Wednesday, September 11, 2024

चर्चा प्लस | श्रीगणपति के रोचक नाम और उनसे जुड़ी कुछ रोचक कथाएं | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
श्रीगणपति के रोचक नाम और उनसे जुड़ी कुछ रोचक कथाएं
     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                  
     जब हम किसी दुखी, पीड़ित व्यक्ति को देखते हैं तो उसकी सहायता करने की इच्छा हमारे मन में जागती है। फिर दूसरे ही पल हमें अपने सीमित सामर्थ्य याद आ जाता है और हम ठिठक जाते हैं। यह सच है कि आज के उपभोक्तावादी दौर में बहुसंख्यक व्यक्तियों के पास बहुत अधिक सहायता करने की क्षमता नहीं रहती है। किन्तु, श्रीगणेश यही तो सिखाते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कैसे दिखते हैं या हमारी क्षमताएं कितनी हैं, यदि हमारे मन में दृढ़इच्छा है तो हम किसी न किसी रूप में एक दुखी-पीड़ित की मदद कर सकते हैं। तभी तो श्रीगणेश के अनेक नाम हैं किन्तु काम एक ही है- सर्वकल्याण। यही तो सत्य मौजूद है श्रीगणेश के स्वरूप में और यही सत्य हमारे जीवन में उनके अस्तित्व को रोचक बनाता है।    
हिन्दू संस्कृति में श्रीगणेश एकमात्र ऐसे देवता है जिनका मुख हाथी का तथा शेष शरीर मनुष्यों  अथवा देवताओं जैसा है। उनका यह स्वरूप मानव और वन्यजीवन के बीच घनिष्ठ अटूट संबंधों को दर्शाता है। वन्य पशुओं में हाथी को सबसे अधिक बलशाली, सबसे अधिक बुद्धिमान, सबसे अधिक स्मरणशक्ति वाला तथा सबसे अधिक धैर्यवान माना जाता है। हाथी तब तक किसी पर प्रहार नहीं करता है जब तक कि उसके परिवार अथवा उस पर संकट न आए। हाथी दीर्घायु होता है तथा विशुद्ध शाकाहारी होता है। अलौकिक शक्ति के धनी होते हुए भी श्रीगणेश में समस्त गजतत्व मौजूद हैं। सृष्टि की योग्य कृति मानव तथा वन्य समुदाय की सर्वश्रेष्ठ रचना गज के सम्मिश्रण वाले श्री गणेश की शक्तियों का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी ने ही महाभारत को अबाधगति से लिपिबद्ध किया था।
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितं।
उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं।।

श्रीगणेश के एक नहीं अपितु 108 नाम हैं, जिनका जाप किया जाता है। प्रत्येक नाम का अपना एक अलग महत्व है। जैसे - अखुरथ- जिनके पास रथ के रूप में एक चूहा है, अलमपता- सदा सनातन भगवान, अमितःअतुलनीय प्रभु, अनंतचिद्रुपमयं- अनंत और चेतना-व्यक्तित्व, अवनीश- पूरी दुनिया के भगवान, अविघ्न- सभी बाधाओं को दूर करने वाला, बालगणपति- प्रिय और प्यारा बच्चा, भालचंद्र- चंद्रमा-कलक वाले भगवान, भीम- विशाल और विशाल, भूपति- देवताओं के स्वामी, भुवनपति - जगत के स्वामी, बुद्धिनाथ- ज्ञान के देवता, बुद्धिप्रिया- ज्ञान और बुद्धि को प्यार करने वाले भगवान, बुद्धिविधता- ज्ञान और बुद्धि के देवता, शूपर्णकर्ण- बड़े कान वाले भगवान, शुबनः सर्व मंगलमय प्रभु, शुभगुणकानन- वह जो सभी गुणों का स्वामी है, श्वेता- वह जो सफेद रंग की तरह पवित्र हो, सिद्धिधाता- सफलता और सिद्धियों के दाता, सिद्धिप्रिया- वह जो इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा करती है, सिद्धिविनायक- सफलता के दाता, स्कंदपुर्वजा- स्कंद (भगवान मुरुगन) के बड़े भाई, सुमुख- जिसका मुख प्रसन्न है, सुरेश्वरम- सभी प्रभुओं के भगवान, स्वरूप - सौंदर्य के प्रेमी, तरुण- अजेय भगवान, उद्दंड- बुराइयों और दोषों की दासता, उमापुत्र- देवी उमा (पार्वती) के पुत्र, वक्रतुंड - घुमावदार सूंड वाले भगवान, वरगणपति - वरदानों के दाता, वरप्रदा- इच्छाओं और इच्छाओं का दाता, वरदविनायक - सफलता प्रदान करने वाले, वीरगणपति- वीर प्रभु, विद्यावारिधि- ज्ञान और बुद्धि के देवता, विघ्नहर्ता- विघ्नों का नाश करने वाले, विघ्नराज- सभी बाधाओं के भगवान, विघ्नस्वरूप- विघ्नों का रूप धारण करने वाले, विकट- विशाल और राक्षसी, विनायक- सभी लोगों के भगवान आदि।

