Saturday, November 30, 2024

शून्यकाल | हमें कचरे से परहेज क्यों नहीं है? | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम -                        शून्यकाल
हमें कचरे से परहेज क्यों नहीं है?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                   
          पिछले दो-तीन दशक में हमारी जीवनशैली बहुत तेजी से बदली है। हम स्वयं को ग्लोबल मानने लगे हैं। विदेशों से हमारा संपर्क बढ़ गया है। हमारा रहन- सहन का मानक बदल गया है। अब हमें चारपहिया में चलना और जिम जाना अच्छा लगता है। हम अपने घरों को भी आधुनिक साज-सज्जा के साथ रखना पसंद करते हैं। नगरीय व्यवस्था में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन सुविधा बढ़ी है। फिर भी यत्र-तत्र कचरा फैला रहता है। जबकि कचरा बीमारियों को बढ़ावा देता है। फिर भी हमें कचरे से परहेज क्यों नहीं? यह विचारणीय है।
    अकसर लोग स्वच्छता को आधुनिकता की निशानी मानते हैं। गोया हमारे पूर्वजों को साफ-सुथरा रहना नहीं आता था। जबकि सच्चाई ये है कि उनमें सफाई को ले कर हमारी अपेक्षा अधिक सजगता थी। साफ-सुथरा सजा हुआ सलीकेदार घर गृहस्वामी की इज्जत में चार चांद लगा देता है। लेकिन यदि उस घर के बाहर मौजूद सड़क पर कचरा फैला हो तो उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराएंगे? स्वच्छ घर में रहने वाले गृहस्वामी से तो यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह सड़क के किनारे कचरा डालेगा। लेकिन फिर कौन हो सकता है उस कचरे का जिम्मेदार? इसका पता लगाने के लिए किसी प्राइवेट जासूस को किराए पर लेने की जरूरत नहीं है, सिर्फ हम अपने या परस्पर एक-दूसरे के आचरण पर नज़र डाल कर देखें तो हमें अपराधी मिल जाएगा।
अभी हाल ही में मैं अपने शहर के एक पार्क में घूमने गई। वहां मुझे बच्चों के झूले के पास कुरकुरे का एक खाली पैकेट पड़ा मिला। कुछ और घूमने पर एक बेंच के नीचे उसी तरह का एक और खाली पैकेट पड़ा दिखाई दिया। ठंड के कारण उस समय वहां कम लोग थे। बच्चे भी कम ही थे। और जो बच्चे थे वे अपने खेल में इतने मस्त थे कि लगता नहीं था कि उन्होंने कुरकुरे खाए होंगे। स्पष्ट था कि कोई बच्चा या बच्चे अपने माता-पिता के साथ आए होंगे। उस पार्क में तो कुरकुरे मिलते नहीं हैं अतः वे लोग बाहर से कुरकुरे ले कर आए होंगे। वहां उन्होंने दौड़ते, खेलते कुरकुरे खाए और खाली पैकेट यहां-वहां फेंक दिए। धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने अपने बच्चों को ऐसा करते हुए देख कर भी नहीं टोंका और खुद भी वे खाली पैकेट्स उठा कर डस्टबिन में नहीं डाले। कायदे से तो माता-पिता को चाहिए था कि वे बच्चों को तत्काल टोंकते कि ‘‘खाली पैकेट ऐसे मत फेंको! जा कर डस्टबिन में डालो!्’’ इससे बच्चों को शहर में स्वच्छता बनाए रखने का एक सबक मिलता। फिर भी यदि बच्चों से गलती हो ही गई थी तो माता-पिता स्वयं इतना कष्ट कर लेते कि खाली पैकेट्स उठा कर डस्टबिन में डाल देते। इससे वे छोटे नहीं हो जाते। बल्कि उन्हें देख कर बच्चे उनका अनुकरण करते और भविष्य में भी इस बात का ध्यान रखते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे दो खाली पैकेट्स पार्क की स्वच्छता को मुंह चिढ़ा रहे थे।
