Tuesday, November 26, 2024

पुस्तक समीक्षा | अंतःकरण के अविरल भावों से सिंचित काव्य | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 26.11.2024 को 'आचरण' में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई रमेश चन्द्र चौकसे जी के काव्य संग्रह की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा  
अंतःकरण के अविरल भावों से सिंचित काव्य
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - गति ही जीवन है
कवि           - रमेश चन्द्र चौकसे
प्रकाशक     - काॅम्पटेक पब्लिकेशन हाउस, भादरा, राजस्थान
मूल्य        - 149/-
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   ‘‘रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यं’’ - अर्थात सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है। पंडित जगन्नाथ का यह कथन काव्य की उत्पत्ति के भावात्मक पक्ष को सुंदर ढंग से व्याख्यायित करता है। हृदय कोमल भावनाओं को जन्म देता है और कोमल भावनाएं उन संवेदनाओं को जाग्रत करती हैं जिनसे काव्य की धारा प्रवाहित होती है। निःसंदेह कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है। कविता के दो पक्ष होते हैं। आन्तरिक यानी भाव पक्ष और बाह्य यानी कला पक्ष। दोनों ही पक्ष महत्व रखते हैं। किन्तु भावपक्ष की सघनता कलापक्ष के अनगढ़ होने पर भी अपना प्रभाव स्थापित कर लेती है। अनगढ़ प्रायः वे कविताएं हैं जो अनायास हृदय से उठ कर मानस की राह पकड़ती हैं और शब्दबद्ध हो कर काव्य का स्वरूप ले लेती हैं। ऐसी कविताओं से लोकमानस का निकट संबंध होता है। जैसे सहज भाव से ईश्वर की प्रार्थना, घर, परिवार, संबंधों एवं लोक की चिंता आदि। ऐसी रचनाएं जग कल्याण की भावना ले कर चलती हैं। तभी तो पं. अंबिकादत्त व्यास ने कहा है कि ‘‘लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु’’ - अर्थात लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है।

81 वर्षीय कवि रमेश चन्द्र चौकसे का प्रथम काव्य संग्रह ‘‘गति ही जीवन है’’ उनकी उन कविताओं की प्रस्तुति है जीवन से सीधा संवाद करती हैं। मानव जीवन में भक्ति का प्रथम स्थान है। मनुष्य जब प्रसन्न होता है तो ईश्वर को धन्यवाद देता है। मनुष्य जब दुखी होता है तो ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करता है। यहां तक कि ईश्वर को अपना मान कर उसे उलाहना भी दे देता है। आर. सी. चौकसे जी का यह प्रथम काव्य संग्रह है और इस संग्रह का आरम्भ उन्होंने देवी सरस्वती की वंदना से किया है-
हे विद्या की देवी, मां शारदे!
हे वीणावादिनी द्वार तुम्हारे हम खड़े
सिर पर रखो हाथ
दो इस अज्ञानी को विद्या का ज्ञान।
भक्ति मनुष्य के हृदय में विनम्रता के भाव लाती है। आर. सी. चौकसे जी के इस संग्रह में उनके द्वारा लिखित सरस्वती वंदना के अतिरिक्त गणपति वंदना, हनुमत कथा, वृंदावन की रासलीला, सांवरिया मुरलीधर प्यारे, भोले भंडारी आदि कई भक्ति रचनाएं हैं जिनमें उनके पौराणिक कथानकों के ज्ञान, ईश्वर के प्रति प्रेम तथा विनम्रता का अनुभव किया जा सकता है।

