Tuesday, September 3, 2024

पुस्तक समीक्षा | युवा दृष्टि से जीवन का अन्वेषण करती कविताएं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 03.09.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई युवा कवि पवन रजक के काव्य संग्रह "मैं कौन हूं" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
युवा दृष्टि से जीवन का अन्वेषण करती कविताएं
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक  - मैं कौन हूं?
कवि    - पवन रजक
प्रकाशक - एन.डी. पब्लिकेशन, बहादुरपुर, साउथ ईस्ट दिल्ली - 110044
मूल्य    - 150/-  
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पवन रजक काव्य जगत के लिए निःसंदेह एक नया नाम हैं, किन्तु वे नेपथ्य में रह कर एक लम्बे समय से काव्य सृजन कर रहे हैं। यह लम्बा समय बहुत दीर्घ भी नहीं है क्योंकि 05 अक्टूबर 1995 को ग्राम नरयावली में जन्मे पवन रजक अभी बहुत कम आयु के हैं जबकि उनकी कविताओं से उनकी आयु का अनुमान लगाना कठिन है। ‘‘कौन हूं मैं’’ इनका प्रथम काव्य संग्रह है जिसे मैं पवन रजक के काव्यात्मक उद्घोष का मंगलाचरण कहूंगी। इस प्रथम काव्य संग्रह की भूमिका लिखने का फोन पर आग्रह किया। मेरी स्वीकृति मिलने पर उन्होंने मुझे पांडुलिपि उपलब्ध करा दी। मेरी भेंट पवन से नहीं हुई थी। मैंने उनकी कविताएं पढ़ी और कविताओं में निहित गंभीर चिंतन ने मुझे प्रभावित किया। कई महीनों बाद जब उनका संग्रह प्रकाशित हो कर आया और उन्होंने मुझे भेंट किया तब संग्रह में दिए गए पवन के परिचय से मुझे उनकी वास्तविक आयु का पता चला। मैं यह सोच कर चकित रह गई कि ग्रामीण परिवेश में रह कर शिक्षा प्राप्त करने वाले एक युवक का जीवन के प्रति कितना गहरा दृष्टिकोण है।  

पवन रजक ने अपने इस प्रथम काव्य संग्रह में अपनी अतुकांत कविताओं को रखा है। जब पवन की कविताओं को मैंने पढ़ना आरम्भ किया तो मुझे लगा कि इस युवा कवि में अपार संभावनाएं हैं क्योंकि एक कवि के लिए जो सबसे पहला आवश्यक तत्व होता है संवदेनाओ का कोमल किन्तु दृढ़ उद्घोष, वह मुझे इस संग्रह की कविताओं में गुंजित होता सुनाई पड़ा। वस्तुतः कविता मन और आत्मिकता के मेल से उत्पन्न होती है। इसीलिए काव्यशास्त्रों में कवित्व को आत्मा की अनुभूति कहा गया है। जब कोई बात हमारे मन को स्पर्श करती है, हमें आंदोलित एवं आलोड़ित करती है, हमें विचार करने को विवश करती है और हम अपनी भावनाओं के आधार पर उसका आकलन करते हैं, तब जो अभिव्यक्ति बनती है, वही कविता होती है। पवन रजक एक युवा कवि हैं इसलिए उनकी कविताओं में संवेदना की सीमा अनंत है। उनकी जिज्ञासाएं अनंत हैं। सबसे पहले तो गोया वे स्वयं के बारे में जानने को उत्सुक हैं -‘‘कौन हूं मैं?’’ यह एक ऐसा यक्षप्रश्न है जिसका उत्तर मनुष्य के रूप में मनुष्य के लिए पाना कठिन है किन्तु यदि वह दार्शनिक भाव से विचार करे तो इसका उत्तर उसे ‘‘भगवद्गीता’’ के अध्याय (2/12) में मिल जाएगा, जहां श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि -
न त्वेवाहं जातुश्चं न त्वं नेमे जनाधिप।
न चैव न मृष्यामः प्राप्य द्वैतः परम्।।
- अर्थात् कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं मौजूद नहीं था, न ही तुम, और न ही ये सभी, न ही भविष्य में हम में से कोई भी संघर्ष नहीं करेगा। सबसे सटीक उत्तर यही है कि मनुष्य भी एक प्रकृति है अथवा प्रकृति का अभिन्न तत्व है। इसीलिए वह पृथ्वी पर सदा उपस्थित है। और जब प्रकृति का होना ही पृथ्वी का होना है तो मनुष्य को स्वयं को प्रकृति के रूप में पहचान कर पृथ्वी की रक्षा करनी चाहिए। यह विस्तृत संदर्भ पवन रजक की उस एक कविता के परिप्रेक्ष्य में है जिसका शीर्षक है ‘‘मैं प्रकृति हूं’’। वे लिखते हैं- 
मैं प्रकृति हूं
मुझसे ही सब उपजे जग में
नील गगन और सुंदर वन
चांद-सितारे, फूल और कलियां
करती हूं सबकुछ अर्पण
मुझको रोज पूजने वाले
हर मानव की मैं संस्कृति हूं 
मैं प्रकृति हूं।

