- डॉ. शरद सिंह
इसमें कोई संदेह नहीं है कि गरीबी की आंच सबसे पहले औरत की देह को जलाती है। अपने पेट की आग बुझाने के लिए एक औरत अपनी देह का सौदा शायद ही कभी करे, वह बिकती है तो अपने परिवार के उन सदस्यों के लिए जिन्हें वह अपने से बढ़कर प्रेम करती है और जिनके लिए अपना सब कुछ लुटा सकती है। लेकिन देह के खेल का एक पक्ष और भी है जो निरा घिनौना है। यही है वह पक्ष जिसमें परिवार के सदस्य अपने पेट की आग बुझाने के लिए अपनी बेटी या बहन को रुपयों के लालच में किसी के भी हाथों बेच दें।
औरतों का जीवन मानो कोई उपभोग वस्तु हो-कुछ इस तरह स्त्रियों को चंद रुपयों के बदले बेचा और खरीदा जाता है। इसे मानव तस्करी, महिला तस्करी या तथाकथित "विवाह" का नाम भले ही दे दिया जाए लेकिन उन औरतों की पीड़ा को भला कौन समझ सकेगा जो अपने ही माता-पिता, चाचा, मामा, ताऊ, जीजा आदि निकट संबंधियों के द्वारा "विवाह" के नाम पर बेची जा रही हैं। इस प्रकार के अपराध कुछ समय पहले तक बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों में ही प्रकाश में आते थे लेकिन अब इस अपराध ने अपने पांव इतने पसार लिए हैं कि इसे मध्य प्रदेश के गांवों में भी घटित होते देखा जा सकता है। इस अपराध का रूप "विवाह" का है ताकि इसे सामाजिक मान्यताओं एवं कानूनी अड़चनों को पार करने में कोई परेशानी न हो।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में भी उड़ीसा तथा आदिवासी अंचलों से अनेक लड़कियों को विवाह करके लाया जाना ध्यान दिए जाने योग्य मसला है, क्योंकि यह विवाह सामान्य विवाह नहीं है। ये उन घरों की लड़कियां हैं जिनके मां-बाप के पास इतनी सामर्थ्य नहीं है कि वे अपनी बेटी का विवाह कर सकें , ये उन परिवारों की लड़कियां हैं जहां उनके परिवारजन उनसे न केवल छुटकारा पाना चाहते हैं बल्कि छुटकारा पाने के साथ ही आर्थिक लाभ कमाना चाहते हैं। ये गरीब लड़कियां कहीं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से लाई जा रही हैं तो कहीं मुफ्त की नौकरानी पाने के लालच में खरीदी जा रही हैं। इनके खरीदारों पर उंगली उठाना कठिन है क्योंकि वे इन लड़कियों को ब्याह कर ला रहे हैं।
खरीदार जानते हैं कि "ब्याह कर" लाई गईं ये लड़कियां पूरी तरह से उन्हीं की दया पर निर्भर हैं क्योंकि ये लड़कियां न तो पढ़ी-लिखी हैं और न ही इनका कोई नाते-रिश्तेदार इनकी खोज-खबर लेने वाला है। ये लड़कियां भी जानती हैं कि इन्हें ब्याहता का दर्जा भले ही दे दिया गया है लेकिन ये सिर नहीं उठा सकती हैं। ये अपनी उपयोगिता जता कर ही जीवन के संसाधन हासिल कर सकती हैं। इन लड़कियों के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि ये अपनी बोली-भाषा के अलावा दूसरी बोली-भाषा नहीं जानती हैं अतः ये किसी अन्य व्यक्ति से संवाद स्थापित करके अपने दुख-दर्द भी नहीं बता सकती हैं।
इनमें से अनेक लड़कियां ऐसी हैं जिन्होंने इससे पहले कभी किसी बस या रेल पर यात्रा नहीं की थी अतः वे घर लौटने का रास्ता भी नहीं जानती हैं। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि लौटकर जाने के लिए इनके पास कोई "अपना" नहीं है। जिन्होंने इन लड़कियों को विवाह के नाम पर अनजान रास्ते पर धकेला है वे या तो इन्हें अपनाएंगे नहीं या फिर कोई और "ग्राहक" ढूंढ़ निकालेंगे।