आप इसे मेरी व्यक्तिगत समस्या भी कह सकते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र में कचरा फैला देख कर मुझे पीड़ा होती है। मुझे लगता है कि हमारा शहर स्वच्छ रहे। हम अपने शहर की स्वच्छता का ध्यान उसी तरह रखें जैसे अपने घर की साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं। इस शहर में तीन खूबसूरत पुल हैं। इनमें एक एलीवेटेड काॅरीडोर है और शेष दो फ्लाईओवर हैं। छत्रसाल बसस्टेंड के निकट बने फ्लाईओवर की डिजाइन की खामी की मैं यहां चर्चा नहीं करूंगी लेकिन उसके ऊपर और उसके नीचे फैले कचरे को एक बार देखने के बाद भुलाया नहीं जा सकता है। फ्लाईओवर के ऊपर गाड़ियों की निरंतर आवाजाही के कारण खाली पाउच, पन्नियां आदि ही दिखाई पड़ती हैं जो उड़-उड़ कर इधर-उधर होती रहती हैं। वहीं फ्लाईओवर के नीचे की दशा के बारे में कुछ भी कहना बेकार लगता है। फल-सब्जियों के ठेलों के आस-पास कचरा फैला रहता है। पूरी बेतरतीबी के हालत वहां देखे जा सकते है। दूसरा फ्लाईओवर मकरोनिया में है। इसके एक छोर पर एक आलीशान होटल है और दूसरे छोर पर दूसरा आलीशान होटल। आस-पास कई शोरूम भी हैं। नीचे के क्षेत्र में एक बड़ा नामी हाॅस्पिटल है जिसके कारण फ्लाईओवर के नीचे अधिक कचरा नहीं रहता है। इस फ्लाईओवर के खंभों के आस-पास खाली पैकेट्स बिखरे हुए देखे जा सकते हैं। इसी तरह के पैकेट फ्लाईओवर के ऊपर भी सड़क के किनारे फैले रहते हैं। ये छोटे-छोटे पाउच और पैकेट्स स्वच्छता पर कचरे के कलंक का धब्बा लगाते रहते हैं। कुछ भी खा कर उसका खाली पैकेट या पाउच कहीं भी फेंक देने की आदत जिम्मेदार है इस तरह के कचरे की। 
एक बार मजेदार घटना घटी। मेरा भी मन हुआ कि मैं मकरोनिया फ्लाईओवर पर अपनी वीडियो बनाऊं, फोटो खिचाऊं। मैंने अपनी इच्छा पूरी की। फोटो खिंचाई। वीडियो बनाई। लेकिन जब उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने से पहले एक बार देखा तो मैंने अपना सिर पीट लिया। हर तस्वीर और वीडियो में मेरे पैरों के पास खाली पाउचेस का कचरा बिखरा दिखाई दे रहा था। स्टिल फोटो से तो एडिट कर के वह कचरा मिटना मुझसे बन गया लेकिन वीडियो की एडीटिंग मुझे नहीं आती अतः उसे मन मार कर कचरे सहित अपलोड करना पड़ा। मुझे यह सोच कर ही बुरा लग रहा था कि विदेश में बैठे मेरे सोशलमीडिया मित्र उन कचरों को देख कर भला क्या सोचेंगे? वे तो बेहद साफ-सुथरे माहौल में रहते हैं। उन्हें अटपटा लगेगा यह देख कर। लेकिन फिर मैंने सोचा कि सच्चाई पर पर्दा डालने से क्या होगा? क्या वे यहां की दशा जानते नहीं हैं? यहीं से तो वे विदेश गए हैं और शुरू-शुरू में न जाने कितनी बार वहां कचरा फैलाने के जुर्म में हर्जाना भरा होगा। फिर कहीं वे सुधरे होंगे। 
एलीवेटेड काॅरीडोर इस समय शहर की लाईफ लाइन बना हुआ है। सोशल मीडिया रील बनाने से ले कर हर तरह का जुलूस निकालने के लिए काॅरीडोर याद आता है क्यों कि उस पर तस्वीरें बहुत सुंदर आती हैं। काश! वह भी कचरा-मुक्त होता तो तस्वीरें और अधिक सुंदर आतीं। जो घटना मकरोनिया पुल पर मेरे साथ हुई थी, उसी का एक्शन रिप्ले काॅरीडोर पर हो चुका है। मैं यहां यह याद नहीं दिला रही हूं कि चपटे काॅरीडोर ने लाखा बंजारा झील के अस्तित्व को ही खंडित कर दिया है। झील के चाहे जिस किनारे से खड़े हो कर देखें, झील के बीच खिंची हुई लकीर की भांति काॅरीडोर झील को दो हिस्से में बांटता हुआ प्रतीत होता है जिससे झील छोटी दिखती है। उसका पूरा विस्तार दिखाई नहीं देता, जैसे पहले दिखता था। मैं यहां इस बात की भी चर्चा नहीं कर रही हूं कि कुछ सरफिरों ने इसे आत्महत्या का प्वाइंट बना दिया। खैर, मैं यहां बात कर रही हूं काॅरीडोर की सड़क के किनारे बिखरे खाली पाउचेस की। काॅरीडोर पर मैंने अपनी एक रील बनाई और रिजल्ट रहा वही, कि हर दृश्य में कचरा भी कैप्चर हो गया। यदि मुंबइया में कहूं तो ‘‘मेरे रील की वाट लग गई।’’ ऐसी स्थिति नहीं बनती, यदि हमारे अपने लोगों में शहरी स्वच्छता के प्रति जागरूकता होती।
