- डॉ. शरद सिंह
जब हम भू-मण्डलीकरण की बात करते हैं तो समूचा विश्व
एक ‘ग्लोबल गांव’ दिखाई देने लगता है। इस ‘ग्लोबल गांव’ के लगभग हर कोने में
भारतीय मूल के नागरिकों की बसाहट दिखाई देती है। भारत की स्वतंत्रता के बहुत पहले
से भारतीयों ने विदेशों में जा कर बसना शुरु कर दिया था। अब तो उनकी दो-तीन
पीढि़यां विदेशी धरती पर ही जन्म ले कर वहां के वातावरण में रच-बस चुकी है। जहां
तक प्रश्न विदेशों में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य का है तो वहां यह तथ्य स्पष्ट
तौर पर उभर कर सामने आता है कि विदेशी धरती पर प्रवासी भारतियों की पीढि़यां भले
ही गुज़र रही हों लेकिन अपनी मूल माटी, अपने मूल भारतीय
संस्कारों और मूल भारतीय विचारों से वे आज भी कटे नहीं हैं। इसी तथ्य का दूसरा
पक्ष उन स्त्रियों से जुड़ा हुआ है जो भारतीय मूल की हैं और प्रवासी के रूप में
विदेशों में जीवनयापन कर रही हैं। इन स्त्रिायों को अपनी मूल संस्कृति का भी पोषण
करना होता है और जहां रह रही होती हैं वहां की संस्कृति के अनुरुप भी स्वयं को ढालना
होता है। ऊपरी तौर पर देखने से यही प्रतीत होता है कि भारत में पाश्चात्य संस्कृति
का प्रभाव इतना अधिक पैर पसार चुका है कि अब भारतीय लड़कियों या स्त्रियों को
विदेशी भूमि में जा कर बसने में कठिनाई का अनुभव पहले की अपेक्षा बहुत कम होता
होगा। किन्तु प्रवासी महिला कथाकारों की कहानियों में जो स्त्री उभर कर सामने आती
है, वह एक अलग ही जीवन-कथा कहती है। यह जीवन कथा स्त्री के अंतर्द्वन्द्व
की है, यह जीवन कथा दो भिन्न संस्कृतियों के बीच मालमेल बिठाते
रहने की है, यह जीवन-कथा स्त्री के उस पक्ष की है जिसमें वह स्वतंत्र
दिखती है किन्तु अपने जातीय (भारतीय) संस्कारों के कारण स्वयं को पाश्चात्य शैली
में स्वतंत्र कर नहीं पाती है। इस प्रकार वह दोहरे दायित्व को वहन करती रहती है।
प्रवासी भारतीय रचनाकारों में महिला कथाकारों की
भूमिका सबसे महत्वपूर्ण कही जा सकती है। इन कथाकारों ने विदेशों में बसने वाली
भारतीय स्त्रियों के मानसिक, सांस्कृतिक और वैचारिक संघर्ष को
बडे़ ही विश्लेषणात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रवासी महिला कथाकारों में
प्रमुख नाम हैं -अमेरिका की उषा प्रियवंदा, सुषम बेदी, सुधा
ओम ढींगरा, पुष्पा सक्सेना, इला प्रसाद, रचना
सक्सेना, सोमा वीरा, सीमा खुराना आदि, कनाडा
की शैलजा सक्सेना, डेनमार्क की अर्चना पैन्यूली, फ्रांस की सुचिता भट, ब्रिटेन
की उषा राजे सक्सेना, उषा वर्मा,
जकिया
जुबैरी, अचला शर्मा, कादम्बरी मेहरा, दिव्या
माथुर आदि, संयुक्त अरब अमीरात की पूर्णिमा वर्मन, स्वाती
भालोटिया आदि, कुवैत की दीपिका जोशी आदि। ये सभी लेखिकाएं
स्त्री-जीवन के विविध पहलुओं पर गंभीरता से दृष्टिपात करते हुए सम्पूर्ण समाज के
आचरण की गहराई से मीमांसा करती हैं। सभी प्रवासी लेखिकाओं पर एक लेख में चर्चा
करना अति विस्तार का विषय हो जाएगा अतः इस लेख में पांच लेखिकाओं की एक-एक कहानी
