लेख
- डॉ.शरद सिंह
हर बार का चुनाव कुछ नए प्रतिमान सामने रख जाता है। इस बार के विधान सभा चुनावों ने जता दिया भारतीय राजनीति देश में ही नहीं वरन वैश्विक पटल पर नए प्रतिमान गढ़ रही है। इस बार के विधान सभा चुनावों ने यह भी साबित कर दिया कि राजनीतिक मैदान में महिलाओं का दबदबा बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक स्तर पर पहले उत्तर प्रदेश में महिला वर्चस्व था और अब पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में में भी महिला वर्चस्व है। राष्ट्रपति महिला हैं, देश की प्रमुख राजनीतिक दल की अध्यक्ष एक महिला हैं। विभिन्न राज्यों में महिलाएं राज्यपाल का पद सुशोभित कर रही हैं। इतना ही नहीं विदेशी मामलों के निपटारे भी एक महिला जिस कुशलता से कर रही है वह भी अपने आप में एक उल्लेखनीय उदाहरण है। हमारी संवैधानिक व्यवस्था में महिलाओं को पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। वे राजनीतिक दल में प्रवेश कर सकती हैं, अपना राजनीतिक दल गठित कर सकती हैं और अपने उसूलों के अनुरूप राजनीतिक मानक तैयार कर सकती हैं। इसी संवैधानिक अधिकार के कारण भारत का राजनीतिक परिदृश्य महिला शक्ति से परिपूर्ण दिखाई देता है।
इस परिदृश्य पर ‘महिला आरक्षण’ विधेयक की जरूरत के बारे में सोचने को मन करता है। क्या सचमुच अब भी इसकी आवश्यकता है? इस प्रश्न के पक्ष और विपक्ष दोनों में मत गिर सकते हैं। ग्रामीण स्तर पर पंचायतों में महिला पंच और सरपंचों का प्रतिशत महिला आरक्षित सीटों के कारण तेजी से बढ़ा। यह सच है कि कतिपय पंचायतों में महिला सरपंच कुर्सी पर कब्जा करती हैं और इसके बाद उनका सारा काम-काज सम्हालते हैं ‘एस.पी. साहब’ यानी ‘सरपंच पति’। लेकिन इसी सिक्के का दूसरा पहलू देखा जाए तो ग्रामीण या पिछड़े इलाके की महिलाओं को अपने अधिकार का पता तो चलने लगा है। उन्हें घर की चार दीवारों से बाहर आने का अवसर तो मिला है। यदि वे आज अपने अधिकारों को जान पा रही हैं तो कल उनका उपयोग करना भी सीख जाएंगी। स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है जितनी कि प्रायः दिखाई देती है।
देश के सर्वोच्च पद पर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील हैं।
देश की सत्ताधारी पार्टी की कमान श्रीमती सोनिया गांधी के हाथों हैं।
केंद्रशासित दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती हैं।
लोकसभा की अध्यक्ष मीराकुमार हैं।
ममता बनर्जी के राज्य में चुनाव जीतने से पहले लोकसभा में 45 और राज्यसभा में 10 महिला संसद सदस्य थीं। यह तो मानना ही होगा कि महिलाओं के राजनीतिक नेतृत्व में लोगों का विश्वास बढ़ा है।
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में महिलाओं के राजनीतिक दखल बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं की पहचान के मानक भी बदले हैं। आज औरत की पहचान का जो मानक प्रचलन में है वह स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में नहीं थे। यहां तक कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक में भी उतने समृद्ध नहीं थे जितने की इस इक्कीसवीं सदी के आरम्भिक दशकों में दिखाई दे रहे हैं। फिर भी यह तो याद रखना ही होगा कि महिलाओं का राजनीतिक सफर कहां से और किन कठिनाइयों के साथ शुरू हुआ।
