Saturday, July 2, 2016

चर्चा प्लस ... क्या हुआ था ‪‎श्यामा प्रसाद मुखर्जी‬ के साथ? ... - डॉ. ‪शरद सिंह‬

मेरा कॉलम  "चर्चा प्लस" "दैनिक सागर दिनकर" में (30. 06. 2016) .....
 

My Column Charcha Plus‬ in "Dainik Sagar Dinkar" .....








चर्चा प्लस 

        क्या हुआ था ‪‎श्यामा प्रसाद मुखर्जी‬ के साथ?

                                             - डॉ. शरद सिंह‬ 

डाॅ. अली मोहम्मद अैर डाॅ रामनाथ परिहार, एम डी की रिपोर्ट के आधार पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की सूचना 23 जून को कश्मीर सरकार द्वारा जारी की गई। इस सूचना के विपरीत नर्सिंगहोम में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों एवं अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों के अनुसार श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हालत बिगड़ने पर उन्हें एक इंजेक्शन लगाया गया था। जिसके बाद 2 बज कर 30 मिनट पर श्यामा प्रसाद जी की मृत्यु हो गई थी। जबकि शासकीय सूचना में मृत्यु का समय 3 बजकर 40 मिनट बताया गया था। इस तरह के तथ्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु को ले कर अनेक संदेहों को जन्म देते हैं।
 
सन् 1901 की 06 जुलाई को जन्मे डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने अध्ययनकाल से ही तत्कालीन शासन व्यवस्था में सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों के विशद् जानकार के रूप में समाज में अपना विशिष्ट स्थान अर्जित कर लिया था। डाॅ. मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। इसलिए उन्होंने सक्रिय राजनीति कुछ आदर्शों और सिद्धान्तों के साथ प्रारम्भ की। सार्वजनिक जीवन में पदार्पण करने के पश्चात् उन्होंने अपनी प्रखर विचारधारा से, सम्मेलनों, जनसमपर्क एवं सभाओं के माध्यम से, अपने ज्वलन्त उद्बोधनों से, जनता के मन में एक नयी ऊर्जा व नये प्राण का संचार किया। उनकी लोकप्रियता और उनकी ख्याति प्रतिदिन बढ़ती गयी। 

डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री वजीरे-आजम अर्थात् प्रधानमंत्री कहलाता था। संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में डाॅ. मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। वे जानते थे कि यदि आज एक राज्य पृथक्करण का रास्ता थाम लेगा तो अन्य प्रांतों में भी अलगाव की आग धधक उठेगी और देश का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि ‘‘या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।’’
उन्होंने तात्कालीन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ़्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
यहां प्रस्तुत है मेरी पुस्तक ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व: श्यामा प्रसाद मुखर्जी’’ के कुछ महत्वपूर्ण अंश।


  मृत्यु से जुड़े प्रश्न
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने साथियों सहित स्वयं जम्मू-कश्मीर जाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय, वैद्य गुरूदत्त, प्रो. बलराज मधोक तथा अन्य सहयोगियों से विचार विमर्श करने के उपरान्त 5 मार्च 1953 को पूरे देश में जम्मू-कश्मीर दिवस मनाने का आह्वान किया। जम्मू-कश्मीर की स्थिति का सही आकलन कर पाना कठिन था इसलिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तय कर लिया कि वे स्वयं जम्मू जाएंगे और स्वयं वहां की स्थिति का जायजा ले कर शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी नीति को समूचे देश के समक्ष उजागर करेंगे। उन्होंने जनसभाएं करते हुए अपनी यात्रा आरम्भ की। उन्हें भरपूर समर्थन मिलने लगा। जिससे घबरा कर उन्हें जम्मू से पहले ही रावी नदी के पुल पर गिरफ्तार कर 12 मई 1953 को लिया गया। 12 मई 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रीनगर में निशातबाग के समीप स्थित एक छोटे से बंगले में नज़रबंद कर दिया गया। नज़रबंदी के दौरान उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जाता था। 18 मई 1953 को उनके दाएं पैर में दर्द और हल्के ज्वर की अनुभूति उन्हें हुई। इसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता ही गया। 22 जून को चार बजे सुबह श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दिल का तेज दौरा पड़ा। वैद्य गुरुदत्त ने देखभाल की जिससे स्वास्थ्य में सुधार हुआ। किन्तु 23 जून की सुबह 4 बज कर 30 मिनट पर वैद्य गुरुदत्त को सूचना दी गई कि डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का प्रातः 3 बजकर 40 मिनट पर निधन हो चुका है। 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

डाॅ. अली मोहम्मद अैर डाॅ रामनाथ परिहार, एम डी की रिपोर्ट के आधार पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की सूचना 23 जून को कश्मीर सरकार द्वारा जारी की गई। इस सूचना के विपरीत नर्सिंगहोम में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों एवं अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों के अनुसार श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हालत बिगड़ने पर उन्हें एक इंजेक्शन लगाया गया था। जिसके बाद 2 बज कर 30 मिनट पर श्यामा प्रसाद जी की मृत्यु हो गई थी। जबकि शासकीय सूचना में मृत्यु का समय 3 बजकर 40 मिनट बताया गया था। इस तरह के तथ्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु को ले कर अनेक संदेहों को जन्म देते हैं।


