Monday, January 31, 2011

गुलसिरीन का सपना


 - डॉ. शरद सिंह 
 (साभार-‘दैनिक नई दुनिया’,23 जनवरी 2011 में प्रकाशित मेंरा लेख)
     ‘नारी प्रताड़ना के विरुद्ध कानून तो हैं लेकिन उन्हें पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता।’ गुलसिरीन ओनांक का कहना है। उनका यह कथन दुनिया के लगभग सभी देशों पर सही बैठता है। वैसे गुलसिरीन ओनांक एक व्यवसायी महिला हैं और तुर्की सी.एच.पी. पार्टी असेम्बली की निर्वाचित सदस्य हैं। सुम्हूरियत हाक पार्टी (रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी) का गठन सन् 1930 में तुर्की के महान नेता कमाल अतातुर्क ने किया था। सन् 1995 में एक और देसज पार्टी एस.एच.पी. इसमें आ मिली। 22मई 2010 को सी.एच.पी. पार्टी  के अध्यक्ष के रूप में ट्यून्सिली के नाझीमिये जिले में सन् 1948 में जन्मे कमाल किलिस्दरोग्लू चुने गए। पार्टी का नेतृत्व कमाल किलिस्दरोग्लू के हाथ में आने के बाद इसके नवीनीकरण पर ध्यान दिया गया और जब पार्टी को सुदृढ़ बनाने का प्रश्न आया तो समाज के बुनियादी मुद्दों को प्रमुखता दी गई। इन मुद्दों में स्त्रिायों को को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का एक अहम मुद्दा शामिल किया गया। इसके लिए पार्टी में बड़ी संख्या में महिलाओं को स्थान दिया गया। भारत में इस बात को पहले ही स्वीकार किया जा चुका है कि राजनीति में स्त्रिायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने से स्त्रिायों के हित में सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। यह बात और है कि पंचायतों में निर्वाचित स्त्रिायों में से कई आज भी घर की चौखट के भीतर रहती हैं और उनकी ओर से सारे कामकाज उनके पति अथवा परिवार के अन्य पुरुष करते हैं। वैसे तुर्की में सी.एच.पी. पार्टी वह राजनीतिक दल है जो मानवाधिकार के पक्ष में लगातार आवाज़ उठाता रहता है। इसी दल की सदस्य गुलसिरीन ओनांक का सपना है कि तुर्की की औरतें पुरुषों के कंधो से कंधा मिला कर काम करें और अपने अधिकारों के साथ सिर उठा कर जिएं। सी.एच.पी. की एक अन्य सदस्य कीमाल किलिक्डारीग्लु की टिप्पणी भी कम दिलचस्प नहीं है। उनका मानना है कि ‘हम विश्वास करते हैं कि औरतों को दिए जाने वाले अधिकार औरतों की समस्या को तो हल करेंगे ही, साथ ही पुरुषों की समस्याओं को भी हल करेंगे।’
गुलसिरीन का सपना और कीमाल की आशा का पूरा होना इतना आसान नहीं है क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्रात्मक देश भारत में जब स्त्री-पुरुष की समानता काग़ज़ी आंकड़ों में अधिक दिखाई देती है, सच्चाई में कम तो तुर्की में समानता का दिन आना अभी बहुत दूर मानना चाहिए। भारत में स्त्रिायों की दुर्दशा का हाल किसी से छिपा नहीं है। झुग्गी बस्तियों से लेकर विदेशों में सेवारत राजनयिकों तक के घरों में औरतें घरेलू हिंसा की शिकार होती रहती हैं। यदि पड़ोसियों तक उनकी चींख-पुकार पहुंच गई और पड़ोसी जागरूक हुए तो उनकी रक्षा हो जाती है अन्यथा पति द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर के डीप-फ्रीजर में रख दिए जाने की घटनाएं भी हमारे देश में होती हैं। फिर भी यह माना जा सकता है कि जब तमाम विपरीत स्थितियों के रहते हुए भी भारतीय स्त्रियों ने हार नहीं मानी तो तुर्की की गुलसिरीन के सपने को भी अपना संघर्ष जारी रखना ही चाहिए। ‘कस्बों में रहने वाली औरतों के हक़ में बुनियादी ज़रूरतों की लड़ाई  लड़नी होगी। हर घर के दरवाज़े पर जा कर उनकी कठिनाइयों को सुनना, समझना और उसका हल ढूंढना होगा।’ टर्किश बूमेन्स यूनियन की अध्यक्ष यह मानती हैं। गुलसिरीन भी यही मानती है। 
गुलसिरीन अपने देश की औरतों की पीड़ा अच्छी तरह समझ सकती हैं क्योंकि उन्हें अधिकारों का पता चल चुका है। वे एक व्यावसायी के रूप में अपने अस्तित्व को स्थापित पाती हैं। जिसने अधिकारों का स्वाद चख लिया हो वह उसके लाभों के बारे में भली-भांति जान सकता है। भारत में भी अनेक व्यावसायी स्त्रियां जो अपनी सामर्थ्य का अंशदान आम स्त्रिायों के हित में करती रहती हैं। ऐसी महिलाओं के प्रयास से अनेक चैरिटेबल ट्रस्ट चल रहे हैं। लेकिन गुलशिरीन और उनकी पार्टी की अन्य महिलाओं का प्रयास इस अर्थ में भी महत्वपूर्ण है कि उनका प्रयास इस्लामिक दुनिया की स्त्रिायों को भी नई राह दिखा सकेगा। यदि वहां भी हमारे देश की तरह महिलाओं से जुड़े मुद्दे संसद के पटल पर आ कर भी फिसलते न रहो, यदि वहां भी खाप पंचायतें संवैधानिक न्याय व्यवस्था की धज्जियां न उड़ाती रहें, यदि वहां भी स्त्रिायों को समान अधिकार दिए जाने के इरादे सिर्फ कागजों में सिमट कर न रह जाएं।