पर चर्चा की जा रही है। ये पांचों कहानियां परस्पर भिन्न कथानकों पर आधारित हैं।
ये कहानियां हैं - सुषम बेदी की ‘संगीत पार्टी’, जकिया जुबैरी की ‘मारिया’, अचला
शर्मा की ‘चौथी ऋतु’, पूर्णिमा वर्मन की ‘यूं ही चलते हुए’ और दिव्या माथुर की
‘2050’।
सुषम बेदी |
अमेरिका
में रह रहीं सुषम बेदी की कहानियों में भारतीय और पश्चिमी संस्कृति के बीच उहापोह
में जीते भारतियों की मानसिक दशा और जीवनचर्या का सटीक चित्रण मिलता है। उनकी
कहानी ‘संगीत पार्टी’ भी इसी तरह के कथानक पर आधारित है। यह कहानी तेईस वर्ष की
आयु की एक ऐसी लड़की की है जिसका पालन-पोषण अमेरिका में हुआ। उस लड़की के विवाह को
ले कर चिन्तित हैं। इससे भी अधिक चिन्तित हैं कि उनकी बेटी उन्मुक्त अमेरिकी समाज
के आचरण को अपनाते हुए किसी ऐसे जीवनसाथी को न चुन ले जो उसके योग्य न हो।
जकिया जुबैरी |
लंदन में रहने वाली जकिया जुबैरी लेबर पार्टी के
टिकट पर दो बार चुनाव जीत कर काउंसलर निर्वाचित हो चुकी हैं। जकिया जुबैरी ने
हिन्दी और उर्दू के बीच की दूरी को पाटने के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलन-2007 में
महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। जकिया जुबैरी की कहानियों में स्त्रियों का मनोवैज्ञानिक
पक्ष विश्लेषणात्मक रूप में सामने आता है।
अचला शर्मा |
ब्रिटेन में ही रहने वाली अचला शर्मा ने
बी.बी.सी की हिन्दी सेवा से से संबद्ध रहीं तथा अध्यक्ष पद भी उन्होंने सम्हाला।
उनकी कहानी ‘चौथी ऋतु’ लगभग सत्तर साल की एक बूढ़ी की हृदयस्पर्शी कहानी है। यह
स्त्री के अकेलेपन का एक ऐसा कोलाज़ बनाती है जिसमें वृद्धावस्था में अकेलेपन का
एक-एक रंग साफ-साफ दिखाई देता है।
पूर्णिमा वर्मन |
संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाली पूर्णिमा वर्मन का
साहित्य जगत से घनिष्ठ संबंध है। वे बेव पत्रिका की संपादन के साथ विविध विधाओं के
लेखन से भी जुड़ी हुई हैं। ‘यूं ही चलते हुए’ पूर्णिमा वर्मन की एक
महत्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी से गुज़रते हुए प्रवासी स्त्री-जीवन के एक साथ अनेक
पक्ष देखने को मिल जाते हैं कि वे किस तरह परिस्थितियों से तालमेल बिठा कर स्वयं
को उसके अनुरुप ढालती रहती हैं। इसी तथ्य को लेखिका ने भी बड़े ही सहज ढंग से
पाठकों के सामने रखा है।
दिव्या माथुर |
ब्रिटेन में रहने वाली दिव्या माथुर अपनी कहानियों
में प्रवासी स्त्रियों के वर्तमान के साथ ही भविष्य का चिन्तन भी करती हैं। उनकी
एक चर्चित कहानी ‘2050’ वस्तुतः उस ‘फ्यूचर विज़न’ की कहानी है जब ब्रिटेन में
रहने वाली एशियाई स्त्री को मातृत्व के लिए तरसना पड़ेगा, छटपटाना पड़ेगा और
तत्कालीन ब्रिटिश नियमों के तहत ‘समाज सुरक्षा परिषद’ से अनुमति मिले बिना कोई भी
स्त्री मां नहीं बन सकेगी।
यदि समग्र प्रवासी साहित्य पर दृष्टि डाली जाए तो यह
तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि प्रवासी महिला कथाकार पूरी संवेदना और गंभीरता के साथ
कथालेखन में संलग्न हैं और उनकी कहानियों में मिलने वाली स्त्रियां दो विपरीत
संस्कृतियों के बीच सेतु बन कर संघर्षरत रहने की मर्मस्पर्शी कथा कहती हैं। ये
स्त्रियां कहीं से भी लाचार या थकी हुई नहीं है, वे सक्षम हैं अपने लिए
रास्ता ढूंढने में और भावी पीढ़ी को रास्ता दिखाने में। वस्तुतः प्रवासी महिला
कथाकारों की ये कहानियां हिन्दी साहित्य का महत्वपूर्ण एवं अभिन्न हिस्सा हैं।
(विगत
27-28 अप्रैल 2012 को श्री अरविन्द महिला कालेज पटना बिहार में ‘समकालीन हिन्दी
कथा साहित्य और महिला लेखन’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किए
गए मेरे लेख का सारांश जो स्मारिका में प्रकाशित है. यह लेख
विस्तृत रूप में पुस्तक में कालेज द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है.
Bhartiya mahilaye sashkt vyaktitv wali hoti hai.sanskar panch pidhi tak surkshit rakhe hai.In sabhi mahilao ko yah malum hai,videsho me bhartiya mahilaye he jyada lekhan kar rahi hai,pursh apne jevika-uparjan me lage hai.ye mahilaye pure vishv ke samajo ko disha dene me sksham hai,mujhe yah anubhuti hoti hai.dusri,tesri pidhi badhne ke saath local samajik vyavastha Aatmsat hona bhi samanya prakriya hai.Global-village me bhartiya mahilaye..vishav ke sabhi samajo ke mahilao ka netratb karne me sksham hai.Aap-ko prakashit kratiyo,mahilo PAR sahitya SRAJAN me yog-dan par HARDIK subh-kamnaye.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी देता लेख ... परवासी लेखिकाओं से परिचय अच्छा लगा ॥
ReplyDeleteडॉ. शरद आपके विलक्षण कार्य ही आपको स्कालर बनाते हैं,/ख़ुशी होती है आज के परिवेस में भी उद्दात रूप से कार्य करने वाले भी हैं ,एकला चलो की हिम्मत रखते हैं/ शैक्षणिक कार्यों में शिक्षा मनोयोग में हम कहाँ हैं ,चिंता होती है ......साहित्य ,विश्लेषण ,यथार्थ समायोजन ,व सृजित कार्य को यथा योग्य सम्मान देना ,संचरित करना बड़ा कार्य है ,कृत्य- कर्ता की आत्मा को भाव देना है ,जो आपने किया है ...... बधाई की पात्र हैं / शुभकामनयें जी /
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी देता लेख ... परवासी लेखिकाओं से परिचय अच्छा लगा ॥
ReplyDeleteआप बधाई की पात्र हैं !
शरद जी ! काफी प्रशंसनीय प्रयास है. चलिए किसी ने तो प्रवासियों की खबर ली.उनके योगदान को सराहा.बधाई आपको.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी...काश कि आप कहानियां भी शेयर कर पातीं...
ReplyDeleteपरिचयात्मक-सा लेख है।
ReplyDeletelekh se bahut se jane mane namo ke sath kuchh nai lekhikaon ke bare me pata chala, badhai. vivek mishra
ReplyDeletewww.bihiniyasanjha.blogspot.in page-6
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