(साभार- दैनिक ‘नईदुनिया’ में 16.01.2011 को प्रकाशित मेरा लेख)
स्त्री जीवन की त्रासदी को शब्दों में व्यक्त कर पाना अत्यंत मुश्किल है .अपनों के हाथों बेचा जाना बहुत ही त्रासद है .सामयिक लेख प्रस्तुत किया है आपने .देश में व्याप्त इस पाप को समाज से मिटाने के लिए सभी को सार्थक पहल करनी होगी .सरकार को गरीबी हटाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए क्योकि अधिकांश समस्याएं गरीबी की देन हैं .सार्थक आलेख .आभार
ReplyDeleteबहुत यथार्थपूर्ण लेख :
ReplyDeleteस्त्री जीवन के इस पहलू का अच्छा चित्रण किया है आपने ! कहने को तो हम विकास की ओर हैं विश्व के अच्छे देशों के समकक्ष हैं शिक्षित हैं, पर क्या हम स्त्री जीवन के इस त्रासदी को देखकर यह कह सकते हैं कि हम शिक्षित और विकसित है ?
बदकिस्मती है हमारे देश की और शर्मनाक स्थिति,जिससे सर भी न उठा सकें !
ReplyDeleteहम भूल जाते हैं कि ये भी इंसान हैं जिन्हें जानवरों की तरह खरीद कर, उनके माँ बाप रिश्तों से छुड़ा कर लाया जाता है ! आधी बची जिन्दगी, जिल्लत से गुजारने को मजबूर हैं यह लड़कियां ....
स्तब्ध हूँ..... लिखने को शब्द नहीं है.....सभी शब्द जैसे मुँह चिढा रहे है.....मगर विश्वास अब भी है .. सोच एक न एक दिन जरूर बदलेगी....
ReplyDeleteइसअवस्था के लिए हम खुद भी दोषी हैं और इसका उपाय है सिर्फ शिक्षा और जागरूकता !
सार्थक आलेख ,शुभकामनायें।
क्या कहा जाये.कड़वा सच है हमारे तथाकथित सभ्य समाज का.पता नहीं कब baडलेगी मानसिकता.
ReplyDeleteबहुत ही दुखद और अफसोसजनक स्थिति है.
ReplyDeleteआपका आलेख सार्थक और विचारोत्तेजक है.
आभार.
धर्मों के अलिखित निर्देशों ने समाज को जो दिशा दी उसको हम कितना तोड़ पाए हैं ,सभी जानते हैं ,हमारी सरकारें कितनी जागरूक हैं ? विकृतियों का जन्म उपेक्षा व अभावों से होता है , और सही है हम समरस ,निरपेक्ष ,सहयोगी नहीं हो पाए हैं / दासी प्रथा का चलन मजबूरियों में नहीं ,निर्देशानुसार था /है / शिक्षा समानता जब तक सुलभ नहीं होगी , मन से जब तक नहीं अपनाएंगे ,भारत विकास अधुरा है / जड़ों की रुढियों को निकला जाना जरुरी है ,ईमानदारी से समग्र विकास जरुरी है ,/डॉ.सिंह इसके पक्ष में बोलने वाले भी पूर्वाग्रह का शिकार होते हैं ,फिर भी सदगुरुओं ने जो ज्ञान बख्सा है उसके आलोक में चलते रहेंगे ...../ धन्य हो जो आप इस कदर सोचते हो ......../ बहुत बहुत शुभकामनाये /
ReplyDeletebahut kuchh sochne ko mazboor karti hai aapki kahaniya.
ReplyDeleteबेहद शर्मनाक और दुखदाई स्थिति है।
ReplyDeleteसच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बहुत दुःख होता है हमारे देश में लड़कियों की ये हालत देखकर ! सार्थक और विचारणीय आलेख!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत दुखद और अफसोसजनक पहलु है यह समाज का...उद्वेलित करता आलेख.