शहरी स्वच्छता की जागरूकता किसी एक सप्ताह या पखवाड़़ा मना कर पैदा नहीं की जा सकती है। इसके लिए व्यक्ति का स्वयं जागरूक होना जरूरी है। हम अकसर जापान के बारे में सुनते हैं कि वह दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर है। क्योंकि वहां के लोगों में स्वच्छता के प्रति अपार जागरूकता है। स्पष्ट है कि नागरिक ही कचरा फैलाते हैं और नागरिक ही स्वच्छता बनाए रख सकते हैं। स्वच्छता बनाने के लिए नगरनिगम और नगर पालिका की ओर से स्थान-स्थान पर कूड़ादान रखे गए हैं। अब करना सिर्फ रहता है कि अपने हाथ में मौजूद कचरा वहीं सड़क पर फैंकने के बजाए उसे कूड़ादान में डाल दें। एक छोटा-सा काम है यह जिसमें न तो अतिरिक्त मेहनत लगती है और पैसे लगते हैं। मगर इस काम को करने से शहर साफ-सुथरा रह सकता है। हम सभी जानते हैं कि कचरा गंदगी का खजाना होता है और गंदगी बीमारियों को दावत देती है फिर भी हमें कचरे से परहेज क्यों नहीं है? जबकि सफाई बनाए रखना कठिन भी तो नहीं है।                                 
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Thursday, November 28, 2024

बतकाव बिन्ना की | सो, अपन ओरन खों का करने? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
सो, अपन ओरन खों का करने?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         ‘‘जोन खों देखो जेई कैत आए के अपन खों का करने? कोनऊं खों आज के माहौल से लेबो-देबो नइयां।’’ भैयाजी बड़बड़ात भए बोले।
‘‘का हो गओ भैयाजी? कोन खों कोस रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम तो सबई खों कोस रए। को जाने कैसो जमानो आ गओ?’’ भैयाजी फेर ऊंसई बोले।
‘‘का हो गओ जमाने खों? अभई तो हमने इत्ती अच्छी गौर जयंती मनाई और उने साढ़े छै किलोमीटर लंबी माना पैन्हाई। इत्तोई नईं, उनकी एक मूरत खों कछू भक्तों ने गरम कपड़ा सोई ओढ़ा दए जीसे उने ठंड ने लगे। सई में मोरी तो आंखन से अंसुआ चुअन लगे जा सब देख के। भौतई जी को छूबे वारो मामलो रओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, बा तो सब ठीक रओ, मनो अबईं उन भक्तन से पूछी जाए के भैयाहरों देस-बिदेस की खबर आए? सो बे कैंहे के हमें का करने देस-बिदेस की खबर राख के?’’ भैयाजी को मूड भौतई खराब हतो, जेई से बे कईं की बात कईं ले जात भए अपने मुद्दा पे आ गए।
‘‘मनो हो का गओ? कोन ने का कै दई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘को का कैहे? जब उने कछू खबरई नईयां के कऊं का हो रओ, सो बे का कैहें?’’ भैयाजी की बातन की सुई उतई के उतई अटक रई हती। उनकी जा दसा पे मोए बा लड़कोरे को जमानो याद आ गओ जब मैं पन्ना में रैत्ती। हिरणबाग में। उतई से हर शुक्ररवार खों मदार साब के लाने चादर ले के लाउडस्पीकर पे गाना बजाउत भए लुगवा-लुगाई जात्ते। ऊ टेम पे सबसे ज्यादा जोई गाना बजत्तो-
‘‘ भर दो झोली मेरी या मोहम्मद 
  लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली....’’
