Tuesday, November 11, 2025

पुस्तक समीक्षा | इतिहास की एक गरिमामयी प्रेमकथा की तथ्यात्मक एवं रोचक प्रस्तुति | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

पुस्तक समीक्षा | इतिहास की एक गरिमामयी  प्रेमकथा की तथ्यात्मक एवं रोचक प्रस्तुति | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
पुस्तक समीक्षा
इतिहास की एक गरिमामयी  प्रेमकथा की तथ्यात्मक एवं रोचक प्रस्तुति
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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लेखक      - राजगोपाल सिंह वर्मा
प्रकाशक     - हिन्दी युग्म, सी-31, सेक्टर 20, नोएडा (उ.प्र.) - 201301
मूल्य       - 399/-
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जितना कठिन इतिहास का लेखन है उतना ही कठिन इतिहास के तथ्यों पर लिखना है। इतिहास संबंधित लेखन हमेशा साक्ष्य मांगता है। कल्पना का सहारा लिया जाता है किन्तु तत्कालीन ऐतिहासिक तथ्यों की शर्तों पर। इसी प्रकार इतिहास में राजा-रजवाड़ों पर भले ही कल्पना की उड़ान को थोड़ी उन्मुक्तता दे दी जाए किन्तु जब बात किसी ऐसे व्यक्तित्व की हो जिसकी छवि एक वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की हो तो लेखन और अधिक सावधानी मांगता है। सत्य भी प्रस्तुत कर दिया जाए और छवि भी सुरक्षित रहे, यह दोधारी तलवार लेखक से अथक श्रम मांगती है। लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा न केवल श्रमसाध्य लेखन में निपुण है वरन वे ऐतिहासिक तथ्यों को पूरी सच्चाई के साथ प्रस्तुत करने में भी माहिर हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘‘सुभाष-एमिली: अधूरे प्रेम की पूरी कहानी’’ सुभाषचंद्र बोस के एमिली के प्रति प्रेम को बड़ी सुंदरता एवं तथ्यात्मकता से सामने रखती है। 
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुभाषचंद्र बोस का अपना अलग ही स्थान रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के लिए बाकायदा सेना का गठन, महिला ब्रिगेड का गठन, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पाने की अर्थपूर्ण चेष्टा आदि वे प्रयास थे जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस के इरादों को स्पष्ट कर दिया था कि यदि आवश्यकता पड़ी तो अंग्रेजों से युद्ध कर के देश को स्वतंत्र कराएंगे। यद्यपि महात्मा गांधी सुभाषचंद्र बोस के सैन्य प्रयास से सहमत नही थे किन्तु वे ‘‘नेताजी’’ के नाम से ख्याति प्राप्त सुभाष को रोक भी नहीं सके। गांधी जी के प्रयासों के नरमदल के समानान्तर गरमदल भी अपने प्रयास में संलग्न रहा। 
एमिली शेंकल से सुभाषचंद्र बोस की भेंट सन 1943 में हुई थी। वे ऑस्ट्रियाई मूल की थीं। 26 दिसम्बर 1910  जन्मीं एमिली शेंकल आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थीं। सुभाषचंद्र बोस ने उनके व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर उन्हें अपना निज सचिव बनाया। धीरे-धीरे उनके बीच प्रेम पुष्पित-पल्लवित हुआ जिसके परिणामस्वरू उन्होंने दिसंबर 1937 में गुप्त रूप से विवाह कर लिया। यह विवाह आस्ट्रिया में भारतीय रीति-रिवाज से सम्पन्न हुआ था। कुछ समय बाद उनकी संतान के रूप में एक पुत्री ने जन्म लिया जो आज अनिता बोस फाफ के नाम से जानी जाती हैं। फरवरी 1943 में बोस अपनी बेटी को एमिली के पास छोड़कर जर्मन पनडुब्बी से जापान