- डॉ. शरद सिंह
नवरात्रि में देवी दुर्गा की शक्ति के रूप में आराधना में जगराते किए जाते हैं और व्रत-उपवास रखा जाता है। यह सब स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी बढ़-चढ़ कर करते हैं। भारतीय पुरुष भी देवी के शक्तिस्वरूप को स्वीकार करते हैं किंतु स्त्री का प्रश्न आते ही विचारों में दोहरापन आ जाता है। इस दोहरेपन के कारण को जाँचने के लिए हमें बार-बार उस काल तक की यात्रा करनी पड़ती है जिसमें 'मनुस्मृति' और उस तरह के दूसरे शास्त्रों की रचना की गई जिनमें स्त्रियों को दलित बनाए रखने के 'टिप्स' थे, फिर भी पुरुषों में सभी कट्टर मनुवादी नहीं हुए। समय-समय पर अनेक पुरुष जिन्हें हम 'महापुरुष' की भी संज्ञा देते हैं, मनुस्मृति की बुराइयों को पहचान कर स्त्रियों को उनके मौलिक अधिकार दिलाने के लिए आगे आए और न केवल सिद्धांत से अपितु व्यक्तिगत जीवन के द्वारा भी मनुस्मृति के सहअस्तित्व-विरोधी बातों का विरोध किया। इनमें एक महत्वपूर्ण नाम है बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर |
आमतौर पर यही मान लिया जाता है कि बाबा साहब अंबेडकर समाज के दलित वर्ग के उद्धार के संबंध में क्रियाशील रहे अतः उन्होंने दलित वर्ग की स्त्रियों के विषय में ही चिंतन किया होगा। किंतु अंबेडकर राष्ट्र को एक नया स्वरूप देना चाहते थे। एक ऐसा स्वरूप जिसमें किसी भी व्यक्ति को दलित जीवन न जीना पड़े। अंबेडकर की दृष्टि में वे सभी भारतीय स्त्रियां दलित श्रेणी में थीं जो मनुवादी सामाजिक नियमों के कारण अपने अधिकारों से वंचित थीं।
19जुलाई 1942 को नागपुर में संपन्न हुई 'दलित वर्ग परिषद्' की सभा में डॉ. अंबेडकर ने कहा था-‘नारी जगत् की प्रगति जिस अनुपात में हुई होगी, उसी मानदंड से मैं उस समाज की प्रगति को आंकता हूं।’
इसी सभा में डॉ. अंबेडकर ने ग़रीबीरेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली स्त्रियों से आग्रह किया था कि- ‘आप सभी सफाई से रहना सीखो, सभी अनैतिक बुराइयों से बचो, हीन भावना को त्याग दो, शादी-विवाह की जल्दी मत करो और अधिक संतानें पैदा नहीं करो। पत्नी को चाहिए कि वह अपने पति के कार्य में एक मित्र, एक सहयोगी के रूप में दायित्व निभाए। लेकिन यदि पति गुलाम के रूप में बर्ताव करे तो उसका खुल कर विरोध करो, उसकी बुरी आदतों का खुल कर विरोध करना चाहिए और समानता का आग्रह करना चाहिए।’
डॉ. अंबेडकर के इन विचारों को कितना आत्मसात किया गया, इसके आंकड़े घरेलू हिंसा के दर्ज आंकड़े ही बयान कर देते हैं। जो दर्ज़ नहीं होते हैं ऐसे भी हज़ारों मामले हैं। सच तो यह है कि स्त्रियों के प्रति डॉ. अंबेडकर के विचारों को हमने भली-भांति समझा ही नहीं। हमने उन्हें दलितों का मसीहा तो माना किंतु उनके मानवतावादी विचारों के उन पहलुओं को लगभग अनदेखा कर दिया जो भारतीय समाज का ढांचा बदलने की क्षमता रखते हैं।
