दैनिक नयादौर में मेरा कॉलम "शून्यकाल"
कौन खरीदेगा पृथ्वी के लिए बीमा पॉलिसी ?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह हम जीवन बीमा पॉलिसी तो लेते हैं लेकिन जलवायु, पर्यावरण और पृथ्वी बीमा पॉलिसी कौन लेगा? क्या इनके बिना हमारे जीवन का कोई भविष्य है? हम अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए जीवन बीमा पॉलिसी लेते हैं। ये हमारे परिवार और हमें भविष्य में होने वाली किसी भी त्रासदी के मामले में वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं। हम कई तरह की सुरक्षा पॉलिसी लेकर चिंता मुक्त हो जाते हैं। लेकिन क्या कभी कोई पृथ्वी का बीमा कराने के बारे में सोचता है? पृथ्वी हमारा घर और दुनिया है। क्या हम पृथ्वी के बिना अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं? पृथ्वी के लिए बीमा पॉलिसी कौन लेगा?
जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, घर बीमा, वाहन बीमा, व्यवसाय बीमा, फसल बीमा - एक लम्बी सूची है बीमा पाॅलिसीज की। सबका उद्देश्य एक ही है, भावी आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना। इनमें से कुछ पाॅलिसीज ऐसी हैं जिसमें बीमें की निर्धारित राशि पाॅलिसी धारक की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी को मिलती है। पाॅलिसी बेचने वाले भी बड़े जीवट किस्म के इंसान होते हैं। वे हर तरह से समझाते हैं कि पाॅलिसी लेना क्यों जरूरी है? वे तब तक समझाते रहते हैं जब तक कि आप पाॅलिसी खरीद ने लें या फिर झुंझला कर उन्हें भगा न दें। आजकल तो मोबाइल और साशल मीडिया के जरिए भी ग्राहकों की घेराबंदी की जाती है। चंद मािह पहले मेरे साथ ऐसा ही कुछ हुआ। मैंने टीवी पर विज्ञापन देख कर, प्रभावित हो कर उस बीमा कंपनी को मैसेज किया कि मैं स्वास्थ्य बीमा की आपकी योजना की पाॅलिसी और उसके जोखिम के बारे में विस्तार से जानना चाहती हूं। कृपया मेरे शहर में स्थित अपने कार्यालय का पता मुझे सूचित करें। इसके बाद तो कंपनी की ओर से मैसेज, चैट और फोन की बाढ़ आ गई। मुझे पता चला कि वह एक ऑनलाईन कंपनी है। मेरे शहर में उसका कोई कार्यालय नहीं है। यह मेरे लिए असमंजस की बात थी। लेकिन अज्ञात स्थान पर बैठा उनका ऐजेंट तब तक मुझे रोज फोन कर के पाॅलिसी के लिए राजी करने की कोशिश करता रहा, जब तक कि मैंने उससे साफ शब्दों में कह नहीं दिया कि मुझे अब कुछ भी जानने में या आपकी पाॅलिसी के बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है। आखिर उसे भी समझ में आ गया और उसने मेरा पीछा छोड़ दिया। लेकिन उस दौरान मेरे मन में यह विचार आया कि हम अपनी, अपने परिवार और अपने सामानों की सुरक्षा या नुकसान की भरपाई के लिए बीमा पाॅलिसीज खरीद कर अपना भविष्य सुरक्षित महसूस करते हैं। क्या हमारा भविष्य सचमुच सुरक्षित है, असुरक्षित पृथ्वी पर?
