Dr (Miss) Sharad Singh |
"संघर्षशील महिला नेत्री जयललिता" - मेरे कॉलम चर्चा प्लस में "दैनिक सागर दिनकर" में ( 08.12. 2016) .....
My Column Charcha Plus in "Sagar Dinkar" news paper
चर्चा प्लस
संघर्षशील महिला नेत्री जयललिता
-डॉ.शरद सिंह
एक ऐसी अभिनेत्री जिसे घर का खर्च चलाने के लिए बचपन से ही फिल्मों में काम करना पड़ा। एक ऐसी स्त्री जो सिनेमा के देह उघारू जीवन में रह कर भी मर्यादा का महत्व समझती रही। एक ऐसी राजनीतिज्ञ जिसने जनता के हित में अपनी नीतियों को कठोरता से लागू किया किन्तु किसी भी पार्टी से कोई समझौता नहीं किया। लोग उन्हें प्यार से ‘अम्मा’ और गर्व से ‘पुरातची तलाईवी’ अर्थात् क्रांतिकारी नेता कह कर पुकारते रहे। दरअसल, जयललिता...एक स्त्री के सामान्य से विशिष्ट होने के जीवन संघर्ष का जीता-जागता उदाहरण रहीं।
संघर्षशील महिला नेत्री जयललिता
-डॉ.शरद सिंह
एक ऐसी अभिनेत्री जिसे घर का खर्च चलाने के लिए बचपन से ही फिल्मों में काम करना पड़ा। एक ऐसी स्त्री जो सिनेमा के देह उघारू जीवन में रह कर भी मर्यादा का महत्व समझती रही। एक ऐसी राजनीतिज्ञ जिसने जनता के हित में अपनी नीतियों को कठोरता से लागू किया किन्तु किसी भी पार्टी से कोई समझौता नहीं किया। लोग उन्हें प्यार से ‘अम्मा’ और गर्व से ‘पुरातची तलाईवी’ अर्थात् क्रांतिकारी नेता कह कर पुकारते रहे। दरअसल, जयललिता...एक स्त्री के सामान्य से विशिष्ट होने के जीवन संघर्ष का जीता-जागता उदाहरण रहीं।
5 दिसम्बर 2016 को एक संघर्षशील महिला नेत्री एवं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री
जयललिता के अवसान का दुख देश को झेलना पड़ा। जयललिता का जन्म 24 फ़रवरी 1948
को एक ’अय्यर’ परिवार में, मैसूर राज्य (कर्नाटक) के मांडया जिले के
पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में हुआ था। उनके दादा तत्कालीन मैसूर
राज्य में एक सर्जन थे। दो साल की छोटी-सी उम्र में उन्हें अपने पिता जयराम
की मृत्यु सहन करना पड़ा। उनकी मां संध्या उन्हें लेकर बंगलौर चली आयीं,
जहां जयललिता के नाना-नानी रहते थे। बाद में उनकी मां ने तमिल सिनेमा में
काम करना शुरू कर दिया और अपना फिल्मी नाम ’संध्या’ रख लिया। उनकी
प्रारंभिक शिक्षा पहले बंगलौर और बाद में चेन्नई में हुई। चेन्नई के स्टेला
मारिस कॉलेज में पढ़ने की बजाय उन्होंने सरकारी वजीफे से आगे पढ़ाई की।
जब वे स्कूल में ही पढ़ रही थीं तभी उनकी मां ने उन्हें जता दिया कि घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें भी फिल्मों में काम करना पड़ेगा। विद्यालयीन शिक्षा के दौरान ही उन्होंने 1961 में ’एपिसल’ नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया और मात्र 15 वर्ष की आयु में वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी। उसके बाद उन्होने तमिल फिल्मों की ओर रुख किया। उन्हें ‘बोल्ड’ अभिनेत्री माना गया क्योंकि वे पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर भूमिका निभाई थी। उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगु, कन्नड़, अंग्रेजी और हिन्दी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने धर्मेंद्र सहित कई अभिनेताओं के साथ काम किया, किन्तु उनकी ज्यादातर फिल्में शिवाजी गणेशन और एमजी रामचंद्रन के साथ ही आईं। वैसे वे अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थीं। स्कूल के दिनों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ छात्रा की शील्ड मिली थी और दसवीं कक्षा की परीक्षा में उन्हें पूरे तमिलनाडु में दूसरा स्थान मिला था।
जब वे स्कूल में ही पढ़ रही थीं तभी उनकी मां ने उन्हें जता दिया कि घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें भी फिल्मों में काम करना पड़ेगा। विद्यालयीन शिक्षा के दौरान ही उन्होंने 1961 में ’एपिसल’ नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया और मात्र 15 वर्ष की आयु में वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी। उसके बाद उन्होने तमिल फिल्मों की ओर रुख किया। उन्हें ‘बोल्ड’ अभिनेत्री माना गया क्योंकि वे पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर भूमिका निभाई थी। उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगु, कन्नड़, अंग्रेजी और हिन्दी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने धर्मेंद्र सहित कई अभिनेताओं के साथ काम किया, किन्तु उनकी ज्यादातर फिल्में शिवाजी गणेशन और एमजी रामचंद्रन के साथ ही आईं। वैसे वे अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थीं। स्कूल के दिनों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ छात्रा की शील्ड मिली थी और दसवीं कक्षा की परीक्षा में उन्हें पूरे तमिलनाडु में दूसरा स्थान मिला था।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper |
एमजीआर के प्रति प्रतिबद्धता
एमजी रामचंद्रन जो संक्षेम में एमजीआर के नाम से विख्यात थे, उन्हें श्रेय जाता है जयललिता को राजनीति में लाने का। एमजीआर जयललिता से शुरू से प्रभावित थे। दूसरी अभिनेत्रियों और उनमें बहुत अंतर था। जयललिता बहुत अच्छी अंग्रेज़ी बोलती थीं। शूटिंग के समय वो एक कोने में बैठ कर अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ा करती थीं और किसी से कोई बातचीत नहीं करती थीं। देखने में बहुत सुंदर थी। जयललिता ने स्वयं ‘कुमुदन’ नामक पत्रिका में राजस्थान की एक घटना का उल्लेख किया था कि ‘‘कार पार्किंग थोड़ी दूर पर थी। पैरों में कोई चप्पल और जूते नहीं थे। एक कदम भी नहीं चल पा रही थी। मेरे पैर लाल हो गए थे। मैं कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन एमजीआर मेरी परेशानी को समझ गए और उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया।“
एमजीआर और जयललिता के संबंधों में भी बहुत उतार चढ़ाव आए। उन्होंने उन्हें पार्टी के प्रोपेगेंडा सचिव के साथ साथ राज्यसभा का सदस्य भी बनाया। लेकिन पार्टी में जयललिता का इतना विरोध हुआ कि एमजीआर को उन्हें प्रोपेगेंडा सचिव के पद से हटाना पड़ा। इस बीच एमजीआर गंभीर रूप से बीमार हो गए। जब उनका देहांत हुआ तो उनके परिवार वालों ने जयललिता को उनके घर में प्रवेश नहीं करने दिया। तब वे हथेलियों को ज़ोर-ज़ोर से दरवाजे पर मारने लगीं। जब गेट खुला तो किसी ने उनसे नहीं बताया कि एमजीआर के शव को कहां रखा गया है। वो गेट से पीछे की सीढ़ियों तक कई बार दौड़ कर गईं लेकिन एमजीआर के घर का हर दरवाज़ा उनके लिए बंद कर दिया गया। कुछ देर बाद उन्हें पता चला कि एमजीआर के पार्थिव शरीर को पिछले दरवाज़े से राजाजी हॉल ले जाया गया है। जयललिता तुरंत अपनी कार में बैठीं और ड्राइवर से राजाजी हॉल चलने के लिए कहा। वहां वो किसी तरह अपने आप को एमजीआर के सिरहाने पहुंचाने में सफ़ल हो गईं। वे दो दिनों तक एमजीआर के पार्थिव शरीर के सिरहाने खड़ी रहीं। एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन की कुछ महिला समर्थकों ने उनके पैरों को अपनी चप्पलों से कुचलने की कोशिश की। लेकिन जयललिता सारा अपमान सहते हुए वहां से हिली नहीं। जब एमजीआर के पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए गन कैरेज पर ले जाया गया तो जयललिता भी उसके पीछे पीछे दौड़ीं। उस पर खड़े एक सैनिक ने अपने हाथों का सहारा देकर उन्हें ऊपर आने में मदद की। तभी अचानक जानकी के भतीजे दीपन ने उन पर हमला किया और उन्हें गन कैरेज से नीचे गिरा दिया। जयललिता ने तय किया कि वो एमजीआर की शव यात्रा में आगे नहीं भाग लेंगीं। वो अपनी कंटेसा कार में बैठीं और अपने घर वापस आ गईं। उन्होंने तय किया कि वे एमजीआर की शवयात्रा के पीछे भागने के बदले उनके काम को आगे बढ़ाएंगी और उन्हें इस ढंग से श्रद्धांजलि देंगी।
स्त्रीत्व के अपमान के विरुद्ध शपथ
25 मार्च 1989 का दिन था। तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था।
जैसे ही मुख्यमंत्री करुणानिधि ने बजट भाषण पढ़ना शुरू किया तभी कांग्रेस के
एक सदस्य ने ‘‘प्वाएंट ऑफ़ ऑर्डर’’ उठाया कि पुलिस ने विपक्ष की नेता
जयललिता के विरुद्ध अप्रजातांत्रिक ढ़ंग से काम किया है। जयललिता ने भी उठ
कर शिकायत की कि मुख्यमंत्री के उकसाने पर पुलिस ने उनके विरुद्ध कार्यवाही
की है और उनके फ़ोन को टैप किया जा रहा है। स्पीकर ने कहा कि वो इस मुद्दे
पर बहस की अनुमति नहीं दे सकते क्योंकि बजट पेश किया जा रहा है। यह सुनना
था कि विधानसभा सदस्य बेकाबू हो गए। एआईडीएमके के सदस्य चिल्लाते हुए सदन
के मध्य में पहुंच गए। एक सदस्य ने ग़ुस्से में करुणानिधि को धक्का देने की
कोशिश की जिससे उनका संतुलन बिगड़ गया और उनका चश्मा ज़मीन पर गिर कर टूट
गया। एक एआईडीएमके सदस्य ने बजट के पन्नों को फाड़ दिया। विधानसभा के
अध्यक्ष ने सदन को स्थगित कर दिया। जैसे ही जयललिता सदन से निकलने के लिए
तैयार हुईं, एक डीएमके सदस्य ने उन्हें रोकने की कोशिश की। उसने उनकी साड़ी