‘‘गति ही जीवन है’’ की कविताओं में मात्र भक्ति ही नहीं है, इनमें ज्ञान, आत्मा, कलियुग में हो रहे परिवर्तन, भारतीय नारी, नारी शक्ति, माता-पिता आदि विषयों को भी समाहित किया गया है। प्रकृति के तत्व भी कविताओं भी हैं। आर. सी. चौकसे जी का प्रकृति से प्रेम स्वाभाविक है क्योंकि उन्होंने अपनी सेवाएं वन विभाग को दीं तथा सहायक वनसंरक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
आर. सी. चौकसे ‘‘चरैवेति’’ के सूत्र को जीवन के लिए आश्यक मानते हैं। वे कहते हैं कि ‘‘गति ही जीवन है, जड़ता मृत्यु के समान है’’। वह कहावत भी है न कि जो सोवत है, वो खोवत है। कवि की ये पंक्तियां देखिए जिनमें कवि ने गतिमान एवं जाग्रत रहने का आह्वान किया हैं। मूलरूप से ये पंक्तियां उन युवाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जो बाज़ारवाद में उलझ कर अपने जीवन के मूल उद्देश्यों से भटक जाते हैं तथा समय निकल जाने पर पछतावा ही उनके हाथ आता है-
गति ही जीवन है, जड़ता मृत्यु समान
जागते रहो, अवसर पहचानो
आलस त्यागो संघर्ष करो
सफलता दौड़ी आएगी, सतत प्रयास से।
कवि आर. सी. चौकसे ने भारतीय नारी की सहनशीलता एवं समर्पण को रेखांकित करने के लिए अपनी कविताओं में ‘‘रामायण’’ और ‘‘महाभारत’’ के प्रसंगों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने ऋषिकाओं का भी स्मरण किया है। कवि ने जनकसुता अर्थात सीता के संघर्ष को प्रस्तुत करने के लिए ‘‘जनकसुता अवध की नारी’’ शीर्षक कविता में उस प्रसंग का वर्णन किया है जब वे श्रीराम के द्वारा त्याग दिए जाने पर वनक्षेत्र में रह कर लव और कुश का लालन-पालन करती हैं। लव-कुश अवध पहुंच कर माता सीता की दुखगाथा अवधवासियों को सुनाते हैं। इस कविता में प्रभावी दृश्यात्मकता है। कुछ पंक्तियां देखिए-
एक ऐसी अवध की नारी
और जनक सुता,
जमान पर सोए, लव-कुश को साथ सुलाए
ओखली मूसल से कूटे अन्न और चक्की चलाए
गााय पाले और दूध दुहे
प्रातः उठ सरोवर स्नान करे
पूजा अर्चना कर नित नेम गृहस्थी के सारे काम करे।
- इस कविता में कवि ने आरम्भ में ही जता दिया है कि सीता जनकसुता अर्थात राजकन्या हैं तथा अवध की नारी अर्थात अवधराज की वधू हैं। फिर भी उन्हें एक सामान्य स्त्री की भांति श्रम करते हुए अपने बच्चों का पालन-पोषण करना पड़ रहा है।

‘‘भारतीय नारी’’ कविता में भारतीय स्त्री की ‘‘ममता, कोमलता, विनम्रता तथा धर्म संस्कार’’ को वर्णित किया है। इसमें वे अनसुईया, सावित्री, दमयन्ती के स्त्रैण-तेजस्विता का उदाहरण देते हुए भरी सभा में द्रौपदी के अपमान का स्मरण भी करते हैं जहां स्वनामधन्य वीर योद्धा मूक दर्शक बने द्रौपदी के सम्मान पर प्रहार होते देखते रहते हैं। वह तो श्रीकृष्ण द्रौपदी की पुकार पर आकर उसके सम्मान की रक्षा करते हैं अन्यथा वीर कहलाने वाले पाण्डव भी शीश झुकाए जड़वत बैठे रहते हैं।
कवि ने ‘‘मां’’ कविता में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि ‘‘मां की ममता की देखो/नहीं है सीमा और मूल्यांकन। इस कविता में स्त्री के मातृत्व धारण करने से ले कर, प्रसव पीड़ा, रात-रात भर जाग कर शिशु की देखभाल करने तथा प्रथम शिक्षिका बन कर संतान को उचित संस्कार देने तक के विभिन्न चरणों को स्थान दिया गया है।
संग्रह में एक अत्यंत रोचक और अनूठी कविता है-‘‘सास बहू के रिश्ते’’। इसमें कवि ने उन टीवी धारावाहिक और फिल्म बनाने वालों को आड़े हाथों लिया है जो सास-बहू के पारस्परिक रिश्ते को षडयंत्र और शत्रुता में लिप्त दिखाते हैं और इस प्रकार समाज को गलत संदेश देते हैं। कवि का आग्रह है कि सास-बहू के आत्मीयतापूर्ण रिश्तों को दिखाने से अच्छी भावना का संचार होगा और परिवार में कटुता नहीं आएगी। इस कविता की विशेषता यह है कि कवि ने एक पद बहू की ओर से सास के समर्थन में लिखा है तो वहीं दूसरा पद सास की ओर से बहू के समर्थन में है।
उनको दो सास-बहू के
अच्छे संबंधों का पैगाम
मत फैलाओ गलत धारणा करके हमें बदनाम।
संग्रह में सामाजिक सरोकार की कई कविताएं हैं। ‘‘मिलावट और भ्रष्टाचार’’ एक लंबी कविता है। वहीं, ‘‘दास्तां दर्दे दिल की’’ और ‘‘गुलशन’’ जैसी कविताएं भी हैं जो मन की मधुर भावनाओं से सिक्त हैं।