नासिक-सत्याग्रह में डॉ. भीमराव अंबेडकर (सन् 1930-1935) |
डॉ. अंबेडकर ने हमेशा हर वर्ग की स्त्री की भलाई के बारे में सोचा। स्त्री का अस्तित्व उनके लिए जाति, धर्म के बंधन से परे था, क्योंकि वे जानते थे कि प्रत्येक वर्ग की स्त्री की दशा एक समान है। इसीलिए उनका विचार था कि भारतीय समाज में समस्त स्त्रियों की उन्नति, शिक्षा और संगठन के बिना, समाज का सांस्कृतिक तथा आर्थिक उत्थान अधूरा है। इसी ध्येय को क्रियान्वित करने के लिए उन्होंने सन् 1955 में 'हिंदू कोड बिल' तैयार किया। यही 'हिंदू कोड बिल' प्रत्येक तबके की स्त्रियों के अधिकारों का कानूनी दृष्टि से मूलभूत आधार बना।
वस्तुतः यह स्त्रियों की दलित स्थिति को बदलने का घोषणापत्र था। इसके जरिए स्त्रियों को समान अधिकार और संरक्षण दिए जाने की पैरवी की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि स्त्रियों को संपत्ति, विवाह-विच्छेद, उत्तराधिकार, गोद लेने, बालिग स्त्री की अनुमति के बिना उसका विवाह न किए जाने का अधिकार दिया जाए। भारतीय संस्कृति में वैवाहिक संबंध परंपरागत मान्यताओं पर आधारित होते हैं। इस परंपरागत आधार का अचानक टूटना सहजता से ग्राह्य नहीं हो सकता है।
डॉ. अंबेडकर का विचार था कि यदि स्त्री पढ़-लिख जाए तो वह पिछड़ेपन से स्वतः उबर जाएगी। आज स्त्रियों का बड़ा प्रतिशत साक्षर है, फिर भी वह अपनी दुर्दशा से उबर नहीं पाई है। यह ठीक है कि आज गांव की पंचायतों से ले कर देश के सर्वोच्च पद तक स्त्री मौजूद है लेकिन इसे देश की सभी स्त्रियों की प्रगति मान लेना ठीक उसी प्रकार होगा जैसे किसी प्यूरीफायर के छने पानी को देख कर गंगा नदी के पानी को पूरी तरह स्वच्छ मान लिया जाए।
(साभार-‘दैनिक नई दुनिया’ में प्रकाशित मेरा लेख)
डॉ. अंबेडकर का विचार था कि यदि स्त्री पढ़-लिख जाए तो वह पिछड़ेपन से स्वतः उबर जाएगी। आज स्त्रियों का बड़ा प्रतिशत साक्षर है, फिर भी वह अपनी दुर्दशा से उबर नहीं पाई है। यह ठीक है कि आज गांव की पंचायतों से ले कर देश के सर्वोच्च पद तक स्त्री मौजूद है लेकिन इसे देश की सभी स्त्रियों की प्रगति मान लेना ठीक उसी प्रकार होगा जैसे किसी प्यूरीफायर के छने पानी को देख कर गंगा नदी के पानी को पूरी तरह स्वच्छ मान लिया जाए।
(साभार-‘दैनिक नई दुनिया’ में प्रकाशित मेरा लेख)
बाबा साहब के द्वारा बहुत ही सामयिक बात कही आपने....स्त्री के नाम पे पूजा करके निवृत्त हो जाना चाहते हैं लोग....जबकि जरूरत उनका वास्तविक सम्मान उनको देने की है.....
ReplyDeleteनारी-शक्ति को प्रणाम.
बाबा साहब के विचारों से अवगत करने का आभार ....निश्चित रूप से आज भी उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं.....
ReplyDeleteसभी के पढ़ने योग्य एवं खास तौर पर महिलाओं में जागृति करने वाली बेहतरीन पोस्ट.सभी वर्ग की महिलाएं इसे ज़रूर पढ़ें तभी इसकी उपयोगिता होगी.
