Friday, December 31, 2021

चर्चा प्लस | वर्ष 2021: चलता रहा जीवन, बिछड़ते रहे लोग | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस

वर्ष 2021: चलता रहा जीवन, बिछड़ते रहे लोग
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
जिस तरह भोपाल गैस त्रासदी की घटना को याद कर के हम उदास हो जाते हैं, उसी तरह सन् 2021 को याद करके आंखें छलका करेंगी। कोरोना की दूसरी लहर ने मौत का जो तांडव दिखाया उसे कोई भुला नहीं सकेगा। औसतन हर परिवार ने अपना कोई न कोई खोया। जाड़ा, गर्मी, बरसात झेलते किसानों के आंदोलन को इतिहास के पन्ने से हटाया नहीं जा सकेगा। साहित्य, शिक्षा, प्रकाशन, छोटी दूकानें आदि सभी को नुकसान उठाना पड़ा। हां, इस निर्दयी वर्ष के विदाकाल में लड़कियों की विवाह आयु का एक निर्णय सुखद कहा जा सकता है। 


वर्ष 2021... इतिहास के पन्नों पर एक त्रासद वर्ष के रूप में हमेशा दर्ज़ रहेगा। यह वर्ष हर स्तर पर कठोर रहा। इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर ने जो कहर बरपा उसने सैंकड़ों घर उजाड़ दिए। किसी ने मां को खोया तो किसी ने पिता को, तो किसी ने माता-पिता दोनों को एक-साथ खो दिया। कई बच्चे ऐसे थे जो कोरोना के कारण अनाथ हो गए। इस पीड़ा से मुझे भी गुज़रना पड़ा। मैंने भी कोरोना की दूसरी लहर में अपनी मां की मृत्यु के मात्र तेरह दिन बाद ही अपनी मां समान दीदी डाॅ. वर्षा सिंह को खो दिया। मैं अपनी इस पीड़ा को इस लिए साझा कर रही हूं क्योंकि उस दौर में यह सिर्फ़ मेरी पीड़ा नहीं थी, मेरे जैसे उन सभी लोगों की पीड़ा थी जिनके किसी अपने को कोरोना संक्रमण हो गया था। मेरी मां डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ जो स्वयं एक प्रतिष्ठित साहित्यकार थीं और 93 वर्ष की आयु में भी रुचि ले कर अख़बार पढ़ती थी। उस दिन भी अख़बार पढ़ रही थीं। अचानक उनके जबड़े में दर्द हुआ। अप्रैल के महीने में ठंड लगने का तो सवाल ही नहीं था। दर्द का कारण जब तक हम लोग समझ पाते तब तक वे बेहोश हो गईं। एक पडोसी की मदद से दीदी उन्हें तत्काल डाॅैक्टर के पास ले गईं। डाॅक्टर ने बताया कि मां को जबड़े में दर्द हार्ट अटैक के कारण हुआ था। उन्होंने दवाएं दी और दूसरी सुबह तक परिणाम देखने की सलाह दी। वह दिन और रात दोनों ठीक से गुज़र गए लेकिन दूसरी सुबह फिर अटैक आया। दीदी फिर उन्हें डाॅैक्टर के पास ले गईं। डाॅक्टर ने उन्हें एक निजी अस्पताल में तत्काल भर्ती कराने की सलाह दी। दीदी ने मुझसे पूछा। मैंने कहा कि और कोई विकल्प नहीं है हमारे पास। मां को हमने एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। दुर्भाग्यवश दो दिन बाद ही स्पष्ट हो गया कि मां चंद दिनों की मेहमान हैं। मैं खाना वगैरह की व्यवस्था देखने घर आ जाती थी और वर्षा दीदी लगभग बीस-बीस घंटे मां के पास अस्पताल में रहीं। तब हमें नहीं पता था कि हम काल के किस कुचक्र में फंस चुके हैं। अंततः अस्पताल के डाॅक्टर ने कह दिया कि अब मां को घर ले जाएं ताकि वे अपनी शेष सांसे अपने घर में ले सकें। मां उस अवस्था में भी चैतन्य थीं। उन्हें जब हमने बताया कि अब डिस्चार्ज हो कर घर चलना है तो वे बहुत खुश हुईं। हम सच उन्हें नहीं बता सकते थे लेकिन उन्हें खुश देख कर हम दोनों बहनों ने भी अपने मन को समझा लिया।
   
