Dr (Miss) Sharad Singh |
युवाशक्ति शतरंज का मोहरा नहीं
- डॉ. शरद सिंह
कभी व्यापम घोटाला तो कभी शिक्षा जगत के एक्सपेरीमेंट्स, कभी माता-पिता की उच्चाकांक्षाओं का दबाव, कभी योग्यता और भविष्य से खिलवाड़, कभी बेरोजगारी की चक्की के पाटों में पिसना तो कभी सोशल मीडिया का संजाल और इन सबके साथ राजनीति का निशाना बनना, कभी-कभी ठीक वैसा ही प्रतीत होता है जैसे युवा किसी शतरंज की बिसात के मोहरे हों, जिन्हें चाहे तिरछी चाल चलाएं या ढाई घर कुदाएं। क्या सचमुच युवा शतरंज के मोहरे हैं? या फिर यह एक दुःस्वप्न है।
चर्चा प्लस ... युवाशक्ति शतरंज का मोहरा नहीं ... डॉ. शरद सिंह .. Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik |
व्यावसायिक परीक्षा मण्डल पर विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए और सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए प्रवेश के लिए बड़े पैमाने पर प्रतियोगी परीक्षाओं के संचालन की जिम्मेदारी थी। व्यापम घोटाले में सरकारी अधिकारियों, नेताओं और बिचौलियों के बीच मिलीभगत से अयोग्य उम्मीदवारों को रिश्वत के बदले परीक्षा में उच्च अंक दिला कर उन्हें उत्तीर्ण कराया गया। अयोग्य परीक्षार्थियों के स्थान पर मोटी रकम के बदले अन्य योग्य छात्रों को जिनमें पूर्व चयनित मैरिट उम्मीदवारों से परीक्षा में उम्मीदवार के तौर पर परीक्षाएं दिलाई गईं। जिस के लिए परीक्षा प्रवेश कार्ड पर असली परीक्षार्थी की तस्वीर नकली परीक्षार्थी की तस्वीर से बदल दी गयी तथा परीक्षा के बाद जिसे पुनः मूल रूप में में ले आया गया। यह कारनामा व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलीभगत में किया गया। इसके साथ ही अयोग्य उम्मीदवारों को नकली परीक्षार्थियों के साथ पूर्व निर्धारित स्थान पर इस तरह बैठाया जाता था कि नक़ल और आंसर शीट्स की अदलाबदली आसानी से की जा सके। इस के लिए बिचौलियों के माध्यम से व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों को मोटी रकमों का भुगतान किया जाता। इतना ही नहीं बल्कि अयोग्य उम्मीदवारों से उत्तर पुस्तिका ख़ाली छुड़वा दी जाती और परीक्षा के बाद इन उत्तर पुस्तिकाओं में उत्तर चिन्हित कर दिए जाते। कुछ मामलों में व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों और बिचौलियों की मिलीभगत से अयोग्य उम्मीदवारों को परीक्षा से पहले ही उत्तर कुंजी उपलब्ध कराई गई।
व्यापम घोटाले में पहली एफआईआर छतरपुर जिले में सन् 2000 में दर्ज़ की गयी थी। सन् 2004 में खंडवा जिले में सात और मामले दर्ज किए गए। इसके बाद इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने घोटाले में जांच का अनुरोध करते हुए एक जनहित याचिका दायर की। सन् 2009 में, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरोपों की जांच के लिए मेडिकल शिक्षा के संयुक्त निदेशक की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया। सन् 2014 की 15 जून को एसटीएफ ने निविदा शिक्षकों की भर्ती घोटाले में कथित संलिप्तता के चलते राज्य के पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार किया। तदोपरांत, 18 और 19 जून 2014 को पुलिस ने पीएमटी घोटाले में भागीदारी के आरोप में राज्य के विभिन्न स्थानों से 100 से अधिक मेडिकल छात्रों को गिरफ्तार किया। सितम्बर 2014 में एसटीएफ ने ख़ुलासा किया कि जगदीश सागर का रैकेट भारतीय स्टेट बैंक में भर्ती और अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए प्रवेश परीक्षा की धांधली में भी शामिल है तथा इन प्रवेश परीक्षाओं में बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान परीक्षा और भारतीय स्टेट बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर परीक्षा में भी गड़बड़ी के तथ्य सामने आए। जांच के दौरान व्यापम से जुड़े कई लोगों की संदेहास्पद मुत्यु हुई। फिर भी इस मामले में यदि किसी का सबसे अधिक नुकसान हुआ तो वह युवाओं का। बेरोजगारी से त्रस्त युवा को यदि उसकी योग्यता से बढ़ कर रोजगार का सुनहरा सपना दिखा कर भ्रमित कर दिया जाए तो उसे जाल में फंसते देर नहीं लगेगी। यही हुआ व्यापम के अंतर्गत। भ्रष्टाचारियों ने युवाओं को अपना आसान शिकार बनाया और उन्हें ठगते चले गए।
युवा वर्ग जो अपनी शिक्षण आयु से गुजर रहा होता है उसे एक विश्वसनीय शिक्षा प्रणाली प्रदान करने के बजाए अकसर नए-नए प्रयोगों में झोंक दिया जाता है। सन् 2017 में सीबीएसई ने 2009 से चले आ रहे संबंद्ध स्कूलों की छठी से नौवीं कक्षाओं के लिए निरंतर और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली को अमान्य कर दिया था क्योंकि बोर्ड को छठी से नौवीं कक्षा के लिए यूनिफॉर्म असेसमेंट स्कीम लागू करना था। इससे एक जैसा एग्जामिनेशन सिस्टम व रिपोर्ट कार्ड होने के बाद माइग्रेशन पर दूसरे राज्य में जाने वाले स्टूडेंट्स का दाखिला आसान हो जाएगा। इरादे नेक थे लेकिन मार्च 2018 में सीबीएसई पेपर लीक ने देश के लाखों बच्चों की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ किया। इस संबंध में कपिल सिब्बल ने टिप्पणी की कि ‘‘परीक्षा प्रणाली में बदलाव करने का सरकार का फ़ैसला उलटा पड़ गया है। पहले प्रश्नपत्रों के अलग-अलग सेट होते थे, इस बार एक ही सेट पूरे देश में चलाया गया।’’