महिलाओं के राजनीति में आने के इतिहास को याद रख कर ही वर्तमान का सही आकलन किया जा सकता है। ऐतिहासिक आधार के बिना महिलाओं की प्रगति का सही आकलन कर पाना कठिन है। महिलाएं राजनीति में सदा दिलचस्पी रखती रही हैं किन्तु पहले वे पर्दे के पीछे रह कर, अत्यंत सीमित दायरे में दखल दे पाती थीं। ‘राजनीति तुम्हारे बस की नहीं है!’ जैसे जुमलों से उन्हें झिड़क दिया जाता था लेकिन अब महिलाओं की राजनीतिक समझ का पुरुषों को भी लोहा मानना पड़ रहा है। सत्तर के दशक में जब देश में महिलाओं की दशा से जुड़ी पहली विशद् रपट ‘टुवर्डस इक्वा लिटी’ (1975) जारी की गई, तो घर की चारदीवारी के भीतर गहरी हिंसा की शिकार बन रही स्त्रियों के बारे में विशेष जानकारी सामने आई थी।
अस्सी के दशक में फ्लेविया एग्निस नामक वकील तथा सामाजिक कार्यकर्ता ने पति द्वारा पत्नी की प्रताड़ना के लोमहर्षक विवरणों को प्रकाश में लाया। उन दिनों फ्लेविया प्रताड़ना के अनुभवों से स्वयं भी गुजर रही थीं। ये वही विवरण थे जो उन आम भारतीय घरों में घटित होते हैं जहां पति अपनी पत्नी को प्रताड़ित मात्रा इसलिए प्रताड़ित करता है कि वह पति है और पत्नी के साथ कोई भी अमानवीयता बरतना उसका अधिकार है। यानी, पत्नी को अकारण मारना-पीटना, उसे अपशब्द कहना, उसकी कमियां गिना-गिना कर मानसिक रूप से तोड़ना आदि।
फ्लेविया की आत्मकथा ‘परवाज़’ अंग्रेजी में थी। सन् 1984 में यह महिला संगठन, ‘वीमेंस सेंटर’ द्वारा छापी गई, और तब से इसके अनेक संस्करण बाज़ार में आ चुके हैं। तब से अब तक महिलाओं की दशा में आमूलचूल परिवर्तन आया है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा-सुरक्षा के लिए मई महत्वपूर्ण कानून लागू किए जा चुके हैं। महिलाओं की जागरूकता और राजनीति में उनके दबदबे की बढ़त इसी तरह जारी रही तो एक दिन महिला प्रताड़ना जैसे मामले अतीत का किस्सा बन कर रह जाएंगे।
महिला हर जगह है, चाहे वो कैसा भी क्षेत्र हो,
ReplyDeleteअगर फ़िर भी लगता है कि आरक्षण जरुरी है तो पचास प्रतिशत कर दो, लेकिन बाकि के पचास पर अधिकार छोड दो।
आज तो दोनो तरह के दृश्य दिखाई देते हैं .. एक ओर सफल , सुखी महिलाएं हैं .. तो दूसरी ओर कष्ट भोगती असफल महिलाएं भी .. पर सफल महिलाओं की बढती संख्या को देखकर आनेवाले सुखद भविष्य का संकेत तो मिलता है .. अच्छा लिखा है !!
ReplyDeleteसुंदर आलेख..... आने वाले समय बदलाव ज्यादा सकारात्मक और प्रभावी हों तो देश की महिलाओं के लिए बेहतर है......
ReplyDeleteडॉ० शरद सिंह जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख....
आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे...चाहें वो कोई भी क्षेत्र हो !
इससे गौरवपूर्ण बात क्या होगी कि देश की प्रथम नागरिक एक महिला हैं |
वर्तमान समय में देश की राजनीति में महिलाएं विशेष योगदान दे रही हैं, तथा पुरुषवर्ग से कहीं बेहतर प्रशासन चला रहीं हैं |
नारी शक्ति लाजवाब है....
अच्छी पोस्ट है.बात तो तब है जब हर वर्ग की नारी सफल हो.
ReplyDeleteशत-प्रतिशत सहमत हूँ आपके विचारों से...विधेयक जरुरी है...इस यात्रा को अंजाम तक पहुँचाने के लिए...