वैद्य गुरुदत्त का संदेह
वैद्य गुरुदत्त जम्मू-कश्मीर की यात्रा में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ रहे। माधवपुर पोस्ट पर गिरफ़्तारी के समय उन्हें भी श्यामा प्रसाद जी के साथ नज़रबंद कर श्रीनगर में निशातबाग स्थित छोटे से काॅटेज में बनाई गई अस्थाई जेल के एक छोटे से कमरे में बंदी के रूप में रखा गया था। वैद्य गुरुदत्त सुविख्यात साहित्य साधक तथा आयुर्वेद के निष्णात वैद्य थे। वैद्य गुरुदत्त ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा था -‘‘जहां डाॅ. मुखर्जी को नज़रबंद रखा गया था, वहां डाॅ. मुखर्जी की स्थिति बिगड़ने के बावजूद उन्हें कोई डाॅक्टरी सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई थी। डाॅ. मुखर्जी द्वारा यह इच्छा प्रकट करने के बाद भी कि नज़रबंद साथियों को अस्पताल लाया जाए, उनके साथियों को तब तक कोई सूचना नहीं दी गई जब तक कि उनकी मृत्यु नहीं हो गई।’’

बैरिस्टर उमाशंकर त्रिवेदी का आरोप
बैरिस्टर उमाशंकर त्रिवेदी विधिवेत्ता एवं संसद सदस्य थे। उन्होंने डाॅ. मुखर्जी की नज़रबंदी को अवैध बताते हुए जम्मू-कश्मीर उच्चन्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण का मुकद्दमा दायर किया था। बैरिस्टर त्रिवेदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के एक दिन पूर्व 22 जून 1953 को अस्पताल में डाॅ. मुखर्जी से मुलाकात की थी। तब वे कमजोर होने के बावजूद प्रसन्नचित्त दिखाई दिए थे। श्यामा प्रसाद जी की मृत्यु के प्रति संदेहास्पद परिस्थितियों को लेकर उपजे संदेहों को लेकर अपने वक्तव्य में बैरिस्टर त्रिवेदी ने निम्नलिखित आरोप लगाए थे- ‘‘22 जून को प्रातः काल 4 बजे जब डाॅ. मुखर्जी को पहली बार हृदय पीड़ा हुई तब डाॅक्टरों द्वारा उन्हें पूर्णतया विश्राम करने का परामर्श नहीं दिया गया। उनकी बिगड़ती हालत को देखते हुए उनको सहयोगियों के आग्रह के बावजूद तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया और सात घंटे का बहुमूल्य समय नष्ट कर दिया गया। उनको एम्बुलेंस गाड़ी में नहीं बल्कि एक छोटी टैक्सी में बड़ी असुविधा के साथ अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में दाखिल होने के बाद भी उनका तात्कालिक उपचार नहीं किया गया। बीमारी की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया गया। जेल सुपरिंटेंडेंट से सुबह के समय ही डाॅ. मुखर्जी को अस्पताल पहुंचाए जाने हेतु आग्रह किया गया था किन्तु उन्होंने समय बरबाद कर दिया और सवा घंटे तक डाॅ. रैना से बातें करते रहे। डाॅ. मुखर्जी ने अपने दांए पैर के दर्द और ज्वर के समय कोलकाता के सुयोग्य डाॅक्टरों द्वारा दिए गए परामर्श के आधार पर उन्हें स्ट्रेप्टो माईसिन का इंजेक्शन नहीं लगाए जाने हेतु डाॅ. अली मोहम्मद से अनुरोध किया था। उनके अनुरोध एवं स्पष्ट विरोध के बावजूद उनके शारीरिक स्थिति की जांच किए बिना डाॅ. अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टो माईसिन का इंजेक्शन लगा दिया था।’’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदेहास्पद मृत्यु पर प्रश्न उठाते हुए जयप्रकाश नारायण ने मांग की थी कि - ‘‘मैं नहीं जानता कि प्रधानमंत्री के सामने कौन-से तथ्य पेश किए गए, जो कुछ तथ्य मेरी जानकारी में आए हैं, उनसे तो कुछ और ही निष्कर्ष निकलता है। मुझे ऐसा लगता है कि ऐसी राष्ट्रीय शोक की घटना के बाद भारत सरकार को चाहिए कि कम से कम इस सारे मामले की उचित एवं निष्पक्ष जांच की व्यवस्था करे। ’’ अटलबिहारी वाजपेयी ने भी शोक संतप्त हो कर कहा था कि -‘‘ डाॅ. मुखर्जी ने देश की अखण्डता की रक्षा के लिए भारत के मुकुट कश्मीर को भारत से अलग करने के षडयंत्र का पर्दाफाश करते हुए अपना बलिदान दिया। उनकी मृत्यु निश्चित ही संदिग्ध अवस्था में हुई है। इसकी जांच अवश्य ही कराई जानी चाहिए।’’ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु किसी को भी स्वाभाविक प्रतीत नहीं हो रही थी। हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता, सांसद तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अनन्य सहयोगी निमर्लचंद्र चटर्जी ने 18 सिम्बर 1953 को लोकसभा के सत्र में जांच की मांग रखी थी।


अविस्मरणीय योगदान
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी यदि चाहते तो बैरिस्टर अथवा किसी विश्वविद्यालय का कुलपति बन कर सुख-संपदा के साथ जीवन व्यतीत कर सकते थे। यदि वे चाहते तो जीवन संगिनी की मृत्यु होने पर दूसरा विवाह कर के सांसारिक सुखों का आनन्द ले सकते थे किन्तु वे संभवतः सुख और सम्पदा के उपभोग के लिए बने ही नहीं थे। सुख का अर्थ उनके लिए भौतिक सुख नहीं वरन् राष्ट्रप्रेम था। उन्होंने अखण्ड भारत का स्वप्न देखा और उसी स्वप्न को पूरा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। यह उन्हीं का प्रयास था कि समूचा बंगाल भारत से अलग नहीं हुआ। जम्मू-कश्मीर जो पृथक्करण के द्वार पर जा खड़ा हुआ था, डाॅ. मुखर्जी के आत्मोत्सर्ग से देश का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।

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