गंभीरता के साथ प्रकट होता है। सोनेट नं. 18 में शेक्सपीयर सभ्रांत ढंग से प्रश्न करते हैं - ‘‘क्या मैं तुम्हारी तुलना गर्मी के दिन से करूं? ’’ और सोनेट नं. 73 तक आते-आते वे प्रकृति को जीवन की घटनाओं से और अधिक जोड़ कर देखते हैं -‘‘मुझ में तुम ऐसे दिन का धुंधलका देखते हो/जैसे सूर्यास्त के बाद पश्चिम में छा जाता है धुंधलका।’’ इस तरह शेक्सपीयर के सोनेट का स्मरण करते हुए अनिमा के सोनेट पढ़ते समय यह बात तय करना कठिन नहीं रह जाती है कि उन्होंने शेक्सपीयर अथवा आंग्ल सोनेट के शिल्प और भाषा की रूपांकारी छवि को हिन्दी में पिरोया है। यह अनुवाद नहीं है और न ही प्रतिकृति है, वरन् शेक्सपीयर से प्रभावित सोनेट क्रम में मौलिकता और भारतीय बिम्बों के साथ वे प्रस्तुत होती हैं। 
प्रेम में एक स्थिति वह भी आ जाती है जब विरह भी प्रेम की सम्पूर्णता का प्रतीक बन जाता है। प्रेम के इस चर्मोत्कर्ष को कवयित्री ने ‘‘विरह से प्रेम’’ शीर्षक सोनेट में व्याख्यायित किया है-
तुम्हें प्रेम से प्रेम है असीम, मुझे विरह से प्रगाढ़ आत्मीयता
तुम्हें मिलती नदी से गहराई, मुझे मिलती ताल से निगूढ़ता
है मुझे मिलती स्वप्न तरंग, इस शून्य आकाश के विस्तारण से
तुम्हें है मिलते दीप्त अंभसार, मधुर पयोधर के आवरण से

अनिमा दास ने पौराणिक और महाकाव्यों के पात्रों को भी अपने सोनेट में स्थान दिया है। उनका एक सोनेट है ‘‘चित्रांगदा’’। ‘महाभारत’ महाकाव्य के अनुसार, चित्रांगदा मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री थी। जब अर्जुन इन्द्रप्रस्थ की ओर से मैत्री संदेश ले कर मणिपुर पहुंचे तब वहां की राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन पर मोहित हो गई। जब चित्रांगदा ने अर्जुन के सामने अपना प्रेम प्रस्ताव रखा तो अर्जुन ने उसे ठुकरा दिया जिससे चित्रांगदा को अत्यंत पीड़ा हुई और उसने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया। तब महाराज चित्रवाहन और कृष्ण के समझाने पर अर्जुन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर चित्रांगदा से विवाह किया। किन्तु कुछ माह उपरांत अर्जुन नागलोक पहुंचे तो उनकी पत्नी नागकन्या उलूपी ने द्वेष भावना से चित्रांगदा के विरुद्ध अर्जुन को भड़का दिया। अर्जुन ने निराधार संदेह के कारणवश चित्रांगदा को उस समय त्याग दिया जब वह गर्भवती थी। तब चित्रांगदा ने ठान लिया की वो इस अपमान का बदला अर्जुन की पराजय से लेगी और अर्जुन को यह पराजय अपने पुत्र के हाथों स्वीकार करनी होगी। इस प्रकार चित्रांगदा ‘‘महाभारत’’ की विरहणी, अपमानित और प्रतिशोध की भावना परिपूर्ण पात्र है। अनिमा ने चित्रांगदा का विरह पक्ष अपनी कविता में प्रस्तुत किया है। ये पंक्तियां देखिए-
तुम्हारे विक्षिप्त हृदय का, मैं हूं एकमात्र भग्नांश
स्पंदन में मेरे, अभिगुंजित क्षताक्त कल्पित स्वन
मेरे विस्मृत आयुकाल का, मैं हूं मात्र एक क्षणांश
तुम्हारे अधरों में है, चिरजीवित मृदुल स्वप्न ध्वन
मैं हूं महार्णव के वक्ष पर दिग्भ्रांत तरंगित प्रवाह
हूं मैं उद्विग्न निम्नगा की उद्वेलित उर्मिल मौनता
हे चित्रांगदा! मैं आग्नेय शिला का तीव्र अंतर्दाह
हूं इस विदीर्ण मन की अश्रुपूर्ण सिक्त निर्जनता 

संग्रह के अंतिम सोनेट के रूप में है संग्रह का शीर्षक सोनेट ‘‘शिशिर के शतदल’’। इसकी कुछ पंक्तियां देखें जिनमें अतीत और वर्तमान के संधिस्थल पर ‘‘विधुर दिवस’’ जैसी उपमा से विरह की पीड़ा को दृष्टव्य बना दिया गया है। साथ ही कवयित्री अतीत में काग़ज़ की भांति लिखने के काम आने वाले भुर्जपत्र (भोजपत्र) को वर्तमान की करुण कथा का आधार पटल कहती हुईं मौन निवेदन को अवधूत की संज्ञा देती हैं-
अतीत की लिखी वर्तमान के भुर्जपत्र पर वह करुण कथा
हो रही नादित श्रृंगशीर्ष पर, कर रही स्पर्श श्यामल व्यथा
विधुर दिवस को अब विश्रांति कहां? कहां है प्रेयसी निशि?
अवधूत बना मौन निवेदन यहां अन्वेषी बना  विरही शशि

निःसंदेह यह बारम्बार प्रशंसनीय है कि अनिमा दास को मातृभाषा ओड़िया के साथ ही हिन्दी का गहन ज्ञान है। वे संस्कृतनिष्ठ परिष्कृत हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाती हैं। किन्तु यह भी विचारणीय है कि आज जब युवा पीढ़ी इंग्लिश और हिंग्लिश के द्वंद्व में फंसी हुई है, उसके लिए संस्कृत निष्ठ हिन्दी समझ पाना कठिन है। शब्दकोश का सहारा ले कर साहित्य पढ़ने का न तो उसमें धैर्य है और न उसके पास समय है। अतः संग्रह में संग्रहीत सुंदर सोनेट्स को पढ़ने और समझने में युवाओं तथा साहित्य रसिक आमपाठकों को तनिक असुविधा का अनुभव हो सकता है। वहीं भाषाई परिष्कार और भाषाई श्रेष्ठता का अनुभव करने वाले पाठकों के लिए यह संग्रह अनुपम सिद्ध होगा। फिर भी सोनेट विधा जो हिन्दी साहित्य में पर्याप्त स्थान अभी भी नहीं बना सकी है, उसे लोकप्रिय बनाने के लिए भाषाई क्लीष्टता से बच कर चलना होगा। लेकिन इस तथ्य को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है कि हिन्दी भाषा और साहित्य में अहिन्दी भाषी अनिमा दास का मौलिक सोनेट संग्रह के रूप में योगदान रेखांकित किए जाने योग्य है। 
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