ReplyDeleteऐसा होना भी क्यों नहीं चाहिये आखिर मोटे तौर पर देश की आधी आबादी भी महिलाओं की ही तो है और शिक्षा का प्रचार-प्रसार इस वर्ग में भी इतनी योग्यता वृद्धि कर ही रहा है ।
ReplyDeleteअच्छा है, बढ़ेंगी महिलायें, तभी आयेगी सच्ची समानता,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
विचारोत्जेक रचना के लिए आभार।
ReplyDeleteयदि वे आज अपने अधिकारों को जान पा रही हैं तो कल उनका उपयोग करना भी सीख जाएंगी। स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है जितनी कि प्रायः दिखाई देती है।
ReplyDeleteआशा की किरण जगाती बात कही है ... यदि महिलाओं को उनके अधिकार और बराबरी का दर्जा मिल जाए तो आरक्षण की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी ... गाँव में आज भी महिलाओं को चुनाव में यही सोच कर खड़ा किया जाता है कि उनके नाम पर उनके पति या घर वाले लोंग राजनीति कर सकें ..
लेकिन अब चेतना जागृत हो चुकी है .. काफी बदलाव आ रहा है जो एक अच्छा संकेत है
नारी को प्रकृति ने प्रबंधन का गुण प्रदान किया है.इस वरदान के कारण ही परिवार का कुशल-प्रबंधन हर नारी करती है चाहे वह अशिक्षित ही क्यों न हो. युगों से पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था के चलते नारी को उपयुक्त अवसर नहीं दिए गए , फिर भी इतिहास की कई वीरांगनाओं ने अपने शक्ति रूप का परिचय हर युग में दिया है.धीरे-धीरे समाज में चेतना आ रही है. अब परिवर्तन स्पष्ट नजर आ रहा है.आने वाला कल और भी बेहतर होगा.
ReplyDeleteनारी को राजनीतिक चेतना युक्त होना ही होगा समाज के हित में . उनको कोई वैसाखी की तरह प्रयोग ना करें , सतर्क रहना होगा .सुँदर बोधात्मक आलेख .
ReplyDeleteAll of this proves that a women can do anything and everything almost perfectly !!
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने...बड़ी गहरी और सामयिक बात कह दी आपने।
ReplyDeleteअब चेतना जागृत हो चुकी है .. काफी बदलाव आ रहा है जो एक अच्छा संकेत है
बेहतरीन आलेख....
ReplyDeleteA brilliant watch & study always impress me,a few little people use to do it. Terrible acts & facts on women open a dreadful seen . what a good thing if it would have been woman become stronger as man , world will change in to heaven. It is needed. Thanks for your commendable job .
ReplyDeleteडॉ शरद जी इसमें कोई संदेह नहीं नारियों की भागीदारी बढ़ी है आगे बढ़ी हैं सुखद भविष्य है नारियों के लिए कुछ अधिक सोचने वाली बढ़ी हैं पर इन्हें भी भ्रष्ट कुत्सित लोग मोहरा बनाये हैं इनका हाथ बांधे हैं इनका काम काज कुछ और ही चलाते हैं गहराई से देखिये पी यम को चलने वाले का कैसा नाम आता है महिला प्रधान या थाने की महिला सिपाही को कहीं दूर भेजा नहीं जा सकता इनके साथ संरक्षक रखना होता है अभी और मजबूत होने की जरुरत है हमारे महिला समाज को
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर५
आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे...चाहें वो कोई भी क्षेत्र हो !
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट...
महिला शक्ति जिन्दाबाद।
ReplyDelete---------
ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
बढ़िया लेख ...
ReplyDeleteनारी शक्ति को प्रणाम ....
