Thursday, June 20, 2024

बतकाव बिन्ना की | ई दुनियां में किसम- किसम की भौजी होत आएं | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
ई दुनियां में किसम-किसम की भौजी होत आएं
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘कल कऊं बाहरे गई रईं का? तुमाए इते अंदियारो दिखा रओ हतो।’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘अरे नईं! बाहरे की लाईट ऊसई बुझा रखी हती। जा गरमी में बिजली को बिल ऊंसई मुतको आ रओ। जो कऊं बाहरे जाती तो आप ओरन खों बता के जाती। काय से के आप आजकाल देखई रईं के भड़या हरें डोलत रैत आएं। औ जोन खों उने पकरो चाइए, बे धनी सलाहें देत फिरत आएं के अपनो खयाल खुदई राखो। सीटी औ डंडा घरे धरो। औ फेर जब सब कछू अपनई खों करने, तो जे पुलिस वारे काए के लाने आएं? मैंने भौजी से कई।
‘‘बे कछू नई कर रए। पैले तो रात खों गश्त होत्ती। इते अपन ओरन के दोरे से बी रात खों सायरन बजात भई पुलिस की गाड़ी कढ़त्ती। मनो अब तो कोऊ इते ढूंकत लौं नईयां। ऐसे में भड़या ने फिरहें तो को फिरहे?’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई भौजी!’’ मैंने कई। फेर मोरो ध्यान गओ के भैयाजी कछू सोच में डूबे हते। सो, मैंने पूछी,‘‘का सोच रए भैयाजी?’’
‘‘नईं, हम जा सोच रए, के काय सबरी भौजी तुमाई भौजी घांई होत आएं, ऐसो हमें तो नई लगत। काय से के भौजियन की खटपट सो सबई जानत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जां नंद बाई टेढ़ी होत हुइएं उते भौजियन खों सोई टेढ़ी होने परत हुइए। हमाई शरद बिन्ना तो नोनी आएं, सो हमाई अच्छी पटत आए।’’ भौजी बोल परीं।
‘‘आप सोई अच्छी आओ भौजी, जेई से तो आप मोय पोसात आओ।’’ मैंने सोई भौजी की तारीफ करी। औ जे झूठी तारीफ ने हती, सच्चे दिल से सच्ची तारीफ हती।
‘‘सुन लई! अब हम ओरन के बीच में ने परो।’’ भौजी ने हंस के भैयाजी से कई।
‘‘वैसे भैयाजी आप सांची कै रए आओ। भौजी सोई किसम-किसम की होत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘मने?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मने जे के कोनऊं भौजी मताई घांई रैत आएं तो कोनऊं ताने मार-मार के जीनो हराम करे रैत आएं। आप को तो पतोई हुइए के अपने महाकवि भूषण की किसां।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘महाकवि भूषण की किसां? कैसी किसां?’’ भौजी पूछन लगीं। हो सकत के उनको बा किसां ने पतो हुइए।
‘‘का रओ भौजी के भूषण खों कविताई करबे को खीबई शौक रओ। और कछू काम में उनको मन ने लगत्तो। सो उनकी भौजी उनको ठेन करत रैत्तीं। चाए दुफेर को खाना होय, खए रात को खाबे को टेम होय, बे खाना परसबे के संगे जे याद कराबो ने भूलत्तीं के भूषण ठलुआ आएं। एक दिनां का भओ के रात की बेरा भूषण औ उनके भैया खाबे बैठे। भौजी ने कुनमुनात भए भूषण के लाने सोई खाना परोसो। भूषण ने जैसई दार खाई, सो उनके मों से निकर परो के ईमें तो नमकई नइयां। जा सुन के भौजी बमकत भईं बोलीं के- जो तुमें दार में नोन चाउनें तो पैले कछू कमा के लाओ, फेर टोंकियो! जा सुन के भूषण खों भौतई बुरौ लगो। उनके थारी के पैर परे औ थारी परे सरका के अपनी भौजी से बोले के - अब हम आप खों तभई अपनो मों दिखाबी, जबे हमें कछू कमाई हो जैहे। जे कै के बे घर छोर के निकर परे। बे कई दिनां भटकत-भटकत एक गांव में पौंचे। रात हो चली रई, सो उन्ने सोची के मंदिर में सुस्ता लओ जाए। बे उतई बैठ गए औ टेम पास करबे के लाने अपनो नओ छंद बोलन लगे। उनको ध्यान ने गओ के मंदिर में कोऊ औ बी आ पौंचो आए औ उनको छंद सुन रओ आए। भूषण जब चुप भए तो बा मानुस उनसे बोलो के भौतई अच्छो छंद आए, तनक एक बार फेर के सुना देओ। भूषण बड़े खुस भए। उन्ने फेर के पूरो छंद सुना दओ। बे घनाक्षरी बनाउत्ते। बे जब छंद सुना के चुप भए तो बा मानुस फेर के