अधिकृत दक्षिणी एशिया में पहुँचे। वहाँ उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। सुभाष जापान के सहयोग से सीधी सैन्य कार्रवाई करके भारत को परतंत्रता से मुक्त कराना चाहते थे। अपने इस अभियान में वे सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे थे कि उनका विमान ताइपेई (ताइवान) में 18 अगस्त 1945 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया। प्राप्त तथ्यों के अनुसार सुभाष मंचूरियन पेनिनसुला की ओर जा रहे थे।
     सुभाषचंद्र एवं एमिली की पुत्री अनिता बोस फाफ ऑग्सबर्ग यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुकी हैं। इस समय वे अपने पति प्रो मार्टिन फाफ के साथ उनकी जर्मनी में रहती हैं। माँ के साथ रहने के कारण वियेना में लोग उसे अनिता शेंकल फाफ के नाम से जानने लगे। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद अनिता ने प्रोफेसर मार्टिन फाफ के साथ विवाह कर लिया। उनके पति बुण्डेस्टैग जर्मनी की संसद के सदस्य थे और जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी से सम्बन्ध रखते थे। उन दोनों के एक बेटा व दो बेटियां कुल तीन बच्चे हैं। बेटे का नाम है पीटर अरुण और बेटियों का थॉमस कृष्णा व माया कैरीना। अनिता अपने पति की जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी में सहयोग करती रहती हैं।
       सभी जानते हैं कि सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, ओडिशा में हुआ था और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, जहाँ वे एक प्रभावशाली नेता बने। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। उन्होंने  स्वतंत्रता की अलख जगाने के लिए जनता को कुछ अद्वितीय नारे दिए, जैसे- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, दिल्ली चलो और जय हिन्द। इन नारों ने भारतीयों में देशभक्ति और क्रांति की भावना को जागृत किया। दुर्भाग्यवश 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, हालांकि उनकी मृत्यु से जुड़े रहस्य आज भी कायम हैं।
            एमिली शेंकल बौर उनकी पुत्री अनिता को सुभाषचंद्र बोस के परिवार की ओर से कोई सहायता नहीं मिली। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एमिली ने तारघर में नौकरी करके अपना व अपनी पुत्री का पालन पोषण किया। एमिली 1996 तक जीवित रही। उसकी बेटी अनिता के अनुसार एमिली ने सुभाषचन्द्र बोस के साथ अपने सम्बन्धों को कभी सार्वजनिक नहीं किया। वह अपने पति का नाम गुप्त रखकर ही इस दुनिया से चली गयी। यह एक स्वातंत्र्य योद्धा की एक ऐसी प्रेम कथा है जिसमें पूरी गरिमा के साथ प्रेम का निर्वहन किया गया किन्तु परिस्थितियों ने इसे दुखांत की ओर धकेला। लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा ने ऊपर से सीधी-सादी प्रेम कथा दिखने वाले इस सत्य प्रसंग में उस मानवीय पक्ष को रेखांकित किया है जो सुभाष और एमिली की अधूरी प्रेमकथा को पूरी तरह से बयान करता है। देखा जाए तो यह प्रेम-कथा नहीं, बल्कि इतिहास का वह तथ्यात्मक दस्तावेज है, जो सुभाषचंद्र बोस के लौह व्यक्त्वि से पर्दा उठा कर उनके कोमल पक्ष को प्रस्तुत करता है। एक ऐसे योद्धा की प्रेम कथा जो देश के लिए समर्पित था किन्तु उसके सीने में भी दिल धड़कता था। उसे भी किसी से प्रेम हो सकता था। पुस्तक के आरंभिक पन्ने में ही लेखक ने सुभाषचंद्र बोस का एक वक्तव्य दिया है जो इस प्रकार है-‘‘मैं तुम्हारे अंदर की औरत को प्यार करता हूं, तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं। तुम पहली औरत हो जिससे मैंने प्यार किया है।’’
