चिन्ताजनक है प्रेम का हिंसा की ओर बढ़ना
- डाॅ शरद सिंह
महाराष्ट्र के बीड जिले में दिवाली के दिन दिल दहला देने वाली घटना घटी जिसमें एक 22 वर्षीय युवती को उसके बॉयफ्रेंड ने एसिड और पेट्रोल से जलाने के बाद सड़क किनारे फेंक दिया। इस ख़बर ने सोचने को मज़बूर कर दिया है कि क्या प्रेम इतना हिंसात्मक रूप भी ले सकता है? विगत कुछ दशकों से एकतरफा प्रेम अथवा प्रेमिका से छुटकारे के लिए हिंसात्मक कदम उठाए जाने के समाचार अकसर पढ़ने को मिलने लगे हैं। प्रेम का इस तरह हिंसा की ओर बढ़ना चिंतनीय है।
जिसने भी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ पढ़ी है, उसे वह यह संवाद कभी नहीं भूल सकता कि कहानी का नायक लहना सिंह एक लड़की से पूछता है-‘तेरी कुड़माई हो गई?’ और वह लड़की ‘धत्’ कह कर शरमा जाती है। लड़की ने एक दिन ‘तेरी कुड़माई हो गई’ का उत्तर दे दिया कि ‘हंा, हो गई....!’ लहना विचलित हो गया। उस लड़की का विवाह जिससे हुआ, वह आगे चल कर सेना में सूबेदार बना और वह लड़की कहलाई सूबेदारनी। एक भरा-पूरा परिवार, वीर, साहसी पति, वैसा ही वीर, साहसी बेटा। आर्थिक सम्पन्नता। सामाजिक दृष्टि से सुखद पारिवारिक जीवन। वहीं एकतरफा प्रेम में डूबा लहना सिंह उस लड़की को कभी भुला नहीं सका। युद्ध में जाते समय जब लहना सूबेदार के घर उन्हें लेने गया तो सूबेदारनी ने ही उसे पहचाना और अनुरोध किया कि युद्ध में उसके पति यानी सूबेदार की रक्षा करना। लहना सिंह ने अपना वचन निभाया। लहना चाहता तो सूबेदार को मर जाने देता ओर सूबेदारनी से अपना बदला ले लेता। या फिर बहुत पहले ‘कुड़मई’ की ख़बर पाते ही आक्रामक हो उठता। लेकिन लहना ने कोई गलत कदम नहीं उठाया क्योंकि वह उस लड़की से सच्चा प्रेम कर बैठा था। प्रेम समर्पण मांगता है हिंसा या प्रतिकार नहीं।
आज के माहौल में लहना सिंह का समर्पित प्रेम मानो कहीं खो गया है। हाल ही में महाराष्ट्र के बीड जिले में दिवाली के दिन की दिल दहला देने वाली घटना ने यह सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या प्रेम मर कर हिंसा का रूप ले लेता है या फिर वह वस्तुतः प्रेम होता ही नहीं है? महाराष्ट्र के बीड जिले में एक 22 वर्षीय युवती को उसके बॉयफ्रेंड ने एसिड और पेट्रोल से जलाने के बाद सड़क किनारे फेंक दिया, जहां वह 12 घंटे से अधिक समय तक मौत से जूझती, तड़पती वह पड़ी रही। किसी ने उसे देखा और पुलिस को ख़बर की जिसके बाद उसे अस्पताल पहुंचाया गया। मौत से 16 घंटे तक जूझने के बाद उस युवती ने दम तोड़ दिया। यह सिर्फ़ एक घटना नहीं है। विगत कुछ दशको से ऐसी घटनाएं अकसर पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं। देश के हर प्रांत, हर जिले से एक न एक ऐसी घटना प्रकाश में आती रहती है। जून 2016 को रेवाड़ी में एक युवक ने एक तरफा प्यार के चलते युवती को चाकू मार घायल कर दिया था। मार्च 2017 मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक युवक ने एकतरफा प्रेम के चलते एक युवती की चाकू मार कर हत्या करने की कोशिश की। युवती को फौरन अस्पताल ले जाया गया। नवंबर 2018 गाजियाबाद के सिहानी गेट थाना क्षेत्र के मालीवाडा में प्रशांत नाम के 28 वर्षीय युवक ने एक 26 वर्षीय युवती पर चाकू से हमला कर दिया। आरोपी प्रेमी ने लड़की के घर पर ही लड़की का गला चाकू से बुरी तरह रेत दिया। ग्रेटर नोएडा के एक मॉल में शुक्रवार को एकतरफा प्रेम प्रसंग के मामले में एक व्यक्ति ने 18 वर्षीय युवती की चाकू घोंपकर हत्या कर दी और इसके बाद अपने आप को भी मारने की कोशिश की। नवंबर 2019 अलीगढ़ के इगलास कोतवाली क्षेत्र के गांव जारौठ में एकतरफा प्रेम में पागल प्रेमी ने युवती की घर में घुसकर बेरहमी से हत्या कर दी। 19 वर्षीय युवती की 15 दिसंबर को शादी होने वाली थी। शादी की खबर से युवक आहत था। उसने सोमवार दोपहर युवती के घर में घुसकर उसकी गर्दन, छाती और पेट में चाकू से प्रहार किए और भाग गया। जून 2020 कोतवाली थाना क्षेत्र में एक सिरफिरे आशिक ने एकतरफा प्रेम में पड़ोस में रहने वाली लड़की पर चाकू से हमला कर दिया। ओरछा गेट निवासी विनोद पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से एकतरफा प्यार करता था। साथ ही वह लड़की पर आये दिन शादी करने का दबाव बनाता था। जब ऐसा नहीं हो सका तो विनोद ने बुधवार की दोपहर लड़की पर चाकू से हमला कर दिया। जून 2020 दिल्ली से सटे गाजियाबाद के तुलसी निकेतन में एकतरफा प्यार में पागल एक सनकी प्रेमी ने एक युवती की चाकू से गोदकर निर्ममता से हत्या कर दी। आरोपी युवक उस युवती की कहीं और शादी तय होने से नाराज था।