हम मनुष्य पारिवारिक प्राणी हैं और समाज और समुदाय में रहते हैं। हम अपने परिवार और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए तरह-तरह की सुरक्षा बीमा पॉलिसियाँ खरीदते हैं, जैसे स्वास्थ्य सुरक्षा, गृह सुरक्षा, वाहन सुरक्षा, शिक्षा सुरक्षा, दुर्घटना बीमा आदि। तो क्यों न हम अपने घर की चिंता करें जो हम सभी मनुष्यों का सामूहिक घर है। जो हमारे जीवन का आधार है। यानी हमारी धरती। अब समय आ गया है कि हमें धरती के भविष्य की चिंता करनी होगी। धरती पर रहने वाले जीवों में हम मनुष्य खुद को दूसरे जीवों से ज्यादा समझदार इसलिए मानते हैं क्योंकि हमने अपने हुनर को विकसित कर लिया है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि दूसरे जीवों में बुद्धि नहीं है। एक चिड़िया जितना कुशलता से अपना घोंसला अकेले बुनती है, इंसान उतनी कुशलता से बुनाई नहीं कर पाता। उसे अपना घर बनाने के लिए भी टीमवर्क की जरूरत होती है। अगर डॉल्फिन इंसान की बातें समझ पाती हैं तो चींटियां न सिर्फ अपनी बस्तियां बनाती हैं बल्कि भविष्य के लिए भोजन भी जमा कर लेती हैं। तो हम कैसे कह सकते हैं कि उनमें बुद्धि नहीं है? लेकिन एक चीज है जो हम इंसानों को बाकी सभी जीवों से श्रेष्ठ साबित करती है, वो ये कि हम अपने लंबे अतीत को याद रख सकते हैं और लंबे भविष्य की भविष्यवाणी कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास तर्क करने की क्षमता है। इसीलिए आज हम आसानी से समझ सकते हैं कि जलवायु और पर्यावरण किस दौर से गुजर रहा है। आज हम जानते हैं कि धरती पर तापमान लगातार बढ़ रहा है। धरती को पराबैंगनी किरणों, सूर्य से निकलने वाले विकिरणों से बचाने वाली ओजोन परत खतरे में है। आज हम यह आकलन कर सकते हैं कि हमने अपने आधुनिक संसाधनों को पाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। अगर यह सच नहीं होता तो वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने के लिए आवाजें नहीं उठतीं। जर्मनी ने अपनी कोयला खदानों को स्थायी रूप से बंद करने की घोषणा नहीं करता।
पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन एक बहुत ही गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है। जलवायु परिवर्तन के कई कारण हैं, जो धरती पर चल रहे जीवन को कई तरह से प्रभावित करते हैं। जलवायु परिस्थितियों में व्यापक बदलाव के कारण कई पौधों और जानवरों की पूरी प्रजाति विलुप्त हो गई है और कई अन्य की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। कुछ क्षेत्रों में, कुछ प्रकार के पेड़ सामूहिक रूप से विलुप्त हो गए हैं और इस कारण वन क्षेत्र कम हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण जल प्रणाली पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और वर्षा अनियंत्रित हो रही है। ये सभी परिस्थितियां हमारे पर्यावरण में हो रहे असंतुलन को बढ़ावा दे रही हैं, जिसके कारण पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के दो कारण हैं- पहला प्राकृतिक कारण और दूसरा मानवीय कारण। प्राकृतिक कारणों में ग्लेशियरों का खिसकना, ज्वालामुखी का फटना और मानव जनित ग्रीनहाउस प्रभाव शामिल हैं, जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग भी कहते हैं। लेकिन सच तो यह है कि जिसे हम प्राकृतिक कारण मानते हैं, उसे भी हम इंसानों ने ही बढ़ाया है।
इसे इस तरह से देखा जा सकता है कि जब से मशीनों का इस्तेमाल अधिकतम सीमा तक होने लगा है, तब से प्राकृतिक संसाधनों पर खतरे बढ़ गए हैं। मशीनों को चलाने के लिए जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और तेल की आवश्यकता होती है। जीवाश्म ईंधन, कोयला और तेल को जलाने से बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है। जिससे मीथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं, जो वायुमंडल का तापमान बढ़ाती हैं और जिसे ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है।
जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी के वायुमंडल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। पेड़ पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड को संतुलित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और हमें ऑक्सीजन देते हैं। पर्यावरण के प्रभाव के कारण पेड़ों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं, जो हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। हमारे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण इन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। अगर यह जलवायु परिवर्तन इसी तरह जारी रहा, तो भविष्य में जीवन पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगा। यह बात किसी काल्पनिक कथा पर आधारित हाॅलीवुड की फिल्म जैसी लग सकती है लेकिन दुर्भाग्यवश यही सच है।
जलवायु परिवर्तन के कारण ऋतुओं पर बहुत बुरा असर हो रहा है। बारिश की स्थिति पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है, जिससे धरती पर कई जगहों पर सूखे और बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। कई लोगों को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कहीं कई लोगों के घर डूब रहे हैं, तो कहीं पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। लगातार तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलने का संकट पैदा हो रहा है, जो एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। वहीं कई देशों को भयंकर सूखे और गर्मी से भी जूझना पड़ रहा है।
इंसानों ने महज 120 साल में धरती की जलवायु बदल दी। यह निष्कर्ष 9 अगस्त 2021 को संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जारी छठी आकलन रिपोर्ट ‘‘जलवायु परिवर्तन 2021: भौतिक विज्ञान आधार’’ में निकाला गया। हमने अपनी धरती को बीमार कर दिया है। हमने उसे असंतुलित कर दिया है। अब हमारी धरती को स्वास्थ्य, दुर्घटना, भविष्य की सुरक्षा आदि सभी प्रकार की बीमा पॉलिसियों की आवश्यकता है। धरती के लिए बीमा पॉलिसियां कौन खरीदेगा? अगर कोई अरबपति खरीद भी ले, तो क्या धरती के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कोई बीमा दावेदार बच पाएगा? कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भविष्य में धरती को बचाना है तो जलवायु परिवर्तन की गति को धीमी कर के और पर्यावरण संतुलन द्वारा उसकी भावी सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी। याद रहे कि यह बीमा जीवनकाल का बीमा है क्योंकि यदि पृथ्वी को कुछ हुआ तो उसकी पाॅलिसी का भुगतान लेने वाला भी कोई नहीं बचेगा।
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