मार्च, 2018 में ही मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि मप्र के विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में हों। आनंदी बेन राज्यपाल होने के नाते प्रदेश सरकार के सभी विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी हैं। परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाने पर जोर देते हुए मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों की आगामी परीक्षाएं सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में आयोजित करायी जाएं। यानी शिक्षा जगत जिसे मंदिर के समान पवित्र और निष्कलंक माना जाता रहा, वह आज किसी ख्ुली जेल में बदलता जा रहा है जिसमें गोया हर विद्यार्थी अपराधी हो और उसे सीसीटीवी के निगरानी में रहना जरूरी हो। यदि आज एक गर्वनर परिक्षार्थियों के लिए सीसीटीवी की निगरानी की इच्छा प्रकट कर रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आज ही सारी गड़बड़ी हुई हो। यह तो वर्षों से चली आ रही शैक्षिक दुरावस्था का कुपरिणाम है आज विद्यार्थियों को शिक्षण व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा और शिक्षण व्यवस्था का विद्यार्थियों पर से भरोसा उठ गया है। दरअसल शिक्षण व्यवस्था की बिसात पर विद्यार्थी वे युवा हैं जो अपने माता-पिता की उच्चाकांक्षाओं को पूरा करने की दौड़ में 500 में 500 लाने की होड़ में अपनी स्वाभाविकता गवां रहे हैं और समय से पहले कठिन जिम्मेदारियों के पाले में खड़े किए जा रहे हैं।
युवाशक्ति के राजनीतिक से संबंध कोई नए नहीं हैं। छात्रसंघों को राजनीतिक जीवन की प्राथमिक पाठशाला कहा गया है। पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया के आंदोलन और बाद में जेपी आंदोलन ने युवाओं पर बहुत व्यापक प्रभाव डाला था। लोहिया की सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता ने जहां युवाओं को राजनीति से जोड़कर सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर जागरूक किया तो जेपी ने व्यवस्था की चूलें हिला दी थीं। इन्हीं आंदोलनों की प्रेरणा थी कि भारतीय राजनीति में लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, मुलायम सिंह, सुशील मोदी जैसे समाजवादी नेताओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार हुई। भाजपा के रविशंकर प्रसाद, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और विजय गोयल छात्रसंघ से आए हुए नेता हैं। कांग्रेस के सीपी जोशी, अजय माकन, भाकपा के डी. राजा, सीताराम येचुरी, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी भी छात्रसंघ की उपज हैं। अकेले इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ से शंकरदलाय शर्मा, मदनलाल खुराना, विजय बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र, चंद्रशेखर, वीपी सिंह, अर्जुन सिंह जैसे नेता और सुभाष कश्यप जैसे प्रशासक और संविधानविद निकले। जेएनयू का छात्रसंघ इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय है और लगातार जनहित के मुद्दे उठाता रहा है। किन्तु विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव कराए जाएं या नहीं, इसे लेकर यूपीए सरकार ने पूर्व चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। सन् 2006 में लिंगदोह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कई तरह के दिशा-निर्देश और सिफारिशें थीं। कमेटी ने छात्रसंघ उम्मीदवारों की आयु, क्लास में उपस्थिति, शैक्षणिक रिकॉर्ड औैर धनबल-बाहुबल के इस्तेमाल आदि की समीक्षा करते हुए कई सिफारिशें की थीं। इस कारण तमाम योग्य छात्र न सिर्फ छात्रसंघ चुनाव लड़ने से वंचित हो गए, बल्कि एक तरह से छात्रसंघों की नकेल विश्वविद्यालय प्रशासन के हाथों में दे दी गई। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का देश भर में विरोध हुआ, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने छात्रसंघ चुनावों के लिए लिंगदोह की सिफारिशों को बाध्यकारी कर दिया। वहीं इसके उलट नए वोटर के रूप में युवाशक्ति को देखते हुए आज भी प्रत्येक दिग्गज नेता विद्यार्थियों को अपनी ओर करने का प्रयास करता है। उन्हें ये विद्यार्थी उन मोहरों के की भांति दिखाई देते हैं जो उन्हें सत्ता सुंदरी से मिलवा सकते हैं।
चाहे माता-पिता हों या राजनेता अथवा शिक्षाविद् - इन्हें युवाओं को उचित दिशानिर्देश देना चाहिए, सही रास्ता दिखाना चाहिए न कि अपनी उच्चाकांक्षाओं की शतरंज के मोहरे बना कर चलाना चाहिए। वहीं युवाओं को भी जो कि अपनी पिछली पीढ़ी के सुवाओं से कहीं अधिक समझदार और दुनियादार हैं, उन्हें भी भ्रष्टाचारियों के हाथों अपनी योग्यता का दोहन नहीं होने देना चाहिए। युवाओं को हर कदम पर यह साबित करना चाहिए कि वे योग्य हैं, संयमी हैं, शांत हैं लेकिन किसी भी शतरंज के मोहरे नहीं हैं।
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( दैनिक सागर दिनकर, 31.05.2018 )
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