श्रीगणेश के कुछ नामों की रोचक कथाएं भी देख ली जाएं। ये ही तो हमारी पौराणिक विरासत हैं-
एकदंत की कथा
श्रीगणेश के एकदंत होने की कई कथाएं मिलती हैं-
एक कथा- एक बार विष्णु के अवतार परशुराम शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर आए। उस समय शिव ध्यानावस्थित थे तथा वे कोई व्यवधान नहीं चाहते थे। शिवपुत्र गणेश ने परशुराम को रोक दिया और मिलने की अनुमति नही दी। इस बात पर परशुराम क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्री गणेश को युद्ध के लिए चुनौती दे दी। श्रीगणेश ने चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों के बीच घनघोर युद्ध हुआ। इसी युद्ध में परशुरामजी के फरसे से उनका एक दांत टूट गया।
दूसरी कथा- भविष्य पुराण में कथा है जिसके अनुसार कार्तिकेय ने श्रीगणेश का दन्त तोडा था। श्रीगणेश अपनी बाल अवस्था में अति नटखट हुआ करते थे। एक बार उन्होंने खेल-खेल में अपने ज्येष्ठ भाई कार्तिकेय को परेशान करना शुरू कर दिया। कार्तिकेय को श्रीगणेश पर गुस्सा आ गया और वे गणेश से लड़ पड़े। इसी लड़ाई-झगड़े में गणपति का एक दांत टूट गया।
तीसरी कथा- एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी को महाभारत लिखने के लिए किसी बुद्धिमान लेखक की जरुरत थी। उन्होंने इस कार्य के लिए श्रीगणेश को चुना। श्रीगणेश इस कार्य के लिए मान तो गए। पर उन्होंने एक शर्त रखी कि महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखाते समय रुकेंगे नहीं और न ही बोलना बंद करेंगे। वेदव्यास ने शर्त स्वीकार कर ली। तब श्री गणेश जी ने अपने एक दांत को तोड़कर उसकी कलम बना ली और उसी से वेद व्यास जी के वचनों पर महाभारत लिखी।
चौथी कथा- गजमुखासुर नामक एक महाबलशाली असुर हुआ जिसने अपनी घोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त कर दिया की उसे कोई अस्त्र शास्त्र मार नही सकता। यह वरदान पाकर उसने तीनो लोको में अपना प्रभुत्व जमा लिया। सब उससे भयभीत रहने लगे। तब उसका वध करने के लिए सभी देवताओं ने श्रीगणेश को मनाया। गजानंद ने गजमुखासुर को युद्ध के ललकारा और अपना एक दांत तोड़कर हाथ में पकड़ लिया। गजमुखासुर को अपनी मृत्यु नजर आने लगी। वह मूषक रूप धारण करके युद्ध से भागने लगा। गणेशजी ने उसे पकड़ लिया और अपना वाहन बना लिया।
मोहासुरपति
जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को देवताओं को प्रताड़ित करने के लिए भेजा। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया। तभी से श्रीगणेश मोहासुरपति कहलाए।
लंबोदर
समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर मोहित हो गए। भावावेश में उनका स्खलन हो गया, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
विकट
भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
विघ्नराज
एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी भेंट शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया। शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।
धूम्रवर्ण
एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वह शुक्राचार्य के पास गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए। उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।
             
 श्रीगणेश अन्य देवताओं की भांति शारीरिक दृष्टि से सुंदर नहीं हैं किन्तु उनकी अपरिमित बुद्धि के कारण उन्हें प्रथमपूज्य देवता का पद प्राप्त है। यही वह बात है जिसे हम मनुष्यों को सीखना चाहिए कि जाति, धर्म, आकार, प्रकार, सुंदरता, असुंदरता का कोई अर्थ नहीं है, यदि किसी चीज का अर्थ है तो वह है सर्वकल्याण। यही तो सत्य मौजूद है श्रीगणेश के स्वरूप में और यही सत्य हमारे जीवन में उनके अस्तित्व को रोचक बनाता है।                
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