ReplyDeleteआदरणीय शरदजी नमस्कार ,
ReplyDeleteआपने नारी समाज को जाग्रत करने के लिए बहुत अच्छी बात लिखी , आपकी पोस्ट पढ़ने पर जागरूकता आनी चाहिए क्योंकि यह बात हर वर्ग पर लागू होती है चाहे वो शिक्षित हों या अशिक्षित ! किन्तु हमारे देश का ये दुर्भाग्य है कि, हम कई महापुरुषों को अपना आदर्श तो मानते हैं किन्तु उनके द्वारा दिए गए सन्देश , विचारों को अपने जीवन में नहीं लाते ! जिस दिन महापुरुषों के आदर्शों पर हम चलने लगेंगे , देश का स्वरुप बदल जायेगा
प्रेरणा दायक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई एवं आभार
शिक्षा ही बहुत सारी समस्याओं का निदान कर सकती है। एक उच्च कोटि का आलेख। बहुत सी नई जानकारी मिली। आभार इस आलेख के लिए।
ReplyDeleteराजेश कुमार ‘नचिकेता’ जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘निश्चित रूप से आज भी उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं..... ’
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
आपको सस्नेह धन्यवाद !
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
इस उत्साहवर्द्धन के लिए अत्यन्त आभारी हूं।
संजय कुमार चौरसिया जी,
ReplyDeleteबाबा साहब के विचारों को समझने का मेरा यह छोटा-सा प्रयास आपको पसन्द आया, यह जानकर प्रसन्नता हुई ।
आपकी अत्यन्त आभारी हूं।
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मुझे लगता है कि महापुरुषों के अनेक विचारों को बिना किसी पूर्वाग्रह के पुनः व्याख्यायित किए जाने की आवश्यकता है।
शिक्षा का जैसे जैसे विस्तार होगा वैसे वैसे स्त्रियों की स्थिति में सुधर होने की सम्भावना है ...बहुत अच्छा लेख ...अच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘शिक्षा का जैसे जैसे विस्तार होगा वैसे वैसे स्त्रियों की स्थिति में सुधर होने की सम्भावना है ...’
यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
शरद जी , बाबा साहब के विचारों से अवगत कराने का आभार .शिक्षा के माध्यम से ही स्त्रियों की स्थिति सुधर पाएगी.. अच्छा लेख .
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख ...अच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteशिक्षा तो बहुत सी समस्यायों का हल है ..एक उच्च कोटि का आलेख .बहुत शुक्रिया बाबा भीम राव आंबेडकर के विचारों से अवगत करने का.
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
आपका स्त्रियों की समाज में हीन दशा को परिलक्षित करता दर्द आपकी इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति में समा गया है.आशा है सभी इस दर्द को समझ कर अपने अपने स्तर पर सहयोग प्रदान करेंगें.बाबा साहेब के बारे में जानकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपके अभी तक न आने का मुझे भी दर्द है.आप सहृदय हैं,निराशा की उम्मीद तो नहीं है मुझे.
बाबा साहेब वास्तव में समानता के पोषक थे !वह नए भारत को ऊँच-नीच, जात-पात ,अमीर- गरीब की बुराइयों से मुक्त देखना चाहते थे !
ReplyDeleteसचमुच उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं !
इस सुन्दर आलेख के लिए आभार !
शिवकुमार ( शिवा)जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
अमरेन्द्र ‘अमर’ जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
इस उत्साहवर्द्धन के लिए अत्यन्त आभारी हूं।
शिखा वार्ष्णेय जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘शिक्षा तो बहुत सी समस्यायों का हल है ..’
यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteशनिवासरीय चर्चा मंच हेतु मेरे इस लेख का चयन करने के लिए आपका हार्दिक आभार !
बाबा साहब के विचारों को समझने का मेरा यह छोटा-सा प्रयास आपको पसन्द आया, यह जानकर प्रसन्नता हुई ।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
मेरे इस लेख को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
A beautiful and very inspiring post. Thanks Dr Sharad.
ReplyDeleteज्ञानचंद मर्मज्ञ जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘बाबा साहेब वास्तव में समानता के पोषक थे !वह नए भारत को ऊँच-नीच, जात-पात ,अमीर- गरीब की बुराइयों से मुक्त देखना चाहते थे !’
यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
Dr Divya Shrivastawa,
ReplyDeleteI feel honored by your comment.
Hearty Thanks!
You're always welcome.
