Wednesday, September 18, 2024

पुस्तक समीक्षा | साहित्यक इतिहास रचती एवं स्मृतियों को सहेजती पुस्तक | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 18.09.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक त्रयी प्रो. बहादुर सिंह परमार, नीरज खरे, शिवेंद्र शुक्ला की पुस्तक "हमारे नन्ना: रामजी लाल चतुर्वेदी" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
साहित्यक इतिहास रचती एवं स्मृतियों को सहेजती पुस्तक
- समीक्षक  डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक  - हमारे नन्ना: रामजी लाल चतुर्वेदी
लेखक   - प्रो. बहादुर सिंह परमार, नीरज खरे, शिवेंद्र शुक्ला 
प्रकाशक - जे.टी.एस. पब्लिकेशंस, वी-508, गली नं.17, विजय पार्क, दिल्ली- 110053
मूल्य    - 395/-
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स्मृतियों को सहेजना अत्यंत आवश्यक होता है। विशेषरूप से एक ऐसे साहित्यकार की स्मृतियों को जो जनकवि की भांति जिया हो। जिसने अपनी रचनाओं में जनपक्ष को ही रेखांकित किया हो। कवि रामजीलाल चतुर्वेदी एक ऐसे ही व्यक्तित्व थे जो प्रगतिशील विचारों के पोषक थे। वे मंचों पर भी काव्यपाठ करते थे। उन्हें भारत भवन भोपाल में आयोजित प्रथम विश्व कविता सम्मेलन में भी काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। मुझे अपने अध्ययनकाल में चतुर्वेदी जी से कई बार मिलने का अवसर मिला। पन्ना में भी और छतरपुर में भी। वे जब भी पन्ना या उसके आस-पास कविसम्मेलन में काव्यपाठ के लिए पहुंचते तो हमारे घर अवश्य आते। भले ही दस-पांच मिनट को ही, किन्तु घर आ कर मां विद्यावती ‘‘मालविका’’ जी और वर्षा दीदी से भेंट अवश्य करते। मेरी दीदी वर्षा सिंह जी को उनके साथ मंच पर काव्यपाठ करने का अवसर भी मिला था। चूंकि व्यक्तिगत रूप से तत्कालीन समझ के अनुसार जितना मैं रामजी लाल चतुर्वेदी और उनके काव्य से परिचित रही वे स्मृतियां भी ताजा हो गईं इस महत्वपूर्ण स्मृति-पुस्तक को पढ़ कर जिसका नाम है -‘‘हमारे नन्ना: रामजी लाल चतुर्वेदी’’। इसके लेखक त्रयी हैं प्रो. बहादुर सिंह परमार, नीरज खरे तथा शिवेंद्र शुक्ल। 
जब कोई संस्मरणात्मक पुस्तक अथवा स्मृति-पुस्तक तैयार की जाती है तो उसका उद्देश्य यही होता है कि संबंधित व्यक्ति का समग्र व्यक्तित्व उसमें समाहित हो सके। ताकि जब कोई उस पुस्तक को पढ़े तो उसे संबंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का पूर्ण बोध हो सके। ‘‘हमारे नन्ना: रामजी लाल चतुर्वेदी’’ पुस्तक को तैयार करने में निश्चित रूप से लेखक त्रयी ने भरपूर श्रम किया है तथा स्व. चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता से प्रस्तुत करने का सुंदर प्रयास किया है। इस प्रकार की पुस्तकों का अपना अलग महत्व होता है। ये पुस्तकें तत्कालीन लेखन, विचारधारा, मुखरता का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही साहित्यक इतिहास होती हैं। एक और उल्लेखनीय तथ्य कि प्रायः ग्रामीण अंचल के समर्थ से समर्थ साहित्यकार भी जीवनपर्यंत तथा मरणोपरांत भी हाशिए में रह जाते हैं और शनैः-शनैः उनके नाम विलोपित होते चले जाते हैं। रामजी लाल चतुर्वेदी भी मंचीय कवि होते हुए भी आकलन के नेपथ्य में चले गए। अतः प्रो. बहादुर सिंह परमार, नीरज खरे एवं शिवेंद्र शुक्ल ने ऐसे कवि की स्मृतियों एवं रचनाओं को एक पुस्तक के रूप में सहेजने का प्रशंसनीय एवं दस्तावेजी कार्य किया है। 
