Wednesday, February 7, 2024

चर्चा प्लस | स्कूली बाज़ारवाद के विरुद्ध ‘काॅन्वेंट’ शब्द पर एक सार्थक बयान | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
स्कूली बाज़ारवाद के विरुद्ध ‘काॅन्वेंट’ शब्द पर एक सार्थक बयान
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
      हमारे देश में यह एक आम मानसिकता है कि लोग अपने बच्चों को तथाकथित काॅन्वेंट स्कूल में भर्ती करा कर फूले नहीं समाते हैं। जिस इंग्लिश मीडियम स्कूल के नाम के साथ काॅन्वेंट शब्द जुड़ा होता है वह अभिभावकों को  अधिक शिक्षा-गारंटी देता हुआ प्रतीत होता है। क्या हर काॅन्वेंट स्कूल वास्तक में काॅन्वेट स्कूल होता है? अथवा वह मात्र इंग्लिश मीडियम स्कूल होता है? यह मुद्दा इस समय गर्माया हुआ है क्योंकि गढ़ाकोटा, सागर निवासी युवा नेता पं. अभिषेक भार्गव ने एक स्कूल के समारोह के दौरान यह बात सार्वजनिक रूप से कही कि उन स्कूलों को काॅन्वेंट नहीं लिखना चाहिए जो ईसाई स्कूल नहीं हैं। गढ़ाकोटा में एक निजी स्कूल के वार्षिक उत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए पूर्व मंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव ने मंच से संबोधन के दौरान स्कूलों के आगे कान्वेंट शब्द को हटाने की अपील की। इसका वीडियो सोशल साइट पर जमकर वायरल हो रहा है।      
   
युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष गढ़ाकोटा निवासी पं. अभिषेक भार्गव द्वारा ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द को ले कर उठाया गया मुद्दा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मुद्दे पर लोगों का अब तक ध्यान नहीं गया था किन्तु अब यह मुद्दा गरमाने लगा है क्योंकि लोगों को इसमें तथ्यात्मकता दिखाई दे रही है। निःसंदेह पं. अभिषेक भार्गव की बात तार्किक है इसे नकारा नहीं जा सकता है। अपने भाषण में पं. अभिषेक भार्गव ने तार्किक ढंग से कहा कि -‘‘आप जानकारी निकाल लें कान्वेंट एक ईसाई इमारत को कहा जाता है जिसमें ईसाई धर्म की नन रहा करती थी। हमारी हिंदू भारतीय सनातन, भारतीय सभ्यता और संस्कृति में कान्वेंट का कोई उल्लेख नहीं है। ईसाई धर्म में स्कूलों के स्थापना में कान्वेंट शब्द उपयोग किया जाता है ये ईसाइयों की परम्परा है। लेकिन आज सभी स्कूली संस्थाएं अपने नाम के साथ कान्वेंट जोड़कर अंग्रेजी शिक्षा की ओर - आकर्षित करने में लगी हुई है।’’
युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष अभिषेक भार्गव ने अपने फेसबुक अकाउंट पर भी वीडियो अपलोड करके जनता से पूछा है कि ‘‘मेरे द्वारा कही बात सही है या गलत सुझाव साझा कीजिए।’’ उल्लेखनीय है कि जिस स्कूल के समारोह में वे शामिल हुए थे तथा जहां उन्होंने यह मुद्दा सामने रखा उस स्कूल के प्राचार्य ने भी अभिषेक भार्गव के कथन से सहमति जताई।
        दिलचस्प बात यह है कि स्वयं ईसाई समुदाय एवं संगठनों द्वारा काॅन्वेंट शब्द के अनुचित उपयोग पर 2010 में आपत्ति दर्ज कराई गई थी। मुंबई में विरोध जताते हुए एक शिकायत की गई थी जिसमें कहा गया था कि शब्दकोश ‘‘कॉन्वेंट’’ को धार्मिक लोगों (आमतौर पर ननों) के एक समुदाय के रूप में परिभाषित करता है, जिसके साथ अक्सर एक स्कूल जुड़ा होता है। लेकिन भारत में, इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के लिए गलत तरीके से किया जाता है। मुंबई स्थित एक सामुदायिक समूह कैथोलिक सेक्युलर फोरम ने बॉम्बे के आर्कबिशप को पत्र लिखकर मांग की थी कि इस मुद्दे को राज्य और केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग के साथ उठाया जाए। समूह ने पुणे के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल का उदाहरण दिया, जो भयाराम सीसराम शिक्षण संस्था नामक एक