Dr (Miss) Sharad Singh |
मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस' "दैनिक सागर दिनकर" में (02. 11. 2016) .....
My Column 'Charcha Plus' in "Sagar Dinkar" news paper
My Column 'Charcha Plus' in "Sagar Dinkar" news paper
आगे बढ़ रहा है मध्यप्रदेश
- डॉ. शरद सिंह
यह सच है कि कठिनाइयों का पहाड़ सामने है। यह भी सच है कि विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी है लेकिन यह उल्लेखनीय है कि विकास के पहिए निरंतर गतिमान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘बीमारू प्रदेश’ कहा जाने वाला मध्यप्रदेश तेजी से विकास कर रहा है। दरअसल, विकास वह लम्बी प्रक्रिया है जिसका परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देता है और जिसमें त्वरित जैसा कुछ नहीं होता है। यह एक या दो दिन में होने वाली घटना नहीं वरन् कुछ वर्षों में दिखाई पड़ने वाला परिवर्तन है और मध्यप्रदेश इसी परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, आगे बढ़ रहा है।
मध्यप्रदेश ऐतिहासिक दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है।
प्रथम बार मध्यप्रदेश ने 1 नवम्बर 1956 में आकार लिया था। दूसरी बार 1
नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के साथ ही इसका आकार बदल गया।
किन्तु इसकी प्राचीनता और पुरातात्विक वैभव इसकी गरिमा का एक अलग ही इतिहास
लिख चुके हैं। मध्यप्रदेश समूचे देश में पुराचित्रकला, प्राचीन गुफाओं और
प्राचीन अवशेषों के के संदर्भ में सबसे समृद्व राज्य है। और यह सम्पदा
राज्य के सीहोर, भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद और सागर जिलों में मौजूद है।
मध्यप्रदेश में सांची को विश्वप्रसिध्द स्तूप हैं। इन स्तूपों का निर्माण
ईसा से 300 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा के बाद 12वीं शताब्दी के बीच किया गया
था। 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में बुन्देला राजाओं ने ओरछा में मध्यकालीन
वास्तुकला के अभूतपूर्व निर्माण करवाये। चंदेल कला के अनुपम उदाहरण खजुराहो
के मंदिर प्रदेश की स्थापत्य एवं मूर्तिकला की सम्पन्नता की निशानी हैं।
इतिहास के आइने में
प्रागैतिहासिक काल पत्थर युग से शुरू होता है, जिसके गवाह भीमबेटका,
आदमगढ, जावरा, रायसेन, पचमढ़ी जैसे स्थान है। हालांकि राजवंशीय इतिहास, महान
बौद्ध सम्राट अशोक के समय के साथ शुरू होता है, जिसका मौर्य साम्राज्य
मालवा और अवंती में शक्तिशाली था। कहा जाता है कि राजा अशोक की पत्नी
विदिशा से थी, जो आज के भोपाल की उत्तर में स्थित एक शहर था। सम्राट अशोक
की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ और ई. पू. तीन से पहली सदी के
दौरान मध्य भारत की सत्ता के लिए शुंग, कुशान, सातवाहन और स्थानीय
राजवंशों के बीच संघर्ष हुआ। ई. पू. पहली शताब्दी में उज्जैन प्रमुख
वाणिज्यिक केंद्र था। गुप्ता साम्राज्य के दौरान चौथी से छठी शताब्दी में
यह क्षेत्र उत्तरी भारत का हिस्सा बन गया, जो श्रेष्ठ युग के रूप में जाना
जाता है। हूणों के हमले के बाद गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ और उसका छोटे
राज्यों में विघटन हो गया। हालांकि, मालवा के राजा यशोधर्मन ने ई. सन 528
में हूणों को पराजित करते हुए उनका विस्तार समाप्त कर दिया। मध्ययुगीन
राजपूत काल में 950 से 1060 ई.सन के दौरान बुंदेलखंड में चंदेलों का
प्रभुत्व रहा। चंदेलों ने न केवल सुव्यवस्थित शासन दिया बल्कि कलाजगत को
अत्यंत कलात्मक मंदिर प्रदान किए। भोपाल शहर को नाम देनेवाले परमार राजा
भोज ने इंदौर और धार पर राज किया। गोंडवना और महाकौशल में गोंड राजसत्ता का