इस तरह से खींची कि उनका पल्लू गिर गया और जयललिता भी ज़मीन पर गिर गईं।
एआईडीएमके के एक सदस्य ने डीएमके सदस्य की कलाई पर ज़ोर से वार कर जयललिता
को उनके चंगुल से छुड़वाया। अपमानित जयललिता ने पांचाली की तरह प्रतिज्ञा ली
की कि वो उस सदन में तभी फिर कदम रखेंगी जब वो महिलाओं के लिए सुरक्षित हो
जाएगा।
जनहित और जनप्रेम
जयललिता ने 1984 से 1989 के दौरान
तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987
में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का
उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की
पहली निर्वाचित मुख्यदमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री
रहीं। अप्रैल 2011 में जब 11 दलों के गठबंधन ने 14वीं राज्य विधानसभा में
बहुमत हासिल किया तो वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 16 मई 2011
को मुख्ययमंत्री पद की शपथ लीं और तब से वे राज्य की मुख्यमंत्री रहीं।
जयललिता ने अपने कार्यकाल के दौरान राजनीति के साथ-साथ केंद्र और राज्य के
संबंधों पर भी गहरा असर डाला। उन्होंने न केवल जनकल्याण की योजनाएं बनाईं
बल्कि उन पर अमल भी सुनिश्चित किया। वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं
की रक्षा के लिए ’क्रैडल बेबी स्कीम’ शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा
बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इसी वर्ष राज्य में ऐसे पुलिस थाने खोले
गए जहां केवल महिलाएं ही तैनात होती थीं।
महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार रोकने के लिए उन्होंने हर पुलिस वाले के मन में एक तरह से ’भगवान का डर’ पैदा किया। पार्टी पर उनका मज़बूत नियंत्रण था। उनकी पार्टी के लो उन्हें जितना पसंद करते थे, उतना लोग उनसे डरते भी थे। लोगों में मुफ़्त चीज़े बांटने की नीति ने भी उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया। मुफ़्त ग्राइंडर, मुफ़्त मिक्सी, बीस किलो चावल देने पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत टीका-टिप्पणी की, लेकिन इसने महिलाओं के जीवनस्तर को उठा दिया और आम जनता के बीच उनकी जगह बनती चली गई। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में सफल रहीं। उन्होंने अपने राज्य के हितों से कभी समझौता नहीं किया.
अपने मुद्दों को ले कर वे प्रधानमंत्रियों से टकराईं। उन्होंने मौजूदा प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी को भी नहीं बख़्शा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके इससे पिछले दो पत्रों का पीएम की ओर जवाब नहीं मिला था। क्रांतिकारी नेत्री ’अम्मा’ के जाने के बाद एआईएडीएमके किस तरह आगे बढ़ेगी या बिखर जाएगी, यह भविष्य ही बताएगा। पर इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जयललिता के साथ दक्षिण भारत की राजनीति में एक युग का अवसान हो गया।
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महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार रोकने के लिए उन्होंने हर पुलिस वाले के मन में एक तरह से ’भगवान का डर’ पैदा किया। पार्टी पर उनका मज़बूत नियंत्रण था। उनकी पार्टी के लो उन्हें जितना पसंद करते थे, उतना लोग उनसे डरते भी थे। लोगों में मुफ़्त चीज़े बांटने की नीति ने भी उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया। मुफ़्त ग्राइंडर, मुफ़्त मिक्सी, बीस किलो चावल देने पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत टीका-टिप्पणी की, लेकिन इसने महिलाओं के जीवनस्तर को उठा दिया और आम जनता के बीच उनकी जगह बनती चली गई। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में सफल रहीं। उन्होंने अपने राज्य के हितों से कभी समझौता नहीं किया.
अपने मुद्दों को ले कर वे प्रधानमंत्रियों से टकराईं। उन्होंने मौजूदा प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी को भी नहीं बख़्शा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके इससे पिछले दो पत्रों का पीएम की ओर जवाब नहीं मिला था। क्रांतिकारी नेत्री ’अम्मा’ के जाने के बाद एआईएडीएमके किस तरह आगे बढ़ेगी या बिखर जाएगी, यह भविष्य ही बताएगा। पर इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जयललिता के साथ दक्षिण भारत की राजनीति में एक युग का अवसान हो गया।
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