10 comments:

  1. gulsrinji, ka sapna sach hoga,

    naari uthan ke liye kiye jaa rehe pryas sarahniy hain

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  2. संघर्ष यात्रा जारी रहे, सुपरिणाम अवश्य मिलेंगे ।

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  3. संघर्ष प्रणम्य है .......सफलता अवश्य मिलेगी |

    प्रभावी लेख |

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  4. aapne sach kha aurt ki stithi bhart men bhi dayniy hai . mahila sarpanch nam mater ki sarpanch hain . smachar ptron tak men -" sarpanch pti ne kha " se smachar parkashit hote hain . muslim deshon men stithi ka andaza lgaya ja skta hai . lekin adhikaron ke prti jagrookta badhti ja rhi hai , aaz nhin to kal aurten apne haq lekar rhengi .

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  5. बहुत सुंदर आलेख।
    कृपया यहां देखें।
    http://chitthacharcha.co.in/?p=1481#comments

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  6. संजय कुमार चौरसिया जी, आभारी हूं आपके विचारों के लिए।

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  7. सुशील बाकलीवाल जी, हार्दिक धन्यवाद! आमीन !

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  8. सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी, मैं भी दुआ करती हूं कि ऐसा ही हो!
    हार्दिक धन्यवाद!

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  9. दिलबाग विर्क जी, आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया। आभारी हूं।

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  10. मनोज कुमार जी, http://chitthacharcha.co.in/?p=1481#comments पर पहुंच कर चकित रह गई। चिट्ठाचर्चा में शामिल करके आपने मुझे जो अपनत्व, मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है, उस के लिए मैं आपकी और चिट्ठाचर्चा की बेहद आभारी हूं।
    मैं आपको धन्यवाद भर कहूं तो कम होगा, आपके मुझ जैसे नवब्लॉगर्स के प्रति स्नेह ने मुझे भावविभोर कर दिया है।
    हार्दिक शुभकामनायें!

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