ये तो मामले हैं एकतरफा प्रेम के हिंसात्मक परिणाम के। अब लिवइन में अपनी पार्टनर से पीछा छुड़ाने के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाएं जाने लगे हैं। जबकि लिवइन का आधार ही है प्रेम, समर्पण और विश्वास। लेकिन इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाओं को देखते हुए लगने लगा है मानो प्रेम से ये तीनों आधार तत्व लुप्त होते जा रहे हैं। ‘प्रेम’ एक जादुई शब्द है। कोई कहता है कि प्रेम एक अनभूति है तो कोई इसे भावनाओं का विषय मानता है। कहा तो यह भी जाता है कि प्रेम सोच-समझ कर नहीं किया जाता है। यदि सोच-समझ को प्रेम के साथ जोड़ दिया जाए तो लाभ-हानि का गणित भी साथ-साथ चलने लगता है। बहरहाल सच्चाई तो यही है कि प्रेम बदले में प्रेम ही चाहता है और इस प्रेम में कोई छोटा या बड़ा हो ही नहीं सकता है। जहां छोटे या बड़े की बात आती है, वहीं प्रेम का धागा चटकने लगता है। ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए।’ प्रेम सरलता, सहजता और स्निग्धता चाहता है, अहम की गंाठ नहीं। इसीलिए जब प्रेम किसी सामाजिक संबंध में ढल जाता है तो प्रेम करने वाले दो व्यक्तियों का पद स्वतः तय हो जाता है। स्त्री और पुरुष के बीच का वह प्रेम जिसमें देह भी शामिल हो पति-पत्नी का सामाजिक रूप लेता है। हजारी प्रसाद द्विवेद्वी लिखते हैं कि ‘प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्रा और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल मानते थे कि प्रेेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।’ कथा सम्राट प्रेमचंद ने लिखा है कि ‘मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृतबूंद है, जो मरे हुए भावों को ज़िन्दा करती है। यह ज़िन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक़ बरक़त है।’
बेशक़ प्रेम की परिभाषा। प्रेम का अर्थ, एक साथ महसूस की जाने वाली उन सभी भावनाओं से जुड़ा है, जो मजबूत लगाव, सम्मान, घ्बहुत कठिन है घनिष्ठता, आकर्षण और मोह से सम्बन्धित हैं। प्रेम होने पर परवाह करने और सुरक्षा प्रदान करने की गहरी भावना व्यक्ति के मन में सदैव बनी रहती है। प्रेम वह अहसास है जो लम्बे समय तक साथ देता है और एक लहर की तरह आकर चला नहीं जाता। तभी तो कबीर ने कहा है कि -
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, हुआ न पंडित कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
लेकिन वर्तमान परिदृश्य चिंता में डालने वाला है। प्रेम हिंसा की ओर बढ़ता दिखाई देने लगा है। इसके कारणों पर गौर करें तो तो मूल करण यही दिखाई देते हैं कि एक तो मानवीय मूल्यों में तेजी से कमी आती जा रही है और दूसरे, युवाओं में प्रेम संबंधों को ले कर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। ये दोनों कारण ‘‘प्रेम करने का भ्रम पालने वालों’’ को हिंसाात्मक बना देता है। असली प्रेम करने वाले कभी, किसी भी दशा में अपने प्रिय का अहित नहीं कर सकते हैं। इस हिंसात्मक आचरण के लिए कहीं न कहीं घरेलूहिंसा भी जिम्मेदार है। जो बच्चे अपने घर में स्त्रियों के प्रति हिंसात्मक रवैया देखते हैं, वही बच्चे बड़े हो कर स्त्रियों के प्रति हिंसात्मक कदम उठाने से नहीं हिचकते हैं। समाज से जुड़ा यह एक ऐसा विषय है जिसकी अनदेखी नहीं किया जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति प्रेम की पक्षधर है हिंसा की नहीं।
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(दैनिक सागर दिनकर में 18.11.2020 को प्रकाशित)
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प्रिय मीना भारद्वाज जी,
ReplyDeleteअत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे लेख का चयन चर्चा मंच हेतु किया।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
शुभकामनाओं सहित-
डाॅ शरद सिंह
सटीक व सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏
Deleteबेहतरीन....
ReplyDeleteविचारोत्तेजक आलेख
साधुवाद 🙏💐🙏
हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🙏🌷🙏
Deleteसटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🙏
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