निजी ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, और इसका चर्च से कोई लेना-देना नहीं है। सीएसएफ ने पुणे के एक स्कूल का उदाहरण दिया है जो खुद को अलग-अलग नाम से बुलाता है। “स्कूल माउंट सेंट पैट्रिक अकादमी’’ के बगल में है, जो ब्रदर्स ऑफ सेंट पैट्रिक द्वारा संचालित एक आईसीएसई स्कूल है। सीएसएफ की राय है कि यह गलतबयानी से कम नहीं है और यह प्रभावी रूप से भोले-भाले माता-पिता के साथ धोखाधड़ी कर रहा है, जो गुमराह होने के लिए बाध्य हैं। बॉम्बे आर्चडियोज के प्रवक्ता, फादर एंथोनी चरणघाट ने कहा था कि, “हम उन ट्रस्टों के मकसद पर संदेह नहीं करना चाहते हैं जो अपने संस्थानों का वर्णन करने के लिए कॉन्वेंट शब्द का उपयोग करते हैं। हो सकता है कि वे अनजाने में इस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हों। लेकिन चर्च का यह कर्तव्य है कि वह इस शब्द के प्रयोग से जनता को धोखा न दे। लोग हमें बताते रहे हैं कि ‘‘कॉन्वेंट’’ शब्द का प्रयोग बड़े पैमाने पर तब भी किया जाता है, जब चर्च किसी संस्था को चलाने में शामिल नहीं होता है।’’
      कर्नाटक सरकार ने तो इस प्रकार की आपत्ति पर कदम उठाते हुए एक सर्कुलर जारी कर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से ‘‘कॉन्वेंट’’ शब्द का सावधानी से इस्तेमाल करने को कहा। कर्नाटक सरकार के सार्वजनिक निर्देश विभाग के आयुक्त बी ए हरीश गौड़ा ने कहा था कि, ‘‘हमने जो कहा है वह यह है कि ‘कॉन्वेंट’ शब्द का ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में एक विशिष्ट अर्थ है और किसी स्कूल के लिए इस शब्द का उपयोग करना उचित नहीं है, ननों द्वारा नहीं चलाया जाता। एक कॉन्वेंट एक अंग्रेजी-माध्यम स्कूल के समान नहीं है, जैसा कि कभी-कभी गलत समझा जाता है।
       पं. अभिषेक भार्गव के कथन में सत्यता एवं तार्किकता है। अभिषेक भार्गव द्वारा यह आग्रह किया जाना कि गैरइसाई स्कूल अपने नाम से ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द हटा दें, उचित ठहराया जा सकता है लेकिन इसके पूर्व इसे इतिहास की कसौटी पर स्वयं भी परखा जा सकता है। तो चलिए देखते हैं ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द के इतिहास और स्वरूप की तह में उतर कर, जिससे इस मुद्दे पर सभी का न्यायसंगत विचार बन सके। ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द का ईसाई धर्म से गहरा संबंध है। कॉन्वेंट भिक्षुओं और ननों का एक समुदाय है। वैकल्पिक रूप से, कॉन्वेंट का अर्थ समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली इमारत है। यह शब्द विशेष रूप से कैथोलिक चर्च, लूथरन चर्च और एंग्लिकन कम्युनियन में उपयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कॉन्वेंट ,धर्मसंघ अथवा मठ, प्रमुखतः ईसाई धर्म में पादरी, धार्मिक बन्धु अथवा ननों (धार्मिक महिला सेविकायें) के समुदाय अथवा उनके द्वारा काम में लिये जाने वाले भवन को कहते हैं जो रोमन कैथोलिक गिरजाघरों और ऐंग्लिकन समुदाय में काम में लिये जाते हैं। प्रारंभिक मध्य युग में ईसाई धर्म के विस्तार के साथ कॉन्वेंट का विकास हुआ। अधिकांश पुरुषों के मठ के अधीन थे।
‘‘कॉन्वेंट’’ शब्द लैटिन के ‘‘कॉन्वेंटस’’ से निकला है, जो जिसका अर्थ है ‘‘बुलाना या एक साथ आना’’। इस अर्थ में इसका प्रयोग पहली बार तब किया गया जब एरेमिटिकल जीवन को सेनोबिटिकल के साथ जोड़ा जाने लगा। एरेमिटिकल के आशय है धार्मिक वैराग्य। वहीं सेनोबिटिकल जीवन जो कि ‘‘सेनोबिटिक’’ शब्द से बना है, यह ऐसा मठवाद है जो ‘आम जीवन’ (ग्रीक कोइनोबियन) पर आधारित मठवाद का रूप है तथा जिसमें सख्त अनुशासन, नियमित पूजा और शारीरिक कार्य शामिल हैं।