औ होत का हतो के बा लाउडस्पीकर से जुड़े ग्रामोफोन की सुई अटक जात्ती तो रिकार्ड जेई-जेई दोहरात रैत्तो के -
‘‘भर दो झोली... 
भर दो झोली.... 
भर दो झोली.... 
भर दो झोली..... 
भर दो झोली....।’’
जेई दसा भैयाजी की भई जा रई हती। मनो उनको रिकार्ड उतई के उतई अटक गओ हतो। मैं कछू कै रई ती औ बे जेई कै जा रए हते के ‘‘जोन खों देखो जेई कैत आए के अपन खों का करने?’’  
‘‘भैयाजी, अब आप बताई देओ के का भओ? ऐसे ने चलहे।’’ मोय गुस्सा सी आन लगी उनकी बेई-बेई बतकाव सुन के। अरे, कछू आगे की बी तो कएं।
‘‘भओ जे के संकारे हम मंदिर गए हते तो उते बाबूलाल मिलो। हम ओरन की बतकाव होन लगी। बा अपने पुरा-मोहल्ला की सुनान लगो। अब हमें का पता के ऊके मोहल्ला में को कां रैत आए? सो हमने कई के तुम तो अपने मोहल्ला की छोड़ो औ जे बताओ के जे अडानी को अब का हुइए? सो बाबूलाल तुरतईं बोलो के कछू होय ऊको, अपन खों का करने! अब तुमई बताओ बिन्ना के बा अपने इते को बड़ो आदमी आए। बे दिल्ली वारे मुखमंत्री उनको नांव जपत-जपत जेल पौंच गए औ बाबूलाल कैत आए के अपन खों का करने? मने ऊको कोनऊं सोचई नइयां के कोन को का हो रओ।’’ भैयाजी ने बताओ।
‘‘सो का भओ? आप काए अपनो मूड खराब कर रए? बाबूलाल खों फिकर नइयां, सो न होन देओ। ई जग में तो सबई टाईप के पिरानी पाए जात आएं। औ सई में अडानी जू को कछू होय ईसे अपन ओरन खों का फरक पड़ने? अपन खों तो मैंगाई के सिल-बट्टा में बटत रैने। बे बड़े लोग ठैरे, उने का हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई। 
‘‘नईं, तुमाई बात तो सई आए। मनो, जो का आए के दुनिया की कछू खबरई ने रखी जाए? औ चलो बाबूलाल की मान लई की ऊको कछू पतो नई, तो पतो नईं, मनो हमें बा किसना पान वारो मिलो। सो हमने बातई बात में ऊसे पूछ लई के भैया जे अमेरिका के प्रेसीडेंड जू ने चुनाव टेम पे कै तो दओ रओ के वे रूस औ उक्रेन की लड़ाई रुकवा दैहें, का तुमें लगत आए के बे ऐसो कर पैहें? हमें तो लगत के जैसे अपने इते के नेता हरें चुनाव टेम पे जो कछू कैत आएं ऊको कभऊं पूरो नईं करत, ऊंसई जे करहें। काए से के अबे तो कछू करत नई दिखा रए। सो जानत आओ के ऊ किसना पान वारे ने हमसे का कई?’’ भैयाजी तनक सांस लेबे खों रुके।
‘‘का कई?’’ मैंने पूछी।
‘‘ऊने कई के बे ओरें लड़ें चाए ने लड़ें अपन ओरन खों का करने? ऊकी जा बात सुन के रामधई हमाओ जी करो के हम जरूर ऊकी कनपट्टी पे एक खींच के धर देवें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जो का भैयाजी! मनो किसना खों बा लड़ाई में तनकऊ इंटरेस्ट ने हो तो वो का आपके लाने ट्रम्प जू की जनमपत्री बनाउन लगे?’’ मैंने भैयाजी खों टोंको। अरे, जोन चीज आपखों पोसाए, जरूरी नोईं के बा दूसरन खों भी पोसात होए। जे तो सरासर जबरिया वारी बात कहाई।
‘‘हम जे नई कै रए के ऊको इंटरेस्ट होने चाइए। बात जो आए के पैले पान वारे दुनिया भरे की जानकारी रखत्ते। चाए कोनऊं के घरे की पूछ लेओ के कोन की मोड़ी को कोन के संगे मामलो चल रओ औ चाए जे पूछ लेओ के बिल क्लिंटन ने बोरिस येल्तसिन से हाॅट लाईन पे बात करी के नई करी? उने सब पतो रैत्तो। आजकाल की टीवी न्यूज से ज्यादा अपडेट रैत्ते बे ओरें। औ अब देखो के पानवारे हो के कै रए के अपन खों का करने?’’ भैयाजी चिढ़त भए बोले।