Dr.Sharad ji aapke do lekh ek sath padhe hamare desh me kitna virodhabhas hai ek aur jahan nari ek shakti ki tarah desh chala rahi hai dusri aur nariyan garbhaavastha ke daouran mar rahin hain aapne bahut sare ankde diye hain ek achchha lekh hai .dono hi lekh uttam hai
ReplyDeleterachana
शरद जी आपने इस पोस्ट में बहुत मेहनत की है बहुत ही शालीन चित्रावली के संग विषय वस्तु को परोसा है फिर भी देश स्त्री अ -सुरक्षा के मामले में विश्व में चौथे पायेदान पर है .यह दुर्भाग्य पूर्ण नहीं तो और क्या है .देश की राजधानी महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगह बनके रह गई है जहां शीला जी देर रात महिलाओं को घर से न निकलने की सलाह दे चुकीं हैं .आपने अच्छे झरोखे सही मनसा से देखा लिखा है सब कुछ .
ReplyDeletebahut accha likha hai aapne aap log mere blog par bhi aaye mere blog par aane ke liye link-"samrat bundelkhand"
ReplyDeleteसमय बदलना ही चाहिये
ReplyDeleteडॉ. सुश्री शरद जी,
ReplyDeleteआधी आबादी के हक में पूरे जोर से लिखा हुआ विचारोत्त्जक लेख आँखें खोलने के लिए पर्याप्त है।
सार्थक लेखन के लिए बधाई....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
फ्लेविया एग्निस बारे में जानकारी नहीं थी। आपके इस आलेख से उनके बारे में जानकारी मिली। अच्छा लगा।
ReplyDelete@ एक दिन महिला प्रताड़ना जैसे मामले अतीत का किस्सा बन कर रह जाएंगे।
यह दिन जल्द से जल्द आए। यही कामना है।
बहुत बढ़िया और शानदार आलेख! आज के ज़माने में महिलाएँ पुरुष से हर काम में एक कदम आगे है! सारी महिलाओं को इस बात का गर्व है!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख । ग्रामीण स्तर पर भी नारी की स्थिति में सुधार हो रहा है पर अभी बहुत कुछ होना बाकी है ।
ReplyDelete--बहुत सुन्दर व सार्थक आलेख है...
ReplyDelete-----आज महिलाओं यह की स्थिति कोइ नयी बात नहीं है....भारत में सदा से ही स्त्री उच्च पदों पर विराजमान होती रही है....प्राचीन, अर्वाचीन, मध्य कालों में भी यही स्थिति थी नारी हर जगह मौजूद थी उच्चतम शिखर पर भी एवं उसी समय उसपर अत्याचार भी होते थे ...आज भी वह एक तरफ उच्चतम शिखरों पर है तो दूसरी ओर निकृष्टतम स्थिति में भी.....
---वस्तुतः यह मानव के अनाचार में लिप्तता का मामला है....न कि स्त्री-पुरुष का....
--अतः जब तक मानव मात्र...स्त्री-पुरुष दोनों सदाचारी नहीं होंगे यह द्वैत-स्थिति समाज में सदा रहेगी...बस रूप बदलकर ..चाहे जो भी काल-खंड हो...
nice blog mere blog me bhi aaye dil ki jubaan
ReplyDeleteआबादी के एक बडे हिस्से को न्याय, बराबरी, सहारे, सुनवाई, आरक्षण या उसके विकल्पों की आवशय्कता तो है - शायद बेहतर और सक्षम रूप में।
ReplyDeleteWah din jald hee aaye. Ye sahee hai ki mahilaen har kshetr men aage badh rahee hain. par abhee bhee bahut kuch karna baki hai. Aapki bat sahee hai ki pragati ke aasar hain aur sukhad hain. FLAVIA AGNES KE BARE MEN JANKAR ACHCHA LAGA
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteइस शमा को जलाए रखें।
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
वर्तमान समय में महिलाओं के पास पुरुषों के सामान ही हर क्षेत्र में कदम बढ़ाने के लिए व्यापक क्षेत्र है.
ReplyDeletenice..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा ,,.बड़ी गहरी और सामयिक बात कह दी आपने।
ReplyDeleteअब चेतना जागृत हो चुकी है काफी बदलाव आ रहा है जो एक अच्छा संकेत है