घर आने के दूसरे दिन 20 अप्रैल 2021 को सुबह 9 बजे मां ने इस संसार को छोड़ दिया। उस दिन हम दोनों बहनों को अनाथ हो जाने का अहसास हुआ। हम दोनों एक-दूसरे को ढाढस बंधाती रहीं। दीदी व्यथित थीं। थकी-थकी थीं। मैं तो दो साल मां से दूर कमल सिंह मामा के पास भी रही थी लेकिन दीदी कभी मां से अलग नहीं रही थीं। कमल सिंह मामा को हम लोग 2017 में ही खो चुके थे। अब मां भी चली गईं। लेकिन इससे भी बड़ा घात हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहा था जिससे हम बेखबर थे। दीदी और मुझे कोरोना संक्रमण हो चुका था। लक्षण कोई नहीं थे। अतः हम दोनों को इस बात का अहसास ही नहीं था। 28 अप्रैल की रात ढाई बजे दीदी ने मुझे जगाया और बताया कि उन्हें दिल की धड़कन में कुछ गड़बड़ लग रही है। घबराहट हो रही है। मैं यह सोच कर घबरा गई कि कहीं दीदी को भी हार्ट अटैक तो नहीं आया है? उन्हें पानी पिलाया, पंखा तेज किया, फिर बाहर ले जा कर बिठाया। जैसे-तैसे सुबह चार बजने को आए। इस बीच मैंने एक निजी अस्पताल में एम्बुलेंस के लिए फोन किया। उन्होंने बताया कि एक भी एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है। मैंने फिर उन्हीं पड़ोसी को फोन किया जिन्होंने मां के लिए मदद की थी। वे तत्काल आए और उन्होंने अपनी कार में दीदी को बिठाया। मैं दीदी को ले कर उस निजी अस्पताल पहुंची। वहां उन लोगों ने यह तो नहीं बताया कि दीदी को क्या हुआ है, मगर यह जरूर कहा कि इन्हें आॅक्सीजन की जरूरत है और हमारे पास आॅक्सीजन नहीं है। इन्हें दूसरे असपताल ले जाएं। हम दीदी को दूसरे अस्पताल ले कर गए। वहां भी आॅक्सीजन नहीं थी। लेकिन वहां के गार्ड ने बताया कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में कल ही दो टैंकर आॅक्सीजन के आए हैं, आप वहीं जाइए। हम तत्काल बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की ओर भागे। दीदी की हालत बिगड़ती जा रही थी। यद्यपि वे मेरी खातिर हिम्मत बनाए हुए थीं। वहां पहुंच कर जैसे-तैसे सुबह साढ़े सात बजे दीदी को एडमिट किया गया।

वह दौर ऐसा था कि कोई किसी की मदद करने को तैयार नहीं था। कोरोना के दूसरे दौर का सबसे घातक समय था। ऐसे विषम समय में मेरे उन पड़ोसी ने मानवता दिखाते हुए मेरी मदद की लेकिन इसके आगे की स्थिति मुझे अकेले ही झेलनी थी। परिचितों के कहने पर मैंने भी कोविड टेस्ट कराया और मेरा भी रिजल्ट पाॅजिटिव आया। दीदी वहां कोविड वार्ड में थीं जहां उनसे कोई नहीं मिल सकता था और इधर मुझे 14 दिन के लिए होम आईसोलेशन में हो जाना पड़ा। घर के भीतर दीदी के लिए छटपटाते हुए मैंने अपने हर परिचित से मदद की प्रार्थना की। मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे हर परिचित ने हरसंभव मेरी और दीदी की मदद की। मगर मेरा दुर्भाग्य कि 02 मई शाम साढ़े पांच बजे मोबाईल से मेरी दीदी से बात हुई। हमेशा बुलंद और जोशीलेपन से भरी रहने वाली उनकी आवाज़ इतनी डूबी हुई थी कि मेरा कलेजा कांप गया। फिर भी मेरा मन किसी अनिष्ट की कल्पना के लिए तैयार नहीं था। मुझे पूरा विश्वास था कि दीदी ठीक हो कर घर लौट आएंगी। लेकिन 03 मई को रात 2 बजे दीदी कोरोना से हार गईं। मेरा होम आईसोलेशन का समय जारी था। दीदी चली गई थीं। कोई मुझसे मिलने भी नहीं आ सकता था। सूना घर काटने को दौड़ता था। इससे भी बढ़ कर यह पीड़ा मन को कचोटती थी कि मैं दीदी के अंतिम पलों में उनके साथ नहीं थी। मेरी जैसी पीड़ा से दुनिया भर में हज़ारों लोग गुज़रे होंगे। वे सब क्या वर्ष 2021 को कभी भूल सकेंगे? नहीं! मैं भी नहीं भूल सकूंगी। मेरे जैसे हज़ारों लोगों की ज़िदगी बदल दी इस 2021 ने। अपनों को छीन लिया, अपने-पराए का भेद समझा दिया और यह भी कि अगर ज़िन्दगी से पलायन नहीं करना है तो दिल पत्थर का करना होगा।