‘‘ईमें पानवारे को दोस नइयां।’’ मैंने कई।
‘‘सो कोन को दोस आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘आपई सोचो के बा पानवारो कोन के लाने अपडेट रए औ कोन से बतकाव करे? आपई घांई एकाध ठइयां मानुस ऊके इते बतकाव करत हुइएं ने तो सबरे तो उते ठाड़े हो के बी अपने मोबाईल पे मगन रैत आएं। उने ने कछू जानने, ने कछू बतकाव करने। उने तो बस, मोबाईल पर व्हाट्स अप्प में उल्टो सूदो ग्यान फारवर्ड करने, ने तो कोऊ से बतिया-बतिया के ऊकी खपड़िया खाने, औ जे कछू ने होय तो जुआपट्टी वारो गेम खेलत रैने, को पूछ रओ उक्रेन-मुक्रेन खों। उने तो जे बी ने पतो हुइए के जा बिल क्लिंटन को हते और बा बोरिस येल्तसिंन को हते? उने तो अपने मोहल्ला के पार्षद को नांव याद ने हुइए। काय से उनकी दुनिया तो अब मोबाईल ठैरी।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सांची कै रईं बिन्ना! जे मोबाईल को नशा दारू से ज्यादा कहानो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘लुगाइन को बी जेई हाल आए। उने बी मोबाईल के अलावा किटी और सत्तनारायण की कथा याद रैत आए, ने तो उने सोई ने पतो हुइए के अपने इते के महिला बाल विकास मंत्री को आ? अब आप उन ओरन से पूछो सो बे जेई कैंहें के अपन ओरन खों का करने? बस, जेई में आपको चिड़क जाने।’’ मैंने भैयाजी ने कई। 
‘‘सई में बिन्ना! इते तो बस, बेई अपडेट रैत आएं जोन खों कोनऊं काम्पीटीशन में बैठने होय, ने तो बाकी तो जेई प्रथा के कहाने के अपन खों का करने?’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, जे तो आप बड़ी-बड़ी बातन की कै रए, इते तो घर के दोरे के आगे की रोड टूटी होय और ऊके मारे गिरत-परत घरे पिड़त होंए, मनो कैंहे जेई के अपन खों का करने?’’ मैंने कई।
‘‘ठीक गई बिन्ना!’’ अब भैयाजी खों तनक सहूरी आन लगी। 
‘‘अरे एक दिनां बे बंडा वारे पंडतजू मिले सो कैन लगे के मंदिर में कछू काम कराने, ओई के लाने चंदा मांगत फिर रए। सो, मैंने उनसे कई के पंडतजी, काए के लाने भैंरा रए? जा के तनक विधायक जू से मिल लेओ, बे ऐसे काम के लाने मना ने करहें औ विधायक निधि से कछू ने कछू दे दैहें। सो ईपे पंडतजी ने कई के अपन खों विधायक जू से का करने, अपन तो इते-उते से मांग के काम करा लेबी। अब आपई सोचो भैयाजी, के आप कै रए अपडेट की, इते तो भैयाहरें अपने नेताजू से मांगबोई भूले जा रए। सो नेता हरों को का परी, के बे तुमाए दोरे आहें तुमाए काम कराबे के लाने। अब कां लो कई जाए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘बिलकुल सई! जेई हो रओ। बिन्ना, जेई हो रओ। ने कोनऊं खों मैंगाई की परी, ने कानून-मानून की औ ने ईकी के ई दुनिया में का हो रओ।’’ भैयाजी समझत भए बोले।   
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई बारे में, जे ने आप ओरें सोई सोचन लगो के  ईको पढ़ के अपन ओरन खों का करने? ऐसो ने करियो! रामधई! 
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