संग्रह की कविताओं से गुज़रते हुए कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इनमें कला पक्ष का समुचित ध्यान नहीं रखा गया है। इसीलिए मैंने इन्हें पहले ही अनगढ़ काव्य कहा जिसमें सप्रयास कुछ भी नहीं है, जो भी है स्वाभाविक ढंग से अभिव्यक्त हुआ है। संग्रह की कविताओं को पढ़ कर ही पता चल जाता है कि ये कविताएं कविता लिखने के निमित्त से नहीं लिखी गई हैं अपितु भावनाओं को व्यक्त करने के निमित्त से लिखी गई हैं। जो भाव जिन शब्दों में, जिस प्रकार उपजा उसे ठीक उसी प्रकार व्यक्त कर दिया गया है। भक्तिमार्ग के व्यक्ति अनगढ़ का महत्व भली-भांति समझ सकते हैं। देवी-देवताओं की अनेक अनगढ़ प्रतिमाएं सिद्ध प्रतिमाओं की श्रेणी में मान्य रहती हैं और उनकी ख्याति भी दूर-दूर तक रहती है। उन प्रतिमाओं के प्रति भक्तों की निष्ठा भी अपरिमित होती है क्योंकि भक्ति का संबंध सदा सजीले आकार से नहीं होता है। भारतीय भक्ति परंपरा में तो निराकार ब्रह्म तक को पूजा जाता है। यदि आर. सी. चौकसे की कविताओं के भावपक्ष की गहराई को ध्यान में रख कर कविताओं का पठन किया जाए तो इनका चाक्षुष प्रभाव अनुभव किया जा सकता है।

संग्रह में एक बहुत महतवपूर्ण कविता है जिसकी यहां चर्चा करना मैं आवश्यक समझती हूं क्योंकि अतीत की नींव पर ही वर्तमान और वर्तमान की नींव पर भविष्य खड़ा होता है। हमारी भारतीय संस्कृति ज्ञान का अपरिमित भंडार है। किन्तु भौतिकतावाद की दौड़ में आज का युवा उस ज्ञान से दूर होता जा रहा है। कवि ने ‘‘वेदज्ञान’’ शीर्षक अपनी कविता में चारों वेदों के बारे में बहुत सरल और सुंदर ढंग से परिचय दिया है। जैसे अथर्ववेद के बारे में उन्होंने लिखा है-
अथर्ववेद कर्मवेद है
श्रद्धा भाव और विचार से
कर्म की प्रेरणा देता है
और होता है प्रशस्त
जीवन का उन्नति पथ।
कवि आर. सी. चौकसे का यह प्रथम काव्य संग्रह ‘‘गति ही जीवन है’’ स्वागत योग्य है। अंतःकरण के अविरल भावों से सिंचित उनकी कविताओं का रसास्वादन काव्यप्रेमियों को रुचिकर लगेगा।  
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