उदय हुआ। 13 वीं सदी में, दिल्ली सल्तनत ने उत्तरी मध्यप्रदेश को हासील
किया था, जो 14 वीं सदी में ग्वालियर की तोमर और मालवा की मुस्लिम सल्तनत
जैसे क्षेत्रीय राज्यों के उभरने के बाद ढह गई।
1156-1605 अवधि के दौरान, वर्तमान मध्यप्रदेश का संपूर्ण क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अंतर्गत आया, जबकि गोंडवाना और महाकौशल, मुगल वर्चस्व वाले गोंड नियंत्रण के अंतर्गत बने रहे। सन् 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल नियंत्रण कमजोर हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप मराठों ने विस्तार करना शुरू किया और 1720-1760 के बीच उन्होने मध्यप्रदेश के सबसे अधिक हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इंदौर में बसे अधिकतर मालवा पर होलकर ने शासन किया, ग्वालियर पर सिंधिया ने तथा नागपुर द्वारा नियंत्रित महाकौशल, गोंडवाना और महाराष्ट्र में विदर्भ पर भोसले ने शासन किया। इसी समय मुस्लिम राजवंश के अफगान जनरल दोस्त मोहम्मद खान के वंशज भोपाल के शासक थे। कुछ ही समय में ब्रिटिश कंपनी ने बंगाल, बंबई और मद्रास जैसे अपने गढ़ों से अधिराज्य का विस्तार किया। मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल, नागपुर, रीवा जैसे बड़े राज्यों सहित अधिकांश छोटे राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। 1853 में ब्रिटिशो ने नागपुर के राज्य पर कब्जा कर लिया, जिसमे दक्षिण-पूर्वी मध्यप्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ शामिल था। उत्तरी मध्यप्रदेश के राजसी राज्य सेंट्रल इंडिया एजेंसी द्वारा संचालित किए जाते थे।
1947 में भारत की आजादी के बाद, 26 जनवरी, 1950 के दिन भारतीय गणराज्य के गठन के साथ सैकड़ों रियासतों का संघ में विलय किया गया था। 1950 में पूर्व ब्रिटिश केंद्रीय प्रांत और बरार, मकाराई के राजसी राज्य और छत्तीसगढ़ मिलाकर मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ तथा नागपुर को राजधानी बनाया गया। सेंट्रल इंडिया एजेंसी द्वारा मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल जैसे नए राज्यों का गठन किया गया। राज्यों के पुनर्गठन के परिणाम स्वरूप 1956 में, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्यों को मध्यप्रदेश में विलीन कर दिया गया, तत्कालीन सी.पी. और बरार के कुछ जिलों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया गया तथा राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में मामूली समायोजन किए गए। फिर भोपाल राज्य की नई राजधानी बन गया। शुरू में राज्य के 43 जिले थे। इसके बाद, वर्ष 1972 में दो बड़े जिलों का बंटवारा किया गया, सीहोर से भोपाल और दुर्ग से राजनांदगांव अलग किया गया। तब जिलों की कुल संख्या 45 हो गई। वर्ष 1998 में, बड़े जिलों से 16 अधिक जिले बनाए गए और जिलों की संख्या 61 बन गई। इसके बाद 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रांत की रियासतों - राज्यों को मिलाकर मध्यप्रदेश का निर्माण किया गया।
मध्यप्रदेश के भू-भाग ने प्रगैतिहासिक एवं ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से अपने महत्व को संजोया है। भीमबैठका, आबचंद तथा उदय गिरि की गुफाएं प्रगैतिहासिक महत्व के साक्ष्य रखती हैं जबकि खजुराहो, कुंडलपुर, ताजुल मसाज़िद, मांडू का किला, सागर विश्वविद्यालय जैसे स्थल पुरातन से नूतन की समृद्धि को दर्शाते हैं।
