प्रस्तुत है आज 06.02.2024 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई जे. पी. लववंशी के काव्य संग्रह "छांव" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
संदेशपरक कविताओं का उपादेयता पूर्ण संग्रह
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - छांव
कवि - जे. पी. लववंशी
प्रकाशक - साहित्यपेडिया पब्लिशिंग, नोएडा - 201301
मूल्य - 150/-
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‘‘छांव’’ कवि जे.पी. लववंशी का सद्यः प्रकाशित काव्य संग्रह है। इससे पूर्व लववंशी के दो काव्य संग्रह और प्रकाशित हो चुके हैं- ‘‘मन की मधुर चेतना’’ और ‘‘धूप को तरसते गमले’’। लववंशी जीवन को सकारात्मक दृष्टि से देखते हैं तथा अपनी भावनाओं को सरल शब्दों में कविताओं में ढाल देते हैं। इस नवीनतम काव्य संग्रह ‘‘छांव’’ में भी अत्यंत सरल शब्दों में संदेशपरक भावनाएं व्यक्त की गई हैं। कई बार शब्दजाल, संजाल एवं शाब्दिक गूढ़ता को श्रेष्ठता का घोतक मान लिया जाता है। जबकि साहित्य चाहे किसी भी विधा का हो, उसकी अपनी एक विशिष्ट उपादेयता होती है। क्लीष्ट शब्दों में गूढ़-गंभीर शैली में लिखा गई कविताएं ही तत्वबोधक होती हों, यह आवश्यक नहीं हैं, सरल शब्दों में रचा गया काव्य भी जीवन मूल्यों को सहेजने वाला और संदेशपरक होता है। विशेष रूप से जब कविताओं को लिखते समय बच्चों को भी पाठकों के रूप में ध्यान में रखा गया हो तो उसका सरल शब्दों में होना आवश्यक भी हो जाता है। प्रकृतिबोधक वह कविता हम सबभी ने अपनी बाल्यावस्था में पढ़ी होगी जो अत्यंत सरल शब्दों में है और आज भी हमारी स्मृतियों में ताज़ा है-‘‘मछली जल की रानी है/जीवन जिसका पानी है/हाथ लगाओ डर जाएगी/बाहर निकालो मर जाएगी।’’ इस कविता के महत्व को किसी भी दृष्टि से नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि प्रकृति के जीवात्मक तत्व मछली के प्रति संवेदना जगाती है। साथ ही संदेश देती है कि प्रत्येक जीव अपने मूल वातावरण में ही सुखी, प्रसन्न और सुरक्षित रहता है। कुछ लोग इस कविता को मात्र बच्चों के लिए मान कर इसे सरल स्वरूप को स्वीकार करेंगे। किन्तु सुभद्रा कुमारी चौहान की वीर रस में निबद्ध कविता तो सभी के लिए थी जिसमें कवयित्री ने इतिहास प्रस्तुत किया था-‘‘बुंदेले हर बोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी/खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।’’ इस कविता को भी स्कूली पाठ्यक्रम में सदा रखा गया किन्तु यह प्रत्येक विद्यार्थी के मन में जीवनपर्यंत मौजूद रही। कहने का मन्तव्य यही है कि प्रत्येक रचना का अपना महत्व होता है चाहे वह संस्कृतनिष्ठ शब्दों में लिखी गई हो अथवा अत्यंत सरल शब्दों में। ‘‘छांव’’ बाल काव्य संग्रह नहीं है किन्तु उसमें कुछ कविताएं बच्चों को लक्षित कर के लिखी गई हैं।
अपने रचना कर्म के बारे में कवि जे.पी. लववंशी ने ‘‘अपनी बात’’ में लिखा है कि ‘‘कविता, कवि के अंतर्मन की आवाज होती है। हम जो देखते है, सुनते है, पढ़ते है, वही विचार फिर हृदय में उभरते है उनका मंथन होकर सरल शब्दों में एक संदेश बनकर कविता के रूप में प्रकट होते है।’’ इसके साथ ही इसी संग्रह में कवि ने ‘‘मेरी कविता’’ शीर्षक से अपनी यह कविता भी रखी है जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं -
मेरे मन के भावों की,
तुम सुंदर रचना हो।
सरल सरस् शब्दों में,
विचारों की वंदना हो।
तपती वसुंधरा पर,
तुम शीतल छाया हो।
कवि ने पौराणिक संदर्भों को अपने काव्य में विषय बनाया है। जैसे एक कविता भक्त प्रहलाद की कथा पर आधारिक है। इस कविता में कवि ने बच्चों को संबोधित करते हुए प्रहलाद की कथा को काव्यात्मक रूप में संक्षेप में प्रस्तुत किया है। शीर्षक हैं ‘‘श्रीहरि भक्त ध्रुव’’। कुछ पंक्तियां देखिए -