    तकनीकी रूप से, एक मठ मठवासियों का एक एकांत समुदाय है, जबकि एक मठ या कॉन्वेंट भिक्षुकों का एक समुदाय है (जो, इसके विपरीत, एक शहर में स्थित हो सकता है), और एक कैनोनरी नियमित रूप से सिद्धांतों का एक समुदाय है। अभय और प्रीरी शब्द मठों और कैनोनरी दोनों पर लागू किए जा सकते हैं। एक मठ का मुखिया एक मठाधीश होता है, और एक पुजारी एक कम आश्रित सदन होता है जिसका मुखिया एक मठाधीश होता है। मध्य युग में, कॉन्वेंट अक्सर महिलाओं को उत्कृष्टता प्राप्त करने का एक तरीका प्रदान करते थे, क्योंकि उन्हें पुरुषों से कमतर माना जाता था। कॉन्वेंट में, महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी और वे बागवानी या संगीतशास्त्र पर, धर्म और दर्शन पर किताबें लिखने और काम प्रकाशित करने में सक्षम थीं। कॉन्वेंट के मठाधीश अक्सर धर्मनिरपेक्ष जीवन के निर्णयों में भी शामिल होते थे और राजनेताओं और व्यापारियों के साथ बातचीत करते थे। एक मठ के विपरीत, एक कॉन्वेंट को एक मठाधीश या मठाधीश की जिम्मेदारी के तहत नहीं रखा जाता है, बल्कि एक वरिष्ठ या पूर्व की जिम्मेदारी के तहत रखा जाता है। यदि योरोप में काॅन्वेंन्ट के उद्भव और विकास की संक्षेप में बात करें तो 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में शहरों के विकास के साथ ईसाई भिक्षुकों का प्रसार हुआ। इनमें विशेष रूप से डोमिनिकन, फ्रांसिस्कन, कार्मेलाइट और ऑगस्टिनियन शामिल थे। जबकि बेनेडिक्टिन भिक्षुओं और उनके विभिन्न प्रकारों ने खुद को अपनी कृषि संपत्तियों के लिए समर्पित कर दिया था। ऐसे भिक्षुकों को रहने के लिए अलग से इमारत तय की जाती थी जिसमें बहुत से कक्ष होते थे ताकि बहुत से भिक्षुक एक काॅन्वेंट में रहते हुए अपने-अपने कक्ष का स्वतंत्र रूप से उपयोग कर सकें। यह महिला भिक्षुकों के लिए एक सुरक्षित एवं निर्बाध स्थान हुआ करता था।
      लड़कियों, निराश्रित एवं निर्धन बच्चों की शिक्षा को ध्यान में रख कर काफन्वेंट की ओर से शिक्षा की व्यवस्था की जाने लगी। कॉन्वेंट स्कूल (जिन्हें मठवासी स्कूल भी कहा जाता था) यूरोप में प्रारंभिक मध्य युग (सी. 500-1000) के दौरान उभरे। पश्चिमी यूरोप में शास्त्रीय रोमन संस्कृति के लुप्त होने के साथ, मठ शिक्षा के स्थल बन गए। इनके उद्देश्य अच्छे और स्पष्ट थे। चूंकि काॅन्वेंट धार्मिेक केन्द्र थे अतः इनके द्वारा संचालित स्कूलों में भी व्यवहारिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा को जोड़ कर रखा गया।
भारत में पहला कॉन्वेंट स्कूल कोलकाता में 1842 में खोला गया था। यह स्कूल अंग्रेजों के द्वारा खोला गया था जहां निराश्रित बच्चो को पढ़ाया जाता था। कॉन्वेंट स्कूल वे शैक्षणिक संस्थान हैं जो आमतौर पर धार्मिक आदेशों द्वारा, मुख्य रूप से चर्च के आधीन ईसाई समुदाय द्वारा चलाए जाते हैं । ये स्कूल बोर्डिंग सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं लेकिन मुख्य रूप से अपनी डे-स्कूलिंग प्रणाली के लिए जाने जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से ईसाई भिक्षुणियां अर्थात् नन्स शिक्षा देने का कार्य करती हैं। यद्यपि अन्य जाति समुदाय के शिक्षक-शिक्षकाओं को भी इन स्कूलों में अध्यापन के लिए रखा जाता है। किन्तु मूल प्रबंधन काॅन्वेंट का ही रहता है।