1156-1605 अवधि के दौरान, वर्तमान मध्यप्रदेश का संपूर्ण क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अंतर्गत आया, जबकि गोंडवाना और महाकौशल, मुगल वर्चस्व वाले गोंड नियंत्रण के अंतर्गत बने रहे। सन् 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल नियंत्रण कमजोर हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप मराठों ने विस्तार करना शुरू किया और 1720-1760 के बीच उन्होने मध्यप्रदेश के सबसे अधिक हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इंदौर में बसे अधिकतर मालवा पर होलकर ने शासन किया, ग्वालियर पर सिंधिया ने तथा नागपुर द्वारा नियंत्रित महाकौशल, गोंडवाना और महाराष्ट्र में विदर्भ पर भोसले ने शासन किया। इसी समय मुस्लिम राजवंश के अफगान जनरल दोस्त मोहम्मद खान के वंशज भोपाल के शासक थे। कुछ ही समय में ब्रिटिश कंपनी ने बंगाल, बंबई और मद्रास जैसे अपने गढ़ों से अधिराज्य का विस्तार किया। मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल, नागपुर, रीवा जैसे बड़े राज्यों सहित अधिकांश छोटे राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। 1853 में ब्रिटिशो ने नागपुर के राज्य पर कब्जा कर लिया, जिसमे दक्षिण-पूर्वी मध्यप्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ शामिल था। उत्तरी मध्यप्रदेश के राजसी राज्य सेंट्रल इंडिया एजेंसी द्वारा संचालित किए जाते थे।
1947 में भारत की आजादी के बाद, 26 जनवरी, 1950 के दिन भारतीय गणराज्य के गठन के साथ सैकड़ों रियासतों का संघ में विलय किया गया था। 1950 में पूर्व ब्रिटिश केंद्रीय प्रांत और बरार, मकाराई के राजसी राज्य और छत्तीसगढ़ मिलाकर मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ तथा नागपुर को राजधानी बनाया गया। सेंट्रल इंडिया एजेंसी द्वारा मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल जैसे नए राज्यों का गठन किया गया। राज्यों के पुनर्गठन के परिणाम स्वरूप 1956 में, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्यों को मध्यप्रदेश में विलीन कर दिया गया, तत्कालीन सी.पी. और बरार के कुछ जिलों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया गया तथा राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में मामूली समायोजन किए गए। फिर भोपाल राज्य की नई राजधानी बन गया। शुरू में राज्य के 43 जिले थे। इसके बाद, वर्ष 1972 में दो बड़े जिलों का बंटवारा किया गया, सीहोर से भोपाल और दुर्ग से राजनांदगांव अलग किया गया। तब जिलों की कुल संख्या 45 हो गई। वर्ष 1998 में, बड़े जिलों से 16 अधिक जिले बनाए गए और जिलों की संख्या 61 बन गई। इसके बाद 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रांत की रियासतों - राज्यों को मिलाकर मध्यप्रदेश का निर्माण किया गया।
मध्यप्रदेश के भू-भाग ने प्रगैतिहासिक एवं ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से अपने महत्व को संजोया है। भीमबैठका, आबचंद तथा उदय गिरि की गुफाएं प्रगैतिहासिक महत्व के साक्ष्य रखती हैं जबकि खजुराहो, कुंडलपुर, ताजुल मसाज़िद, मांडू का किला, सागर विश्वविद्यालय जैसे स्थल पुरातन से नूतन की समृद्धि को दर्शाते हैं।
विकास की गति
यह सच है कि कठिनाइयों का पहाड़ सामने है। यह भी सच है कि विकास की गति
अपेक्षाकृत धीमी है लेकिन यह उल्लेखनीय है कि विकास के पहिए निरंतर गतिमान
हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘बीमारू प्रदेश’ कहा जाने वाला मध्यप्रदेश
आगे बढ़ रहा है, विकास कर रहा है। दरअसल, विकास वह लम्बी प्रक्रिया है
जिसका परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देता है और जिसमें त्वरित जैसा कुछ नहीं
होता है। यह एक या दो दिन में होने वाली घटना नहीं वरन् कुछ वर्षों में
दिखाई पड़ने वाला परिवर्तन है और मध्यप्रदेश इसी परिवर्तन के दौर से गुज़र
रहा है। ‘बीमारू राज्य’ की छवि से बाहर आने के लिए निरंतर प्रयास किए जा