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊं एक कहानी
जिसमे है एक राजा और दो दो रानी
यह कथा है विष्णु पुराण की
भक्ती, भक्त और भगवान की
उत्तानपाद राजा सुनीति सुरुचि थी रानी
उनके पुत्र ध्रुव की है यह कहानी
भक्त और भगवान की लीला न्यारी
भक्त ध्रुव की यह है कहानी प्यारी
सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम
मनु के पोते ध्रुव की कहानी सर्वोत्तम
जीवन में मां की महत्ता अकाट्य है। जन्म देने से पूर्व एक मां शिशु को नौ माह अपने गर्भ में धारण करती है। उस दौरान उसकी जीवनचर्या शिशु पर केन्द्रित होती है कि कहीं उसके गर्भस्थ शिशु को कोई कष्ट न हो। वह अपने शिशु को गर्भ से ही स्वस्थ देखना चाहती है। शिशु के जन्म के बाद उसका पूरा जीवन अपनी संतान के लालन-पालन एवं उसके दुख-सुख की सीमा में सिमट जाता है। कवि ने इसीलिए अपनी कविता ‘‘माँ से बढ़कर नहीं है कोई’’ में मां के महत्व तथा उसके प्रति आदर भाव को सुस्थापित किया है। एक अंश इस प्रकार है -
मां से बढ़कर नही है कोई,
मां को नमन करें सब ईश।
मां ही लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती,
मां में समाए है जगदीश।।
मां धरती पर स्वर्ग है,
मां पुण्य कर्मो का प्रसाद।
विगत कुछ दशकों में हमने तेजी से विकास किया है। यह विकास भौतिक विकास कहा जा सकता है। इसमें हमने सुख-सुविधा के कृत्रिम साधनों के अंबार लगा लिए किन्तु प्राकृतिक सुविधाओं से वंचित होते गए। घरों में एयरकंडीशनर लग गए किन्तु आंगन गायब हो गए। वे आंगन जो प्रकृति से हमें जोड़े रखते थे और जो पारिवारिक सामंजस्य के प्रतीक थे। कवि लववंशी ने आंगन पर एक बहुत सुंदर कविता लिखी है जो इस संग्रह में मौजूद है- ‘‘वही खुला आंगन चाहिए’’। इस कविता की कुछ पंक्तियां-
वही खुला आंगन चाहिए,
जिसमे आती थी सुनहरी धूप।
हम खेला करते थे मिलकर,
कोई चोर बनता था कोई भूप।।
फुदकती थी गौरैया रानी,
कौआ करता था कांव कांव
वही खुला आंगन चाहिए,
जिसमे थी ममता की छांव।।
कवि ने प्रकृति के उन तत्वों पर भी अपनी कलम चलाई है जिसे हम मनुष्य ही क्षति पहुंचा रहे हैं। जैसे पेड़ों को बेतहाशा काटा जाना। कवि ने अपनी कविता ‘‘पेड़ों से ही अपना जीवन’’ द्वारा आगाह किया है कि-
पेड़ो से ही अपना जीवन
पेड़ो से ही अपना जीवन
मत करो इनका तुम दोहन
तपती धरती कटते जंगल
बोलो कैसे हो फिर मंगल
इसी प्रकार नशा करने से किस प्रकार व्यक्ति और उसका पूरा परिवार बरबाद होता है इस पर भी कुछ दोहे हैं-
नशा नाश की राह हैं, होता सभी तबाह।
जीवन बीते कष्ट में, पल पल निकले आह।।
बच्चें तड़पे भूख से, पत्नी रोती रोज।
पति दारू में व्यस्त हैं, मना रहा हैं मौज।।
कवि ने वर्तमान परिवेश पर भी गहन दृष्टि डाली है कि किस प्रकार आधुनिक तकनीक पारिवारिक संबंधों को प्रभावित कर रहा है। ‘‘नये युग का यह चलन नया’’ शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियां-
गुमसुम हैं प्यारा बचपन
दिखता नहीं अपनापन
घर के कोने में बैठकर
कैसे हो गए यह बेखबर
मोबाईल लिए हैं हर हाथ
किताब का नहीं अब साथ
पनघट पर नहीं हैं जमघट
कवि जे.पी. लववंशी के इस काव्य संग्रह ‘‘छांव’’ में मुख्यरूप से शिक्षा एवं संदेशपरक कविताएं हैं। ये कविताएं किसी विशेष छंद अथवा शिल्प में भले ही नहीं हैं किन्तु इनमें निहित संदेश इन कविताओं को महत्वपूर्ण बनाते हैं। बस, एक बात ज़बर्दस्त ढंग से खटकती है कि कई कविताओं में प्रत्येक पंक्ति के अंत में अर्द्ध विराम (काॅमा) लगा दिया गया है जिसका औचित्य समझ से परे है। बहरहाल, संदेशपरक कविताएं पसंद करने वालों के लिए इसे एक सार्थक काव्य संग्रह कहा जा सकता है।
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