अतः भारत में जो विद्यालय ईसाई धर्म अथवा काॅन्वेंट के आधीन नहीं हैं और फिर भी वे अपने नाम के साथ ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द जोड़ते है तो वे अभिभावकों की अभिलाषा के साथ छल करते हैं। जो अभिभावक अपने बच्चों को काॅन्वेंट में पढ़ाना चाहते हैं किन्तु काॅन्वेंट स्कूलों की कड़ी स्पर्द्धा में उनका बच्चा असफल रहता है तो वे विकल्प के रूप में ऐसे स्कूलों की ओर देखते हैं जिनके नाम के साथ काॅन्वेंट शब्द जुड़ा होता है। वस्तुतः अभिभावकों की दृष्टि में ऐसे स्कूल काॅन्वेंट स्कूल ही होते हैं। वे काॅन्वेंट स्कूल और अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में अंतर जानते ही नहीं हैं। कुछ अभिभावक जानते भी हैं तो मात्र इतना कि चर्च के काॅन्वेंट में नन्स पढ़ाती हैं जबकि दूसरे काॅन्वेंट्स में सिर्फ गैर ईसाई शिक्षक होते हैं। यहां अभिभावकों के लिए काॅन्वेंट का अर्थ अथवा स्वरूप मायने नहीं रखता है वरन् वे हर बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में काॅन्वेंट की छवि देख कर प्रसन्न होते रहते हैं। उन्हें सरोकार होता है तो अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई से ताकि उनका बच्चा बड़ा हो कर अच्छे पद की नौकरी पा सके। इसीलिए उनका पहला आकर्षण रहता है इंग्लिश मीडियम और उसके बाद यदि उसमें काॅन्वेंट शब्द जुड़ा हो तो सोने पर सुहागा।
कई अभिभावक जो भारतीय संस्कृति के पैरोकार बन कर काॅन्वेंट स्कूलों पर आरोप लगाते हैं कि वे बच्चों को ईसाई ढंग की शिक्षा देते हैं, तो उन्हें पहले समझना चाहिए कि जब वे ईसाई धर्म अथवा ईसाई मठ द्वारा संचालित स्कूल में अपने बच्चे को भर्ती करा रहे हैं तो उन स्कूलों में ईसाई ढंग की शिक्षा दिए जाने पर बवाल क्यों? कहने का आशय यह है कि अभिभावकों को ‘‘काॅन्वेंट’’ शब्द का सही अर्थ समझना होगा। इसके साथ ही उन अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को अपने नाम के साथ जुड़ा काॅन्वेंट शब्द हटा लेना चाहिए। जो इस शब्द को जोड़ कर अभिभावकों से छल कर रहे हैं। यदि वे चर्च या ईसाइयत से जुड़े नहीं हैं तो उन्हें ‘‘कान्वेंट’’ शब्द लिखना भी नहीं चाहिए।
        यह बहुत अच्छी बात है कि ‘‘कान्वेंट’’ शब्द के मुद्दे को एक युवा नेता द्वारा जोरदार तरीके से उठाया गया है। पं. अभिषेक भार्गव एक जुझारू नेता होने के साथ ही विभिन्न सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। उनके पिता पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव पिछले 23 साल से निर्धन परिवारों की बेटियों का विवाह करवा रहे हैं। वे 1100 से ज्यादा जोड़ों का विवाह कराने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना चुके हैं। इन विवाहों में पं. गोपाल भार्गव ने धर्म पिता के रूप में सदा कन्यादान किया है तथा पं. अभिषेक भार्गव ने वधुओं के भाई की भूमिका का पालन किया है। ऐसे युवा नेता द्वारा उठाया गया काॅन्वेंट शब्द का मुद्दा मात्र सियासी मुद्दा नहीं कहा जा सकता है। एक बार फिर समझने की आवश्यकता है कि क्रिस्चियन स्कूलों की श्रेणियाँ होती हैं जैसे रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट।  कॉन्वेंट स्कूल नन या सिस्टर्स के द्वारा चलाए जाते हैं। संपूर्ण प्रबंधन, चाहे वह प्रशासनिक विभाग हो या परिवहन विभाग हो, सभी उनके नेतृत्व के अंदर होते हैं। स्कूल में आमतौर पर एक चर्च या चैपल होता है। गैर-क्रिश्चियन छात्रों को भी उसमे जाने की इजाजत होती है। वास्तविक काॅन्वेंट स्कूलों में ‘‘अवर फादर इन हेवेन’’ महत्वपूर्ण प्रार्थनाओं में से एक है जो प्रतिदिन की जाती है जिसके द्वारा प्रभु ईसा मसीह का स्मरण किया जाता है।
यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि अभिषेक भार्गव ने वास्तविक काॅन्वेंट स्कूलों का विरोध नहीं किया है वरन् काॅन्वेंट के नाम पर धोखा किए जाने अथवा इस शब्द के अनुचित प्रयोग पर लक्ष्य किया है। बल्कि यह कह जाए कि अभिषेक भार्गव ने भारतीय संस्कृति एवं कान्वेंट संस्कृति को अलग-अलग पहचानने का जनता से आग्रह किया है। वस्तुतः यह स्कूली बाजारवाद के विरुद्ध एक सार्थक एवं सटीक पहल है जिस पर आमजन को भी सजग हो कर विचार करना चाहिए।
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