रहे हैं। विकास को हर छोर तक पहुंचाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था आरम्भ
की गई। राज्य में जल संकट के समाधान के लिये ‘जलाभिषेक’ जैसे जलग्रहण
कार्यक्रम शुरू किए गए। वन सम्पदा के सम्बन्ध में संयुक्त वन प्रबंधन,
ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिये नर्मदा नदी पर बड़े-बड़े बांध और
एशियाई विकास बैंक की शर्तों पर बाजारीकरण, कृषि के क्षेत्र में नकद फसलों
का विस्तार भी किया गया। बेशक इस तरह के कदम उठाते समय जोखिम भी उठाया गया
लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति ने हमेशा साथ दिया।
कठिनाइयां बनाम हौसले
शून्य से छह वर्ष की आयु के बच्चों में कुपोषण का स्तर आज भी चिंताजनक बना
हुआ है। सर्वेक्षणों के अनुसार मध्यप्रदेश में 55 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के
शिकारं हैं। स्मरण रहे कि सन् 1975 से पोषण के अधिकार की उपलब्धता
सुनिश्चित करने के लिये एकीकृत बाल विकास परियोजना शुरू हुई थी जिसका
दायित्व था कि प्रदेश में एक भी बच्चा कुपोषित न रहे। किन्तु दुर्भाग्यवश,
योजना लागू किए जाने के कई दशक के बाद भी बहुत से बच्चे कुपोषण के शिकार
हैं। प्रदेश में बढ़ता हुआ अपराध दर भी चिन्ताजनक है। विशेष रूप से महिलाओं
के विरुद्ध किए जाने वाले अपराध। दहेज, बलात्कार, चैन स्नैचिंग, छेड़खानी
आदि की घटनाएं प्रदेश की छवि को भी धूमिल करती हैं। छवि खराब करने वाली बात
तो यह भी है कि राज्य में लगभग 49 लाख परिवार गरीबी की रेखा के नीचे रहकर
जीवन बिता रहे हैं। प्रदेश में साक्षरता का प्रतिशत सरकारी आंकड़ों से कम
है। पेयजल और सड़क जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की अभी भी कमी है। प्रशासनिक
व्यवस्थाओं में भी सुराख अभी बाकी हैं। फिर भी यह कहना ही होगा कि कई
क्षेत्रों में स्थितियां पहले से बेहतर हुई हैं। प्रदेश में खेल-कूद को
पर्याप्त बढ़ावा दिया जाता है। बच्चों की शिक्षा तथा गर्भवतियों की
स्वास्थ्य-सुरक्षा पर र्प्याप्त ध्यान दिया गया है। स्वच्छता अभियान को भी
तत्परता से लागू किया गया है। रहा पुलिस व्यवस्था और सुरक्षा का सवाल तो
हाल ही में भोपाल सेंट्रल जेल से फरार हुए आतंकियों को लगभग डेढ़ घंटे में
मारगिराने की घटना ने आश्वस्त किया है कि तमाम भूल-चूक के बावजूद पुलिस
व्यवस्था में तत्परता शेष है।
उज्जैन में कुंभ के आयोजन की सफलता, खजुराहो में ब्रिक्स की बैठक और विदेशी उद्योगपतियों द्वारा प्रदेश में निवेश की इच्छा जताना मध्यप्रदेश के विकास के लिए शुभसंकेत कहे जा सकते हैं। दरअसल, विकास की गति को तेज करने या बनाए रखने में नागरिकों की भूमिका भी मायने रखती है। उदाहरण के लिए स्वच्छता अभियान तभी सफल हो सकता है जब प्रत्येक नागरिक कचरा सही स्थान पर ही डाले। अतः यदि मध्यप्रदेश आगे बढ़ रहा है तो यह मानना होगा कि शासन, प्रशासन और नागरिकों में धीरे-धीरे तालमेल स्थापित होता जा रहा है।
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उज्जैन में कुंभ के आयोजन की सफलता, खजुराहो में ब्रिक्स की बैठक और विदेशी उद्योगपतियों द्वारा प्रदेश में निवेश की इच्छा जताना मध्यप्रदेश के विकास के लिए शुभसंकेत कहे जा सकते हैं। दरअसल, विकास की गति को तेज करने या बनाए रखने में नागरिकों की भूमिका भी मायने रखती है। उदाहरण के लिए स्वच्छता अभियान तभी सफल हो सकता है जब प्रत्येक नागरिक कचरा सही स्थान पर ही डाले। अतः यदि मध्यप्रदेश आगे बढ़ रहा है तो यह मानना होगा कि शासन, प्रशासन और नागरिकों में धीरे-धीरे तालमेल स्थापित होता जा रहा है।
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