पुस्तक के संपादकीय में रामजी लाल चतुर्वेदी के व्यक्तित्व की प्रथम झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लेखक त्रयी ने संपादकीय में लिखा है कि -‘‘हमारे नन्ना यानि छतरपुर के प्रगतिशील कवि, समर्पित कार्यकर्ता रामजी लाल चतुर्वेदी। जिन्होंने पूरा जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित किया। उन्होंने समाज के प्रत्येक उपेक्षित व शोषित वर्ग के लिए काम किया। जातिगत भेदभाव से परे वे समर्पित भाव से सामाजिक समरसता के लिए काम करते रहे।’’
इस पुस्तक में स्व. रामजी लाल चतुर्वेदी के गीत तथा लेख हैं। साथ ही उन्हें जानने वाले लोगो में से कुछ के संस्मरण भी सहेजे गए हैं जो चतुर्वेदी जी के व्यक्ति को समझने में सहायक हैं। रामजी लाल चतुर्वेदी की लेखनी में प्रखरता और स्पष्टवादिता थी। उनकी ये पंक्तियां देखिए-  
मुझे कुचलवा दो हाथी के, पद से पर मैं नहीं झुकूंगा।
सबको छोड़ गंग की कविता, सुनने को मैं यहीं रुकूंगा।
घनानंद आशिक सुजान पर, सुनिए मेरे घर ठहरे हैं।
जिन्हें नहीं व्यापे कवित्त रस, वे तो सबके सब बहरे हैं।  
वर्तमान में मंचों पर साहित्य की जो दशा है, वह किसी से छिपी नहीं है। सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए कथित कवि ओछी से ओछी कविताएं पढ़ते हैं, चुटकुलेबाजी करते हैं और आपसी छेड़-छाड़ का नाटकीय फूहड़ प्रदर्शन तक करते हैं। यह सब उस समय भी शुरू हो चुका था जब रामजी लाल चतुर्वेदी जैसे कवि मंचों पर काव्यपाठ करते थे। एक गंभीर विचारों वाले कवि को ऐसा ओछापन भला कैसे सहन होता? अतः उन्होंने ओछे कवियों पर कटाक्ष करते हुए स्वयं के लेखन के बारे में एक गीत लिखा कि -
सोचा मैंने कभी न ओछा,
उथला लिख शोहरत पा जाऊं। 
गजल कहूं या गीत लिखूं, 
बन कर शायर कवि नाम कमाऊं। 
एक छंद लिखना मुश्किल एक शेर कहना भारी है।
यहां मामला पेचीदा है, चलती नहीं होशियारी है।
रामजी लाल चतुर्वेदी एक फक्कड़ किस्म के व्यक्ति थे। वे सच कहने से झिझकते नहीं थे। इसीलिए आमजन मंचों पर तालियों से उनका स्वागत करता था। उनकी पंक्तियों में यथार्थ का तीखापन रहता था। उदाहरण के लिए उनके एक गीत का यह अंश देखें-
लो हम आ पहुंचे नगरी में, भाटों जैसे बिना बुलाए। 
हमने गीत लिखे हैं ऐसे, जिनमे भरी चाटुकारी है। 
उनको उतना नमन किया है, जो जितना अत्याचारी है। 
जिनके गले रेतने लायक, उनमें मालाएं पहनाई। 
जिन्हें कोसती जनता सारी, उनकी हमने स्तुति गा। 
अरे शहरियों जश्न मनाओ, गांव भले भूखा मर जाए। 
रामजी लाल चतुर्वेदी की एक रोचक रचना है ‘‘इलेक्ट्रिक फैन’’। इसमें उन्होंने इलेक्ट्रिक फैन का व्यंजनात्मक ढंग से अद्भुत प्रयोग किया है-
लक्ष्मी सुत कुबेर दास जेंटिलमैन। 
मैं निरीह प्यून सा इलेक्ट्रिक फैन। 
मुझको आपकी सर्विस बेहद भाती है।
मेरी आत्मा आपके ही गुण गाती है।
चतुर्वेदी जी का गांवों से जुड़ाव था। वे गांवों की समस्याओं को भली-भांति समझते एवं महसूस करते थे। किसानों के प्रति उनकी पीड़ा उनकी कविता ‘‘कवि और किसान’’ में देखी जा सकती है-
कवि जी, राम राम कह, हलवाहे ने जब रस घोला। 
मेरा दिल भर उठा, और उसके कानों में बोला।।
तुम किस हेतु जोतते हो, यह सारा खेत अभागा। 
इतने लगे थपेड़े फिर भी, तुम ना अभी तक जा।। 
रामजी लाल चतुर्वेदी की एक कविता सबसे अधिक लोकप्रिय हुई जिसका शीर्षक था ‘‘चंगेर का शिशु’’। इस कविता का भावपक्ष कवि की संवेदनाओं को भरपूर प्रकट करता है। पंक्तियां देखिए -
तुम्हें नहीं पैदा होना था, पैदा होकर बुरा किया है।
वह तेरा दुश्मन है शायद, जिसने तुझको जन्म दिया है।
तुम को जीवन भर रोना है, मार रहा तू किलकारी?