2021 में साहित्य और पत्रकारिता जगत के अनेक बड़े हस्ताक्षर काल का ग्रास बन गए जिनमें मेरी मंा डाॅ. विद्यावती ‘‘मालविका’’ और मेरी दीदी डाॅ. वर्षा सिंह तो थी हीं, इनके अलावा नरेन्द्र कोहली, प्रभु जोशी, जहीर कुरैशी, प्रेम प्रभाकर, कुंवर बेचैन, रोहित सरदाना, कांति कुमार जैन, रेवती रमण, शांति जैन, पद्मावती दुआ, विनोद दुआ, डाॅ. महेश तिवारी आदि कई अपने और कई परिचित। विनोद दुआ से तो एक बार भेंट हुई थी लेकिन उनकी पत्नी पद्मावती दुआ से मिल नहीं पाई। वैसे वे मेरी फेसबुक फ्रेंड थीं। वे एक ‘‘साड़ी आईकाॅन’’ थीं। साड़ी को उसके मैंचिंग की एक्सेसरीज़ के साथ जोड़ कर उन्होंने साड़ी को एक अलग ही ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। अनेक महिलाएं उनकी ‘‘काॅपी’’ करती थीं।

कोरोना काल के दौरान न तो बुकस्टाॅल्स खुले, न पुस्तक मेले लगे और न लिटरेचर फेस्टिवल हुए। सिर्फ़ इंटरनेट की आभासीय दुनिया थी जिसके सहारे मन तो बहलाया जा सकता था लेकिन पेट नहीं भरा जा सकता था। आपदाएं हर किसी को अवसर नहीं देती हैं। अनेक छोटे व्यापारियों और दूकानदारों को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। उस  परसड़क के किनारे ठेला लगाने वाले रेहड़ीवालों पर क्या गुज़री उसे बयान कर पाना कठिन है। ‘‘वर्क फ्राॅम होम’’ सिर्फ़ वे कर पा रहे थे जिनके ‘‘वर्क’’ अपने ‘होम’’ से हो सकते थे, सब इतने सौभाग्यशाली नहीं थे। किसान घर बैठ कर खेती नहीं कर सकता था। उस पर खाद और बीज उसे दूकानों से ही मिलने थे जो प्रायः बंद थीं। आंदोलनकारी किसानों के लिए तो वर्ष 2021 यूं भी भारी रहा। हर विपरीत मौसम का सामना किया, कटाक्ष सहे, निंदा सही, देशद्रोही होने के आरोप के कटघरे तक पहुंचा दिए गए, हिंसा-अहिंसा के बीच भी फंसे, फिर भी वे डटे रहे। राहत की बात यह है कि इस निर्दयी साल की विदा का समय आते-आते देर से सही मगर सरकार और किसानों के बीच एक संवाद-सेतु बनता दिखा और आंदोलन पीड़ा तो थमी।

हां, 2021 के विदा के समय एक अच्छी बात यह हुई कि केन्द्र सरकार ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर लड़कों के बराबर 21 साल करने का फैसला किया है। केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कों और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एक समान, यानी 21 साल करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब इस विधेयक को कानून का रूप देने के लिए वर्तमान कानून में संशोधन किया जाएगा। यह नया कानून लागू हुआ तो सभी धर्मों और वर्गों में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र बदल जाएगी। वर्तमान कानूनी प्रावधान के तहत लड़कों के विवाह लिए न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है।
मगर यह साल जाते-जाते भी एक दहशत दे कर जा रहा है कोरोना के नए वेरिएंट के रूप में। कोरोना के ओमिक्रोन वेरिएंट को लेकर सबसे चिंता वाली बात ये है कि इसके लक्षण सामने नहीं आ रहे। देश में ओमिक्रोन के जिन 183 केस पर शोध किया गया, उनमें से 70 फीसदी संक्रमितों में इसके कोई लक्षण नहीं सामने आए थे। दूसरी लहर में मेरी दीदी और मेरे सहित अनेक संक्रमितों के साथ यही हुआ था। ‘‘नाॅन सिम्टोमेटिक’’ होना ही इसका सबसे घातक पक्ष है। बस, यही दुआ है कि आने वाले वर्ष 2022 में किसी को कोई दुख न सहना पड़े। नया वर्ष सभी के लिए सुखद रहे और स्वास्थ्यकारक रहे।
विदा निर्दयी 2021!!!    
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