       सुभाषचंद्र बोस का यह उद्गार बताता है कि उन्हें एमिली से कितना अधिक प्रेम था। साथ ही इस बात का भी साक्ष्य देता है कि प्रेम मनुष्य को उसके लक्ष्य से नहीं डिगाता है वरन उसे दृढ़तापूर्वक अपने कर्तव्यपथ पर  बढ़ने की प्रेरणा देता है। सुभाष एमिली के प्रेम में पड़ कर अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए वरन वे तेजी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। लेखक राजगोपाल वर्मा ने सुभाषचंद्र बोस और एमिली के  उस संबंध की व्याख्या की है जहां युद्ध और स्वतंत्रता प्राप्ति के लक्ष्य के कड़े कर्तव्यबोध के बीच प्रेम का अंकुर फूटता है और प्रेम को देश, काल, परिस्थितियों से परे उस ऊंचाई तक ले जाता है जहां उनके प्रेम को न केवल सामाजिक वरन ऐतिहासिक स्वीकृति मिलती है। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने व्यक्तिगत पहल से न केवल एमिली शेंकल को नेताजी की पत्नी और अनिता को उनकी पुत्री के रूप में सार्वजनिक मान्यता दिलाई, बल्कि उन्हें आजीवन गरिमापूर्ण सहायता भी सुनिश्चित की। अर्थात प्रेम ने नेहरू और सुभाष के मध्य पाई जाने वाली वैचारिक असहमति पर भी विजय प्राप्त की। इस पुस्तक को लिख कर लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा ने गोया एक ऐतिहासिक दस्तावेज को रोचक ढंग से लेखबद्ध किया है। पुस्तक के पहले अध्याय में उस समय का विवरण है जब सुभाषचंद्र बोस कथित हवाई दुर्घटना में मारे गए थे। उस दुर्घटना का रहस्य हमेशा रहस्य ही रहा। 
कुल 33 उपशीर्षकों में विभक्त पुस्तक के कलेवर में सरकारी अभिलेख, समाचार, शोघपत्र, निजी पत्र आदि को तथ्यों के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो सामग्री की विश्वसनीयता को सिद्ध करते हैं। पुस्तक में एमिली एवं सुभाषचंद्र के तत्कालीन छायाचित्र दिए गए हैं। साथ ही पुस्तक के अंत में संदर्भसूची है जो लेखक के श्रम एवं तथ्यों की प्रामाणिकता को साबित करती है। शिशिर कुमार बोस एवं सुगत बोस ने एमिली और सुभाषचंद्र के पत्रों को संपादित कर जनता के साामने लाने की अनुमति दी। तथ्यों को अंग्रेजी, जर्मन और बांग्ला से अनूदित कर हिन्दी में इस पुस्तक में उपलब्ध कराया गया है। त्वरित उपलब्धि और प्रसिद्धि की भूख वाले आज के समय में राजगोपाल सिंह वर्मा जैसे लेखक ही इतना श्रम और धैर्य रख कर इस पुस्तक को उचित स्वरूप दे सकते थे, जो कि उन्होंने दिया। 
        ‘‘सुभाष-एमिली: अधूरे प्रेम की पूरी कहानी’’ पुस्तक न केवल एक ऐतिहासिक सत्य से परिचित कराती है वरन मानवीय भावनाओं के प्रति समझ को बढ़ाती हुई तत्कालीन ऐतिहासिक परिवेश को समझने में भी सहायता करती है। इस पुस्तक को पढ़ना, तत्कालीन देश-काल में विचरण करने के समान प्रतीत होता है, ठीक किसी टाईम कैप्सूल में बैठ कर समय को लांघने की भांति। यह इतनी रोचक ढंग से लिखी गई है कि किसी भी पाठक का इसे बार-बार पढ़े जाने का मन करेगा।       
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1 comment:

  1. पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगाती सुंदर समीक्षा

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