कविता के इस आरंभिक अंश में ही कवि ने मानो अपने प्रश्न ‘‘कौन हूं मैं’’ का उत्तर पा लिया है। फिर भी जीवन की जटिलताएं बार-बार उलझाती हैं। जीवन आसान नहीं है। जटिल परिस्थितियां  अनेक उत्तरों को भी अनुत्तरित कर देती हैं। अपने दुख, पराए दुख, दुख के कारण और दुख के प्रकार ये सभी आंदोलित करते हैं और इस प्रश्न को बार-बार उछालते हैं कि ‘‘कोई जीत कर क्या जीता और कोई हार कर क्या हारा?’’ ठीक यही प्रश्न मौजूद है पवन की कविता में। कवि ने अतीत के उदाहरणों को सामने रख कर वर्तमान को टटोलने का प्रयास किया है और प्रश्न किया है-
किसी ने जीता महाभारत का रण 
कई कईयो बार दिल्ली जीतें, 
हर युग में द्वंद हुए जिनमें 
कई कईयों के जीवन बीते। 
अर्जुन स्वयंवर मे द्रोपदी जीता 
सिकंदर ने जीत लिया भूगोल सारा, 
पर कोई जीत के क्या जीता 
और कोई हार कर क्या हारा।    

कवि पवन ने सामाजिक जीवन के यथार्थ को भी अपनी कविताओं में बड़ी मार्मिकता से पिरोया है। समाज में स्त्रियों की दशा लगभग सदा उपेक्षापूर्ण रही है। फिर भी स्त्रियां अपनी कोमल भावनाओं में जीती हुई डटी रहती हैं। वे हार नहीं मानती हैं। ‘‘फुआ’’ को ले कर लिखी गई उनकी कविता परिवार के उस रिश्ते की विडंबनाओं का आकलन करती है जिसकी ओर प्रायः किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। फुआआंे को ले कर लिखी गई इस में बड़ी ही खूबसूरती से जिंदगी के बारीक से बारीक अनुभवों को शब्दों में पिरोया गया है। फुआ भी एक स्त्री होती है जो समाज की अन्य स्त्रियों से अलग नहीं है, उसे भी विसंगतियां झेलनी पड़ती हैं, फिर भी वह अपने कतर््व्यों से विमुख नहीं होती है। कविता का एक अंश देखिए-
भोर हुई ही थी आई खबर 
कि एक और फुआ शांत हुई, 
सालों तक तो आती रही 
पर सालों पहले एकांत हुई।
वह फुआ मुझे सैनिक लगी
जिसने जीवन का मान किया है, 
दो कुलों के मान के खातिर 
प्राणों का बलिदान किया।

