Thursday, June 27, 2024

बुंदेली छटा के प्रकाश में मंचित हुई फणीश्वरनाथ रेणु की 'पंचलाईट' कला समीक्षक - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हार्दिक धन्यवाद #दैनिकभास्कर मेरी नाट्य समीक्षा प्रकाशित करने के लिए 🙏
       कल शाम स्थानीय रवींद्र भवन में दिव्य रंग एकता वेलफ़ेयर फाउंडेशन ने रवींद्र भवन में “पंचलाइट - एक प्रेम कहानी” का मंचन किया गया। यह नाटक फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी "पंचलाइट" पर आधारित है। “पंचलाइट - एक प्रेम कहानी” नाटक की विशेषता यह थी कि उसे बिहार अंचल से उठाकर ठेठ बुंदेलखंड के परिवेश में ढाल दिया गया। बुंदेली कॉस्टयूम, बुंदेली मंच-सज्जा और बुंदेली संवाद। कहानी का एक बुंदेली परिवेश के नाटक के रूप में बहुत ही खूबसूरती से रूपांतरण किया गया। इसका बुंदेली रूपांतरण, परिकल्पना एवं निर्देशन  डॉ. अनामिका सागर ने किया तथा संगीत परिकल्पना थी डॉ अश्विनी सागर की।
     इस सफल मंचन के लिए Dr-Anamika Sagar एवं Ashwini Sagar तथा उनकी टीम को हार्दिक बधाई 💐
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पूरी समीक्षा यहां दे रही हूं....
नाट्य समीक्षा
बुंदेली छटा के प्रकाश में मंचित हुई फणीश्वरनाथ रेणु की 'पंचलाईट'
   कला समीक्षक - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

     दिव्य रंग एकता वेलफ़ेयर फाउंडेशन ने रवींद्र भवन में “पंचलाइट - एक प्रेम कहानी” का मंचन किया गया। यह नाटक फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी "पंचलाइट" पर आधारित है। रेणु हिंदी साहित्य में आंचलिक लेखन के लिए जाने जाते हैं और उनकी इस कहानी में भी बिहार के पूर्णिया अंचल का ग्रामीण परिवेश महसूस किया जा सकता है। यह कहानी उसे समय की है जब पंचलाइट अर्थात पेट्रोमैक्स का चलन शुरू ही हुआ था। इसे उपयोग में लाना सभी नहीं जानते थे। पेट्रोमैक्स को जलाने के दिलचस्प घटनाक्रम में परवान चढ़ता है एक युवा जोड़े का प्रेम। यह कहानी गांव में पाई जाने वाली मासूमियत और सामाजिक गौरव के महत्व के साथ ज्ञान कौशल के महत्व को भी स्थापित करती है।
    “पंचलाइट - एक प्रेम कहानी” नाटक की विशेषता यह रही कि उसे बिहार अंचल से उठाकर ठेठ बुंदेलखंड के परिवेश में सफलतापूर्वक ढाल दिया गया। बुंदेली कॉस्टयूम, बुंदेली पंचायत एवं खेत का इफेक्ट वाली मंच-सज्जा और बुंदेली संवाद। बिहारी कहानी का एक बुंदेली परिवेश के नाटक के रूप में बहुत ही खूबसूरती से रूपांतरण किया गया। इसका बुंदेली रूपांतरण, परिकल्पना एवं निर्देशन  डॉ. अनामिका सागर ने किया तथा संगीत परिकल्पना थी डॉ अश्विनी सागर की।
     कथानक कुछ यूं है कि गांव के एक युवक गोधन का मुनरी नामक लड़की से प्रेम है जिससे नाराज़ होकर पंचायत ने उसका बहिष्कार कर रखा है। एक दिन मेले से गांव वाले सार्वजनिक उपयोग के लिये पेट्रोमैक्स खरीद कर लाते हैं,  जिसे वे पंचलाइट या पंचलैट कहते हैं। पेट्रोमैक्स जालना गोधन के अलावा और कोई नहीं जानता था। यह बात सिर्फ मुनरी को पता थी। मुनरी उचित अवसर को भांपती हुई गांव वालों तक यह जानकारी पहुंचा देती है। गोधन पेट्रोमैक्स जला देता है जिसके एवज में गोधन का बहिष्कार समाप्त कर दिया जाता है और प्रेम एक बार फिर पाबंदियों से मुक्त हो कर खिल उठता है। रेणु की यह कहानी अधिकांश लोगों ने पढ़ी होगी किंतु इसका बुंदेली में मंचन देखना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है।         
          आशुतोष बनर्जी, अनुभव श्रीवास, ऋषिका, अमित, अनामिका, अश्विनी, सोनाली, सत्यम, विक्रम, सतीश, शिवम, गोलू ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया । हास्यपरक, चुटिले संवादों पर बार-बार ठहाके घूमते रहे और तालियां बजती रहीं। तारीख़ नगीना की मंच व्यवस्था कथानक के अनुरूप प्रभावी थी तथा  महबूब ख़ान के लाइट इफेक्ट ने हर दृश्य को जीवंत कर दिया। वहीं बैकस्टेज से अर्पित, विवेक,नरेश, अंकिता, विपिन, रामसिंह, एकता, मोनिका ने मंचन को बखूबी सपोर्ट दिया ।
     स्थानीय रवींद्र भवन में बुधवार शाम  बिहार अंचल के कथानक का रोचक बुंदेली नाट्य रूपांतर अपने-आप में एक दिलचस्प प्रस्तुति रही, जिसे प्रत्येक दर्शक ने जी भर कर सराहा। एक अच्छे नाटक का मंचन न केवल मन मोह लेता है, बल्कि अपने पीछे एक बड़ा संदेश भी छोड़ जाता है और यह नाटक अपने इस उद्देश्य में सफल रहा। 
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