हकीकत और दिखावे में हम लोग अक्सर फर्क कर देते हैं ! शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteसतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
शरद जी , बाबा साहब के विचारों से अवगत कराने का आभार .शिक्षा के माध्यम से ही स्त्रियों की स्थिति सुधर पाएगी! अच्छा लेख !
ReplyDeleteSAADAR
इस विमर्श को हम तक पहुंचाने का आभार।
ReplyDelete---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
डा.अम्बेडकर के विचारों को बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है ,आभार !
ReplyDeleteसुनील गज्जाणी जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘शिक्षा के माध्यम से ही स्त्रियों की स्थिति सुधर पाएगी!.’
यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
निवेदिता जी,
ReplyDeleteमेरे इस लेख को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
bahut sarthak lekh. dil se aabhari hun apki is lekh ko ham tak padhane ke liye. bahut si nayi jankariyan mili. ek-matr shiksha hi is sthiti se ubharne ka hal hai.
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ! बधाई
ReplyDeleteवाकई कुछ विशेष काबिलियत वाली अत्यन्त सीमित प्रतिशत की महीलाओं की यदि बात छोड दी जावे तो स्त्रियों का एक बडा तबका आज भी करीब-करीब शोषित परिस्थितियों में ही जी रहा है ।
ReplyDeleteआदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteआपने लिक से हटकर एक नए दृष्टिकोण के तहत बाबा साहब के विचारों को प्रस्तुत किया है. वास्तव में बाबा साहब मानव नहीं, महामानव थे. वे जाति-पाति के स्तर से बहुत ऊपर के सोच के थे. बहुत ही अच्छा लिखा आपने.
बहुत -बहुत धन्यवाद.
अनामिका जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteमेरे इस लेख को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
सुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘स्त्रियों का एक बडा तबका आज भी करीब-करीब शोषित परिस्थितियों में ही जी रहा है ।’
यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteबाबा साहब के विचारों को समझने का मेरा यह छोटा-सा प्रयास आपको पसन्द आया, यह जानकर प्रसन्नता हुई ।
आपकी अत्यन्त आभारी हूं।
ऐसे ही प्रेरणादायक विचारों से अब शनैः-शनैः जागरूकता आ रही है।
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण आलेख के लिए आभार।
2011 की जनगणना में स्त्री का घटता अनुपात भी सामने आया है जो की चिंतनीय है और स्त्री की सामाजिक स्थिति की ओर संकेत करता है । आपने सही कहा । अभी बहुत लंबा सफर तय करना है । बहुत अच्छा लेख ।
ReplyDeletenissndeh stri unnti se hi smaj ki unnti snbhv hai .sbhi mahapurash is bare men ek mat hain , ambedkar ji vicharon se prichit krane ke lie shukriya
ReplyDeletesunder aalekh
महेन्द्र वर्मा जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘2011 की जनगणना में स्त्री का घटता अनुपात भी सामने आया है जो की चिंतनीय है.. ’
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
Dilbag Virk ji,
ReplyDeleteHearty Thanks your comment...
एक से बढ़कर एक आलेखों को प्रस्तुत करना आपको बखूबी आता है. मेरी बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनचिकेता जी आपकी टिप्पणी उचित है और मैं तो कहती हूं कि नारी को कोई देवी,शक्तिस्वरूपा जैसे बड़े बड़े अलंकरणों से भी मत सजाइये।
ReplyDeleteये समाज एक इंसान के रूप में ही महिलाओं को अच्छे से समझ ले तो वो काफी बंधनों से मुक्त हो सकती हैं।
बाहर निकलकर महिलाओं के उत्थान की दोहरी बातें की जाती हैं और अपने घर वापस आकर महिलाओं को फिर पारंपरिक चश्मे से देखा जाता है।
इसलिए नारे, अलंकरण, आंदोलन की बजाय समाज को अपनी दोहरी मानसिकता को त्यागना होगा।
बहुत ही उपयोगी और सार्थक लेख ...
ReplyDeleteबाबा साहब क्रन्तिकारी युग पुरुष थे ....वे दलितों के उत्थान के हिमायती थे साथ-साथ नारी उत्थान के भी.