छंद सुनाबे खों कैन लगो। ऐसो करत-करत ऊने पूरे अठारा बेर छंद सुन डारो। अखीर में भूषण झुंझलात भए बोले के अब हम थक गए, अब कल सुनाबी। बा मानुस बोलो के ठीक कई, कल आप हमाए घरे आ जइयो, उतई भोजन-पानी करियो औ छंद सुनाइयो। दूसरे दिनां भूषण जा सोच के बा मानुस के बताए पते पे पौंचे के चलो, एक टेम को खाबे को जुगाड़ तो होई जैहे। जब बे उते पौंचे औ उन्ने अच्छे उजियारे में बा मानुस खों देखो तो उने पतो परो के बा तो शिवाजी महाराज हते। शिवाजी महाराज ने उनको खीबईं सत्कार करो औ अठारा बार छंद सुने के बदले अठारा गांव की जागीरें भूषण को दे दईं औ अपने राज्य में रहबे के लाने कई। भूषण ने कई के पैले एक दार अपने घरे हो आएं फेर आ के इतई रैंहें। फेर भूषण ने भैया-भौजी के लाने मुतकी भेंटें खरीदीं औ संगे अठारा बैलगाड़ी में नमक रखाओ औ अपने गांव पौंचे। भौजी ने देखी तो उने अपनी गलती समझ परी। उने लगो के भूषण के भैया अब लौं इत्ती कमाई ने कर पाए जिती भूषण ने कविताई कर के कमा लई। उन्ने भूषण से माफी मांगी। सो एक जे टाईप की भौजी हतीं।’’ मैंने भौजी खों भूषण की किसां सुना डारी।
‘‘औ दूसरे टाईप की भौजी?’’ भैयाजी पूछन लगे।
‘‘दूसरे टाईप की भौजी को सबसे अच्छो उदाहरण आए अपने हरदौल दाऊ की भौजी को। बे तो हरदौल दाऊ खों अपनो लरका मानत्तीं औ हरदौल सोई अपनी भौजी खों मताई घांई मानत्ते, मगर हरदौल के भैया कई-सुनी में आबे वारे निकरे। बे लड़ाई लड़बे खों गए औ जबें लौटे तो हरदौल से जरबे वारन ने उनके भैया के कान भर दए के हरदौल औ उनकी भौजी के संबंध ठीक नइयां। उनके अकल के अंधरे भैया खुद ने देख सके के दोई के संबंध कैसे हते? उन्ने हरदौल की भौजी खों कई के जो हरदौल को अपनो लरका मानत आओ तो ऊको जहर वारी खीर अपने हाथन से खवा देओ। भौजी जा सुन के सनाका खा के रै गईं। जो बे जहर देतीं तो उनको बेटा घांई हरदौल के प्रान जाते, औ जो बे जहर न खवातीं तो दोई पे लांछन लगते। सो, हरदौल ने भौजी खों समझाई के आप सोच-संकोच ने करो, जे अपन ओरन की मर्यादा को सवाल आए। आप तो खीर परोसो, हम खुसी-खुसी खा लेबी। सो, मर्यादा के लाने भौजी ने दिल पे पत्थर धरो औ हरदौल खों खीर परोस दई। जा सोचो के ऐसो करत भए उनके ऊपरे का बीती हुइए। फेर जबे भौजी की बिटिया के ब्याओ को टेम आओ तो सबने कई के बिटिया को मामा भात देत आए। मनो तुमाई बिटिया को मामा तो तुमाए हाथ से खीर खा के मर चुको आए, अब को भात दैहे? सो भौजी बोलीं के बा हमाए लाने बेटा घांई रओ औ एक बेटा अपनी मताई को सिर ने झुकबे दैहे, बा आहे औ अपने हाथन से भात दैहे। सबने उनको मजाक उड़ाओ, मनो भौजी को हरदौल पे भरोसो हतो। बे जानत्तीं के भले हरदौल अब ई दुनिया में नइयां, मनो बे मामा को धरम निभाने आहें जरूर। सो, जेई भऔ। ठीक टेम पे भात परसो गओ, मनो परसबे वारो कोनऊं खों दिखो नईं। सबई खों मानने परो के हरदौल खुदई आ के अपने धरम निभा गए। सो एक ई टाईप की भौजी रईं जिनने अपने देवर पे अपने मोड़ा घांई सच्चो भरोसो करो।’’ मैंने भैया जी खों जा किसां याद कराई।
‘‘औ कोन टाईप की भौजी होत आएं? जे तो सब पुरानी भौजियां रईं।’’ भैयाजी खों किसां कहानी में मजो आन लगो रओ।          
‘‘सो नई भौजिन में एक टाईप की रैत आएं एकता कपूर के सीरियल टाईप भौजियां, जोन बरहमेस घर में षडयंत्र करत रैत आएं औ सबको जीनो हराम करत रैत आएं औ दूसरी टाईप की नई भौजी मोरी भौजी टाईप की भौजी होत आएं जो सबई को खयाल राखत आएं। औ जो कभऊं आप ज्यादई सयानपन दिखान लगत आओ तो आपके दिमाग को नट-बोल्ट कस देत आएं।’’ मैंने हंस के कई।
मोरी बात सुन के भैयाजी औ भौजी दोई हंसन लगे। अब ईनके अलावा औ कोऊ टाईप की भौजी होत होंय सो आप ओरे सोचियो! बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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