ऋण से गुथा पिता है तेरा, गुबरारी तेरी महतारी।
तू बीमार पड़ेगा कोई, तुझको कोई नहीं दवा लाएगा।
मां आहें भर रह जाएगी, पिता हल लिए बढ़ जाएगा।
    
 पुस्तक में रामजी लाल चतुर्वेदी के जो लेख रखे गए हैं वे हैं- ‘‘ईसुरी के काव्य में जनपक्षधरता’’, ‘‘इंदिरा गांधी की शहादत’’, ‘‘दलित साहित्य और संत कवि रैदास’’, ‘‘दलित आलोचकों के प्रेमचंद पर आक्षेप और उनके उत्तर’’, ‘‘बुंदेलखंड में दलित उन्नति की संभावनाएं’’ तथा ‘‘आपातकाल की प्रतिनिधि कविताएं’’।
कई महत्वपूर्ण और रोचक संस्मरण भी पुस्तक में हैं। डॉ के. के. चतुर्वेदी का ‘‘स्व. श्री राम जी लाल चतुर्वेदी जी नन्ना’’, बाबूलाल दाहिया का लेख ‘‘मुंह पर ही खरी खरी सुना देने वाले जन कवि श्री राम जी लाल चतुर्वेदी’’ गंगाप्रसाद बरसैंया का लेख ‘‘अद्भुत व्यक्तित्व के धनी रामजीलाल चतुर्वेदी’’, मौलाना हारून अना कासमी का संस्मरण ‘‘रामजीलाल चतुर्वेदी एक मुतजात शख़्सियत’’, वीरेंद्र खरे ‘अकेला’ का लेख ‘‘प्रेरक व्यक्तित्व श्री राम जी लाल चतुर्वेदी नन्ना’’, निदा रहमान का संस्मरण ‘‘हमारी यादों में लंबी दाढ़ी मटमैला कुर्ता वाला फकीर’’  और अंत में आभा श्रीवास्तव का संस्मरण ‘‘बेटी जैसा माना उन्होंने’’ 
पुस्तक को बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से तैयार किया गया है। मुखपृष्ठ पर स्व. रामजी लाल चतुर्वेदी की तस्वीर है तथा अंतिम बाह्य पृष्ठ पर उनकी अद्र्धांगिनी स्व. श्रीमती जानकी देवी चतुर्वेदी का छायाचित्र है। कव्हर के भीतर के पृष्ठों पर उनके साहित्यक आयोजनों की कुछ तस्वीरें हैं। पुस्तक का मुद्रण आकर्षक है। बस, पुस्तक के मूल्य को ले कर उलाहना दिया जा सकता है कि कुल 94 पृष्ठों की पेपरबैक पुस्तक का मूल्य रुपये 395/- बहुत अधिक है। इसे कम रखा जाना चाहिए था। वैसे, निःसंदेह सामग्री की दृष्टि से यह पुस्तक स्मृतियों को सहेजने के अपने उद्देश्य में पूर्णतया खरी उतरती है।   
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