ReplyDeleteस्वार्थी सोच की पराकाष्टा है यह । इसीलिये मध्यप्रदेश में ही बांछडा समुदाय की महिलाएँ घरों में अपनी देह ग्राहकों को सौंप रही होती है और उनके घरों के पुरुष बाहर बैठकर हुक्का गुडगुडा रहे होते हैं ।
ReplyDeleteआलेख सार्थक, विचारोत्तेजक..बेहद शर्मनाक और दुखदाई.बड़ा दुर्भाग्य है
ReplyDeleteयह भी एक हमारे समाज की कडवी सच्चाई है इसे नजर अंदाज नहीं
ReplyDeleteकिया जा सकता ! बहुत बढ़िया आलेख है !
बधाई आपको !
ythasthiti ka steek ankn
ReplyDeleteशिक्षा ही हर शोषण का निदान है...
ReplyDeleteकहाँ तो चाँद पे जाने की तैयारी कर रहा है भारत और कहाँ बद से बदत्तर होती सामाजिक समस्याएं ... ये तरक्की सब फजूल है जब तक समाक की उन्नति नहीं होती ... ऐसी समस्याएं नहीं मिट जातीं ...
ReplyDeleteएक घिनौना सच । विचारोत्तेजक लेख ..
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक मार्मिक किन्तु यथार्थपूर्ण लेख लिखा है आपने ....
ReplyDeleteबड़े शर्म की बात है हमारे तथाकथित सभ्य समाज के लिए ......
इसकी रोकथाम के लिए सरकारों और सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए |
वाक़ई बहुत दर्दनाक स्थिति है.
ReplyDeleteस्त्रियो के इस दर्दनाक स्थिति को शब्दों में व्यक्त कर पाना अत्यंत मुश्किल है ,आप ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक मार्मिक किन्तु यथार्थपूर्ण लेख लिखा है....आभार
ReplyDeleteआपने काफी महत्त्वपूर्ण विषय उठाया है। आभार।
ReplyDeleteइस आधुनिक कहे जाने वाले युग मैं भी एक नारी की स्थिति इतनी मार्मिक और दयनीय है ..सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteसमाज का ये असली चेहरा है... बहुत ही सोचनीय दशा।
ReplyDeleteक्या कहुं ? नारी का सच , दुःख का सच , सडा समाज का सच..सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteआदरणीय डॉ (मिस) शरद सिंह जी देश काल कुछ भी हो ये बड़ी ही चिंता और निंदा का विषय है हमने भी पश्चिम बंगाल में और आन्ध्र प्रदेश में ऐसी घटनाये देखी थी -कोशिश करें सब मिल लोग जागरूक हों मज़बूरी भी बहुत कुछ कराती है -
ReplyDeleteये गरीब लड़कियां कहीं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से लाई जा रही हैं तो कहीं मुफ्त की नौकरानी पाने के लालच में खरीदी जा रही हैं। इनके खरीदारों पर उंगली उठाना कठिन है क्योंकि वे इन लड़कियों को ब्याह कर ला रहे हैं।
आभार आप का -बधाई भी
भ्रमर ५
यही है हमारे समाज का सच । जो भी पीडित है उस समाज की औरत सबसे ज्यादा पीडित है और अक्सर उसकी पीडा अव्यक्त ही रह जाती है ।
ReplyDeleteऔरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाजार दिया ।
अशिक्षा और गरीबी दोनों परस्पर आवर्ती ज़मा पूँजी की तरह बढती है .औरत को जिन्स समझने की कमोबेश आज भी बाकी सामाजिक दृष्टि इसके मूल में है .
ReplyDeleteदुखद है पर सच है..... सार्थक आलेख
ReplyDeleteदुखद स्थिति है ... सोचने पर मजबूर करती पोस्ट
ReplyDeleteशिक्षा ही हर शोषण का निदान है...
ReplyDeletewww.indiafun.co.in
very true ........ soch badlni bahut jaroori hai
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