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteआपको भी रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
अबनीश सिंह चौहान जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरे लेख पसन्द आते हैं।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मानव जी,
ReplyDeleteआपके विचारों से अवगत होना सुखद लगा।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा कि-‘बाबा साहब क्रन्तिकारी युग पुरुष थे ....वे दलितों के उत्थान के हिमायती थे साथ-साथ नारी उत्थान के भी.’
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
सम्माननीया डॉ शरद जी -ज्ञान वर्धक लेख -समाज की नारियों के उत्थान के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारों को यहाँ उजागर किया आप ने -अब रही आत्मसात करने की बात उसी में तो आज तक हम पीछे रह जाते हैं जहाँ हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है शीघ्र फल मिलता है हम भेंड सा उस कुएं में तुरन्त कूद जाते हैं ये बहुत अच्छी बात है की आज भी प्रबुद्ध वर्ग का आप जैसा एक तबका इस कार्य में निरंतर लगा है -किनारा दूर ही सही कभी न कभी हमे ये धारा थपेड़े खिलाते मंजर दिखाएगी ही
ReplyDeleteसाधुवाद
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर जी,
ReplyDeleteअत्यन्त आभारी हूं आपकी...विचारों से अवगत कराने के लिए.
मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है!
काफी कुछ नया पाया, धन्यवाद.
ReplyDeleteधीरेन्द्र सिंह जी,
ReplyDeleteआपके विचारों से अवगत होना सुखद लगा।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
बाबा साहब का चिंतन ही हमारे संविधान में ऐसी व्यवस्था दे सका है. पर अभी भी काम शेष है शरद जी
ReplyDeleteइस उत्तम आलेख के लिए बधाई...
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है. मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
ReplyDeleteगिरीश मुकुल जी,
ReplyDeleteआपके विचार बिलकुल सही हैं.
आपके विचारों से अवगत होना सुखद लगा।आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
समीर लाल जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया।
आपको हार्दिक धन्यवाद!
रमेश कुमार जैन जी,
ReplyDeleteआपके व्यक्तिगत विचार जानकर प्रतन्नता हुई किन्तु यदि आप संदर्भगत बाबा साहब के चिंतन के बारे में अपने विचार देते तो और समीचीन होता।
मेरे इस ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
BAHOT ACCHA LIKHA HAI MAM APNE ,KASH AAP JAISI AUR LADIES NE Dr.BABASAHAB KO SAMJHA HOTA TO AAJ BHARAT DESH KAHA PAHUNCH GAYA HOTA....... GREAT WORK THANKS...... JAI BHIM...JAI BHARAT...
ReplyDeleteआज स्त्रियों का बड़ा प्रतिशत साक्षर है, फिर भी वह अपनी दुर्दशा से उबर नहीं पाई है। -----आखिर क्यों ...
ReplyDeleteकोई नयी बात नहीं लिखी गयी है आलेख में ...लगभग ५० वर्षों से बाबासाहेब के ये विचार हमें ज्ञात हैं ...परन्तु फिर भी वही हालात हैं .. भेड -चाल की भाँति हांजी हांजी ..बहुत अच्छा...खूब लिखा कहने वाले ज़रा सोचें ...वस्तुतः बड़े सतही तौर के विचार हैं जो बाबासाहेब द्वारा व्यक्त किये गए हैं ...वही सारे विचार विभिन्न तरीके से सभी धर्म, जातियां, पंथ व्यक्त करते रहे हैं ..परन्तु अभी भी परनाला वहीं बह रहा है ... कुछ स्त्रियों के अलावा अधिकाँश स्त्रियों की दशा वही है ...क्यों ...
---- वास्तव में उलटी गंगा बहाई जा रही है ....मनुवादी विचारों का उचित व संतुलित एवं सामयिक-भाव में प्रचार-प्रसार ही इस समस्या का निदान है ....
---- पुनः सोचें , विचारें , मनन करें कि मनुवादी व्यवस्था है क्या.....निश्चय ही अम्बेडकर ...मनु से अधिक विद्वान् नहीं थे.....