अपनी अभिव्यक्ति के दायरे में जीवन की सहज अनुभूतियों और संवेदनाओं को प्रकट करती पवन रजक की कविताएं बहुत-सा अनकहा कह जाती हैं जिसके कारण संग्रह की कविताओं में एकरसता नहीं, वरन विविध रंग समाए हुए हैं। ये सभी जीवट रचनाएं हैं जो जीवन के अनुभवों से गुज़र कर शब्दों तक आई हैं। इन कविताओं में रचनाकार के सरोकारों का दायरा विस्तृत है और वैयक्तिक भावों के अतिरिक्त कवि नेे सामाजिक सरोकार पर बेहद पैनी और सधी हुई पंक्तियां कही हैं। ‘‘गांव की पंगत’’ सामाजिक सरोकारों पर एक सटीक कविता है। कवि पवन की यह विशेषता है कि वे समाज से ही नए बिम्ब चुनते हैं जिससे उनकी कविताएं और अधिक यथार्थवादी बन कर उभरती हैं। जैसे ‘‘गांव की पंगत’’ कविता में उन्होंने ‘‘पंगत’’ अर्थात् सामूहिक-भोज को जीवनधारा में सामाजिक लोकाचार के महत्व को बड़ी बारीकी से रेखांकित किया है। यूं तो संग्रह में कई कविताएं हैं जिन पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है किन्तु बिना किसी चर्चा-परिचर्चा के भी उन्हें पढ़ा जा सकता है। फिर भी संग्रह की एक और कविता है जिसकी चर्चा मैं यहां करना चाहती हूं -‘‘ऐसा क्यों है’’। इस कविता में कवि ने उन परिस्थियों की ओर लक्ष्य किया है जिनके कारण समाज में विसंगतियां उत्पन्न होती हैं। जिनके कारण मनुष्य मनुष्य के बीच भेद-भाव बढ़ता है और जो जीवन में अशांति फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराई जा सकती हैं -‘‘ये भय/ ये झिझक/और ये/डर क्यों है,/वक्त के कोहरे से ढका/गुमनाम सा मेरा घर क्यों हैं।/आंधियों से जूझता दिन का हर/पहर क्यों है,/तूफान टकराकर हवेली से/मेरे झोपड़ पर ढाता कहर क्यों है।’’

कवि पवन अपनी कविताओं में बड़ी सादगी से कटाक्ष करते हैं। उनकी कविताओं की छोटी-छोटी पंक्तियां भी बड़े-बड़े भाव समेटे रहती हैं। कवि के शब्द-विन्यास में सटीकता है। वे अपनी बात पूरे विश्वास के साथ कहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि युवा कवि पवन रजक के पास एक गहरी काव्य दृष्टि है। उनमें अभिव्यक्ति की उत्कट आकांक्षा है। वे समाज से ही नहीं वरन समय से भी संवाद करना चाहते हैं और इसीलिए वे अतीत के पन्ने पलट कर ‘‘रामायण’’, ‘‘महाभारत’’ तथा अन्य पौराणिक ग्रंथों के उद्धरण सामने रखते हैं ताकि उनसे सीख ले कर समाज अपना वर्तमान सुधार सके, संवार सके। यही वे विशेषताएं हैं जो पवन रजक को एक संभावनाशील कवि बनाती हैं। बेशक़ अभी उन्हें अभी स्वयं को विचारों और शिल्प के स्तर पर तराशना है क्योंकि निरंतर तराशे जाने पर ही एक श्रेष्ठतमकला स्थापना पाती है। निरंतरता ही शाश्वत प्रक्रिया है जो एक कवि को भी परिपक्वता की ओर ले जाती है। इस प्रथम संग्रह की कविताओं को पढ़ कर मुझे पूरा विश्वास है कि यदि इसी प्रकार सतत सृजन करते रहें तो पवन रजक काव्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाएंगे। यह भी विश्वास है कि इस संग्रह की कविताएं पाठकों को भी पसंद आएंगी तथा आत्मीय लगेंगी।
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